Saturday, May 21, 2016

डाकुओं की रानी पुतलीबाई-- bandit queen Putlibai

चंबल की इन घाटियों में मूछों का ताव, और मर्दानगी की ऐँठन बागियों की जान और शान रही है।  बीहड़ों में चलना, घूमना और रात दिन इन गारों में सोना, जागना किसी भी आम इंसान के लिए सजा से कम नहीं  और डाकू बन कर इनको अपनी पनाहगाह में बदलना तो और भी मुश्किल भरा है।  बंदूक से गोली और जबान से गाली दोनों चंबल में मर्दानगी की निशानी रही है, ऐसे में पचास के दशक तक, कोई आदमी ये ख्वाब में भी नहीं सोच सकता था कि कोई महिला भी इन बीहड़ों में बंदूक थाम सकती है।  और न सिर्फ बंदूक थामना बल्कि डाकू बन कर इन चंबल की घाटियों में खौंफ और आतंक का नाम भी बन सकती है। । लेकिन चंबल की कहानी में चंबल की तरह ही मोड़ आते है।  इस बार चंबल की ऐसी कहानी जिसका ट्विस्ट तो ब़ॉलीवुड तो दूर हॉलीवुड को मात दे सकता है।
पुतलीबाई। चंबल के बीहड़ों में पहली महिला डकैत।  लेकिन एक महिला डकैत के चंबल की मलिका बनने तक का सफर भी अजीब सफर है। जो किसी फसाने से कम नहीं। किस्सा ऐसा कि हर पल सांस रूक जाएं और लगे कि शायद पुतली की कहानी यही रूक जाएं। लेकिन कहानी तो चलती जाती है। तबले की थाप पर थिरकने वाली पुतलीबाई गोलियों की आवाज पर भी कहकहे लगाने से नहीं चूकी। दोनों हाथों से गोलियां चलाने वाली पुतलीबाई का एक हाथ पुलिस एनकाऊंटर में जख्मी हुआ तो उसको कटवाने में पुतली ने देर नहीं की। लेकिन हाथ नहीं रहा तो पुतली का हौंसला कम नहीं हुआ बल्कि और भी बढ़ गया। पुतली एक हाथ से गोलियों की बौंछार कर पुलिस की आंखों में आँखें डाल कर मुकाबला  करती थी। बदन में लोच, गले में गमक और बिजली सी थिरकन, यही पहचान थी पुतलीबाई की चंबल के बीहड़ो में उतरने से पहले। पुतली बाई का सफर एक नाचगाने वाली से शुरू हुआ। और पहुंच गया चंबल को अपनी उंगली पर नचाने वाली पुतलीबाई तक।  घुंघरू बांध कर नाच-गाने की महफिलों की रौनक थी पुतलीबाई। चंबल के बागियों से की लेना –देना नहीं। चंबल के बागियों का उसूल था किसी औरत को गैंग में कोई जगह नहीं । गैंग में नाच गाने की महफिल भी जुड़ती थी लेकिन महफिल खत्म तो फिर नाचनेवाली से रिश्ता भी खत्म। पुतलीबाई के नाच गाने की शोहरत तो दूर-दूर तक थी। और इसी शोहरत ने तैयार कर दिया था पुतली का चंबल से ऱिश्ता। एक ऐसा रिश्ता जो दिल का रिश्ता था, दूर हुई तो दर्द का रिश्ता बना और फिर वापस बंदूक से रिश्ता बन गया। और ये रिश्ता तभी टूटा जब पुतली से सांसों का रिश्ता टूटा।
पुतलीबाई के लिए चंबल जीने का जरिया रहा तो मौत का बिस्तर भी चंबल ही बनी। कभी चंबल को गीतों से गुंजाने वाली पुतली गोलियों की गूंज में ही खो गई। पुतली की कहानी भी चंबल की कहानी का एक अमिट हिस्सा बन गई। कौन थी ये पुतली, कहां से आई थी और कैसे चली गई पुतली।चंबल के बीहड़ों की एक ऐसी कहानी जिसकों चंबल आज भी शौक से सुनाती है। गांव बरबई। तहसील अम्बाह, और जिला मुरैना।  ये चंबल के बीहड़ों में बीच बसा हुआ एक और गांव है। गांव में घुसते ही आपको एक पार्क दिखाई देगा। और गांव में घुसते ही आप को कुछ ऐसा दिखाई देगा जो आपने सोचा भी नहीं होगा। पुतलीबाई की तलाश करने गांव पहुचे लोगों को पहले दिखता है पडिंत राम प्रसाद बिस्मिल पार्क। बरबई और बिस्मिल एक करीब का रिश्ता है। ये बिस्मिल का गांव है। रामप्रसाद बिस्मिल का गांव। सरफरोशी की तमन्ना जैसा देश भक्ति का तराना लिखने और इसी गाते गाते फांसी पर चढ़ जाने वाली बिस्मिल का यही पुश्तैनी गांव है। 
लेकिन बिस्मिल की कहानी फिर कभी। आज चंबल की रानी यानि पुतलीबाई की कहानी। इस घर की टूटी हुई दीवारे आपको ये बता रही होगी की लगभग सत्तर साल से ये घर इसी तरह किसी का इंतजार कर रहा है। घर के अलग-अलग हिस्से हो चुके है। किसी को किसी ने खरीद लिया तो किसी को किसी ने। लेकिन जो रह गया उसमें एक इंतजार दिखता है। जैसे उसको घुंघरूओं की आवाज का इंतजार हो कि कब वो महफिल फिर से सजेगी, और तबले की थाप कब बजेगी और कब इस घर के आंगन में असगरीबाई की आवाज और पुतलीबाई का नाच एक बार फिर से जवां हो जाएंगा। पुतलीबाई के घर के कई हिस्से हो चुके है। और कई हिस्से बिक चुके है। पुतली के भाई के परिवार वाले इस घर को हिस्सों में बेच कर गांव से जा चुके है। बस  एक हिस्सा है जिसकी ताख पर आज भी कुछ टूटे हुए दिए रखे है। वो दिए जिनकी रोशनी में पुतली का नाच दिखता था और वो दिए जो पुतली के मरने पर एक बार बुझे तो फिर कभी नहीं जले। आज भी ताख में रखे हुए किसी का इंतजार कर रहे हो जैसे। टूटे हुए जंगलों से झांकने के लिए कुछ नहीं बचा। क्योंकि दरवाजा और जंगला जिस घर की निगहबानी कर रहे है वो घऱ तो कभी का उजड़ गया। पुतली की बेटी तन्ना एक बार गांव से क्या गई फिर इस घर के दरवाजे नहीं खुले। और वक्त का सितम ये रहा कि छत और दीवारें भी बिस्मार हो गई और बच गया दरवाजा और जंगला। दरवाजे पर लगा ताला आखिरी बार कब खुला था ये किसी को याद नहीं। 
ये पुतलीबाई का घर है। पुतलीबाई की कहानी की शुरूआत यही से शुरू होती है। पुतलीबाई की मां का नाम असगरीबाई था। जाति से बेड़नी और काम नाच-गाना। असगरीबाई ने बचपन से ही पुतलीबाई को नाचगाना सिखाया था। असगरीबाई के बारे में कहा जाता कि वो  बेहद खूबसूरत थी और वही खूबसूरती विरासत में पुतलीबाई को मिली थी। पुतलीबाई और उसकी बहन तारा ने अपना नाचगाना यही से शुरू किया और कुछ ही दिन में असगरी समझ गई कि पुतली के लिये ये गांव छोटा पड़ रहा है। लिहाजा पुतली को लेकर असगरीबाई आगरा पंहुच गई। कद्रदानों का शहर आगरा। इसी शहर के बसई इलाके में एक कोठे पर पुतलीबाई का नाचगाना शुरू हो गया। 
पुतली की सुरीली आवाज और सुंदर नृत्य ने लोगो  पर जादू कर दिया। किस्सा यही है कि आगरा में असगरीबाई का कोठा इलाके का सबसे ऊंचा कोठा बन गया। महफिलों की रौनक बढ़ती गई। और पुतलीबाई की शोहरत के साथ दौलत भी असगरी के हिस्से में आने लगी। पुतलीबाई की आवाज के चर्चे आगरा के साथ साथ लखनऊ, कानपुर और दूसरे बड़े शहरों तक जा पहुंची।  पुतलीबाई के नाच पर पैसों की बौछार हो जाती थी। इसीबीच पुतली ने अपनी नाचने-गाने की कला के बीच एक और चीज सीख ली। और वो था आल्हा और होली के गीत गाना। आल्हा इस इलाके के लिए जिंदगी का हिस्सा थी। महोबा के आल्हा ऊदल की वीर गाथा के गीतों को पुतलीबाई इतना डूबकर गाती थी कि इलाके के बड़े-बडे अल्हैत पानी भरने लगे।  
पैसा कोठे पर बरस रहा था तो जिंदगी भी करवट ले रही थी। पुतलीबाई की शोहरत अब पुलिस वालों के कानों में पहुंचने लगी। पुलिस के लोग भी  कोठे पर पहुंचने लगे और कुछ पुलिसअधिकारी कुछ ज्यादा ही दिलचस्पी लेने लगे। हालत ये हो गई कि महफिल में आने वाले लोग किनारा करने लगे और पुतलीबाई कुछ पुलिसअधिकारियों की निजि महफिलों की जीनत बन कर रह गई। परेशान असगरी ने आगरा को अलविदा कहा और अपने गांव और शहर की ओर रूख कर लिया। बरबई और बरबई से लौट आई मुरैना। मुरैना में असगरी ने फिर से महफिल सजा ली और वही से आसपास केइलाकों मे जाने लगी।  और इसी आने जाने में पुतलीबाई की जिंदगी का एक मोड भी आ गया जिसने उसकी राह एक नई दुनिया की ओर मोड़ दी।
चंबल के किस्सों में पुतलीबाई की कहानी यही से शुरू होती है। धौलपुर के एक बड़े जमींदार के बेटे की शादी थी। शादी में नाच गाने के लिए पुतलीबाई को न्यौता आया। एक बड़े आयोजन में पैसे की बड़ी उम्मीद के साथ पुतलीबाई  अपनी मां, भाई और साजिंदों को लेकर बड़ी कमाई की आस में धौलपुर के लिए निकली।  धौलपुर में महफिल सज गई। नोट बारिश की तरह  और शराब पानी की तरह होने लगी। महफिल जवान पूरे शबाब पर थी। बताने वाले बताते है कि रात के दो बजे थे कि अचानक राईफल के फायर हुए और पूरी महफिल में सन्नाटा छा गया। गैस लाईट बंद कर दी गई। तबले और सारंगी की आवाज खामोश हो गई। पुतलीबाई अभी बैठकर घुंघरू खोल भी नहीं पाई थी कि दो हाथों ने उसको उठा लिया। इससे पहले की कोई समझ पाता पुतली को एक घोड़े पर बैठा दिया गया। और धौलपुर से सटे बीह़ड़ों के रास्ते में घोड़े दौड़ पड़े।
कहानी तो यही कहती है लेकिन कुछ लोग और भी कहते है। पुतली प्रोग्राम पूरा कर अपने दल के साथ लौट रही थी कि रास्ते में उसको डाकुओं का दल खड़ा मिला। और उनका सरगना था उस इलाके का सबसे खूंखार डाकू सुल्ताना गुर्जर। सुल्ताना का खौफ पूरे इलाके पर था। लेकिन बाकि बागियों की तरह सुल्ताना ने भी इलाके में कभी किसी औरत की इज्जत पर हाथ नहीं डाला था। इसीलिए पुतली बाई ने धडक से पूछा कि कौन। जवाब आया तुम्हारा चाहने वाला सुल्ताना । पुतलीबाई ने सुल्ताना को झिड़कने की कोशिश की लेकिन सुल्ताना पर पुतली का भूत सवार था। पुतली की सुंदरता के किस्से सुनकर आया सुल्ताना ब पुतली को अपने फंदें से निकलने नहीं देना चाहता था लिहाजा उसने गन पुतलीबाई के भाई के सीने पर लगा दी। पुतलीबाई ने भाई की जान बचाने के लिए सुल्ताना के हाथ जोड़े और उसके साथ चल दी।सुल्ताना पुतली को लेकर बीहड़ों में उतर गया था। असगरीबाई की पुकार किसी पुलिस वाले के कानों में नहीं उतरी। उधर धीरे –धीरे पुतली को भी सुल्ताना से प्यार हो गया। और फिर एक दिन सुल्ताना और पुतली के प्यार का जश्न चंबल के बीहड़ों में मनाया गया। सारी रात शराब का दौर चला। पुतलीबाई भी जम कर नाची।  इसके बाद पुतलीबाई चंबल में सुल्ताना की प्रेमिका बन गई थी। चंबल में अफवाहें घोडों से भी तेज दौड़ती है। इस बार की अफवाह में तो शराब और शबाब दोनों का किस्सा था लिहाजा चंबल के गांव-गांव ये खबर फैल गई कि बेड़नी पुतलीबाई बागी सुल्तान सिंह के साथ बागी हो गई।  सुल्ताना ने मंहगे-महंगे गिफ्ट पुतलीबाई को देने शुरू कर दिए।  और पैसों के लिए लूट और डकैती का सिलसिला ही शुरू कर दिया। कत्लेआम और लूट से पुतली डर गई और उसने सुल्ताना से हाथ पैर जोड़ कर जाने के लिए कहा। सुल्ताना ने पहले तो ठुकरा  दिया लेकिन पुतली नींद में चीखने लगी और उसको सपने आने लगे।
सुल्ताना ने उसको काफी समझाया लेकिन उस पर तो वापस जाने का भूत सवार हो चुका था। आखिर में एक दिन सुल्ताना ने उसको कहा कि एक डाकू  की जिंदगी ऐसी जिंदगी है  जिसमें दुनिया का हर  आदमी हर रास्ते से मुड़ सकता है लेकिन इस रास्ते से मुडने के लिए कोई दूसरा रास्ता नहीं होता। लेकिन पुतली ने खाना-पीना छोड़ दिया तो सुल्ताना टूट गया और उसने पुतली को घर जाने की छूट दे दी। बीहड़ के पार एक गांव में सुल्ताना खुद पुतली को छोड़ने आया और कहा कि दुनिया अब तुमको अपने बीच रहने नहीं देगी पुतली। लेकिन पुतली को घर बुला रहा था या फिर किस्मत एक और दिन दिखाना चाहती थी। और पुतली घर पहुंची 
चंबल के बीहड़ों से पुतली निकल मुरैना अपने घर पहुंची। येखबर आग की तरह से शहर में  फैल गई। मां से गले लग कर अभी पुतली जी भर के रोई भी नहीं थी कि दरवाजे पर पुलिस आ खड़ी हुई। पुतली बाई को पुलिस थाने ले गई। किस्सों मे दर्ज है कि पुलिस ने थाने में पुतली को घंटों तक टार्चर किया। हर तरह की यातना दी और सुल्ताना के गैंग के मेंबर्स और पता –ठिकाना पूछा। पुतली ने मुंह नहीं खोला।  यातना का ये खेल कई दिन तक चलता रहा। रातों में भी थानों में बुलाया गया। सत्तर साल पहले चंबल के इलाकों में बस दो ही कानून चलते थे जंगल में डाकूओं को और शहर में पुलिस का। न डाकुओं के लिए कोई कानून और न ही पुलिस के गैरकानूनी कामों के लिए।  पुतलीबाई को थाने में बुलाना यातना देना और यहां तक कि कुछ अफसरों ने अपने घरों में बुलाकर मनमानी करना एक रूटीन बन गया था
 इससे परेशान पुतलीबाई को बीहड़ की जिंदगी याद आने लगी। गैंग में उसको सुल्ताना की औरत की तरह इज्जत दी जाती थी। हांलाकि गैंग का नंबर टू की हैसियत रखने वाला बाबू लुहार उस पर बुरी नजर रखता था लेकिन सुल्ताना के खौंफ से चुपचाप रहता था। कुछ दिन इसी तरह कटे। और कुछ दिन बाद उसके एक बेटी हुई। असगरीबाई बेहद खुश हो गई। और बेटी का नाम रखा गया तन्नो। सुल्ताना और पुतलीबाई की बेटी तन्नों। दो महीने बाद पुतलीबाई फिर से प्रोग्राम में जाने लगी। और एक दिन बरबाई के पास के गांव में पहुंची पुतली ने सुल्ताना को बुलाया और उसके साथ वापस बीहड़ में निकल गई।
लेकिन इस बार की पुतली पहली वाली पुतलीबाई नहीं थी। इस बार उसको उठाकर नहीं लाया गया था बल्कि वो दुनिया से नाराज होकर खुद लौटी थी। गैंग में काफी खुशी मनाई गई। इस बार वो लूट और कत्लेआम से ऊबती नहीं थी। धीरे-धीरे वो इस काम में हिस्सा लेने लगी। और गैंग में उसको पहली जिम्मेदारी दी गई गैंग की लूट का बंटवारा करने की। गैंग की डकैती के बाद लूट का बंटवारा करने की इंचार्ज बन गई थी पुतली। लेकिन सुल्ताना उसको पूरे तौर पर डकैत बनाना चाहता था। ऐसी डकैत जो हर किस्म का हथियार चलाना जानती हो। ट्रैनिंग दी गई। और फिर एक दिन पुतली को गन देकर एक आदमी पर गोली चलाने को कहा गया। शुरूआती हिचक के बाद पुतली ने गोली चला दी। और चंबल की कहानियों ने दर्ज किया कि जिस शख्स को गोली मारी गई वो पुलिस का आदमी था।  पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज हुआ कि “ आल्हा जैसे वीरोचित गीतों को गाने वाले पुतलीबाई के दिमाग में वो गीत चढ़ गए थे। गीतों में गाई गई बहादुरी को उसने कुछ और मान लिया और उसके बाद तो जैसे कानून तोड़ने में उसको मजा आने लगा। अब वो चंबल की डाकू बन चुकी थी जिसके लिए कानून एक कच्चे धागे से ज्यादा कुछ भी नहीं था।“
पुतली बाई लूट और कत्ल के खेल में शामिल हो चुकी थी। कई कत्ल और लूट कर गैंग के एक्टिव मेंबर में शामिल हो चुकी थी पुतली। लेकिन पुतली को अपनी बेटी की याद सताने लगी थी। वो चाहती थी एक दिन बेटी से मिलकर वापस लौट आएंगी।  लेकिन सुल्ताना इसके लिए कभी तैयार नहीं होगा। तो उसने सोचा कि जब गैंग लूट के लिए बाहर के इलाके में जाएंगा तब वो सुल्ताना की गैरहाजिरी में अपनी बेटी से मिलकर लौंट आएँगी। गैंग धौलपुर जिले के रजई गांव में टिका हुआ था। गैंग निकलने ही वाला था कि अचानक गोलियों की बौंछार हो गई। पुलिस की एक बड़ी बटालियन ने गैंग को घेर लिया था। सुल्ताना चिल्लाया छिप जाओं पुतली पुलिस आ चुकी है। फायरिंग हैवी रही और गैंग ने जल्दी ही इलाका छोड़ कर निकला। बीहड़ो में छिपी पुतली बाहर निकली तो वो टीम सामने थी। पुतलीबाई ने आत्मसमर्पण कर दिया उसका ख्याल था कि पुलिस उसको सीधे नहीं फंसाएंगी और कुछ दिन जेल में बीताकर वापस अपनी बच्ची के पास चली जाएगी। 
पुतली को ताजगंज आगरा ले जाया गया। वहां से धौलपुर की जेल। और फिर जमानत पर बाहर। लेकिन पुलिस वालों के लिए वो एक कठपुतली बन चुकी थी। पुलिस उसको मुरैना भी नहीं भेजना चाहती थी। पुलिस ने दो शर्त रखी कि अगर वो मुरैना जाएंगी तो उसकी बहन को धौलपुर रखना होगा और खुद पुतली को सुल्ताना की मुखबरी करनी होगी। पुतली दोनो शर्तों के लिए तैयार नहीं थी। लेकिन  पुलिस अधिकारी रोज अपनी नाजायज मांगों के साथ पुतली के ठिकाने पर आ धमकते। और एक दिन दिन पुतली ने कहा कि वो तैयार है । पुलिस अधिकारी ने खुशी में पहरा हटाया और शाम को शराब पार्टी की शर्त रख दी। शाम को पुलिस अधिकारी शराब और अपने दो दोस्तों के साथ पुतली के ठिकाने पर पहुंचा तो वहां कोई नहीं था। पुतली हवा हो चुकी थी। इस बार पुतली फरार हो गई। 
पुतली वापस सुल्ताना के पास पहुंची। लेकिन बाबू लुहार ने सुल्ताना के कान भर दिए थे। और सुल्ताना को ये यकीन दिला दिया कि रजई में गैंग की मुखबरी पुतली ने की थी। सुल्ताना ने पुतली से कहा कि वो वापस जाएं। लेकिन पुतली भूखी-प्यासी रह कर भी गैंग में बनी रही तब सुल्ताना पसीज गया और फिर से पुतली को अपने साथ रखने को राजी हो गया। और पुतली इस बार बदला लेने के मूड से गैंग में शामिल हुई थी। पुतली ने बदला लेना शुरू कर दिया।  पुतली का पहला निशाना वो पुलिसवाले और उनके परिवार बने जिन्होंने पुतली के साथ रंगरेलियां मनाई थी। पुतली घर में डाका डालती जो मिलता मार डालती और उसकी उंगली भी काट लेती थी, घर की महिलाओं के कुंडल के लिए कान उखाड़ देती थी। अब पुतलीबाई की क्रूरता की कहानियां चंबल के गारों में गूंजने लगी थी।
इसी बीच चंबल में अपने गैंग को बड़ा करने के लिए सुल्ताना ने लाखन को अपने गैंग में शामिल होने के लिए बुला लिया। नगरा का लाखन चंबल में सबसे खूंखार डाकूओं मे गिना जाता था। पुतली ने पहली ही मुलाकात में ताड़ लिया था कि लाखन इस गैंग के लिए खतरा बन जाएंगा।  पुतली की जिंदगी फिर से करवट ले रही थी। दोनो गैंग के लोग एक दूसरे को फूटी आंख नहीं देख  रहे थे लेकिन सुल्ताना को लाखन पर यकीन था। और जंगल में यकीन किसी पर नहीं होता। जो यकीन करता है उसको जमीन नसीब नहीं होती। 25 मई 1955 को थाना नगरा जिला मुरैना के गांव अर्जुनपुर में दोनों गैंग के मतभेद खत्म करने क बातचीत होनी थी कि पुलिस ने गैंग को घेर लिया। ब्रेनगन और स्टेनगन से लैस पुलिस की फायरिंग से गैंग के पांव उखड़ने लगे। सुल्ताना का सबसे वफादार साथी मातादीन मारा गया।  सुल्ताना ने पुतली को बाबू लुहार को सौंपा और कहा कि इस सुरक्षित जगह ले जाओं।  पुतली एक टीले से छिपी मुठभेड़ देख रही थी। तभी उसने देखा कि लाखन ने कल्ला डकैत को इशारा किया और कल्ला ने पुलिस पर फायरिंग कर रहे सुल्ताना पर राईफल दाग दी। और सुल्ताना मारा गया। पुतली के लिए ये आसमान टूटने से कम नहीं था। क्योंकि उसकी पूरी जिंदगी फिर से राख में बदलने वाली थी
मुठभेड़ के बाद पुलिस को मरे हुए डाकुओं में सुल्ताना की लाश मिली थी। पुलिस ने दावा किया कि सुल्ताना उसकी गोलियों का निशाना बना. लेकिन कहा जाता है कि पुतली ने प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को एक खत लिखा और कहा कि सुल्ताना को पुलिस की गोलियों ने नहीं गैंग की गोलियों ने मारा है। हालांकि पुलिस ने इस बात का खंडन किया था। लेकिन सुल्ताना किसी की भी गोलियों से मरा लेकिन पुतली का सुल्ताना मारा जा चुका था और अब उसकी जिंदगी बिना डोर की पतंग हो गई जिसको जो चाहे लूट ले। 
सुल्ताना की लाश जली भी नहीं थी कि बाबू लुहार गैग का मुखिया बन गया। और उसी रात पुतली के साथ उसने सबके सामने बलात्कार कर अपने अपमान का बदला लेने की घोषणा की। बाबू लुहार के साथ ही गैंग का दूसरे नंबर का सरदार पहाड़ा भी पुतली के साथ बलात्कार करने लगा। बेबस पुतली अपने वक्त का इंतजार कर रही थी। और मौका ज्यादा दूर नही था। चार महीने के भीतर मुरैना के  ही एक दूसरे इलाके में खान की भूईंया में पुलिस के साथ गैंग की मुठभेड़ हो गई. चारों और से गौलियों की आवाज ही आवाज थी। गांव मिरगपुर के रास्ते से गैंग निकलकर भागना चाहता था। पुतली ने दिमाग लगाया और बाबू से कहा कि उस तरफ टीले से देख लोग कि पुलिस उस तरफ है या नहीं। बाबू ने जैसे ही उधर मुडा इधर पुतली की राईफल गरज गई। और बाबू ढेर हो गया। 
पुतली का पहला बदला पूरा हुआ। पुलिस ने इस मुठभेड़ पर भी अपना दावा जताया तो पुतली ने फिर से एक खत देश के प्रधानमंत्री को लिख दिया। खबरों की सुर्खियों में ये विवाद रहे। इसके बाद पहाडा ने पुतली से समझौता कर लिया और उसके साथ रहने लगा। इन दोनो से एक और बच्चा हुआ जिसका नाम सुरेन्द्र रखा गया। लेकिन पहाडा का साथ भी ज्यादा नहीं चला और एक दिन पुलिस की गोलियों ने पहाड़ा की जिंदगी की गिनती भी पूरी कर दी।  इसके बाद कल्ला पुतली के साथ गैंग का सरदार बना। इस बार पुतली गैंग की सरदार थी। कल्ला ने पुतली को अपना सरदार मान लिया था। यहां तक कि कल्ला ने कहा कि यदि पुतली चाहे तो वापस अपनी दुनिया में लौट सकती है। पुतली बाई जानती थी कि चंबल में मुड़े कदम श्मशान जाने के लिए लिए ही निकलते है। इस कशमकश में कहते है कि पुतलीबाई ने फिर एक चिट्ठी देश के प्रधानमंत्री को लिखी। नंबवर 1956 में लिखी इस चिट्ठी में एक औरत की चंबल की जिदगी के बारे में बताते हुए कहा कि क्या कानून पुतली को माफ करेगा अगर वो वापस लौटना चाहे तो। चिट्टी का कोई जवाब नहीं आया औ पुतली बस चंबल की डाकू रानी बनी रही। इस बार गैंग कल्ला पुतली का गैंग था और चंबल को इस गैंग ने थर्रा कर रख दिया। लेकिन किस्मत ने सारी कहानी पुतली की जिंदगी के लिए ही बचा रखी थी। एक दिन भिंड जिले के गोरमी में पुलिस की मुठभेड़ पुतली के गैंग से हो गई। पुलिस बल के लोगो ने देखा पुतली अपने बेटे को गोद में लेकर पुलिस वालों पर सीधे राईफल से गोलियां दाग रही थी। इसी बीच पुलिस की गोली ने पुतली का जिस्म खोज लिया। एक गोली कंधें के पार हो गई। कल्ला ने पुतली को कंधे पर उठाया और सीधे दौड़ लगा दी। 
पुलिस दो महीने तक चंबल में खून के निशान के सहारे पुतली की लाश खोजती रही लेकिन कही कोई सुराग नहीं मिला। फिर एक दिन पुलिस को सूचना मिली कि गैंग खितौली में रूका हुआ है। चाल प्लाटूनों ने गांव घेर लिया। गांव की तलाशी शुरू हुई। अभी दो घरों की तलाशी पूरी हुई थी और जैसे ही पुलिस तीसरे घर में घुसी कि अचानक फायरिंग शुरू हो गई। एक गोली पुलिस ऑफिसर का सीना चीर गई. मरने से पहले पुलिस अधिकारी ने बताया कि उसको पुतली ने गोली मारी है और उसका एक हाथ कट चुका है। दाए हाथ से गोली चला रही पुतली का बाया हाथ अब कटा हुआ है। गैंग साफ बच निकला। लेकिन किसी क यकीन नहीं  आ रहा था कि एक हाथ से कोई औरत सीधे पुलिस पर हमले कर रही हो। कुछ ही दिन बाद कनारीपुरा गांव में एक और मुठभेड़ हुई। दोपहर में गैंग के खाना खाते वक्त पुलिस ने धावा बोला और वहां से गैंग बच निकला लेकिन मौके से पुतली की लिपिस्टिक मिली और भागती हुई पुतलीबाई को कई पुलिसअधिकारियों ने देखा कि उसका एक हाथ गायब है। बाद पुलिस ने तहकीकात की तो पता चला कि मुठभेड़ में घायल पुतली ग्वालियर गई और वहां एक सर्जन को 20000 रूपए देकर अपनी घायल हाथ को कोहनी से कटवा दिया था
पुतली की बाह कटी तो जैसे उसके अंदर की औरत भी मर गई। बचा-कुचा दर्द भी गायब होगया। पुतली ने अब कत्लोगारत शुरू कर दी। पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक दिसंबर 1957 में दो ही डकैतियों ने कल्ला पुतली गैंग ने 75000 रूपए की रकम लूट ली थी। भिंड, मुरैना, शिवपुरी और ग्वालियर जिले गैंग के आतंक से कांप उठे थे। उधर लाखन गैंग भी इलाके में लूट और कत्ल का सिलसिला बनाएं हुए था। सरकार ने फैसला किया कि लाखन का पहले सफाया और फिर पुतली गैंग का। 
वक्त की अपनी कहानी होती है। पुतली की उम्र लगभग 27 साल की हो चुकी थी। ये उम्र भले ही कम हो लेकिन इतने मोड़ों से बहती हुई पुतली की कहानी का आखिरी पन्ना अब लिखा जाना था। 23 जनवरी 1958 को पुलिस को सूचना मिली थी कि लाखन गैंग मुरैना के कोंथर गांव में पहुंचा हुआ है । एक बड़ी तादाद में पुलिस बल तैनात कर दिया गया ।  गैग के भागने के सभी रास्ते बंद कर दिए गए।  पुलिस की घेराबंदी पूरे तौर पर मुकम्मल करने के लिए क्वारी नदीं के दूसरे किनारों के गावों मे भी प्लाटून तैय्यार कर दी गई थी। अरूसी,सिहोनिया, लेपा, सांगोली, तरसमा, और दूसरे सभी गांवों में हथियार बंद पुलिस थी। पुलिस अब इंतजार कर रही थी। एक एक पल एक एक युग के बराबर लग रहा था। तभी पुलिस को तरसमा के इलाके से एक दर्जन लोग आते दिखाई दिए। एक प्लाटून उस तरफ भेजी लेकिन तभी गैंग की तरफ से पहला फायर हुआ। पुलिस चौंक उठी दशक से लंबे डाकू  जीवन में लाखन ने कभी पुलिस का सामना नहीं किया फायर तो दूर की बात है। अचानक टीम लीडर कैलाश सिंह के कानों में आवाज आई पुतली। 
अरे ये तो पुतली की गैंग है। कैलाश सिंह ने समय नहीं गवाया और चारो ओर से गैंग को घेरना शुरू कर दिया। कल्ला ने मौके की नजाकर देखी। गैंग दो हिस्सों में बांट दिया। पांच आदमियों के साथ एक और बढ़ा और गैंग से दस निशानेबाज पुतली को देकर क्वारी नदी की ओर बढ़ने को कहा। पुतली और क्वारी नदी के बीच एक चने का खेत था। पुतली को लगा कि खेत से होते हुए यदि वो नदी पार कर लेती है तो फिर बीहड़ में निकल जाएंगी पुलिस की गोलियों से दूर। लेकिन किस्मत का फैसला हो चुका था। गैंग के सारे निशानेबाज पुलिस के निशाने पर आकर मर चुके थे और अकेली पुतली खेत में इधर से उधऱ भाग रही थी। गोलियों के बीच से पुतली ने जेब में पड़े नोट उडाने शुरू कर दिए और पानी में उतरते ही पहनी हुई जैकेट और पेंट उतार कर फेंक दी। एक हाथ से नदी चीरती हुई पुतली ने जैसे ही दूसरे किनारे पर सर उठाया तो उसको दिख गया कि आज का दिन आखिरी दिन है और आज की महफिल मौत की महफिल है। क्योंकि दूसरी तरफ इंतजार कर रही प्लाटून ने फायर ओपन कर दिया और पुतली की जिंदगी की डोर टूट गई।  कहते है पुलिस टैक्टर के पीछे बांध कर डाकूओं की लाश खींचती हुई गांव तक गई और वहां से इन लाशों को मुरैना शहर में ले जाया गया। भारी भीड़ देखने आई बैंडिट क्वीन पुतलीबाई की आखिरी सांस। पुतली की बेटी तन्ना अपनी नानी के यहां रह गई अकेली। वक्त और समाज दोनों के सितम झेलने के लिए। 

7 comments:

जितेन्द्र विसारिया said...

बहुत सुंदर और तथ्य परक जानकारी....बधाई!!!👌👌👌

जितेन्द्र विसारिया said...

बहुत सुंदर और तथ्य परक जानकारी....बधाई!!!👌👌👌

Unknown said...

डॉ. सूरज मृदुल द्वारा बहादुर पुलिस अधिकारी राजेन्द्र प्रसाद मोदी के संस्मरणों के आधार पर रचित शूरवीर की गाथा पुस्तक में पुतलीबाई अध्याय के अंश

Unknown said...

एक इतिहास की जानकारी मिली।धन्यवाद।

NAVNEET _ The Spiritual Warrior said...

Bahut accha, kuch naya PATA chala

Unknown said...

My village story nice

Anonymous said...

Detail information. Chambal ke daku ..Bagi...ka etihash