चंबल में बागियों और पुलिस की गोली के बीच एक बड़ी चीज हमेशा मायने रखती है और वो है बागी की किस्मत। चंबल के बीहड़ों में पुलिस और बागियों के बीच हजारों मुठभेड़ों हुई लेकिन कई बार बागियों की किस्मत उनको शर्तिया मौत से बचाकर ले गई। और एक बागी ऐसा जिसको किस्मत और उसकी सिक्स्थ सेंस ने दो दशकों से ज्यादा पुलिस से बचा कर रखा। एक ऐसा बागी जिसका नाम चंबल की किताबों में लाखन द टैरिबल के तौर पर दर्ज है।
चंबल में अभी तक के डाकुओं में कत्लों -गारत का खौंफनाक खेल खेला उसमें सबसे माहिर खौंफनाक नाम लाखन सिंह का है। डाकुओं को लेकर बनी मुंबईया फिल्मों में लाखन सिंह का नाम और कहानी कई बार फिल्माई गई। और फिल्म की शूटिंग्स और लाखन की जिंदगी का रिश्ता इतना करीब का है कि पहले मुझे जीने दो फिल्म लाखन की जिंदगी की जुडी हुई कहानी है।फिल्म को लाखन सिंह के गांव नगरा पोरसा के इलाके में फिल्माया गया है और फिल्म का ये शाट्स लाखन की असल जिंदगी का एक हिस्सा थी। 24 मार्च 1952 को मध्यप्रदेश पुलिस को एक स्पैशिफिक सूचना मिली थी कि लाखन अपने गांव नगरा में आया है और रात को दस बजे वो गांव से वापस बीहड़ो में जाएंगा। । पुलिस पार्टी ने पूरे रास्तें में जाल बिछा दिया। । पुलिस की घेराबंदी से बेखबर लाखन जैसे ही पुलिस की फायरिंग रेंज में पहुंचा तो पुलिस ने फायरिंग शुरू कर दी। लाखन और उसका गैंग पुलिस के इस हमले से चौंक गया। फायरिंग करते हुए उसने दूसरा रास्ता पकड़ने की कोशिश की लेकिन वो भी नाकाम थी क्योंकि वहां पुलिस की दूसरी एंबुश टीम मौजूद थी। गैंग ने हर तरफ से घिरा होने पर लॉस्ट फायरिंग शुरू कर दी। लेकिन किस्मत लाखन के साथ थी और जब उसके गैंग की गोलियों का जखीरा खत्म होने जा रहा था तभी बीस ऊंटों का एक कारवां जिस पर आम आदमी बैठे से ऊधर से आ गुजरा और पुलिस ने बेगुनाह लोगो को बचाने के लिए फायरिंग बंद कर दी। और इसी की आड़ में लाखन सिंह बच निकला। पुलिस अधिकारियों ने इस को लाखन की किस्मत और चंबल की बदकिस्मती माना। और इस घटना के बाद 8 साल तक चंबल में लाखन की बंदूकें गरजती रही। क्या है लाखन सिंह की कहानी। कैसे गांव का लाखन चंबल का आतंक बन गया।
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चंबल का शांत बीहड़। बेहद खूबसूरत और खतरनाक दोनो दिखाई देता है ठीक उसी तरह जिस तरह इस इलाके में बसे लोगो में दोस्ती को निबाहना हो तो मिसाल और अगर दुश्मनी दोस्ती में बदले तो फिर बदले की आग भी बेमिसाल। चंबल में दोस्ती और दुश्मनी की मिसाल बने हुए एक डाकू का ये वो गांव है जिसको मुंबई की फिल्म इंड्रस्ट्री ने अपनी शूटिंग का हिस्सा बना लिया। कहानी भी, किस्सा भी और इलाका भी वही। कहानी एक ऐसे डाकू की जिसके नाम से चंबल में लोगो के पसीने छूट जाया करते थे। और पुलिस के रिकॉ़र्ड में दर्ज हत्या की संख्या आज भी लोगो के रोंगटे खड़े कर देती है। 225 से ज्यादा लोगो के कत्ल और सैंकड़ों डकैतियां। लाखन का नाम आज भी लोगो के जेहन से भूलता नहीं है।लेकिन लाखन सिंह की जिंदगी के उतार-चढ़ाव की कहानी है। एक ऐसी कहानी है जिसमें दोस्ती है दुश्मनी और फिर तबाही की एक लंबी दास्तां है। चंबल के बीहड़ों में बसे हुए एक गांव में छोटे से घर से शुरू हुई जिंदगी, धंधें में हवेली वालों से दोस्ती और फिर धंधे को लेकर दुश्मनी। ये एक हिस्सा है तो फिर डाकू जिंदगी में पहले बागी मानसिंह के गैंग में रूपा महाराज से दोस्ती और फिर गैंग का सरदार बनने के लिए दोस्त से जानलेवा दुश्मनी। और दुश्मनी में इस तरह के किस्सें पैदा हुए कि मुंबईयां फिल्मी जगत को इस पर कईं कईं स्क्रिप्ट लिखनी पड़ी। ( कच्चे धागे)
चंबल में ठाकुर लाखन सिंह को जिंदा या मुर्दा पकड़ने के लिए पहली बार 4000 पुलिस फोर्स के जवानों को बीहड़ों में उतार दिया गया। गांव में हवेली में पुलिस थाना बना दिया गया। एसएएफ की एक पूरी बटालियन गांव में तैनात कर दी गई।और एक स्पेशल पुलिस अधिकारी को सिर्फ इसी गांव में बैठा दिया गया। सालों तक चलती हुई कहानी का अंत भी बिलकुल फिल्मी था। गोली लगने पर भी लाखन ने अपने गैंग को निकाल दिया और मुठभेड़ करने वाले पुलिस अधिकारी को पूरे फिल्मी अंदाज में ही मौत थमा दी। शुरू करते है चबंल के एक डाकू लाखन द टैरिबल की जिंदगी की असल कहानी
मुरैना का नगरा गांव। बीहड़ो में बसा हुआ गांव। मध्यप्रदेश के इस गांव से कुछ दूर चंबल बहती है और उसके पार उत्तरप्रदेश का इलाका। बीच में सैकड़ों किलोमीटर लंबा बीहड़। इसी गांव में 1922 में लाखन सिंह तोमर का जन्म हुआ था। आज लाखन के गांव में भी लाखन के घर की कोई निशानी नहीं बची है। गांव में उसके घर के नाम पर बीहड़ दिखता है। गांव के इस हिस्से में लाखन के कुटुंब के घऱ है। लेकिन लाखन का कुछ नहीं। लाखन सिंह के घर के नीचे बना हुआ कुआँ जरूर बचा हुआ है। लाखन सिंह के परिवार से अब यहां कोई नहीं रहता। लेकिन गांव के इस हिस्से में रहने वालों में से शायद ही कोई ऐसा हो जिसकी जिंदगी पर उस दुश्मनी का घाव न लगा हो। फिरंगी और हूजूरी सिंह के घर भी अब मिट्टी में मिले हुए है। मानक सिंह जो लाखन सिंह के गैंग में था और उसका भतीजा है 90 साल की उम्र में इन घरों को देखता है और पुरानी यादों में खो जाता है।
नगरा गांव यूपी और मध्यप्रदेश की सीमा पर बसा हुआ गांव है। इस गांव से शुरू हो जाता है चंबल का वो बीहड़ जिसकी डांग में लंबे समय तक डाकुओं ने पनाह ली है। इसी गांव के एक दूसरे छोर पर एक हवेली के खंडहर दिखाई देते है। हवेली के बाहर और भीतर गोलियों के निशान उस हवेली पर टूटे कहर के कहानी सुनाते है। ये घर है ठाकुर रघुबीर सिंह का। गांव का ही नहीं इलाके का माना हुआ परिवार। लेकिन घर में जीते सिंह के बाबाओं के परिवार से रिश्ता रखने वाले कुछ रिश्तेदार रहते है। हवेली की छतें उसी तरह काले धुएं से भरी हुई है। पत्थर उस दिन की आग से फटे हुए है। और हवेली हर साल पहले से ढहती जाती है। रहने वालों ने भी इसमें कुछ बदलाव नहीं किया है। लाखन सिंह के एनकाऊंटर केबाद 1972 में पहली बार इस हवेली में मुझे जीने दो की शूटिग्स हुई थी। उस वक्त कुछ बदलाुव किया गया लेकिन फिर कुछ नहीं बदला। हवेली एक जीता जागता गवाह है दुश्मनी के उस दौर का जिसमें नगरा को झुलसना पड़ा। और नगरा से शुरू हुई आग ने इलाके लोगों को और चंबल को एक ऐसा डकैत दिया जिसके नाम से इलाका थर्रा उठता।
मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश के बीच बसे हुए नगरा के लोग ऊंटों के सहारे नदी से इधर का सामान उधर और उधर का सामान इस पार लाते थे। टैक्स के अंतर के चलते ये फायदे का सौदा था। रघुबीर और लाखन का परिवार भी इस धंधें में लगा हुआ था। गांव में मानसिंह के गैंग का भी आना जाना था। एक तरफ लाखन का रिश्तेदार सूबा सिंह तो दूसरी और रघुबीर सिंह का परिवार दोनो गांव में एक दूसरे के करीब थे। लेकिन इसी बीच गांव में पुलिस का छापा पड़ा और सूबे सिंह के यहां से तस्करी का कुछ सामान बरामद हुआ। इस का शक लाखन के परिवार के करीबी लोगो के यहां चोरी हो गयी। और इसका शक रघुबीर सिंह पर गया।
गांव में दो परिवारों के बीच दुश्मनी शुरू हो चुकी थी। रह रह कर पुलिस का सहारा लेकर एक दूसरे से हिसाब बराबर किया जा रहा था। और चंबल में ऐसी पहली कहानियों से भी पुलिस ने सबक नहीं सीखा था लिहाजा वो आसानी से इस्तेमाल हो रही थी। फिर एक दिन मानसिंह गैंग ने एक पुलिस इंस्पेक्टर और बाद में चार और पुलिस वालों की हत्या कर दी। पुलिस ने इनकी जानकारी देने का शक सूबा सिंह पर किया और उसको गिरफ्तार कर लिया। कहते है कि जब सूबा सिंह को गिरफ्तार करके गांव से ले जाया जा रहा था तो सूबा सिंह ने लाखन सिंह को देखा और कहा कि इस अपमान का बदला जरूर लेना। साफा पहनने के बेहद शौंकीन लाखन सिंह ने अपना साफा गांव के सामने उतार कर सूबे सिंह के पैरों में रख कर कहा कि वो इस का ऐसा बदला लेगा कि आने वाले वक्त तक लोग इसको भूल नहीं पाएंगे। और कुछ ही दिन बाद एक छोटी सी घटना से रघुबीर सिंह और लाखन सिंह का परिवार एक दूसरे के आमने सामने आ गया।
मानक सिंह उस दुश्मनी की कहानी का चश्मदीद है। 90 साल की उम्र में भी मानक सिंह को वो पूरी कहानी फिल्म की रील की तरह से याद है क्योंकि मानक सिंह खुद लाखन सिंह का भतीजा है और गैंग में सालों तक दुश्मनों पर पुलिस पर गोलियां चला चुका है। सात हत्याओं के आरोपी मानक सिंह ने लाखन के कहने पर ही पुलिस के सामने समर्पण किया था।
नगरा गांव में दो ठाकुर परिवारों की दुश्मनी की कहानी शुरू हो चुकी थी। लाखन सिंह इलाके के एक गांव में डकैती डालकर चंबल का रास्ता तय कर लिया। इस वारदात में उसके भाई और दूसरे लोग तो गिरफ्तार हुए लेकिन लाखन फरार हो गया।
चंबल में सबसे पहले हर गोविंद और महाराज सिंह के गैंग में कुछ दिन रहा। उसके बाद उसने चरणा डकैत के गैंग में शामिल हुआ। लेकिन उसने वहां से भी जल्दी ही किनारा कर लिया। क्योंकि लाखन सिंह को किसी से आदेश लेना पसंद नहीं था। लाखन सिंह ने अपना गैंग बना लिया और उसमें परिवार के कई लोग शामिल हो गए।
लाखन ने बदला लेना शुरू कर दिया। और डकैती में उसकी मुखबिरी करने के शक में पांच लोगों को एक साथ लाईन में खड़ा कर गोलियों से भून दिया। वारदात से चंबल में लाखन सिंह का नाम सुर्खियों में आ गया। इस मामले में लाखन सिंह का भाई फिरंगी सिंह पकड़ा गया। फिरंगी सिंह हाईकोर्ट में अपील पर बाहर आ गया। लेकिन इस दौरान गांव में रघुबीर सिंह का रूतबा काफी ऊंचा हो गया था और फिरंगी के बाहर आने पर रघुबीर सिंह ने एक बार फिर उसको पुलिस की मदद से अंदर करा दिया और आरोप लगाया धमकी देने और सताने का। इस बात ने लाखन सिंह के जख्मों को फिर से हरा कर दिया। लाखन सिंह ने अपना बदला लेने का फैसला किया।
दो महीने बाद नगरा गांव के बाहर खेत में हवेली के दो लोगो तिलक सिंह और मथुरी सिंह की लाश गोलियों से छलनी पड़ी पाई गई। इस घटना ने लाखन सिंह को पुलिस रिकॉर्ड में लाखन द टैरिबल का नाम दिया। पुलिस अब लाखन सिंह का सफाया करना चाहती थी। हवेली ने भी लाखन के सफाएं में पुलिस की पूरे तौर पर मदद करना शुरू कर दिया। लेकिन लाखन ने इस कत्ल के बाद तो लूट, डकैती और कत्ल की एक पूरी नदी ही बहा दी। हर रोज कही न कही लाखन सिंह गैंग की वारदात की खबर पुलिस फाईलों में दर्ज होने लगी। और पुलिस के साथ मुठभेड़ से लाखन सिंह नहीं डरता था। उसका हौंसला कितना बढ़ा हुआ था इसी बात से अंदाज लगाया जा सकता है कि 1952-53 के बीच लाखन और पुलिस के बीच 9 एनकाउंटर हुए। इन एनकाउंटर में लाखन के सिर्फ दो लोग ही पुलिस की गोलियों का शिकार बने वही इस दौरान लाखन ने 47 लोगो को अपना निशाना बनाया।
लाखन सिंह का कहर अब हवेली पर बढ़ता जा रहा था। हवेली के हर कोने पर गोलियों के निशान उसके खौंफ की कहानी बता रहे है। लाखन अपना बदला लेने के लिए हमेशा ताक में लगा रहता था। इसके अलावा लाखन इलाके में भी वारदात करने में जुटा रहता था। मार्च 1952 में पुलिस के साथ हुई मुठभेड़ में ऊंटों के नाम पर अपनी किस्मत के सहारे बच निकले लाखन का शक एक बार फिर मुखबिरी के लिए रघुबीर सिंह पर ही गया।
गांव में दशहरे मनाया जा रहा था। लेकिन इसी बीच नगरा गांव के खेतों में हवेली वालों में से एक जबर सिंह को लाखन सिंह ने पकड़ लिया। लाखन सिंह ने जबर सिंह को बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया। इसके बाद गांव के बाहर से निकलते हुए ऐलान कर दिया कि वो हर दशहरे पर इस हवेली पर मौत बरसाएंगा।
मध्यप्रदेश पुलिस लाखन की दुश्मनी और कहर दोनों को जान चुकी थी। लिहाजा पुलिस ने लाखन को मारने के लिए एक प्लान बना दिया। प्लान था कि दशहरे पर लाखन फिर हवेली आएंगा और हवेली में रघुबीर का परिवार की सुरक्षा में पुलिस की पूरी गार्द तैनात मिलेगी। 1954 में दशहरे के दिन लाखन ने फिर हवेली पर हमला किया लेकिन इस बार हवेली से निकली पुलिस की गोलियों ने उसके पैर उखाड़ दिए। लाखन को भागना पड़ा। ये लाखन के लिए एक हार थी। और हार का बदला लेना लाखन को अच्छी तरह से आता था।
दशहरे के दो दिन बाद पुलिस को सूचना मिली कि बीती रात आगरा के पास मानसिंह गैंग से पुलिस के बड़ी मुठभेड़ हुई है। और उस मुठभेड़ में मानसिंह गैंग के साथ लाखन सिंह का गैंग भी था। लिहाजा पुलिस को उम्मीद हुई कि मुठभेड़ से बच निकला गैंग अपने पुराने रास्ते से लौटेंगा। नगरा में थाना बना चुकी पुलिस को आदेश मिला कि वो आगरा वाले रास्ते पर कूच करे। पुलिस ने तेजी के साथ मूवमेंट की। नगरा थाना यानि हवेली से निकली पुलिस को गांव से निकले कुछ ही वक्त हुआ होगा। कि अचानक खेतों से लाखन का गैंग निकल आया। और हवेली में कत्लेआम मचा दिया। 6 लोगो को मौत के घाट उतार कर लाखन सिंह वहां से निकल लिया।
पुलिस को इससे बड़ी हार शायद ही किसी डाकू के हाथ मिली हो। नगरा से सत्रह किलोमीटर दूर कस्बा पोरसा में मध्यप्रदेश पुलिस के डीआईजी ठहरे हुए थे। खबर पोरसा तक पहुंची तो सदमे में आई पुलिस फौरन नगरा पहुंची। लेकिन तब हवेली के अंदर सिर्फ रोने चीखने की चीत्कारें और हवेली के बाहर गोलियों के निशान बचे थे। लाखन अपना बदला लेकर निकल चुका था। लेकिन दुश्मनी कम नहीं थी। कहते है कि हवेली के लोगो की चिताओं के जलने से पहले ही रघुबीर सिंह के लोगो ने भी दूसरी तरफ लाशें बिछा दी।
अब इस दुश्मनी की कहानी चंबल के बीहड़ की हर डांग या भरकों में गूंज रही थी। पुलिस के मत्थे एक नाकामी का दाग बढ़ता जा रहा था। पुलिस चाहती थी कि किसी भी तरह इस दाग को साफ करने की कोशिश की जाएं.
लाखन सिंह की दुश्मनी और नगरा गांव की कहानी अखबारों की सुर्खियों में थी। प्रदेश सरकार को हर तरफ से नाकामी मिल रही थी। लेकिन लाखन आम डकैत की तरह नहीं था। पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक लाखन एक लोमड़ी की तरह तेज था। और खतरे को सूंघने में बेहद माहिर था।
लाखन सिंह का अपना गैंग काफी बड़ा हो चुका था। लेकिन कभी कभी वो मानसिंह गैंग के साथ मिलकर वारदात किया करता था। लोगों का कहना है कि लाखन अपने दुश्मनों के लिए कोई भी गली नहीं छोड़ता था। हवेली के लोग कही लाखन के खिलाफ मानसिंह गैंग का इस्तेमाल न कर ले इसीलिए लाखन हमेशा मानसिंह के कहने पर भी काम करता था।
मानसिंह का गैंग चंबल के इतिहास का सबसे बड़ा और खतरनाक गैंग माना जाता था। मानसिंह को इलाके के लोग राजा मानसिंह कहते थे। गैंग में मानसिंह के परिवार के कई लोग शामिल थे लेकिन गैंग में मानसिंह के बाद दो लोगो की चलती थी। एक लाखन सिंह और दूसरा रूपा पंडित। दोनो अचूक निशानेबाज और दोनों ही महत्वाकांक्षी। मानसिंह के बाद गैंग के मुखिया बनने की ख्वाहिंश दोनो के दिल में थी। लेकिन मानसिंह इस बात को जानता था इसीलिए अपने सामने ही लाखन सिंह को गैंग से विदा कर दिया था।
लाखन सिंह एक बड़े गैंग का मुखिया था। गैंग लूट और डकैती के लिए किसी भी हद तक पहुंच जाता था। लेकिन मानसिंह की तरह से लाखन सिंह ने अपने कुछ उसूल बनाएं हुए थे। और इन उसूलों में से एक था कि किसी भी कीमत पर मुखबिरों को न छोड़ना। पुलिस भी लाखन सिंह के पीछे पड़ी हुई थी। किसी भी तरह से लाखन की सूचना हासिल करने के लिए पुलिस ने दिन रात एक किया हुआ था । और फिर 1956 में लाखन सिंह के गैंग में पुलिस ने एक मुखबिर बना लिया था। मुखबिर की सूचना पर पुलिस के साथ लाखन गैंग की मुठभेड़ हो गई। पुलिस की गोलियों को बड़ी मुश्किल से चकमा देकर लाखन बीहड़ों में वापस लौटा। लेकिन सारी रात लाखन सिंह शराब पीता रहा। पूरा गैंग अचरज से भरा हुआ था कि आखिर लाखन सिंह जो शराब नहीं पीता है वो पूरी रात शराब क्यों पी रहा है। सुबह होने पर लाखन ने अपना पूरा गैंग एक लाईन में खड़ा किया और अपने सबसे करीबी आदमी फौंजदार सिंह को गोली मार दी। फौजदार सिंह की लाश पुलिस अगले दिन नगरा के पास के बीहड़ में मिल गई।
मध्यप्रदेश पुलिस ने फौजदार सिंह के मारे जाने की खबर मध्यप्रदेश के गृहमंत्री नरसिंह दीक्षित को भी दी । कहते है कि नरसिंह दीक्षित जल्द से जल्द लाखन का सफाया करना चाहते थे और इसी लिए लाखन सिंह के गांव में पुलिस अफसरों की तैनाती की गई थी। लेकिन फौंजदार सिंह की मौत ने पुलिस का प्लान ही ध्वस्त कर दिया। दरअसल मध्यप्रदेश पुलिस को ये लाखन सिंह की चुनौती थी। लाखन सिंह की किस्मत काफी तेज थी और उसकी खुद की निगाह भी आसानी से दोस्त और दुश्मन को पहचान लेती थी। चंबल के डकैतों में लाखन सिंह का नाम जरा से शक होने पर कत्ल कर देने वाले डाकू के तौर पर था।
मध्यप्रदेश पुलिस पूरे तौर पर लाखन सिंह यानि जी 2 के पीछे पड़ चुकी थी। लाखन सिंह के बदले की आग हवेली के लोगो को जलाती जा रही थी। पुलिस पूरी ताकत लगाकर भी लाखन सिंह को रोक नहीं पाती थी। लाखन सिंह अब तक हवेली के 15 लोगो को मार चुका था। ऐसे में एक दिन पुलिस अधिकारियों ने तय किया कि हवेली के लोगो को पुलिस संरक्षण में ग्वालियर शहर भेज दिया जाए। और हवेली खाली हो गई। लेकिन खाली हवेली भी लाखन को बदला लेने से नहीं रोक पाईँ। अगर हवेली में इंसान नहीं बचे थे तो क्या लाखन सिंह ने हवेली ही फूंकने का फैसला कर लिया। ये एक ऐसा फैसला था जिसने इलाके में सनसनी फैला दी। और लाखन ने हवेली फूंकने के लिए पेट्रौल शहर से मंगाया। और दूसरे डाकू गिरोहों को भी इसमें हिस्सा लेने के लिए न्यौता। पुतलीबाई, सुल्ताना, कल्ला और खुद लाखन सिंह एक दिन इस हवेली को फूंकने जा पहुंचा
धू धू कर जली हवेली अपनी किस्मत पर आज भी आंसू बहाती है। लाखन सिंह का बदला अभी तक पूरा नहीं हुआ था लेकिन उसने अपने दुश्मनों से गांव छुड़वा लिया था। हवेली फूंकने की खबर ने पुलिस की और भी किरकिरी करा दी। और फिर मध्यप्रदेश पुलिस ने हवेली में थाना खोलने के बाद एक पूरी बटालियन एसएएफ की नगरा गांव की इस हवेली में तैनात की। सरकार किसी भी तरह लाखन से छुटकारा चाहती थी लिहाजा उसने एक आरआई के तौर पर भर्ती पुलिस अधिकारी टी क्विन को नगरा में ही अस्टिटेंट और फिर कमांडेट बना कर तैनात कर दिया। टी क्विन ने कसम खाई कि वो लाखन का सफाया करने के बाद ही नगरा को छोड़ेगा।
टी क्विन हर समय नगरा के बीहड़ों में फोर्स के साथ लाखन की तलाश में घूमने लगा। लेकिन लाखन सिंह को गांव से दुश्मनों को भगाने का जश्न मनाना था। लिहाजा उसने मंदिर बनाने और उस पर घंटा चढ़ाने का ऐलान कर दिया। मंदिर बनना शुरू हो गया। गांव के बाहर बनने वाले इस मंदिर में गांव के लोगो से ही लाखन सिंह ने खुदाई कराई।
टी क्विन को इस की जानकारी मिल चुकी थी। पुलिस ने जाल बिछा दिया। ये खबर सुर्खियों में थी लिहाजा पुलिस इसमें मात नहीं खाना चाहती थी। पूरी तरह से मूर्तियां लाने वालों पर निगाह थी। पंडितों पर भी शिकंजा कसा गया। लेकिन लाखन ने इस बार भी पुलिस का ध्यान एक फर्जी सूचना के सहारे बंटा दिया। पुलिस गांव के दूसरे हिस्से में लाखन के पहुंचने की सूचना पर पहुंची थी कि लाखन ने इस तरफ से आकर घंटा चढ़ा दिया। ठगी सी पुलिस पहुंची लेकिन तब तक लाखन जा चुका था।
पुलिस को एक बार फिर लाखन सिंह के हाथों मुंह की खानी पड़ी। पुलिस को लाखन चाहिए और लाखन चंबल के बीहड़ों में गुम था। पुलिस प्रमुख के एफ रूस्तम जी ने खुद ऑपरेशन की कमान संभाल ली। चंबल के इतिहास में पहली बार 4000 हजार पुलिस वालों और 100 वाहनों को बीहड़ो में उतार दिया गया। इस ऑपरेशन का नाम दिया गया ऑपऱेशन हैमर। 19 अगस्त 1958 से चंबल में गैंग 2 लेकिन खौंफ में नंबर 1 लाखन के गैंग के सफाएं के ऑपऱेशन शुरू हो गया। इससे पहले चंबल में किसी डकैत को घेरने के लिए एक बार 400 से 500 लोगो को ही इस्तेमाल किया गया था। ये पहला मौका था कि इतनी बड़ी पुलिस फोर्स बीह़ड़ में झौंक दी गई हो। और सब नतीजों का इंतजार कर रहे थे।
पुलिस चंबल के बीहड़ों में भटक रही थी और लाखन अपने दुश्मनों को ठिकाने लगाने में जुटा था। चंबल के इलाके में इतनी बड़ी फोर्स के खाने-पीने के इंतजाम का भी संकट था। बरसात का मौसम था और पुलिस का मूवमेंट भी काफी मुश्किल भरा था। 26 अगस्त को पुलिस को सूचना मिली कि जौरा के जंगलों में देवगढ़ में लाखन अपने गैंग के साथ देखा गया।
पूरा पुलिस मूवमेंट जौरा के इलाके में कर दिया गया। पुलिस ने पूरा इलाका छान मारा। लेकिन पच्चीस लोगों के साथ उस इळाके में घूम रहा लाखन आसानी से गायब हो गया। पुलिस प्रमुख रूस्तम जी ने अपने मातहतों के साथ बातचीत की और जब ये पता चल गया कि लाखन अब यहां से बच निकला है ऑपरेशन हैमर को 28 अगस्त को खत्म कर कर दिया। इस ऑपऱेशन को फेल करार दिया गया।
टी क्विन ने एक और चाल चली। उसने रूपा महाराज से रिश्ता निकाला और कहा कि यदि वो लाखन का एनकाउंटर करा देता है तो उसे हाजिर करा दिया जाएंगा। मानसिंह के बाद गैंग का सरदार रूपा इस बात के लिए तैयार हो गया। उसके बाद एक के बाद एक एनकाउंटर हुए लेकिन लाखन का कुछ नहीं बिगड़़ा। एक बार रूपा की इंफोर्मेशन पर पुलिस ने घेरा लगाया तो लाखन की बजाय पुतलीबाई का गैंग मारा गया।
इलाके में टी क्विन और रूपा के रिश्तें की कहानी सुर्खियां बनने लगी। यहां तक कि जेड.ओ 1 कहलाने वाले टी क्विन को जेड ओ 2 और रूपा को जेड़ ओ 2 कहा जाने लगा। और फिर एक दिन रूपा को टी क्विन ने मिलने के लिए बुलाया और बाद में रूपा मारा गया।
किस्मत ने इतने दिन तक लाखन का साथ दिया। रूपा के मारे जाने के बाद चंबल में लाखन सिंह एकमात्र सरदार था। लाखन सिंह के नाम के सामने अब कोई दूसरा नहीं था। पुलिस हताश थी और लाखन आसमान पर। लेकिन वक्त ने लाखन का साथ छोड़़ने का फैसला कर लिया था। 30 दिसबंर 1960 को भिंड जिले के देवरा गांव में पुलिस और लाखन गैंग की मुठभेड़ हो गई। अचानक हुई इस मुठभेड़ में लाखन सिंह को गोली लग गई तो लाखन ने अपने गैंग को कहा कि गैंग वहां से निकले और पुलिस को लाखन रोकेगा।
गैंग निकल गया। पुलिस गोलियां बरसा रही थी तभी एक आवाज आई कि गोलियां मत चलाओं मैं स्टाफ में से हूं। प्लाटून कमांड़र राम अख्तियार सिंह ने गोलियों चलाना बंद कराया और देखा कि पुलिस की वर्दी में एक आदमी टॉमीगन के साथ रेंग रहा है। राम अख्तियार सिंह आगे बढा़ तो सामने लेटे हुआ आदमी एक दम से खड़ा हुआ और उसने गोलियां चलाते हुए कहा कि वो और नहीं लाखन सिंह है और लाखन अपना बदला लिए बिना नहीं मर सकता। दोनो ओर से गोलियां चली और लाखन सिंह के के साथ रामअख्तियार सिंह भी मौके पर ही शहीद हो गय।
मुठभेड के बाद रूस्तम जी ने पत्रकारों को कहा कि yes we nabbed the killer, the bloody killer, Lakhan the terrible, the homicidal manic
चंबल में अभी तक के डाकुओं में कत्लों -गारत का खौंफनाक खेल खेला उसमें सबसे माहिर खौंफनाक नाम लाखन सिंह का है। डाकुओं को लेकर बनी मुंबईया फिल्मों में लाखन सिंह का नाम और कहानी कई बार फिल्माई गई। और फिल्म की शूटिंग्स और लाखन की जिंदगी का रिश्ता इतना करीब का है कि पहले मुझे जीने दो फिल्म लाखन की जिंदगी की जुडी हुई कहानी है।फिल्म को लाखन सिंह के गांव नगरा पोरसा के इलाके में फिल्माया गया है और फिल्म का ये शाट्स लाखन की असल जिंदगी का एक हिस्सा थी। 24 मार्च 1952 को मध्यप्रदेश पुलिस को एक स्पैशिफिक सूचना मिली थी कि लाखन अपने गांव नगरा में आया है और रात को दस बजे वो गांव से वापस बीहड़ो में जाएंगा। । पुलिस पार्टी ने पूरे रास्तें में जाल बिछा दिया। । पुलिस की घेराबंदी से बेखबर लाखन जैसे ही पुलिस की फायरिंग रेंज में पहुंचा तो पुलिस ने फायरिंग शुरू कर दी। लाखन और उसका गैंग पुलिस के इस हमले से चौंक गया। फायरिंग करते हुए उसने दूसरा रास्ता पकड़ने की कोशिश की लेकिन वो भी नाकाम थी क्योंकि वहां पुलिस की दूसरी एंबुश टीम मौजूद थी। गैंग ने हर तरफ से घिरा होने पर लॉस्ट फायरिंग शुरू कर दी। लेकिन किस्मत लाखन के साथ थी और जब उसके गैंग की गोलियों का जखीरा खत्म होने जा रहा था तभी बीस ऊंटों का एक कारवां जिस पर आम आदमी बैठे से ऊधर से आ गुजरा और पुलिस ने बेगुनाह लोगो को बचाने के लिए फायरिंग बंद कर दी। और इसी की आड़ में लाखन सिंह बच निकला। पुलिस अधिकारियों ने इस को लाखन की किस्मत और चंबल की बदकिस्मती माना। और इस घटना के बाद 8 साल तक चंबल में लाखन की बंदूकें गरजती रही। क्या है लाखन सिंह की कहानी। कैसे गांव का लाखन चंबल का आतंक बन गया।
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चंबल का शांत बीहड़। बेहद खूबसूरत और खतरनाक दोनो दिखाई देता है ठीक उसी तरह जिस तरह इस इलाके में बसे लोगो में दोस्ती को निबाहना हो तो मिसाल और अगर दुश्मनी दोस्ती में बदले तो फिर बदले की आग भी बेमिसाल। चंबल में दोस्ती और दुश्मनी की मिसाल बने हुए एक डाकू का ये वो गांव है जिसको मुंबई की फिल्म इंड्रस्ट्री ने अपनी शूटिंग का हिस्सा बना लिया। कहानी भी, किस्सा भी और इलाका भी वही। कहानी एक ऐसे डाकू की जिसके नाम से चंबल में लोगो के पसीने छूट जाया करते थे। और पुलिस के रिकॉ़र्ड में दर्ज हत्या की संख्या आज भी लोगो के रोंगटे खड़े कर देती है। 225 से ज्यादा लोगो के कत्ल और सैंकड़ों डकैतियां। लाखन का नाम आज भी लोगो के जेहन से भूलता नहीं है।लेकिन लाखन सिंह की जिंदगी के उतार-चढ़ाव की कहानी है। एक ऐसी कहानी है जिसमें दोस्ती है दुश्मनी और फिर तबाही की एक लंबी दास्तां है। चंबल के बीहड़ों में बसे हुए एक गांव में छोटे से घर से शुरू हुई जिंदगी, धंधें में हवेली वालों से दोस्ती और फिर धंधे को लेकर दुश्मनी। ये एक हिस्सा है तो फिर डाकू जिंदगी में पहले बागी मानसिंह के गैंग में रूपा महाराज से दोस्ती और फिर गैंग का सरदार बनने के लिए दोस्त से जानलेवा दुश्मनी। और दुश्मनी में इस तरह के किस्सें पैदा हुए कि मुंबईयां फिल्मी जगत को इस पर कईं कईं स्क्रिप्ट लिखनी पड़ी। ( कच्चे धागे)
चंबल में ठाकुर लाखन सिंह को जिंदा या मुर्दा पकड़ने के लिए पहली बार 4000 पुलिस फोर्स के जवानों को बीहड़ों में उतार दिया गया। गांव में हवेली में पुलिस थाना बना दिया गया। एसएएफ की एक पूरी बटालियन गांव में तैनात कर दी गई।और एक स्पेशल पुलिस अधिकारी को सिर्फ इसी गांव में बैठा दिया गया। सालों तक चलती हुई कहानी का अंत भी बिलकुल फिल्मी था। गोली लगने पर भी लाखन ने अपने गैंग को निकाल दिया और मुठभेड़ करने वाले पुलिस अधिकारी को पूरे फिल्मी अंदाज में ही मौत थमा दी। शुरू करते है चबंल के एक डाकू लाखन द टैरिबल की जिंदगी की असल कहानी
मुरैना का नगरा गांव। बीहड़ो में बसा हुआ गांव। मध्यप्रदेश के इस गांव से कुछ दूर चंबल बहती है और उसके पार उत्तरप्रदेश का इलाका। बीच में सैकड़ों किलोमीटर लंबा बीहड़। इसी गांव में 1922 में लाखन सिंह तोमर का जन्म हुआ था। आज लाखन के गांव में भी लाखन के घर की कोई निशानी नहीं बची है। गांव में उसके घर के नाम पर बीहड़ दिखता है। गांव के इस हिस्से में लाखन के कुटुंब के घऱ है। लेकिन लाखन का कुछ नहीं। लाखन सिंह के घर के नीचे बना हुआ कुआँ जरूर बचा हुआ है। लाखन सिंह के परिवार से अब यहां कोई नहीं रहता। लेकिन गांव के इस हिस्से में रहने वालों में से शायद ही कोई ऐसा हो जिसकी जिंदगी पर उस दुश्मनी का घाव न लगा हो। फिरंगी और हूजूरी सिंह के घर भी अब मिट्टी में मिले हुए है। मानक सिंह जो लाखन सिंह के गैंग में था और उसका भतीजा है 90 साल की उम्र में इन घरों को देखता है और पुरानी यादों में खो जाता है।
नगरा गांव यूपी और मध्यप्रदेश की सीमा पर बसा हुआ गांव है। इस गांव से शुरू हो जाता है चंबल का वो बीहड़ जिसकी डांग में लंबे समय तक डाकुओं ने पनाह ली है। इसी गांव के एक दूसरे छोर पर एक हवेली के खंडहर दिखाई देते है। हवेली के बाहर और भीतर गोलियों के निशान उस हवेली पर टूटे कहर के कहानी सुनाते है। ये घर है ठाकुर रघुबीर सिंह का। गांव का ही नहीं इलाके का माना हुआ परिवार। लेकिन घर में जीते सिंह के बाबाओं के परिवार से रिश्ता रखने वाले कुछ रिश्तेदार रहते है। हवेली की छतें उसी तरह काले धुएं से भरी हुई है। पत्थर उस दिन की आग से फटे हुए है। और हवेली हर साल पहले से ढहती जाती है। रहने वालों ने भी इसमें कुछ बदलाव नहीं किया है। लाखन सिंह के एनकाऊंटर केबाद 1972 में पहली बार इस हवेली में मुझे जीने दो की शूटिग्स हुई थी। उस वक्त कुछ बदलाुव किया गया लेकिन फिर कुछ नहीं बदला। हवेली एक जीता जागता गवाह है दुश्मनी के उस दौर का जिसमें नगरा को झुलसना पड़ा। और नगरा से शुरू हुई आग ने इलाके लोगों को और चंबल को एक ऐसा डकैत दिया जिसके नाम से इलाका थर्रा उठता।
मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश के बीच बसे हुए नगरा के लोग ऊंटों के सहारे नदी से इधर का सामान उधर और उधर का सामान इस पार लाते थे। टैक्स के अंतर के चलते ये फायदे का सौदा था। रघुबीर और लाखन का परिवार भी इस धंधें में लगा हुआ था। गांव में मानसिंह के गैंग का भी आना जाना था। एक तरफ लाखन का रिश्तेदार सूबा सिंह तो दूसरी और रघुबीर सिंह का परिवार दोनो गांव में एक दूसरे के करीब थे। लेकिन इसी बीच गांव में पुलिस का छापा पड़ा और सूबे सिंह के यहां से तस्करी का कुछ सामान बरामद हुआ। इस का शक लाखन के परिवार के करीबी लोगो के यहां चोरी हो गयी। और इसका शक रघुबीर सिंह पर गया।
गांव में दो परिवारों के बीच दुश्मनी शुरू हो चुकी थी। रह रह कर पुलिस का सहारा लेकर एक दूसरे से हिसाब बराबर किया जा रहा था। और चंबल में ऐसी पहली कहानियों से भी पुलिस ने सबक नहीं सीखा था लिहाजा वो आसानी से इस्तेमाल हो रही थी। फिर एक दिन मानसिंह गैंग ने एक पुलिस इंस्पेक्टर और बाद में चार और पुलिस वालों की हत्या कर दी। पुलिस ने इनकी जानकारी देने का शक सूबा सिंह पर किया और उसको गिरफ्तार कर लिया। कहते है कि जब सूबा सिंह को गिरफ्तार करके गांव से ले जाया जा रहा था तो सूबा सिंह ने लाखन सिंह को देखा और कहा कि इस अपमान का बदला जरूर लेना। साफा पहनने के बेहद शौंकीन लाखन सिंह ने अपना साफा गांव के सामने उतार कर सूबे सिंह के पैरों में रख कर कहा कि वो इस का ऐसा बदला लेगा कि आने वाले वक्त तक लोग इसको भूल नहीं पाएंगे। और कुछ ही दिन बाद एक छोटी सी घटना से रघुबीर सिंह और लाखन सिंह का परिवार एक दूसरे के आमने सामने आ गया।
मानक सिंह उस दुश्मनी की कहानी का चश्मदीद है। 90 साल की उम्र में भी मानक सिंह को वो पूरी कहानी फिल्म की रील की तरह से याद है क्योंकि मानक सिंह खुद लाखन सिंह का भतीजा है और गैंग में सालों तक दुश्मनों पर पुलिस पर गोलियां चला चुका है। सात हत्याओं के आरोपी मानक सिंह ने लाखन के कहने पर ही पुलिस के सामने समर्पण किया था।
नगरा गांव में दो ठाकुर परिवारों की दुश्मनी की कहानी शुरू हो चुकी थी। लाखन सिंह इलाके के एक गांव में डकैती डालकर चंबल का रास्ता तय कर लिया। इस वारदात में उसके भाई और दूसरे लोग तो गिरफ्तार हुए लेकिन लाखन फरार हो गया।
चंबल में सबसे पहले हर गोविंद और महाराज सिंह के गैंग में कुछ दिन रहा। उसके बाद उसने चरणा डकैत के गैंग में शामिल हुआ। लेकिन उसने वहां से भी जल्दी ही किनारा कर लिया। क्योंकि लाखन सिंह को किसी से आदेश लेना पसंद नहीं था। लाखन सिंह ने अपना गैंग बना लिया और उसमें परिवार के कई लोग शामिल हो गए।
लाखन ने बदला लेना शुरू कर दिया। और डकैती में उसकी मुखबिरी करने के शक में पांच लोगों को एक साथ लाईन में खड़ा कर गोलियों से भून दिया। वारदात से चंबल में लाखन सिंह का नाम सुर्खियों में आ गया। इस मामले में लाखन सिंह का भाई फिरंगी सिंह पकड़ा गया। फिरंगी सिंह हाईकोर्ट में अपील पर बाहर आ गया। लेकिन इस दौरान गांव में रघुबीर सिंह का रूतबा काफी ऊंचा हो गया था और फिरंगी के बाहर आने पर रघुबीर सिंह ने एक बार फिर उसको पुलिस की मदद से अंदर करा दिया और आरोप लगाया धमकी देने और सताने का। इस बात ने लाखन सिंह के जख्मों को फिर से हरा कर दिया। लाखन सिंह ने अपना बदला लेने का फैसला किया।
दो महीने बाद नगरा गांव के बाहर खेत में हवेली के दो लोगो तिलक सिंह और मथुरी सिंह की लाश गोलियों से छलनी पड़ी पाई गई। इस घटना ने लाखन सिंह को पुलिस रिकॉर्ड में लाखन द टैरिबल का नाम दिया। पुलिस अब लाखन सिंह का सफाया करना चाहती थी। हवेली ने भी लाखन के सफाएं में पुलिस की पूरे तौर पर मदद करना शुरू कर दिया। लेकिन लाखन ने इस कत्ल के बाद तो लूट, डकैती और कत्ल की एक पूरी नदी ही बहा दी। हर रोज कही न कही लाखन सिंह गैंग की वारदात की खबर पुलिस फाईलों में दर्ज होने लगी। और पुलिस के साथ मुठभेड़ से लाखन सिंह नहीं डरता था। उसका हौंसला कितना बढ़ा हुआ था इसी बात से अंदाज लगाया जा सकता है कि 1952-53 के बीच लाखन और पुलिस के बीच 9 एनकाउंटर हुए। इन एनकाउंटर में लाखन के सिर्फ दो लोग ही पुलिस की गोलियों का शिकार बने वही इस दौरान लाखन ने 47 लोगो को अपना निशाना बनाया।
लाखन सिंह का कहर अब हवेली पर बढ़ता जा रहा था। हवेली के हर कोने पर गोलियों के निशान उसके खौंफ की कहानी बता रहे है। लाखन अपना बदला लेने के लिए हमेशा ताक में लगा रहता था। इसके अलावा लाखन इलाके में भी वारदात करने में जुटा रहता था। मार्च 1952 में पुलिस के साथ हुई मुठभेड़ में ऊंटों के नाम पर अपनी किस्मत के सहारे बच निकले लाखन का शक एक बार फिर मुखबिरी के लिए रघुबीर सिंह पर ही गया।
गांव में दशहरे मनाया जा रहा था। लेकिन इसी बीच नगरा गांव के खेतों में हवेली वालों में से एक जबर सिंह को लाखन सिंह ने पकड़ लिया। लाखन सिंह ने जबर सिंह को बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया। इसके बाद गांव के बाहर से निकलते हुए ऐलान कर दिया कि वो हर दशहरे पर इस हवेली पर मौत बरसाएंगा।
मध्यप्रदेश पुलिस लाखन की दुश्मनी और कहर दोनों को जान चुकी थी। लिहाजा पुलिस ने लाखन को मारने के लिए एक प्लान बना दिया। प्लान था कि दशहरे पर लाखन फिर हवेली आएंगा और हवेली में रघुबीर का परिवार की सुरक्षा में पुलिस की पूरी गार्द तैनात मिलेगी। 1954 में दशहरे के दिन लाखन ने फिर हवेली पर हमला किया लेकिन इस बार हवेली से निकली पुलिस की गोलियों ने उसके पैर उखाड़ दिए। लाखन को भागना पड़ा। ये लाखन के लिए एक हार थी। और हार का बदला लेना लाखन को अच्छी तरह से आता था।
दशहरे के दो दिन बाद पुलिस को सूचना मिली कि बीती रात आगरा के पास मानसिंह गैंग से पुलिस के बड़ी मुठभेड़ हुई है। और उस मुठभेड़ में मानसिंह गैंग के साथ लाखन सिंह का गैंग भी था। लिहाजा पुलिस को उम्मीद हुई कि मुठभेड़ से बच निकला गैंग अपने पुराने रास्ते से लौटेंगा। नगरा में थाना बना चुकी पुलिस को आदेश मिला कि वो आगरा वाले रास्ते पर कूच करे। पुलिस ने तेजी के साथ मूवमेंट की। नगरा थाना यानि हवेली से निकली पुलिस को गांव से निकले कुछ ही वक्त हुआ होगा। कि अचानक खेतों से लाखन का गैंग निकल आया। और हवेली में कत्लेआम मचा दिया। 6 लोगो को मौत के घाट उतार कर लाखन सिंह वहां से निकल लिया।
पुलिस को इससे बड़ी हार शायद ही किसी डाकू के हाथ मिली हो। नगरा से सत्रह किलोमीटर दूर कस्बा पोरसा में मध्यप्रदेश पुलिस के डीआईजी ठहरे हुए थे। खबर पोरसा तक पहुंची तो सदमे में आई पुलिस फौरन नगरा पहुंची। लेकिन तब हवेली के अंदर सिर्फ रोने चीखने की चीत्कारें और हवेली के बाहर गोलियों के निशान बचे थे। लाखन अपना बदला लेकर निकल चुका था। लेकिन दुश्मनी कम नहीं थी। कहते है कि हवेली के लोगो की चिताओं के जलने से पहले ही रघुबीर सिंह के लोगो ने भी दूसरी तरफ लाशें बिछा दी।
अब इस दुश्मनी की कहानी चंबल के बीहड़ की हर डांग या भरकों में गूंज रही थी। पुलिस के मत्थे एक नाकामी का दाग बढ़ता जा रहा था। पुलिस चाहती थी कि किसी भी तरह इस दाग को साफ करने की कोशिश की जाएं.
लाखन सिंह की दुश्मनी और नगरा गांव की कहानी अखबारों की सुर्खियों में थी। प्रदेश सरकार को हर तरफ से नाकामी मिल रही थी। लेकिन लाखन आम डकैत की तरह नहीं था। पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक लाखन एक लोमड़ी की तरह तेज था। और खतरे को सूंघने में बेहद माहिर था।
लाखन सिंह का अपना गैंग काफी बड़ा हो चुका था। लेकिन कभी कभी वो मानसिंह गैंग के साथ मिलकर वारदात किया करता था। लोगों का कहना है कि लाखन अपने दुश्मनों के लिए कोई भी गली नहीं छोड़ता था। हवेली के लोग कही लाखन के खिलाफ मानसिंह गैंग का इस्तेमाल न कर ले इसीलिए लाखन हमेशा मानसिंह के कहने पर भी काम करता था।
मानसिंह का गैंग चंबल के इतिहास का सबसे बड़ा और खतरनाक गैंग माना जाता था। मानसिंह को इलाके के लोग राजा मानसिंह कहते थे। गैंग में मानसिंह के परिवार के कई लोग शामिल थे लेकिन गैंग में मानसिंह के बाद दो लोगो की चलती थी। एक लाखन सिंह और दूसरा रूपा पंडित। दोनो अचूक निशानेबाज और दोनों ही महत्वाकांक्षी। मानसिंह के बाद गैंग के मुखिया बनने की ख्वाहिंश दोनो के दिल में थी। लेकिन मानसिंह इस बात को जानता था इसीलिए अपने सामने ही लाखन सिंह को गैंग से विदा कर दिया था।
लाखन सिंह एक बड़े गैंग का मुखिया था। गैंग लूट और डकैती के लिए किसी भी हद तक पहुंच जाता था। लेकिन मानसिंह की तरह से लाखन सिंह ने अपने कुछ उसूल बनाएं हुए थे। और इन उसूलों में से एक था कि किसी भी कीमत पर मुखबिरों को न छोड़ना। पुलिस भी लाखन सिंह के पीछे पड़ी हुई थी। किसी भी तरह से लाखन की सूचना हासिल करने के लिए पुलिस ने दिन रात एक किया हुआ था । और फिर 1956 में लाखन सिंह के गैंग में पुलिस ने एक मुखबिर बना लिया था। मुखबिर की सूचना पर पुलिस के साथ लाखन गैंग की मुठभेड़ हो गई। पुलिस की गोलियों को बड़ी मुश्किल से चकमा देकर लाखन बीहड़ों में वापस लौटा। लेकिन सारी रात लाखन सिंह शराब पीता रहा। पूरा गैंग अचरज से भरा हुआ था कि आखिर लाखन सिंह जो शराब नहीं पीता है वो पूरी रात शराब क्यों पी रहा है। सुबह होने पर लाखन ने अपना पूरा गैंग एक लाईन में खड़ा किया और अपने सबसे करीबी आदमी फौंजदार सिंह को गोली मार दी। फौजदार सिंह की लाश पुलिस अगले दिन नगरा के पास के बीहड़ में मिल गई।
मध्यप्रदेश पुलिस ने फौजदार सिंह के मारे जाने की खबर मध्यप्रदेश के गृहमंत्री नरसिंह दीक्षित को भी दी । कहते है कि नरसिंह दीक्षित जल्द से जल्द लाखन का सफाया करना चाहते थे और इसी लिए लाखन सिंह के गांव में पुलिस अफसरों की तैनाती की गई थी। लेकिन फौंजदार सिंह की मौत ने पुलिस का प्लान ही ध्वस्त कर दिया। दरअसल मध्यप्रदेश पुलिस को ये लाखन सिंह की चुनौती थी। लाखन सिंह की किस्मत काफी तेज थी और उसकी खुद की निगाह भी आसानी से दोस्त और दुश्मन को पहचान लेती थी। चंबल के डकैतों में लाखन सिंह का नाम जरा से शक होने पर कत्ल कर देने वाले डाकू के तौर पर था।
मध्यप्रदेश पुलिस पूरे तौर पर लाखन सिंह यानि जी 2 के पीछे पड़ चुकी थी। लाखन सिंह के बदले की आग हवेली के लोगो को जलाती जा रही थी। पुलिस पूरी ताकत लगाकर भी लाखन सिंह को रोक नहीं पाती थी। लाखन सिंह अब तक हवेली के 15 लोगो को मार चुका था। ऐसे में एक दिन पुलिस अधिकारियों ने तय किया कि हवेली के लोगो को पुलिस संरक्षण में ग्वालियर शहर भेज दिया जाए। और हवेली खाली हो गई। लेकिन खाली हवेली भी लाखन को बदला लेने से नहीं रोक पाईँ। अगर हवेली में इंसान नहीं बचे थे तो क्या लाखन सिंह ने हवेली ही फूंकने का फैसला कर लिया। ये एक ऐसा फैसला था जिसने इलाके में सनसनी फैला दी। और लाखन ने हवेली फूंकने के लिए पेट्रौल शहर से मंगाया। और दूसरे डाकू गिरोहों को भी इसमें हिस्सा लेने के लिए न्यौता। पुतलीबाई, सुल्ताना, कल्ला और खुद लाखन सिंह एक दिन इस हवेली को फूंकने जा पहुंचा
धू धू कर जली हवेली अपनी किस्मत पर आज भी आंसू बहाती है। लाखन सिंह का बदला अभी तक पूरा नहीं हुआ था लेकिन उसने अपने दुश्मनों से गांव छुड़वा लिया था। हवेली फूंकने की खबर ने पुलिस की और भी किरकिरी करा दी। और फिर मध्यप्रदेश पुलिस ने हवेली में थाना खोलने के बाद एक पूरी बटालियन एसएएफ की नगरा गांव की इस हवेली में तैनात की। सरकार किसी भी तरह लाखन से छुटकारा चाहती थी लिहाजा उसने एक आरआई के तौर पर भर्ती पुलिस अधिकारी टी क्विन को नगरा में ही अस्टिटेंट और फिर कमांडेट बना कर तैनात कर दिया। टी क्विन ने कसम खाई कि वो लाखन का सफाया करने के बाद ही नगरा को छोड़ेगा।
टी क्विन हर समय नगरा के बीहड़ों में फोर्स के साथ लाखन की तलाश में घूमने लगा। लेकिन लाखन सिंह को गांव से दुश्मनों को भगाने का जश्न मनाना था। लिहाजा उसने मंदिर बनाने और उस पर घंटा चढ़ाने का ऐलान कर दिया। मंदिर बनना शुरू हो गया। गांव के बाहर बनने वाले इस मंदिर में गांव के लोगो से ही लाखन सिंह ने खुदाई कराई।
टी क्विन को इस की जानकारी मिल चुकी थी। पुलिस ने जाल बिछा दिया। ये खबर सुर्खियों में थी लिहाजा पुलिस इसमें मात नहीं खाना चाहती थी। पूरी तरह से मूर्तियां लाने वालों पर निगाह थी। पंडितों पर भी शिकंजा कसा गया। लेकिन लाखन ने इस बार भी पुलिस का ध्यान एक फर्जी सूचना के सहारे बंटा दिया। पुलिस गांव के दूसरे हिस्से में लाखन के पहुंचने की सूचना पर पहुंची थी कि लाखन ने इस तरफ से आकर घंटा चढ़ा दिया। ठगी सी पुलिस पहुंची लेकिन तब तक लाखन जा चुका था।
पुलिस को एक बार फिर लाखन सिंह के हाथों मुंह की खानी पड़ी। पुलिस को लाखन चाहिए और लाखन चंबल के बीहड़ों में गुम था। पुलिस प्रमुख के एफ रूस्तम जी ने खुद ऑपरेशन की कमान संभाल ली। चंबल के इतिहास में पहली बार 4000 हजार पुलिस वालों और 100 वाहनों को बीहड़ो में उतार दिया गया। इस ऑपरेशन का नाम दिया गया ऑपऱेशन हैमर। 19 अगस्त 1958 से चंबल में गैंग 2 लेकिन खौंफ में नंबर 1 लाखन के गैंग के सफाएं के ऑपऱेशन शुरू हो गया। इससे पहले चंबल में किसी डकैत को घेरने के लिए एक बार 400 से 500 लोगो को ही इस्तेमाल किया गया था। ये पहला मौका था कि इतनी बड़ी पुलिस फोर्स बीह़ड़ में झौंक दी गई हो। और सब नतीजों का इंतजार कर रहे थे।
पुलिस चंबल के बीहड़ों में भटक रही थी और लाखन अपने दुश्मनों को ठिकाने लगाने में जुटा था। चंबल के इलाके में इतनी बड़ी फोर्स के खाने-पीने के इंतजाम का भी संकट था। बरसात का मौसम था और पुलिस का मूवमेंट भी काफी मुश्किल भरा था। 26 अगस्त को पुलिस को सूचना मिली कि जौरा के जंगलों में देवगढ़ में लाखन अपने गैंग के साथ देखा गया।
पूरा पुलिस मूवमेंट जौरा के इलाके में कर दिया गया। पुलिस ने पूरा इलाका छान मारा। लेकिन पच्चीस लोगों के साथ उस इळाके में घूम रहा लाखन आसानी से गायब हो गया। पुलिस प्रमुख रूस्तम जी ने अपने मातहतों के साथ बातचीत की और जब ये पता चल गया कि लाखन अब यहां से बच निकला है ऑपरेशन हैमर को 28 अगस्त को खत्म कर कर दिया। इस ऑपऱेशन को फेल करार दिया गया।
टी क्विन ने एक और चाल चली। उसने रूपा महाराज से रिश्ता निकाला और कहा कि यदि वो लाखन का एनकाउंटर करा देता है तो उसे हाजिर करा दिया जाएंगा। मानसिंह के बाद गैंग का सरदार रूपा इस बात के लिए तैयार हो गया। उसके बाद एक के बाद एक एनकाउंटर हुए लेकिन लाखन का कुछ नहीं बिगड़़ा। एक बार रूपा की इंफोर्मेशन पर पुलिस ने घेरा लगाया तो लाखन की बजाय पुतलीबाई का गैंग मारा गया।
इलाके में टी क्विन और रूपा के रिश्तें की कहानी सुर्खियां बनने लगी। यहां तक कि जेड.ओ 1 कहलाने वाले टी क्विन को जेड ओ 2 और रूपा को जेड़ ओ 2 कहा जाने लगा। और फिर एक दिन रूपा को टी क्विन ने मिलने के लिए बुलाया और बाद में रूपा मारा गया।
किस्मत ने इतने दिन तक लाखन का साथ दिया। रूपा के मारे जाने के बाद चंबल में लाखन सिंह एकमात्र सरदार था। लाखन सिंह के नाम के सामने अब कोई दूसरा नहीं था। पुलिस हताश थी और लाखन आसमान पर। लेकिन वक्त ने लाखन का साथ छोड़़ने का फैसला कर लिया था। 30 दिसबंर 1960 को भिंड जिले के देवरा गांव में पुलिस और लाखन गैंग की मुठभेड़ हो गई। अचानक हुई इस मुठभेड़ में लाखन सिंह को गोली लग गई तो लाखन ने अपने गैंग को कहा कि गैंग वहां से निकले और पुलिस को लाखन रोकेगा।
गैंग निकल गया। पुलिस गोलियां बरसा रही थी तभी एक आवाज आई कि गोलियां मत चलाओं मैं स्टाफ में से हूं। प्लाटून कमांड़र राम अख्तियार सिंह ने गोलियों चलाना बंद कराया और देखा कि पुलिस की वर्दी में एक आदमी टॉमीगन के साथ रेंग रहा है। राम अख्तियार सिंह आगे बढा़ तो सामने लेटे हुआ आदमी एक दम से खड़ा हुआ और उसने गोलियां चलाते हुए कहा कि वो और नहीं लाखन सिंह है और लाखन अपना बदला लिए बिना नहीं मर सकता। दोनो ओर से गोलियां चली और लाखन सिंह के के साथ रामअख्तियार सिंह भी मौके पर ही शहीद हो गय।
मुठभेड के बाद रूस्तम जी ने पत्रकारों को कहा कि yes we nabbed the killer, the bloody killer, Lakhan the terrible, the homicidal manic