चंबल के डाकू-
चंबल मध्य भारत के बीच बहती एक खूबसूरत नदी। तीन राज्यों के बीच बहती हुई ये नदी 900 किलोमीटर का रास्ता तय करती हुई यमुना में मिल जाती है। लेकिन नदी की लंबाई से ज्यादा लंबी है इसकी कहानी। नदी के सफर से लंबा है इसके किस्सों का सफर। नदी के पानी से ज्यादा चर्चित नदी के पानी की तासीर चंबल घाटी की कहानी देश के हर हिस्से में पढ़ी और सुनी जाती है। चंबल की कहानी नदी के साथ दौड़ते इन टीलो और जंगली झाडियों, घने पेड़ों और गहरे गारों की कहानी है। ये चंबल है और ये चंबल की घाटी है।
चंबल की कहानी चंबल जितनी ही पुरानी । सत्ता से दुश्मनी का सफर नदी के सफर जितना ही पुराना है। पिंडारियों, ठगों, बागियों और डाकूओं तक का ये सफर जिनता खौंफनाक है उतना ही दर्दनाक भी है। चंबल के इन टीलों में सदियों से इंसानों की चींखें दफन है तो इनमें दफन है खूंखार, और दुर्दांत इंसानों की दास्ताने। कभी ठग, कभी पिंडारी, कभी बागी तो कभी डाकू बस नाम और गांव बदलते रहे कहानियां नहीं। कुछ लोगो को लगता है कि चंबल का पानी ही ऐसा है।
लेकिन बात ऐसी भी नहीं है। चंबल शुरू होती है मध्यप्रदेश के मुहु जिले से। लेकिन एक लंबे रास्ते में उसके आपपास के लोगो को इसके पानी से बगावत की खाद नहीं मिलती है। जाने क्या हो जाता है इस पानी में जैसे ही ये राजस्थान के धौलपुर से घुसकर इस इलाके में बहने लगती है। पानी जैसे बगावत के तेजाब में बदल जाता है। और पानी की इस बदली तासीर की गवाही कोई एक दो दस नहीं बल्कि सदियों की कहानियां देती है। नदी के एक और राजस्थान तो दूसरी और मध्यप्रदेश। एक और मध्यप्रदेश तो दूसरी और उत्तरप्रदेश। और इस हजारो किलोमीटर के इलाके में हर तरफ बागी और डाकूओं के किस्से।
चंबल के इन्हीं किस्सों, कहानियों के बीच छिपे सच को सामने लाएगा न्यूज नेशन। किस्सों के बीच दर्द और दुस्साहस के किस्सों के बीच के ताने-बाने को आपके सामने लाने की कोशिश करता है।
मानसिंह, डोंगर, बटरी , रूपा महाराज, लोकमन दीक्षित उर्फ लुक्का, लाखन, अमृतलाल , मोहर सिंह, मलखान सिंह और ......और ... और । ये एक अतंहीन फेहरिस्त है। जो कहां से शुरू होती है और कहां खत्म होगी ठीक से कोई नहीं बता सकता है। चंबल की रूखी पहा़डियों में बंदूकों और बारूद की गंध के बीच में सिर्फ आदमियों की क्रूरता के किस्से ही नहीं है बल्कि इसकी घाटियों ने महिला डकैतों की एक परंपरा देखी है। बागियों के दलो में भले ही किसी महिला को शामिल न किया जाता हो लेकिन चंबल में एक ऐसी प्रेम कहानी भी पनपी जिससे जनमी चंबल के किस्सों की सबसे पहली महिला डाकू पुतलीबाई। और एक हाथ से निशाना लगाने में मशहूर पुतलीबाई से चंबल में गूंजी महिला डकैतों की बंदूकों को फूलन, कुसुमा नाईन, और सीमा परिहार जैसी महिला डकैतों ने संभाले रखा।
चंबल की कहानी पुराणों में महाभारत काल तक पहुंचती है। तो इतिहास में पृथ्वीराज चौहान के शासन में पनपे इस इलाके के बागियों तक जाती है।। सदियों तक इस इलाके से गुजरने वाले यात्रियों को पिंडारियों और ठगो ने मौत बांटी है। ठगो ने अपने आतंक से इस इलाके को इतना दहला दिया था कि अंग्रेजों ने बाकायदा आदेश जारी कर दिया था कि गिरफ्तार किए गए ठग को उसी के गांव में सरेआम फांसी दे दी जाए और उसके परिवार को गुलाम बना लिया जाए।
ठगों की कहानी तो ब्रिटिश राज में ही खत्म हो गई लेकिन ठगो की जगह चंबल के बीहड़ो में एक नया शब्द गूंजने लगा और ये शब्द था बागी। 19वीं सदी से चंबल में बागियों की बंदूकें गरजने लगी। और बागियों से शुरू हुआ सफर चंबल के मौजूदा डाकूओं तक जा पहुंचा। लेकिन सफर के साथ किस्सों में दिलचस्पी बढती जाती है। चंबल का ये सफर इतना किस्सागोई से भरा है कि कई बार किस्सों और हकीकत में अंतर करना मुश्किल हो जाता है।
चंबल मध्य भारत के बीच बहती एक खूबसूरत नदी। तीन राज्यों के बीच बहती हुई ये नदी 900 किलोमीटर का रास्ता तय करती हुई यमुना में मिल जाती है। लेकिन नदी की लंबाई से ज्यादा लंबी है इसकी कहानी। नदी के सफर से लंबा है इसके किस्सों का सफर। नदी के पानी से ज्यादा चर्चित नदी के पानी की तासीर चंबल घाटी की कहानी देश के हर हिस्से में पढ़ी और सुनी जाती है। चंबल की कहानी नदी के साथ दौड़ते इन टीलो और जंगली झाडियों, घने पेड़ों और गहरे गारों की कहानी है। ये चंबल है और ये चंबल की घाटी है।
चंबल की कहानी चंबल जितनी ही पुरानी । सत्ता से दुश्मनी का सफर नदी के सफर जितना ही पुराना है। पिंडारियों, ठगों, बागियों और डाकूओं तक का ये सफर जिनता खौंफनाक है उतना ही दर्दनाक भी है। चंबल के इन टीलों में सदियों से इंसानों की चींखें दफन है तो इनमें दफन है खूंखार, और दुर्दांत इंसानों की दास्ताने। कभी ठग, कभी पिंडारी, कभी बागी तो कभी डाकू बस नाम और गांव बदलते रहे कहानियां नहीं। कुछ लोगो को लगता है कि चंबल का पानी ही ऐसा है।
लेकिन बात ऐसी भी नहीं है। चंबल शुरू होती है मध्यप्रदेश के मुहु जिले से। लेकिन एक लंबे रास्ते में उसके आपपास के लोगो को इसके पानी से बगावत की खाद नहीं मिलती है। जाने क्या हो जाता है इस पानी में जैसे ही ये राजस्थान के धौलपुर से घुसकर इस इलाके में बहने लगती है। पानी जैसे बगावत के तेजाब में बदल जाता है। और पानी की इस बदली तासीर की गवाही कोई एक दो दस नहीं बल्कि सदियों की कहानियां देती है। नदी के एक और राजस्थान तो दूसरी और मध्यप्रदेश। एक और मध्यप्रदेश तो दूसरी और उत्तरप्रदेश। और इस हजारो किलोमीटर के इलाके में हर तरफ बागी और डाकूओं के किस्से।
चंबल के इन्हीं किस्सों, कहानियों के बीच छिपे सच को सामने लाएगा न्यूज नेशन। किस्सों के बीच दर्द और दुस्साहस के किस्सों के बीच के ताने-बाने को आपके सामने लाने की कोशिश करता है।
मानसिंह, डोंगर, बटरी , रूपा महाराज, लोकमन दीक्षित उर्फ लुक्का, लाखन, अमृतलाल , मोहर सिंह, मलखान सिंह और ......और ... और । ये एक अतंहीन फेहरिस्त है। जो कहां से शुरू होती है और कहां खत्म होगी ठीक से कोई नहीं बता सकता है। चंबल की रूखी पहा़डियों में बंदूकों और बारूद की गंध के बीच में सिर्फ आदमियों की क्रूरता के किस्से ही नहीं है बल्कि इसकी घाटियों ने महिला डकैतों की एक परंपरा देखी है। बागियों के दलो में भले ही किसी महिला को शामिल न किया जाता हो लेकिन चंबल में एक ऐसी प्रेम कहानी भी पनपी जिससे जनमी चंबल के किस्सों की सबसे पहली महिला डाकू पुतलीबाई। और एक हाथ से निशाना लगाने में मशहूर पुतलीबाई से चंबल में गूंजी महिला डकैतों की बंदूकों को फूलन, कुसुमा नाईन, और सीमा परिहार जैसी महिला डकैतों ने संभाले रखा।
चंबल की कहानी पुराणों में महाभारत काल तक पहुंचती है। तो इतिहास में पृथ्वीराज चौहान के शासन में पनपे इस इलाके के बागियों तक जाती है।। सदियों तक इस इलाके से गुजरने वाले यात्रियों को पिंडारियों और ठगो ने मौत बांटी है। ठगो ने अपने आतंक से इस इलाके को इतना दहला दिया था कि अंग्रेजों ने बाकायदा आदेश जारी कर दिया था कि गिरफ्तार किए गए ठग को उसी के गांव में सरेआम फांसी दे दी जाए और उसके परिवार को गुलाम बना लिया जाए।
ठगों की कहानी तो ब्रिटिश राज में ही खत्म हो गई लेकिन ठगो की जगह चंबल के बीहड़ो में एक नया शब्द गूंजने लगा और ये शब्द था बागी। 19वीं सदी से चंबल में बागियों की बंदूकें गरजने लगी। और बागियों से शुरू हुआ सफर चंबल के मौजूदा डाकूओं तक जा पहुंचा। लेकिन सफर के साथ किस्सों में दिलचस्पी बढती जाती है। चंबल का ये सफर इतना किस्सागोई से भरा है कि कई बार किस्सों और हकीकत में अंतर करना मुश्किल हो जाता है।
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