Friday, April 29, 2016

डाकू मलखान सिंह

छह फीट लंबा कद। चेहरे से बाहर निकलती मूंछे और खाकी वर्दी।एक हाथ में अमेरिकन सेल्फ लोड़िंग राईफल तो दूसरे हाथ में लाऊडस्पीकर। सालों तक ये चेहरा चंबल के इलाकों में खौंफ की तस्वीर बना रहा। अपहरण, लूट, डकैती, हत्या और हत्या के प्रयास के सैकड़ों मामले मलखान सिंह के सिर पर रहे। लेकिन मलखान सिंह बेखौंफ घूमता रहा। 
चंबल में मौहर सिंह, माधौं सिंह, पंचम सिंह जैसे डाकुओं के समर्पण के बाद चंबल में शांति की उम्मीद कर रहे लोगो की उम्मीद जल्दी ही टूट गई थी। चंबल के बीहड़ों को भी जैसे अपने लिए एक हीरो की तलाश रहती हो। गांव में दुश्मनी का सिलसिला और पुलिस और पटवारी के बीच पिसते हुए आम आदमी को चंबल से हमेशा संबल मिलता है। 
मलखान सिंह ने शुरूआत तो की गांव की दुश्मनी में अपनी जान बचाने से लेकिन जल्दी ही चंबल में लोग उसके नाम से थर्राने लगे। पुलिस के साथ आधार दर्जन मुठभेड़ों के बीच जिंदा बचा रहे मलखान सिंह को चंबल में हीरो का दर्जा हासिल हो गया। पुलिस उसके पीछे लगी रही लेकिन मळखान तो दूर की बात है उसकी परछाईं को भी पुलिस कभी छू नहीं पाई। सैकडों मुकदमों पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज है तो ऐसे मामलों की संख्या भी कम नहीं जिसमें मलखान के खौंफ के चलते लोगो ने पुलिस में मामला दर्ज कराने की जरूरत तक महसूस नहीं की। आखिर कैसे शुरू हुआ चंबल के गांव में एक छोटे से किसान के बेटे का गांव से चंबल के दस्यु स्रमाट का ये सफर।  
चंबल के सैकड़ों- हजारों गांव में घर का पिछला दरवाजा बीहड़ों में खुलता है। चंबल में शायद ही किसी को याद हो कि घर के पीछे बीहड़ में भी एक दरवाजा खुला रखना चाहिएं। लेकिन इस दरवाजे से जाने कितने लोगो ने घर से बीहड़ का सफर तय किया। चंबल में बसे हुए दूसरे सैंकड़ों गांवों की तरह ही बिलाव। उमरी थाने का बिलाव गांव।
गांव के इस घर के ऊपर की लगी पत्थर की नेम प्लेट पर लिखा है दस्यु सम्राट मलखान सिंह। लेकिन मलखान सिंह का पुश्तैनी घर थोड़ा सा आगे की ओर है। घर के इस दरवाजे के अंदर जाने के बाद ही आप मलखान के पुश्तैनी घर में घुस पाते है। चालीस साल बाद आज भी इस घर के उस कमरे में में आप देख सकते है कि टूटा हुआ कमरा और चंबल एक दूसरे से इस तरह हिले-मिले हुए है कि जैसे एक दूसरे को अलग करना नामुमकिन हो। लेकिन इसी घर में रहने वाले 17 साल के एक लड़के मलखान सिंह ने गांव के जमींदार के खिलाफ आवाज उठाई थी। 
गांव में कैलाश पंडित का दबदबा था। खांगर ठाकुरों के कुलपुरोहित परिवार के पास गांव की ज्यादातर जमीन थी। सालों से सरपंची पर भी इसी परिवार का कब्जा था। मलखान सिंह भी गांव के ज्यादातर दूसरे लड़कों की तरह पंडित कैलाश के पास ही उठा-बैठा करता था। लेकिन कई बार वो कैलाश पंडित की बातों का सरेआम विरोध कर देता था। और ये बात कैलाश पंडित को चुभने लगी।
रिश्तों में दरार पड़नी शुरू हो गई। मलखान सिंह को मालूम नहीं था कि उसका एक छोटा सा कदम उसकी जिंदगी में बड़ा सा बदलाव कर देगा। कैलाश पंडित ने पुलिस को इशारा कर दिया। और पुलिस ने एक केस में मलखान को अंदर कर दिया। मलखान के मुताबिक पुलिस ने एक झूठा केस बनाया था।मलखान कुछ दिन बाद जमानत पर लौटा। लेकिन जमानत पर लौटे मलखान ने अब कुर्ता- पहनना शुरू कर दिया था। अब वो भरी पंचायत में कैलाश पंडित पर सवाल उठाने लगा। मामला बन गया था मंदिर की जमीन पर अवैध। सिंध नदी के किनारे बने इस मंदिर की सौ बीघा जमीन पंडित के लोग बो और काट रहे थे। लेकिन मलखान सिंह ने पंचायत में इस मंदिर की जमीन को वापस मंदिर को देने के लिए कहा। अब दरार दुश्मनी में बदल रही थी। 
पडिंत कैलाश को ये बात और नागवार गुजरी। थानेदार .....को बताया कि मलखान सिंह मशहूर डकैत गिरदारिया का सफाया करा सकता है। पुलिस ने फिर मलखान सिंह को उठा लिया। मलखान मजबूर था उसने थानेदार को झूठा सच्चा पता बताया लेकिन थानेदार को गिरदावरिया हाथ नहीं लगा तो उसने मलखान को सबक सिखाने की सोच ली। और यही से मलखान की जिंदगी दांव पर लग गई। 
मलखान सिंह मलखान एक दिन अपने घर में सो रहा था कि पुलिस पार्टी ने रेड डाली। इससे पहले कि मलखान सिंह कुछ समझ पाएं उसको पुलिस पार्टी ने अपने कब्जें में ले लिया। इसके बाद मलखान को इतना मारा कि मलखान अपने पैरों पर चल नहीं पा रहा था। घायल मलखान को इससे बड़ी चोट तब लगी जब पुलिस ने ले जाकर उसे कैलाश पंडित के पैरों में ले जा पटका। पुलिस का इरादा मलखान की कहानी को हमेशा के लिए खत्म करने का था। पुलिस और कैलाश दोनो ही इस कांटे को निकाल देना चाहते थे। लेकिन गांव वालों के सामने किसी एनकाउंटर में फंसने के डर से पुलिस थाने ले गई। 
गांव में राजनीति के चलते दुश्मनी बढ़ रही थी और मलखान की किस्मत उसे चंबल के बीहड़ों में खींच रही थी। 1970 में मलखान ने भी पंच का चुनाव जीत लिया। अब कैलाश को मलखान से सीधा खतरा होने लगा। सरपंच के चुनाव की लड़ाई में कैलाश पंडित के एक कट्टर दलित समर्थक पंच का कत्ल हो गया। पुलिस ने एक बार फिर मलखान और उसके साथी को नामजद कर दिया। और इस मामले में मलखान और उसके साथी को उम्र कैद की सजा सुना दी। और गांव में दलितों ने मलखान के गुरू जगन्नाथ उर्फ हिटलर सरेआम मार दिया। 
होली के दिन हुई इस हत्या से मलखान पूरी तरह से टूट गया। लाश पर फूट फूट कर रोते हुए मलखान ने कसम खाई कि जब तो अपने जगन्नाथ की मौत का बदला नहीं ले लेता वो होली नहीं खेलेगा। 
मलखान की जिंदगी रोज ब रोज खतरे में थी। गांव में दुश्मन मलखान को मौत के घाट उतार देना चाहते थे और मलखान रोज डर के साए में सोता था। और इसी बीच मार्च 1976 में एक रात मलखान सिंह सो रहा था कि उसके घर पर गोलियां चलने लगी। और मलखान ने चंबल के बीहड़ में कूद कर अपनी जान बचाई। 
इस घटना के बाद मलखान ने चंबल के बीहड़ को अपना भाग्य मान लिया। और दशकों से चल रही दुश्मनी का सामना करने का फैसला ले लिया। और कुछ दिन मलखान सिंह गांव में कैलाश पंडित के घर पहुंचा और चिल्ला कर कहा कि कैलाश बचों अगर बच सकते हो तो। मलखान ने अपनी स्टेनगन से गोलियों की बौछार कर दी। कैलाश पंडित को तीन गोलियां लगी और उसके साथ के आदमी के सीने में बाकि की गोलियां समा गई। 
कैलाश बच गया लेकिन पुलिस ने मलखान को मार गिराने के लिए रात दिन एक कर दिये। मलखान समझ चुका था कि अब उसके लिए समाज के रास्ते बंद हो चके है और अब चंबल ही उसका एक ठिकाना बन चुका है। पुलिस ने मलखान के गैंग को पुलिस गैंग चार्ट में नंबर दिया ई-49 यानि दुश्मन नंबर 49। और मलखान पर 1000 रूपए का इनाम भी घोषित कर दिया।
चंबल में मलखान के गैंग में सबसे पहले उसके रिश्ते के भाई और दोस्त ही शामिल हुए। हथियार हासिल करने के लिए पकड़ यानि अपहरण का रास्ता इस्तेमाल किया गया।  मलखान ने जंगल में भी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार चलता था। पहली पकड़ का पैसा मंदिर को ठीक कराने के लिए दान कर दिया गया। 
गांव में मलखान के फरार होने पर दुश्मनों ने हार नहीं मानी। मलखान के रिश्तेदार प्रभु की हत्या कर दी गई। और पुलिस ने चंबल में नया गैंग पनपने से पहले निबटाने के लिए प्रभु की तेरहवी के दिन ही मलखान के गैंग को ठंडा करने के लिए जाल बिछा दिया। लेकिन मलखान पुलिस के इस जाल से बच निकला। 
मलखान की वारदात बढ़ रही थी तो उस पर इनाम भी बढ़ रहा था पांच महीने में मलखान के ऊपर ईनाम बढ़ाकर 5000 रूपए कर दिया गया। पुलिस हर दांव का आजमा रही थी। और इसके लिए पुलिस ने चंबल के सबसे बड़े डाकू मोहर सिंह  से पैरोल बढ़ाने के बदले मलखान का खात्मा कराने में मदद मांग ली। मोहर सिंह ने तलाश में मदद की लेकिन मलखान तक पुलिस के हाथ नहीं पहुंच पाएं।
उसी साल मलखान ने दो दलितों की हत्या कर अपने गुरू की मौत का बदला ले लिया। पुलिस ने भी मलखान को निबटाने के लिए उसके गैंग के एक सदस्य को तोड़ लिया लेकिन मलखान ने उसका भी सफाया कर दिया। पुलिस हर हथकंडा आजमा रही थी लेकिन मलखान का खौंफ चंबल में बढ़ता जा रहा था. यहां तक कि एक साल के भीतर ही मलखान का नंबर गैंग चार्ट में ई-49 से बढ़कर ए- 3 पर पहुंच गया। गैंग ने पकड़ शुरू की। लेकिन पकड़ की रकम को लेकर गैंग में बंटवारा हो गया। गैंग के पांच लोग मलखान को छोड़कर चले गए। एक डकैत बाबू गुर्जर मलखान की पसंदीदा राईफल विनचेस्टर लेकर फरार हो गया। 
मलखान गैंग डकैती से ज्यादा पकड़ करने ज्यादा जुट गया। चंबल के इलाके में मलखान का खौंफ तारी हो गया। लखनपुरा, बारपुरा जैसे गांवों से पकड़ की गई और मोटी रकम वसूली गई। इसी बीच मलखान ने अपने एक गैंग मेंबर को मुखबिरी के शक में ठिकाने लगा दिया। मलखान गैंग का हौसला बढ़ता जा रहा था और अब उन्होंने पुलिस को भी अपना निशाना बनाना शुरू कर दिया। पीएसी के एक कांस्टेबल की हत्या कर दी। इसके बाद मलखान और उसका टूटा हुआ गैंग फिर से चंबल के बीच इकट्ठा हुआ और छह साल बाद मलखान सिंह ने होली जश्न कुछ और पकड़ से रकम हासिल कर मनाया
अब मलखान अपने रंग में आ चुका था। चंबल में दस्यु सम्राट कहलाने के लिए मलखान पुलिस से सीधा एनकाउंटर करने से बाज नहीं आ रहा था। और चंबल में लालपुरा के बीहड़ों में पुलिस के साथ पहला बड़ा एनकाउंटर हुआ। घंटों तक पुलिस के साथ सीधी गोली बारी करके भी गैंग बिना किसी नुकसान के बच निकला। पुलिस समझ चुकी थी कि चंबल में एक बार फिर एक डाकू बोतल से बाहर चुका है। मलखान को ठिकाने लगाने के लिए मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश की पुलिस ने पहला साझा अभियान शुरू किया। लेकिन अभियान के बीच ही मलखान गैंग पकड़ करता रहा। एक महीने के भीतर ही सिलुआ घाट में एक और बड़ा अपहरण कर गैंग ने पुलिस को सीधी चुनौती दी। और पुलिस ने फिर से मलखान को चंबल में जा घेरा। लेकिन मलखान चतुराई से अपने गैंग को लेकर झांसी जिले के समथर के जंगलों से साफ लेकर निकल गया। अब पुलिस को सिर्फ मलखान दिखाई दे रहा था और मलखान चंबल में खुला खेल खेल रहा था। 
मलखान के दुश्मन गांव छोड़ चुके थे। कैलाश पंडित का परिवार भी गांव छोड़कर शहर में पुलिस की संगीनों के साएं में अपने दिन बिता रहा था। मलखान का खौंफ पूरे चंबल में फैल रहा था। यहां तक कि चंबल के दूसरे गैंग भी अब मलखान से डरने लगे थे और मलखान को नाराज करने से बचने लगे थे। मलखान अपने गद्दार बाबू गुर्जर को नहीं भूला था और एक दिन बीहड़ में उसके गांव जा धमका। बाबू तो नहीं मिला लेकिन उसके पिता, चाचा और चचेरे भाई सहित तीन लोगो को गोलियों से भून दिया और एक भाई का अपहरण कर अपने साथ ले गया। 
चंबल मे मलखान का विश्वास हासिल करने के लिए फूलन देवी और विक्रम मल्लाह ने बाबू गुर्जर को मार गिराया। और मलखान की पसंदीदा राईफल विनचेस्टर उसको वापस कर दी। इधर अखबार में छप रहे मलखान के कारनामों से पुलिस दबाव में आ चुकी थी और उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश पुलिस ने मलखान के गैंग को खत्म करने के लिए फिर से साझा प्रयास शुरू कर दिये थे। मलखान ने चालाकी के साथ ये इलाका छोड़ दिया और वो पहुंच गया राजस्थान में। और जाते ही पकड़ का धंधा शुरू कर दिया। लेकिन पुलिस ने भरतपुर में फिर से मलखान को घेर लिया लेकिन मलखान फिर पुलिस के घेरे से निकल भागा।
इधर मलखान का खौंफ बढ़ रहा था तो पुलिस का दवाब भी बढ़ रहा था। और इसके चलते मलखान के गैंग में एक बार फिर से बंटवारा हो गया। मलखान के पांच लोग फिर से गैंग छोड़कर नए गैंग में चले गए। लेकिन मलखान इससे बेपरवाह चंबल में पकड़ से फिरौती वसूलने में लगा हुआ था। चंबल में मलखान का सिक्का बोलने लगा था अब जो भी मलखान के खिलाफ पंख फड़फड़ाता था उसको मलखान मौंत के दरवाजे  भेज देता था। इसी कड़ी में बाह में तीन डकैतों को मौत की नींद सुला दिया।
मलखान गैंग ने चंबल के हर रास्ते पर जैसे अपनी आंखें गड़ा दी हो। हर तरफ से पकड़ की खबरें पुलिस को मिल रही थी।
1.        अक्तूबर 30 को असाई से किडनैपिंग
2.        दिसंबर 22 को तीन लोगों की हत्या
3.         दिसंबर 26 को किशान की गढ़ियां से अपहरण
4.        मार्च 11 को बिनातकिपुरा से किडनैप
5.        मार्च 27 को अस्थपुरा अपहण
6.         मई 3 नवादा किडनैपिंग
7.        जून 1 तेहानगुर अपहरण
पुलिस के लिए मलखान की पहेली अबूझ होती जा रही थी। एक बार फिर से पुलिस ने मलखान के सिर पर इनाम बढ़ा कर 40,000 रूपए कर दिया। अब पुलिस ने एक बार फिर सोची समझी योजना के तरीके मलखान गैंग को घेरने के लिए चक्रानगर घेरा लगाना शुरू कर दिया। लेकिन मलखान के पर नहीं कतरे जा सके। पुलिस के लिए मलखान एक जिन्न बन चुका था और इस को ठिकाने लगाने के लिए तीन राज्यों ने पुलिस महानिरीक्षकों के नेतृत्व एक साझा कमांड बनाने का फैसला किया। लेकिन मलखान के खिलाफ पुलिस का कोई भी प्लान कामयाब नहीं हो रहा था। मलखान पुलिस की हर मूव्हमेंट का जवाब फिर कोई बड़ी पकड़ कर या फिर किसी ठिकाने लगा कर देता रहा। चंबल में मलखान चंबल का शेर कहलाने लगा लेकिन दस्यु सम्राट कहलाने के शौकिन मलखान के सीने में अभी तक बदले की आग सुलग रही थी और मलखान हर हालत में अपना बदला पूरा करना चाहता था।
चंबल में आतंक बना मलखान कैलाश पंडित को भूला नहीं था। कैलाश की तलाश में मलखान चंबल की खाक छान रहा था। लेकिन कैलाश को पुलिस ने जालौन में एक अभेद सुरक्षा कवच में रखा हुआ था। मलखान कैलाश से बदला लेने के लिए छटपटा रहा था ।मलखान सिंह की छवि एक अलग तरह के दस्यु सरगना की बन चुकी थी। चंबल के उसूलों वाले डकैतों की परंपरा के आखिरी दस्यु सम्राट कहलाना मलखान को पंसद था। चंबल की भरकों में एक किस्सा बेहद चर्चित है जिसमें कहा जाता है कि एक बार कैलाश पंडित की लड़की को गांव आते समय मलखान गिरोह के सदस्यों ने पकड़ लिया था तो उन्होंने पूरे गिरोह को फटकार लगाई थी और पैर छूने के साथ-साथ भेंट देकर लड़की को विदा किया था। 
गैंग के लोगो को भी इस बात की सख्त हिदायत दी हुई थी कि किसी भी औरत या बहू-बेटी से बदतमीजी ना हो और यदि कोई गैंग मेंबर इस तरह की किसी हरकत में शामिल होता था तो उसकी सजा सिर्फ मौत तय थी। मलखान को चंबल के गांव में हीरो की इमेज मिल चुकी थी। गांव गांव में मलखान को दद्दा के नाम से पुकारा जाने लगा था। 
बाईट मलखान सिंह की बाईट
चंबल के बीहड़ में कैलाश को मौत के घाट उतारने का संकल्प लेकर उतरे मलखान को एक दिन वो खबर मिल ही गई जिसको सुनने के लिए उसके कान सालों से तरस रहे थे। काशीराम लुहार नाम के मलखान के गैंग मेंबर ने जालौन में स्पेशल आर्म्ड पुलिस के पहरे में छिपे हुए मौत के घाट उतार दिया। 

8 comments:

ghghg said...

मलखान दद्दा की जाय ho

Unknown said...

डाकू मलखान जी से कांटेक्ट करना हो तो कैसे होगा

Unknown said...

मलखान दादाजी की ‌‌जय हो

Unknown said...

Jai rajputna

Unknown said...

Jai hi malkhan dadda

Unknown said...

डाकू मलखान सिंह धौरहरा संसदीय क्षेत्र लखीमपुर खीरी से 2019 का चुनाव लड़ रहे हैं

Unknown said...

Jay hi

Unknown said...

Jay maharaja khetsingh