ये एक आदर्श घोटाला है। एक मौजूदा मुख्यमंत्री दो पूर्व मुख्यमंत्री जो अब केन्द्रीय मंत्री हैं रीयल स्टेट घोटाले की जांच में है। दो पूर्व थलसेनाध्यक्ष एक पूर्व नौसेनाध्यक्ष और पूर्व वायुसेनाध्यक्ष ये सब आदर्श सोसायटी स्कैम की जांच के दायरे में हैं। इतने पर बस नहीं है महाराष्ट्र सरकार के कई मौजूदा मंत्रियों सहित कई पूर्व मंत्री इस जांच के दायरे में हो सकते है। इसके अलावा राजस्व विभाग के नौकरशाह और नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट्स देने वाली सरकारी एजेंसियों के नौकरशाह अभी पर्दे के पीछे है लेकिन जल्दी ही उनके नाम का भी हल्ला मच सकता है। हैरानी की बात नहीं है। देश में लूट की आदर्श स्थिति चल रही है। संविधान में लुटेरों को रोकने का कोई खास प्रावधान नहीं है। लूट की छूट में कोई व्यावधान नहीं है। इस देश में घोटाले की जांच भी एक बेहद पसंदीदा खेल है और खेल है तो खेला जाना चाहिएं। इसीलिये खेल शुरू हो गया। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने जांच के आदेश दे दिये है। देश के रक्षामंत्री ए के एंटनी और वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी जांच करेंगे। वित्त मंत्री कांग्रेस की इस सरकार के ट्रबल शूटर है। हर मामले की जांच में वही होते है। कांग्रेस के लगुवे
-भगुवे बहुत खुश हुएं। पार्टी इस जांच में दूध का दूध पानी का पानी कर देंगी। लेकिन क्या ऐसा हो सकता है। जांच कमेटियों की रिपोर्टें रद्दी की टोकरी में पड़ी पड़ी नष्ट हो जाती है। जांच करने वाले के खिलाफ भी कोई न कोई घोटाला सामने आ जाता है। और लोग भूल जाते है। नया कोई घोटाला पुराने की याद तो मंद कर देता है।
सबसे पहले देश की सबसे शक्तिशाली महिला सोनिया गांधी की बैठाई गई जांच पर बात की जा सकती है। इस घोटाले की जांच सीबीआई भी कर सकती है। इस घोटाले की जांच रक्षा मंत्रालय भी कर रहा है। कई सारे सवाल है। यदि कांग्रेस अध्यक्ष को जांच करानी थी तो सीबीआई को खुली छूट दी जा सकती थी। कानूनन तो पुलिस भी जांच कर सकती थी। लेकिन मुख्यमंत्री की जांच करेंगे केन्द्र के दो मंत्री। प्रणव मुखर्जी साहब को अभी कागज पढ़ने है। कागज तो साफ है मुख्यमंत्री के तीन -चार रिश्तेदारों के नाम फ्लैट है। इसके अलावा जांच के लिये पार्टी को कुछ करना नहीं है। क्योंकि वो तो जांच एजेंसियों का काम है। कांग्रेस पार्टी ये साबित करने में लगी रहती है कि उनके प्रधानमंत्री खड़ाऊं प्रधानमंत्री नहीं है और राज-काज के फैसले खुद लेते है। लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष ने इस मामले में देश के प्रधानमंत्री के देश में वापस लौटने का इंतजार भी नहीं किया। बेबस से ईमानदार प्रधानमंत्री को इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी। यदि अखबारों में छपी खबरों पर यकीन किया जाएं तो प्रधानमंत्री ने एक सवाल के जवाब में ऐसा जवाब उन्होंने एक पत्रकार को जवाब दिया था। खैर प्रधानमंत्री की असली राजनीतिक ताकत की हकीकत राजनेता भी जानते है और आम जनता भी। लेकिन सवाल फिर घूम-फिर कर वही आ रहा है कि सरकार ने कॉमनवेल्थ की जांच के लिये भी एक कमेटी बना दी शुंगलू साहब की अध्यक्षता में। सीबीआई पर कुछ समय से ये आरोप ज्यादा चस्पा हो रहा है कि वो सत्ता में बैठे लोगों की धुन पर नाचती रहती है। इसके बावजूद सीधे सीबीआई को क्लियर कट जांच क्यों नहीं दी गई। ये सवाल सीधे जेहन में नहीं उतर रहा है। लेकिन लोग जो जांच पर भरोसा करते है वो इस ख्याल में खो सकते है कि इसका कोई मतलब है। चारा घोटाला, ताज कॉरी़डोर, गोमतीनगर विपुल खंड प्लॉट स्कैम, मधु कोड़ा की अकल्पनीय लूट, चौटाला का टीचर भर्ती घोटाला, या फिर ऐसी एक लंबी लाईन है जिसका कोई अंत नहीं है। आप की संसद और विधानसभा आजतक एक भी ऐसा कानून नहीं बना पाय़ी कि ऐसे मुख्यमंत्रियों को फौरन दंड मिल सके। इनके लिये कानून के एक होने की बात की जाती है। लेकिन क्या आप ऐसी छूट की उम्मीद किसी जेंबकतरें या फिर रहजन के लिये कर सकते है। नहीं जेबकतरों को पब्लिक सड़कों पर पीट-पीट कर मार देती है।
1 comment:
बाड़ से खेत को कौन बचाएंगा। क्या ये हमारे आजादी के नायकों की अदूरदर्शिता का प्रतीक है या अंग्रेगी के संविधान को ढ़ोने की ललक। पूरा देश एक भूल भूलैया में फंस गया है.
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