Saturday, October 30, 2010

अरूंधती रॉय के बहाने

अरूंधती रॉय के खिलाफ सबूत है, लेकिन सरकार मुकदमा दर्ज करके उसे हीरो बनने का मौका नहीं देना चाहती एक तथाकथित राष्ट्रीय अखबार ने सूत्रों के हवाले से छापा।कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर फारूख के पिता और केन्द्रीय मंत्री फारूख अब्दुल्ला साहब ने फरमाया अभिव्यक्ति की आजादी की भी एक सीमा है। दिल्ली के तथाकथित नेशनल मीडिया की खबरों पर जाएं तो लगेगा कि देश लगभग उबल रहा है। मुख्य विपक्षी पार्टी बीजेपी ने अपना धर्म निबाहा। अखबारों और न्यूज चैनलों को इंटरव्यूज देकर। पार्टी के नेताओं ने एक दो नेशनल चैनल्स की बहस में शामिल होकर भी निंदा की अरूंधती रॉय की। कुछ लोगों को हैरानी हुई कि आखिर अरूंधती चाहती क्या है।
हमारा अरूंधती रॉय के बयान से कतई इत्तफाक नहीं है। क्योंकि कश्मीर पूरे तौर पर देश का हिस्सा है इसके बारे में हमें कोई संदेह नहीं है।
लेकिन ऐसा क्या कह दिया है अरूंधती रॉय ने कि देश के गृहमंत्री से लेकर कानून मंत्री और राष्ट्र के प्रति देशभक्ति का सारा ठेका अपने सर पर ढ़ोने वाली बीजेपी एक ही जबान बोल रहे है। अरूंधती रॉय का मंतव्य कश्मीर की आजादी के पक्ष में था। अरूंधति राय की इस राय से सहमति रखने वाले लोगों की संख्या उँगलियों पर ही होगी इस बारे में किसी को शक नहीं हो सकता। कश्मीर के चंद अलगाववादियों और आतंकवादियों के अलावा किसी की इस राय से सहमति नहीं हो सकती। लेकिन इस बात का ऐसा बंतगड़ बनाया गया कि जैसे दिल्ली में आसमान टूट गया और किसी की नजर इस पर नहीं है। और तथाकथित नेशनल मीडिया ने इसी बात को लेकर ऐसे तमाम लोगो को हीरो बना दिया जिनके कर्मों की वजह से कश्मीर की ये हालत हुई है। ऐसे तमाम लोग जो देश की सत्ता पर काबिज है और जिनका कश्मीर से इंच मात्र भी लेना-देना नहीं है सिर्फ बयानबाजी करके देशभक्ति दिखाते है, इन तमाम बयानवीरों को लगा कि हीरो बनने का इससे शानदार मौका नहीं मिलेगा। लेकिन कोई इनसे पूछेगा कि भाई देश का कानून यदि टूटा है तो क्या वो भी आपके आदेश से ही रिपोर्ट लिखेगा ये काम तो अदालतों का था लेकिन केन्द्रीय मंत्रियों को न्यायालय की ताकत भी अपने खीसे में खोंसने का शौक चर्रा गया है लिहाजा वो कह रहे है कि सबूत है लेकिन वो अरूंधति को हीरो बनने का मौका नहीं देना चाहते। उद्योगपतियों और बिल्डर माफियाओं के इशारों पर नाचने वाले तथाकथित नेशनल मीडिया को भी लगा कि जैसे बैठे-बैठे देशभक्ति दिखाने का इससे अच्छा मौका नहीं मिलेगा। आखिर राज्यों को लूटने में शामिल मुख्यमंत्रियों और कानून को ठेंगे पर रखने वाले उद्योगपतियों के खिलाफ इस खबर में कुछ नहीं है लिहाजा ऐडवर्टाईजमेंट छीनने का भी खतरा नहीं है और अरूंधती को कोसते हुए कार्टून तक इन अखबारों में दिखाईं देने लगे।
हमारा मानना है कि इस बारे में दिमाग साफ कर लिया जाएं कि तथाकथित नेशनल मीडिया का देश कितना है। चुनावों में पैसे लेकर खबरें लिखने वाले इस नेशनल मीडिया का देश वहीं तक है जहां तक मैकडोनाल्ड बर्गर या फिर पिज्जा हट्स है। दिल्ली के सत्तर हजार लोगों का देश जो कॉमनवेल्थ में कलमाडी के भाषण पर ताली बजाता है। वहीं देश जो लूट के उत्सव में शामिल होकर उस मीडिया को गरियाता है जो अपनी टीआरपी के लिये ही सही लेकिन कभी-कभी भ्रष्ट्राचार की खबरें दिखाता है।
देश का कश्मीर लेकर क्या रूख है वो तो साफ दिख सकता है। किसी नेशनल अखबार को नहीं दिखता जब तिरंगें के सम्मान की रक्षा करते हुए कश्मीर में मारे गये सुरक्षाकर्मियों की लाशें उनके गांव जाती है। अंदर के पन्नों में कुछ लाईनों में सिमटी खबर में उस शहीद का नाम तक नहीं होता फोटों छपने की बात तो दूर है। रही बात देश के उन नौजवानों की जिनकी अरूंधती के खिलाफ प्रतिक्रियाएं आपको ट्वीटर में फेस बुक या दूसरी सोशल साईट्स पर दिख रही है तो उनमें से ज्यादातर को कश्मीर में कितने जिले है ये बात तो दूर है कश्मीर लद्दाख और जम्मू में क्या अंतर ये भी मालूम नहीं है। ऐसे सभी नौजवानों की आंखों में विदेशी नौकरियों के सपने बसे रहते है। देश से भागने के लिेये भले ही फर्जी कागज तैयार करने हो या फिर किसी नंबर दो के रास्ते का सहारा लेना हो ये हर पल तैयार रहते है। ये लोग देश के खिलाफ अरूंधती के बयान पर सबसे ज्यादा उबल रहे है। देश की फैशन मॉडलों के मारे जाने में मोमबत्तियों के साथ गेटवे ऑफ इंडिया से लेकर इंडिया गेट तक प्रदर्शन करने वाले इन फैशनेबल नौजवानों ने क्या कभी कश्मीर में चल रही आतंकवादी गतिविधियों के खिलाफ आवाज निकाली है। देश भर में आईआईटी, मेडीकल या फिर दूसरी यूनिवर्सिटीस हो होठों से होठों पर लिपिस्टिक लगाने की होड़ लगी हैं लेकिन किसी छात्र यूनियन ने एक भी प्रस्ताव कश्मीर में लड़ रहे जवानों के हक में पास किया हो ऐसा सुनाई नहीं पड़ा। जंतर-मंतर पर रोज धऱना प्रदर्शनों में कभी कश्मीर में लड़ने के नाम पर देश के इन तथाकथित नौजवानों ने धावा बोला हो ऐसा भी नहीं हुआ। तो इनको क्यों लगता है कि अरूंधती रॉय ने देश को तोड़ने का काम किया है। अपने को फिर से लगता है कि अरूंधती के बयान के बहाने देश की सत्ता में बैठे लोग, दोनों हाथों से देश को लूट रहे लोग, गरीबों के खून से अपने घर को सजाने में जुटे लोग अब अभिव्यक्ति पर भी ताला लगाना चाहते है। वो चाहते है कि कोई आदमी अब इस लूट के खिलाफ भी एक आवाज भी नहीं लगा सके। आज भले ही वो आवाज अरूंधती की दबाई जा रही है कल इस ताकत का इस्तेमाल गरीब के हकों में नारें लगाने वालों के गले दबाने में किया जाएंगा। देश के दलाल मीडिया की ताकत हमेशा से सत्ता के बौनों और दलालों को हासिल होती रही है लेकिन देश को शायद सोचना चाहिये कि एक ऐसी आवाज को भी जिसका कोई तलबगार नहीं है दबाने की ताकत इन बौनों को नहीं दी जानी चाहिये। आखिर में एक बात पूरे जोर से दोहराना चाहूंगा जो दुनिया भर में जनतंत्र की आत्मा मानी जाती है " मैं आपकी कही बात के हर एक शब्द से पूरी तरह से असहमत हूं लेकिन आपके कहने के अधिकार की रक्षा के लिये अपने खून की आखिरी बूंद तक बहा दूंगा "

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