Sunday, October 24, 2010

खेल खत्म पैसा हजम

खेल खत्म पैसा हजम। बचपन में मदारी के खेल देखें और मदारी जब अपना ताम-झाम समेटता था तो बच्चों को बहका कर हासिल किये गये पैसे अपने जेंब में रखतें हुए यही कहता था। कॉमनवेल्थ खेलों का समापन हुआ और लगा कि खेल खत्म पैसा हजम। लेकिन अच्छा नहीं लगा। बचपन में जो पैसा जेंब में होता था वो मेरी जेब खर्च का होता था लेकिन अब जो मेरी जेब में पैसा होता है वो मेरे परिवार के लिये जिंदगी के जीने के लिए के लिये जरूरी होता है। ऐसे में मेरी जेंब से चालाकी से हासिल पैसे को लेकर बेशर्मी से ये कहना कि खेल खत्म पैसा हजम अच्छा नहीं लगा।
लेकिन सत्ता में बैठे लोग इस बात को अपने माथे पर नहीं रखना चाहते है। देश के बेबस ईमानदार प्रधानमंत्री जी ने भारत के पदक विजेताओं के सम्मान में किये गये समारोह में माननीय कलमाड़ी साहब को नहीं बुलाया। और अगली खबर मीडिया को मिली कि शुंगलु साहब की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई गयी है जो इस पूरे खेल में हुए खर्चे की जांच करेंगी। तीन महीने में कमेटी इस बारे में अपनी सिफारिश देंगी। देश का अनुभव इस बात का गवाह है कि ऐसी समितियों का ट्रैक रिकार्ड क्या रहा है। और इस बारे में ठेकेदारों के रिश्तें किस पार्टी से रहे है इस बात का असर भी जांच पड़ेगा।
नेहरू स्टेडियम भीड़ को देखने वाली बात ये थी कि किस तरह से साठ से सत्तर हजार आदमी देश के नाम पर नारा लगा सकते थे नाच सकते थे और हर बार भारत का नाम आने से तालियां बजा सकते थे। इन लोगों ने टिकट खरीदें थे चार हजार आठ हजार या इससे भी ज्यादा के टिकट। इस दौरान दिल्ली के अस्पतालों में डेंगूं के मरीजों की भीड़ बुरी तरह से जमा थी। हर अस्पताल में लंबी लाईनों में खड़े मरीज इस बात को दिखा रहे थे कि डेंगू इस वक्त एक महामारी के तौर पर राजधानी दिल्ली में पसर गयी है। लेकिन राज्य की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को गेम्स में ईज्जत की इतनी परवाह थी कि वो डेंगूं को लेकर बिलकुल बेपरवाह रही। देश के स्वास्थ्य मंत्री को इस वक्त कश्मीर में चल रही उठा-पठक से फुर्सत नहीं है। सरकारी अस्पतालों में वो मरीज पहुंच रहे है जो प्राईवेट अस्पतालों का खर्च उठाने की हैसियत में नहीं है। और प्राईवेट अस्पतालों में लूट का एक नया कीर्तिमान लिखा जा रहा है। दिल्ली के आस-पास के शहरों में हालात और बुरे है. गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, मेरठ, और मुजफ्फरनगर में हालात काबू से बाहर है। प्राईवेट लैब्स एक-एक दिन में पचास हजार से लेकर पांच लाख रूपये कमा रहे है। लेकिन दिल्ली में लोगों के हालात की किसी को परवाह नहीं है तो दिल्ली के बाहर तो उपर वाला ही उनका रखवाला है।

2 comments:

Anonymous said...

खेल खत्म कहां हुआ है अभी..... अभी तो चालू हुआ है। शीला सरकार इंफ्रास्ट्रक्चर में लगा पैसा कॉमनवेल्थ गेम्स आयोजन में शामिल करने के लिए तैयार नहीं है। कलमाडी एंड पार्टी इन दिनों उन कम्प्यूटर्स की रैम और हार्ड डिस्क उड़वाने में लगे हैं। खैर जो भी है कुल मिलाकर खेल खत्म हो चला है और पैसा भी कलमाडी एंड पार्टी हजम कर ही गयी है। रही बात देश के लोगों की तो हमारे देश में एक कहावत है..... खाना खा कर यहां के लोग पिछवाड़े से हाथ पूछ लेते हैं... इसका मतलब ये है कि खाना यहां कैसा भी मिले लोग हाथ पूछकर भूल जाते हैं और घर जाकर सो जाते हैं।

Anonymous said...

खेल खत्म कहां हुआ है अभी..... अभी तो चालू हुआ है। शीला सरकार इंफ्रास्ट्रक्चर में लगा पैसा कॉमनवेल्थ गेम्स आयोजन में शामिल करने के लिए तैयार नहीं है। कलमाडी एंड पार्टी इन दिनों उन कम्प्यूटर्स की रैम और हार्ड डिस्क उड़वाने में लगे हैं जिनपर कॉमनवेल्थ का हिसाब किताब रखा गया था। खैर जो भी है कुल मिलाकर खेल खत्म हो चला है और पैसा भी कलमाडी एंड पार्टी हजम कर ही गयी है। रही बात देश के लोगों की तो हमारे देश में एक कहावत है..... खाना खा कर यहां के लोग पिछवाड़े से हाथ पूछ लेते हैं... इसका मतलब ये है कि खाना यहां कैसा भी मिले लोग हाथ पूछकर भूल जाते हैं और घर जाकर सो जाते हैं।