Monday, October 25, 2010

ईश्वर अब इस देश में नहीं रहता

कॉमनवेल्थ गेम्स खत्म हो गये हैं। दुनिया ने भारत की ताकत को जान लिया है। उन लोगों के मुंह पर ताले लग गये जो भारत को पिछड़ा या कमजोर देश मानते हैं। देश ने भारत की तरक्की के बारे में जान लिया है

.................ऐसे सैकड़ों नहीं हजारों की तादाद में समाचार पत्रों के हैडिंग्स आपकी निगाहों से गुजरें होंगे। देश के तथाकथित राष्ट्रीय मीडिया में ऐसी खबरों की आंधी चल रही है। इसके बाद इसकी जांच की खबरों पर भी लोगों की निगाहें टिकी हुई है। लेकिन तथाकथित नेशनल मीडिया की हाल की दो खबरों पढ़ने के बाद लगा कि देश को लेकर आम आदमी और तथाकथित मीडिया के बीच किस तरह की खाई उभर आई है।
देश के सबसे ज्यादा बिकने का दावा करने वाले इन अखबारों में खबरें छपीं कि दिल्ली के अनवांटेड़ लोग लौट आएं हैं। अनवांटेड़ की श्रेणी में शामिल किये गये दिल्ली की सड़कों पर भीख मांगने वाले लाखों की तादाद में ट्रैफिक लाईटों पर सामान बेचकर अपना घर चलाने वाले या फिर ठेली और रोजमर्रा के काम करने वाले मजदूर। इन नेशनल अखबारों ने तो इस बारे में पुलिस को कोसते हुए कहा कि दिल्ली पुलिस अब इन लोगों के आने पर न रोक लगा रही है न उन पर सख्ती दिखा रही है। दोनों खबरों को अलग

-अलग अखबारों ने छापा साथ में रिपोर्टर के नाम भी छापे गये। कॉमनवेल्थ खेल के दौरान कई सौ करोड़ के विज्ञापन भी तथाकथित नेशनल मीडिया को मिले।
ऐसे में तथाकथित नेशनल मीडिया ने बाकी देश से आंखें बंद कर ली। और मीडिया से सच जानने के आदी हो चुके आम आदमी को इस बात का जरा भी अंदेशा नहीं हुआ कि कैसे मीडिया उसको खबरों की दुनिया से अलग कर रहा है। एनसीआर के शहरों में डेंगू के मरीजों के चलते अस्पतालों में भारी भीड़ जमा थी। लेकिन दिल्ली में भी काफी मंहगें प्राईवेट हास्पीटल्स में बेड दिलवाने के लिये सिफारिशों की जरूरत पड़ रही थी। दिल्ली में हर अस्पताल में डेंगू बुखार से पीड़ित मरीजों की भीड़ दिखाईं पड़ रही थीं। लेकिन देश के सम्मान की लड़ाई लड़ रहे मीडिया को इससे कोई लेना-देना नहीं था। और जहां मीडिया की नजर नहीं है वहां सत्ता में बैठे लोगों की नजर क्यूं कर जाएं। मुजफ्फरनगर, मेरठ, गाजियाबाद और नौएड़ा के सरकारी अस्पतालों की तो दूर प्राईवेट वार्डस में जाकर देखियें किस तरह से डेंगू एक महामारी में तब्दील हो चुका है। आंकड़ों पर नजर रखने वाले चाहे तो चैक कर सकते है कि कैसे अलग-अलग प्राईवेट अस्पताल ने करोड़ रूपये कमायें। लेकिन सत्ता में बैठे लोगों की निगाहों में रतौंधी उतर आई थी। और तथाकथित नेशनल मीडिया एडवर्टाईजमेंट की मलाई काट रहा था लिहाजा इस खबर को ही खा गया। मुजफ्फरनगर में कुछ अखबारों में विज्ञापनों पर निगाह पड़ी तो हैरानी हुई कि बाकायदा डॉक्टरों ने एड दिया है कि मरीज अपने फोल्डिंग्स लेकर आएं। डाक्टरों ने मरीजों की भर्ती के लिए धर्मशाला ही बुक करा लीं। हर मरीज से बीस-बीस हजार रूपये पहले ही एडवांस के तौर पर जमा करा लिए गये। लेकिन किसी नेशनल चैनल और अखबार को दिल्ली में ये खबर नजर नहीं आई। कॉमनवेल्थ की विरूदावली गाने के बाद दिल्ली के अखबारों को खबर नजर कि किस तरह से भिखारी और दिहाड़ी मजदूर दिल्ली वापस आ रहे है।

किसी संपादक को ये नहीं लगा कि क्या ये लोग हिंदुस्तानी नहीं है। अगर ये लोग दिल्ली में अनवांटे़ड है तो लखनऊ, जयपुर या फिर इलाहाबाद में कैसे वांटे़ड़ हो सकते है। यदि इन लोगों को रोटी नहीं मिल पा रही है तो इसमें किसका दोष है। कौन सी व्यवस्था है जो लगातार अमीरों को अमीर बना रही है और ज्यादा से ज्यादा आबादी को भूखमरी और अकाल मौत की ओर धकेल रही है। लेकिन तथाकथित नेशनल मीडिया ने छाप दिया कि ये वापस लौट रहे है। क्या अखबार और उनके रिपोर्टर ये इशारा कर रहे है कि इन लोगों को पागलखाने या फिर गैस चैंबरों में भेज दिया जाएं। यदि अखबार और मीडिया ये कर रहा है तो मुझे और कुछ नहीं एक दूसरी चीज याद आ रही है।

बीसवी शताब्दी का नायक कौन है इस बारे में दुनिया सैकड़ों नाम नहीं तो दर्जनों नाम तो ले सकती है। लेकिन शताब्दी का खलनायक कौन है इस बारे में एक ही नाम सामने आयेगा। एडोल्फ हिटलर। जर्मनी के इस तानाशाह से भी दुनिया की नफरत की वजह युद्ध छेड़ना नहीं बल्कि दुनिया से यहूदियों की कौम का नामों
-निशान मिटा देने की कोशिश के चलते ज्यादा है। साठ लाख के करीब यहूदियों को नये बने गैस चैंबरों से लेकर फायरिंग स्क्वाड जैसे पारंपरिक तरीकों से मौत के घाट उतार दिया गया। ये बातें इतिहास का हिस्सा हैं। लेकिन जिस बात पर जर्मनी या फिर यूरोप के बाहर की आम जनता ने ध्यान नहीं दिया था वो बात थीं किस तरह से हिटलर इतना ताकतवर हो गया कि एक पूरी कौम या फिर पूरा राष्ट्र उसके पीछे आंखें मूंद कर चलने लगा था। अगर आप लोग उस वक्त के जर्मनी के तथाकथित नेशनल मीडिया को देंखें तो वो जर्मन कौम के अहम को मजबूत करने में लगे थे। हिटलर के कदमों का विरोध करने वालों के गायब होने की खबरें भी मीडिया से गायब हो चुकी थीं।
अब के हालात में ये ही कह सकते है कि हिंदुस्तान में अभी कोई हिटलर तो नहीं है लेकिन उसके चाहने वालों की कमी नहीं है। देश का तथाकथित मीडिया उसके निर्माण में जुट गया है। देश के मौजूदा हालात को देखकर कोई भी सिर्फ यहीं कह सकता है कि ईश्वर ने इस देश को छोड़ दिया है

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