देश को किस-किस स्पर्धा में गोल्डमैडल मिलेगा, भारत का कौन सा खिलाड़ी अतंरराष्ट्रीय कीर्तिमान के करीब पहुंच सकता है। देश को कुल कितने मैडल हासिल होंगे। सवाल सिर्फ ये होने थे उस वक्त जब राष्ट्रमंडल खेलों के शुरू होने में महज 50 दिन हो गये हो। लेकिन आपके पास खबर आ रही है कि
चालीस रूपये का नैपकिन चार हजार रूपये में, चार सौ की कुर्सी छह हजार रूपये में जिस मशीन की कीमत ही बाजार में सत्तर हजार से लेकर चार लाख तक उसका 60 दिन का किराया साढ़े नौ लाख रूपये। हम आपको किसी ठग की कारीगरी नहीं बता रहे है बल्कि इस देश की इज्जत बचाने के नाम इतनी बेशर्मी के साथ लूटे गये हजारों करोड़ रूपये की खरीद का एक नमूना भर दे रहे है। ये ज्यादातर आंकड़े इस समय देश के मीडिया में तैर रहे है। लूट कहना भी लुटेरों का अपमान है। ये तो सरे-आम डकैती है। गिरोहबंद लूट का नया नमूना। मेहमानों को दी जाने वाली टाईयों का किस्सा भी अब खुलने वाला है जिसकी कीमत शायद पच्चासी लाख होगी। लगभग तेरह सौ टाईयां और कीमत 85 लाख रूपये। मीडिया ने इस समय अपने सर पर जैसे एक ही भूत बैठा लिया हो कि इस लूट के खलनायक सुरेश कलमाड़ी का सर चाहिये। सासंदों को इस वक्त एक ही बात दिख रही है कि देश के साथ मजाक हो रहा है। लेकिन ये सब एक पहलू है दूसरा पहलू है कि सब एक बात कह रहे है कि देश की इज्जत बचाने के लिये खेल हो जाने दीजिये। ये कौन सी इज्जत है जिसमें मां सरेआम नीलाम की जा रही है आप कह रहे है कि वचन दिया है इसीलिये नीलाम हो जाने दीजिये। देश में पैसे की कमी से कई खेल परियोजनाएं रोक दी गयी। देश में पैसे की कमी का रोना रोकर रोज टैक्स बढ़ाये गये लेकिन किसी ने उफ तक नहीं की। अब ये तमाम लोग देश की इज्जत की दुहाई दे रहे है। यानि आप से कह रहे है कि किसी मक्खी गिरी चाय को नहीं बल्कि मक्खियों से गिरी चाय को आप आंख बंद कर निगल ले। साफ दिख रहा है कि आम जनता के पैसों को एय्याशी और निजि सनक पर हनक के साथ खर्च किया गया। हजारों करोड़ लूटने के लिये देश भर से वांटेड कुख्यात ठग नटवरलाल भी इतना खूबसूरत प्लान तैयार न करता।
ये कहानी का एक पहलू है। हम दूसरे पहलू पर आते है। अभी जज की भूमिका में आ गया मीडिया पिछले सात सालों से क्या कर रहा था। संसद में बैठे ये गरीबनवाज क्या सोच रहे थे। अब विसिलब्लोअर की भूमिका निबाह रहे इस कमेटियों से जुड़़े लोगों को क्यों सांप सूंघा हुआ था। आप को सोचने की जरूरत नहीं है साफ तौर पर हम बता देते है कि लूट के खेल में सब शामिल थे। जब कोई लूट सार्वजनिक हो जाती है और उसमें एक पूरा समाज शामिल हो जाता है तो उसे आयोजन का नाम दिया जाता है। उसका महोत्सव होता है। ये भी लूट का महोत्सव है। सबने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। बात शुरू करते है 2002 से। दिल्ली के मयूर विहार, या आस-पास के किसी भी इलाके के प्रोपर्टी डीलर के पास आप गये होंगे तो याद होगा कि कैसे वो एक फ्लैट बेचने से पहले राष्ट्रमंडल खेलों के नाम पर फ्लैट के दाम बढ़ने की कहानी सुनाता होगा। मुझे याद है मयूर विहार के जिन फ्लेटों को लोगों ने 2004 में दस से बारह लाख के बीच में खरीदा है उनको राष्ट्रमंडल के नाम का हल्ला मीडिया में होते ही कीमतों को आसमान पर जाते देखा। यानि एक फ्लैट पचास लाख तक पहुंच गया। इस लूट में कौन शामिल था दिल्ली के आम नागरिक थे कि नहीं। अब बहुत आसान था ये कहना कि साहब हम को ज्यादा मिल रहा है तो क्यों न ले। ये वही आदमी होता है जो रिक्शा वाले के पांच रूपये ज्यादा मांगने पर उसकी मां-बहन और सरकार को गाली देने लगता है। लूट में हिस्सेदारी का खेल शुरू हो चुका था। डीडीए जिसको देश के सबसे भ्रष्ट्रतम डिपार्टमेंट की ख्याति हासिल है इस मामले में शामिल हो चुका था। इसके बाद पीडब्लूडी, और दिल्ली सरकार की वो तमाम एजेंसियां जिनको इसमें जरा सी भी भूमिका निबाहनी थी इस लूट में हिस्सा लेने जुट गये। एक के बाद एक टैंड़रर हुए कमीशन के तौर पर करोड़ों रूपये उगाहे गये। लेकिन किसी को कानो-कान खबर नहीं हुई। बीजेपी हो या कांग्रेस तमाम पार्टियों से जुड़े बड़े-बड़े ठेकेदारों ने लूट की इस गंगा में अपने हाथ नहीं बल्कि पूरा शरीर ही धो लिया।
उधर ऑर्गनाईजिंग कमेटी में इस लूट को वैधानिक करने के लिये बाकायदा एक भर्ती अभियान चला जिसकी कोर टीम इस देश के नये नटवरलाल सुरेश कलमाड़ी ने पुणे से तैयार की। इसके अलावा जनता की गाढ़ी कमाई को कलम के सहारे लूटने वाले लोगों की पूरी जमात तैयार की गयी। दरबारी बुलाये गये। अब इस ढ़ांचे को सत्ता में बैठे लोगों ने सारी ताकत हस्तांतरित कर दी। लूट में सबका हिस्सा जाने लगा।
अब बात नये राजनेताओं की और उनकी सत्ता मंडली में जुटे नौकरशाहों की तो उनके लिये भी लूट का हिस्सा हाजिर था। अक्षरधाम टैंपल आपकी आंखों को दिखेगा कि यमुना बैड पर यानि नदी के पाट पर बना है लेकिन पैसे से अदालत में साबित हो गया कि नहीं ये यमुना तट नहीं है। अगर किसी को उसका उद्घाटन याद है तो ये भी याद होगा कि देश के नंबर वन चैनल को इस मंदिर के एक ट्रस्ट्री ने मंदिर में टिकट लगने के सवाल पर जवाब दिया था कि ये मंदिर नहीं है। तीन साल बाद सत्ता के लगाये गये टैक्स से बचने के लिये वही ट्रस्ट्री मुझे टीवी पर दिखायी दिये ये कहते हुए कि ये मंदिर है इस पर टैक्स क्यों लगाया जा रहा है। इसी ख्यातिनाम अक्षरधाम टैंपल की बगल की जगह तय की गयी खेलगांव बनाने के लिये। खेलगांव यानि जहां दुनिया भर के एथलीट रुकेंगे। लिहाजा यहां बनने वाली सुविधायें दुनिया भर में सबसे बेहतरीन होनी चाहिये। लिहाजा ब्लू प्रिंट तैयार हुआ। और जैसे ही ये बना तो लूट के लिये सबसे नायाब चीज सामने थी। महमूद गजनवी, मोहम्मद गौरी,नादिरशाह और अहमदशाह अब्दाली जैसे लुटेरे शर्मा जाये लूट की ऐसी साजिश देख कर। ना कोई तलवार उठी न कोई खून बहा और हजारों करोड़ रूपये के फ्लैट भ्रष्ट्र नौकरशाहों, राजनेताओं और देश का खून निचोड़ रहे उद्योगपतियों के लिये तैयार। नक्शे को देश समझने वाले किसी भी आदमी को ये समझ नहीं आ रहा है कि भाई जमीन डीडीए की बनाने वाले को पैसा डीडीए ने दिया और दूसरी तमाम सुविधा उनको सजाने का पैसा भी डीडीए देंगा सिर्फ बनाने के नाम पर हजारों करोड़ रूपये की लागत के ये फ्लैट एक निजि कंपनी को क्यों दिये जाये। इन फ्लेटों को खेल के बाद तुरंत बेचने की तैयारी हुई। लेकिन संसद में बढ-चढ़ कर बयानबाजी करने वाले नेता इस लूट पर चुप क्यों है कि भाई अगर आगे खेल होने वाले है तो फिर खेलगांव क्या फिर से बनेगा। दरअसल सारा खेल दस हजार करोड़ से उपर के इस खेल गांव में छिपा है जिसको लेकर कोई सवाल नहीं कर रहा है। कि क्यों इस खेल गांव को बेचा जा रहा है अगर आपको इस कंपनी से बनवाना था तो आप उसको बनाने की कीमत अदा करते और इस खेल गांव को आगे की खेल एक्टिविटी के लिये भी रखा जा सकता था। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इस लूट के कई पहलू जो अभी देश के सामने नहीं आये है जिस कंपनी एम्माऱ-एमजीएफ ने ये फ्लेट तैयार किये है उस कंपनी पर छह हजार करो़ड़ रूपये की मनी लांड्रिंग के घोटाले में छापे पड़ चुके है। उस कंपनी ने इस के लिये जरूरी राशि भी विदेशी पैसे से नहीं बल्कि हिंदुस्तान से ही दी गयी है।
देश के सामने सबसे पहला सवाल है कि इस खेल के हजारों करोड़ रूपये के खर्च के बाद उसे हासिल क्या होंगा। पहले से मौजूद स्टेडियमों को तोड़ कर उन्हें दोबारा खड़ा कर दिया गया। इस तोड़-फोड़ की कीमत देश को चुकानी पड़ी इतनी कि नया स्टेडियम बन जाता एनसीआर की किसी भी जमीन में। अब खेल खत्म होने के बाद जब आप स्टेडियम गिनेंगे तो जितने खेल से पहले थे उतने ही बाद में मिलेगे। खेल गांव बिक चुका होगा। अमीरजादों औऱ भ्रष्ट्राचारियों की ऐय्याशियां उधर से गुजरने वाले हर हिंदुस्तानी का मुंह चिढ़ायेगी और उसका हिंदुस्तानी कानून से विश्वास गिराती रहेंगी। अगर कोई मजदूर उधर से गुजरेंगा तो वो ये सोच भी नहीं पायेगा कि उसके बच्चे के दूध पर टैक्स लगाकर तैयार की गयी है ये ऐशगाह।
दिल्ली की सड़कों पर फुटपाथ उखाड़ कर दूसरे लगाये गये। लेकिन पानी के नल नहीं। हजारों करोड़ रूपये टाईल्स उखड़ कर सामने पड़ी है वहीं उन पर बैठ कर भीख मांगते आदमी को देख कर भी किसी नेता को संसद में आवाज उठाने की जरूरत नहीं पड़ी। रोज गुजरते हुए पत्रकारों को नहीं लगा कि खेल हो रहा है। पेज भर-भर कर मिले एड्वरटाईजमेंट ने सबकी जुबां पर ताला डाल दिया था। हर चैनल्स इस बात को साबित करने में लगा था कि कैसे इस देश की शान साबित होने वाले है ये राष्ट्रमंडल खेल।
लेकिन बात अब ये है कि आपके पास क्या विकल्प है। एक भी नहीं। जिन लोगों ने ये पैसा लूटा है उन लोगों को सजा दिलाने का कोई कानून आपकी किताब में नहीं है। मीडिया के इस सारे हल्ले के पीछे का सच यही है कि सुरेश कलमाड़ी के सिर की बलि लेकर इस पूरे मामले की इतिश्री कर ली जाये। और पैसे को लूट कर अपनी जेबों पर भरने वाले पर्दे के पीछे के खिलाडियों को साफ बख्श दिया जाये। ये चल रहा है खेल और इस बात से मैं तो पूरी तरह से मुतमईन हूं कि भ्रष्ट्रमंडल के खेल पूरी तरह से सफल होंगे।
1 comment:
आपने बहुत दिनों से कुछ लिखा नहीं है. आप लिखते रहें, अच्छा लगता है
Post a Comment