Sunday, May 23, 2010

आवारा अशरार

न कहूं तो खुद से,
कहूं तो तुझ से डर लगता है।
मोम के लोग,
राख की जन्नत है
उगे न सूरज उगे,
चले न हवा
इस दौर ए शहंशाह की मन्नत है।

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खुद से खडा हुआं तो तन्हा हूं
झुकता था तो लोग आवाजें देते थे मुझे
नजर नीची रखीं तो बाअदब था
नजरें उठीं तो बेअदब जमाने ने कहा मुझे।

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दर्द दो , मुस्कुरा दो..
ये हुनर मुझको न सिखा
जब्त है मुझमें बहुत
तू बस अपना जलवा दिखा।
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मुझे रह-रह कर तेरी रहबरी पर शक होता है
तू जिसे मंजिल कहता है मुझे मौत का घर दिखायी देता है
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तू चाहता है कि गिर कर खुदा से मांगूं तूझे
मेरी फितरत है कि गिर कर खुदा भी नहीं चाहिये मुझे

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