अपने महाभारत में मैं ही जला
मैं ही लड़ा
मुझे कोई कृष्ण ना मिला
ना कोई बल था
ना कोई छल था
निपट अकेला, निहत्था
ना मैंने किसी से राज मांगा था
ना मेरे पास था मैं
फिर भी युद्ध में था
ना मुझे गीता मिली ना सारथी
ना धर्म था ना अधर्म था
ना वो जय थी ना पराक्रम था
ना युद्ध के नियम थे, ना कोई जयघोष था
मैं चलता, मैं जलता
मैं रूकता, मैं मरता
कुछ तो होगा / कुछ तो होगा / अगर मैं बोलूँगा / न टूटे / तिलस्म सत्ता का / मेरे अदंर / एक कायर टूटेगा / टूट मेरे मन / अब अच्छी तरह से टूट / झूठ मूठ मत अब रूठ।...... रघुबीर सहाय। लिखने से जी चुराता रहा हूं। सोचता रहा कि एक ऐसे शहर में रोजगार की तलाश में आया हूं, जहां किसी को किसी से मतलब नहीं, किसी को किसी की दरकार नहीं। लेकिन रघुबीर सहाय जी के ये पंक्तियां पढ़ी तो लगा कि अपने लिये ही सही लेकिन लिखना जरूरी है।
Monday, May 31, 2010
Saturday, May 29, 2010
अधिकारी घटिया बुलेट प्रूफ जैकेट खरीद रहे है।
पाकिस्तान के लिये जासूसी के आरोप में प्रमोटी आईएफएस माधुरी गुप्ता पर शिकंजा कसा। मीडिया ने आसमान सिर पर उठा लिया। माधुरी गुप्ता इस्लामाबाद में भारतीय हाईकमीशन में सेकेंड सेक्रेट्री थी। और इस लेवल की अधिकारी की पहुंच महज कागज की क्लिपिंग्स और रोजाना मीटिंग्स के एजेंडें तक होती है।
लेकिन मीडिया ने बताया कि उसने काबुल में भारतीय अधिकारियों पर हुए हमले में जानकारी लीक की। उसने 26/11 के मुंबई हमले में देश के बड़े सीक्रेट्स लीक कर दिये।
एक दूसरा मामला सीबीआई ने गृह मंत्रालय के बड़े अधिकारी को रिश्वत लेने के आरोप में गिरफ्तार किया। डिजास्टर मैनेजमेंट में ज्वाईंट सेक्रेट्री ओ रवि सीनियर आईएएस है। उन्होंने सरकार को लगभग 350 करोड़ की चपत लगाई महज पचास लाख की रिश्वत के बदले।
इसी के साथ एक और अधिकारी पर सीबीआई की गाज गिरी। आर एस शर्मा पर देश के सुरक्षाकर्मियों के लिये बुलेट प्रूफ की क्वालिटी चैक करने की जिम्मेदारी थी वो पैसा लेकर घटिया क्वालिटी की बुलेट जैकेट खरीदने में जुटे थे।
मुंबई हमले के दौरान शहीद हुये हेमंत करकरे की मौत का कारण घटिया बुलेट प्रूफ जैकेट थी। ये आरोप उनकी पत्नी ने लगाया था। देश के जवान आतंकवाद से लड़ रहे है और उनके लिये दिल्ली में बैठे बड़े अधिकारी घटिया बुलेट प्रूफ जैकेट खरीद रहे है। लेकिन मीडिया के लिये माधुरी गुप्ता से छोटी खबर है।
उत्तर प्रदेश में पुलिस कर्मियों और पैरामिलिट्री फोर्स के एक ऐसे गिरोह का भांडा-फोड़ हुआ जो नक्सलियों को गोलियां सप्लाई कर रहा था। हर तरह के कारतूस इंसास राईफल से लेकर दुनाली बंदूकों तक।
नक्सली हिंसा को लेकर देश के प्रधानमंत्री से लेकर गृहमंत्री रोज बयान जारी करते है। देश इनसे निपटने के लिये हथियार खऱीद रहा है,हेलीकॉप्टर और अत्याधुनिक मशीनगन। सरकार में बहस है कि नक्सलियों के खिलाफ आर्मी और एअरफोर्स का इस्तेमाल किया जाये कि नहीं। लेकिन 76 जवानों को मौत की नींद सुलाने में कामयाब रहे नक्सलियों के लिये बढ़-चढ़ कर बोलने वाल सरकारें इस बात पर चुप है कि किस अधिकारी ने बिना तैयारी के नक्लियों पर हमला करने के आदेश दिये।
इससे भी बड़ी खबर जो दफन हो गयी बिना किसी कराहट के वो है 26/11 से जुड़ी हुई। जम्मू-कश्मीर पुलिस ने 21 नवंबर 2008 को देश की खुफिया एजेंसी इंटेलीजेंस ब्यूरो को तीस ऐसे मोबाईल नंबर की लिस्ट भेजी थी जिन पर फौरन जांच करनी थी।
जम्मू पुलिस के पास ऐसे फोन टैप थे जिसमें आतंकवादी साफ तौर पर मुबंई या दिल्ली में जल्दी ही बड़ा फिदाईन अटैक करने की तैयारी कर रहे थे। लेकिन देश के राजनेताओं की फोन टैपिंग में लगी आईबी के लिये आतंकवादियों के फोन टैप करना बहुत जरूरी नहीं था।
पांच दिन बाद ही देश में सबसे बड़ा आतंकवादी हमला हुआ। और हैरानी की बात थी कि जम्मू पुलिस के भेजे तीस फोन नंबर में से तीन नंबर इस हमले में इस्तेमाल हुये। इन नंबरों से फिदाईन आतंकवादी पाकिस्तान में बैठे अपने आकाओं से पल-पल संपर्क में थे। हमले के बाद देश पाकिस्तान पर हमला करने को तो तैयार था।
लेकिन उन लापरवाह अधिकारियों का बाल भी बांका नहीं करना चाहता जिनकी लापरवाही ने देश को इतना बड़ा हमला झेला। इसी बीच सरकार के खिलाफ विपक्ष का कट मोशन बुरी तरह घिर गया।
महंगाई के विरोध पर उत्तर प्रदेश और बिहार का चक्का जाम करने वाले मुलायम सिंह यादव और लालू प्रसाद यादव ने मतदान में हिस्सा ही नहीं लिया।
उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने उसी कांग्रेस का समर्थन कर दिया जिसके खिलाफ लाखों की भीड़ लखनऊ में महज 30 दिन पहले इकट्ठा की थी। जेहन में बस इतनी बात जरूर कोंधती है कि मुख्यमंत्री मायावती के खिलाफ सबूत होने का दावा करने वाली सरकारी जांच एजेंसी सीबीआई ने एक हफ्ते में अपना रूख बदल लिया। और मुकदमें पर दोबारा विचार की बात की है।
मुलायम सिंह यादव और लालू यादव को भी याद है आय से अधिक संपत्ति के मामले। सबकी नकेल केंद्र् सरकार के हाथ में है। और मी़डिया भी सरकार की धुन पर नाच रहा है।
आम आदमी इस नूरा कुश्ती को सिर्फ देख सकता है, गर्दन हिला सकता है या फिर आंखें बंद कर सकता है। क्योंकि आईपीएल की आंच जैसे ही देश के केन्द्रीय मंत्रियों तक पहुंची तो मीडिया से मामला ही साफ हो गया। क्यों......
लेकिन मीडिया ने बताया कि उसने काबुल में भारतीय अधिकारियों पर हुए हमले में जानकारी लीक की। उसने 26/11 के मुंबई हमले में देश के बड़े सीक्रेट्स लीक कर दिये।
एक दूसरा मामला सीबीआई ने गृह मंत्रालय के बड़े अधिकारी को रिश्वत लेने के आरोप में गिरफ्तार किया। डिजास्टर मैनेजमेंट में ज्वाईंट सेक्रेट्री ओ रवि सीनियर आईएएस है। उन्होंने सरकार को लगभग 350 करोड़ की चपत लगाई महज पचास लाख की रिश्वत के बदले।
इसी के साथ एक और अधिकारी पर सीबीआई की गाज गिरी। आर एस शर्मा पर देश के सुरक्षाकर्मियों के लिये बुलेट प्रूफ की क्वालिटी चैक करने की जिम्मेदारी थी वो पैसा लेकर घटिया क्वालिटी की बुलेट जैकेट खरीदने में जुटे थे।
मुंबई हमले के दौरान शहीद हुये हेमंत करकरे की मौत का कारण घटिया बुलेट प्रूफ जैकेट थी। ये आरोप उनकी पत्नी ने लगाया था। देश के जवान आतंकवाद से लड़ रहे है और उनके लिये दिल्ली में बैठे बड़े अधिकारी घटिया बुलेट प्रूफ जैकेट खरीद रहे है। लेकिन मीडिया के लिये माधुरी गुप्ता से छोटी खबर है।
उत्तर प्रदेश में पुलिस कर्मियों और पैरामिलिट्री फोर्स के एक ऐसे गिरोह का भांडा-फोड़ हुआ जो नक्सलियों को गोलियां सप्लाई कर रहा था। हर तरह के कारतूस इंसास राईफल से लेकर दुनाली बंदूकों तक।
नक्सली हिंसा को लेकर देश के प्रधानमंत्री से लेकर गृहमंत्री रोज बयान जारी करते है। देश इनसे निपटने के लिये हथियार खऱीद रहा है,हेलीकॉप्टर और अत्याधुनिक मशीनगन। सरकार में बहस है कि नक्सलियों के खिलाफ आर्मी और एअरफोर्स का इस्तेमाल किया जाये कि नहीं। लेकिन 76 जवानों को मौत की नींद सुलाने में कामयाब रहे नक्सलियों के लिये बढ़-चढ़ कर बोलने वाल सरकारें इस बात पर चुप है कि किस अधिकारी ने बिना तैयारी के नक्लियों पर हमला करने के आदेश दिये।
इससे भी बड़ी खबर जो दफन हो गयी बिना किसी कराहट के वो है 26/11 से जुड़ी हुई। जम्मू-कश्मीर पुलिस ने 21 नवंबर 2008 को देश की खुफिया एजेंसी इंटेलीजेंस ब्यूरो को तीस ऐसे मोबाईल नंबर की लिस्ट भेजी थी जिन पर फौरन जांच करनी थी।
जम्मू पुलिस के पास ऐसे फोन टैप थे जिसमें आतंकवादी साफ तौर पर मुबंई या दिल्ली में जल्दी ही बड़ा फिदाईन अटैक करने की तैयारी कर रहे थे। लेकिन देश के राजनेताओं की फोन टैपिंग में लगी आईबी के लिये आतंकवादियों के फोन टैप करना बहुत जरूरी नहीं था।
पांच दिन बाद ही देश में सबसे बड़ा आतंकवादी हमला हुआ। और हैरानी की बात थी कि जम्मू पुलिस के भेजे तीस फोन नंबर में से तीन नंबर इस हमले में इस्तेमाल हुये। इन नंबरों से फिदाईन आतंकवादी पाकिस्तान में बैठे अपने आकाओं से पल-पल संपर्क में थे। हमले के बाद देश पाकिस्तान पर हमला करने को तो तैयार था।
लेकिन उन लापरवाह अधिकारियों का बाल भी बांका नहीं करना चाहता जिनकी लापरवाही ने देश को इतना बड़ा हमला झेला। इसी बीच सरकार के खिलाफ विपक्ष का कट मोशन बुरी तरह घिर गया।
महंगाई के विरोध पर उत्तर प्रदेश और बिहार का चक्का जाम करने वाले मुलायम सिंह यादव और लालू प्रसाद यादव ने मतदान में हिस्सा ही नहीं लिया।
उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने उसी कांग्रेस का समर्थन कर दिया जिसके खिलाफ लाखों की भीड़ लखनऊ में महज 30 दिन पहले इकट्ठा की थी। जेहन में बस इतनी बात जरूर कोंधती है कि मुख्यमंत्री मायावती के खिलाफ सबूत होने का दावा करने वाली सरकारी जांच एजेंसी सीबीआई ने एक हफ्ते में अपना रूख बदल लिया। और मुकदमें पर दोबारा विचार की बात की है।
मुलायम सिंह यादव और लालू यादव को भी याद है आय से अधिक संपत्ति के मामले। सबकी नकेल केंद्र् सरकार के हाथ में है। और मी़डिया भी सरकार की धुन पर नाच रहा है।
आम आदमी इस नूरा कुश्ती को सिर्फ देख सकता है, गर्दन हिला सकता है या फिर आंखें बंद कर सकता है। क्योंकि आईपीएल की आंच जैसे ही देश के केन्द्रीय मंत्रियों तक पहुंची तो मीडिया से मामला ही साफ हो गया। क्यों......
वो कल तक था, और आज नहीं है
मैं जब भी घर जाता हूं
मां
सवाल पूछती है।
बच्चे, बहू और मेरे बारे में
सब कुछ पूछने के बाद कहती है
मां
शहर में सब अच्छे तो है
सालो-साल तक शहर भोगने के बाद
सवाल से रिश्ता नहीं जोड़ पाता।
मां
शहर में कोई अच्छा या बुरा नहीं होता
शहर में लोग
होते है
या
नहीं होते।
हिसाब इतना ही है
कि वो है या नहीं है।
रिक्शावाला जिसे मैंने चाकू से गोदा हुआ देखा
मृत
अच्छा था कि बुरा नहीं जानता।
लेकिन एक बात साफ थी
वो कल तक था
और आज नहीं है
मेट्रो के रोज के सफर में देखता हूं
ढिढ़ाई के साथ बैठे नौजवानों को
कुढ़ते हुए खडे़ बूढों की सीटों पर
गर्भवती औरतों या नवजात शिशुओं को गोद में संभाले खडें हुऐ
इस उम्मीद पर कि कोई सीट दे।
न कोई सीट देता
और न कोई किसी को अच्छा या बुरा कहता है।
लोग सिर्फ देखते है, होने को उन नौजवान लोगों के
सुबह निकलते हजारों-लाखों लोगों में भी
शाम को घर लौटते कुछ लोग नहीं होते
जिनको अगले दिन के अखबार में सबसे पहले पढ़ता हूं
कि
ये..ये. नहीं रहे।
कहीं नहीं लिखा दिखता
अच्छे थे कि बुरे।
मां
सवाल पूछती है।
बच्चे, बहू और मेरे बारे में
सब कुछ पूछने के बाद कहती है
मां
शहर में सब अच्छे तो है
सालो-साल तक शहर भोगने के बाद
सवाल से रिश्ता नहीं जोड़ पाता।
मां
शहर में कोई अच्छा या बुरा नहीं होता
शहर में लोग
होते है
या
नहीं होते।
हिसाब इतना ही है
कि वो है या नहीं है।
रिक्शावाला जिसे मैंने चाकू से गोदा हुआ देखा
मृत
अच्छा था कि बुरा नहीं जानता।
लेकिन एक बात साफ थी
वो कल तक था
और आज नहीं है
मेट्रो के रोज के सफर में देखता हूं
ढिढ़ाई के साथ बैठे नौजवानों को
कुढ़ते हुए खडे़ बूढों की सीटों पर
गर्भवती औरतों या नवजात शिशुओं को गोद में संभाले खडें हुऐ
इस उम्मीद पर कि कोई सीट दे।
न कोई सीट देता
और न कोई किसी को अच्छा या बुरा कहता है।
लोग सिर्फ देखते है, होने को उन नौजवान लोगों के
सुबह निकलते हजारों-लाखों लोगों में भी
शाम को घर लौटते कुछ लोग नहीं होते
जिनको अगले दिन के अखबार में सबसे पहले पढ़ता हूं
कि
ये..ये. नहीं रहे।
कहीं नहीं लिखा दिखता
अच्छे थे कि बुरे।
Sunday, May 23, 2010
ब्लाग में जन्में पोप
अभी हाल में ब्लॉग की दुनिया के बारे में नया कुछ जानने को मिला। कुछ ब्लॉग और ब्लॉगों से जन्मी वेबसाईट् जगह-जगह सेमीनार करा रहीं हैं। ब्लॉग्स की दुनिया के बारे में सेमीनार। उनमें देश के बड़े-बड़े बुद्धिजीवि अपनी जुबां की खराश मिटा रहे हैं। ये तमाम बुद्धजीवि तब किसी नये सुझाव के साथ कभी नजर नहीं आये जब तक देश के लाखों करोड़ों लोगों के पास इस तरह का कोई विकल्प नहीं था। लेकिन इन लोगों को आप तब भी देख और पढ़ सकते थे कभी ये न्यूज पेपर में छपते थे तो कभी ये किसी प्रकाशन से अपनी कृतियों के प्रकाशन के समय दिखायी देते थे। बाद में न्यूज चैनल्स आये तो इन बुद्धिजीवियों की दुकान वहां जम गयी। खूब चले अपनी विवादास्पद बातों के दम पर। खुद पूरे पहुंचें हुए दारू की दुकान जेंब में लेकर चलने वाले। और औरतों और लड़कियों को सामान बोलने वाले लोगों की इस जमात की किताबें आप को देश भर के बड़े प्रकाशनों से हजार की तादाद में छपी हुई मिल जायेंगी।
ये बयानवीर कभी किसी नये बदलाव के लिये चर्चित होते थे जब खुद आपस में जबानी जंग करते थे। वो भी लूट के लिये तैयार चकाचक।
इस बीच में आम आदमी के लिये कही मंच नहीं था। वो मीडिया के रहमोकरम पर था। पहले अखबार के संवाददाताओं की चिरौरी और बाद में टीवी के ग्लैमरस रिपोर्टरस की जमात के आगे अपने भीख मांगते से अपनी बात कहने की कोशिश करता था।
सालों तक देश में यही हालत रही। तभी तथाकथित विद्धानों के मुताबिक नैतिक तौर परभ्रष्ट्र पश्चिमी देशों से आयी एक नयी क्रांत्रि। ब्लाग्...।यानि आप को जो महसूस हो रहा है। दुनिया के बदलाव को आप जो समझ रहे है। दुनिया से आप को क्या उम्मीद है। बिना किसी लाग-लपेट के आप अपनी बात जब चाहे दुनिया तक पहुंचा सकते है। बिना किसी को परेशान किये। जिन को आप के विचारों में दिलचस्पी है वो उसको पढ़ लेंगे और जिनको नहीं है वो उस पर देखें बिना अपना वक्त गुजार लेंगे।
काफी दिन तक इस लोकतंत्रात्मक संचार पद्धति ने उन लोगों को चकित कर दिया जो तथाकथित बुद्धजीवियों के चेलों के तौर पर मीडिया में अपनी जगह बना रहे थे। लेकिन जितना उनके गुरू सफल रहे उतनी बाईट्स नहीं खा पा रहे थे। अब उन लोगों ने अचानक अपने-अपने ब्लॉग्स बनाये औऱ उतर पड़े मैदान में। जिसकों देखों अपने गुरू की अखाड़े की मिट्टी बदन पर लगाये नयी नयी कहानी सुना रहा है। यानि जितना विवादास्पद बयान दें उतनी ही टीआरपी। इसमें भी मीडिया के लोगों की भरमार। भाई लोग टीवी औऱ अखबार में अपनी जुबां और कलम के दम पर कुछ कर पाये हो एतो उसकी कमाई और नहीं कर पाये तो इसलिये रगड़ाई। आप को हैरानी हो सकती है अगर आप ये देंखें कि कितने पत्रकारों के ज्ञान की उल्टी रोज इस आम आदमी के मीडियम पर हो रही है। भाई लोगों को ओर कुछ नहीं सूझा तो उन लोगों ने शुरू कर दिया ब्लाग्स के लोगों की पंचायती करना।
मैं और तो कुछ नहीं कहना चाहता लेकिन मैं इन खुदाई खिजमतगारों से कहना चाहता हूं कि भाई जिन लोगों को ब्लॉग्स तो अपने आप चलने वाली दुनिया है। उसमें आपके शराबी कबाबी गुरूओं की पंचायत की जरूरत नहीं है। आप खां म खां नेता बनने पहुंच गये। आप को जितना भी ज्ञान बघारना हो अपने ब्लॉग्स पर बघारे जिसे जरूरत होंगी आप से ले लेगा। आप को पोप बनने की जरूरत नहीं है। ना ही आम जनता को किस्मत से हासिल इस अधिकार को गंदा करने की। मैं किसी का नाम नहीं लेना चाहता लेकिन ब्लाग्स के नाम पर चल रही इस दुकानदारी से सब लोग परिचित होंगे।
ये बयानवीर कभी किसी नये बदलाव के लिये चर्चित होते थे जब खुद आपस में जबानी जंग करते थे। वो भी लूट के लिये तैयार चकाचक।
इस बीच में आम आदमी के लिये कही मंच नहीं था। वो मीडिया के रहमोकरम पर था। पहले अखबार के संवाददाताओं की चिरौरी और बाद में टीवी के ग्लैमरस रिपोर्टरस की जमात के आगे अपने भीख मांगते से अपनी बात कहने की कोशिश करता था।
सालों तक देश में यही हालत रही। तभी तथाकथित विद्धानों के मुताबिक नैतिक तौर परभ्रष्ट्र पश्चिमी देशों से आयी एक नयी क्रांत्रि। ब्लाग्...।यानि आप को जो महसूस हो रहा है। दुनिया के बदलाव को आप जो समझ रहे है। दुनिया से आप को क्या उम्मीद है। बिना किसी लाग-लपेट के आप अपनी बात जब चाहे दुनिया तक पहुंचा सकते है। बिना किसी को परेशान किये। जिन को आप के विचारों में दिलचस्पी है वो उसको पढ़ लेंगे और जिनको नहीं है वो उस पर देखें बिना अपना वक्त गुजार लेंगे।
काफी दिन तक इस लोकतंत्रात्मक संचार पद्धति ने उन लोगों को चकित कर दिया जो तथाकथित बुद्धजीवियों के चेलों के तौर पर मीडिया में अपनी जगह बना रहे थे। लेकिन जितना उनके गुरू सफल रहे उतनी बाईट्स नहीं खा पा रहे थे। अब उन लोगों ने अचानक अपने-अपने ब्लॉग्स बनाये औऱ उतर पड़े मैदान में। जिसकों देखों अपने गुरू की अखाड़े की मिट्टी बदन पर लगाये नयी नयी कहानी सुना रहा है। यानि जितना विवादास्पद बयान दें उतनी ही टीआरपी। इसमें भी मीडिया के लोगों की भरमार। भाई लोग टीवी औऱ अखबार में अपनी जुबां और कलम के दम पर कुछ कर पाये हो एतो उसकी कमाई और नहीं कर पाये तो इसलिये रगड़ाई। आप को हैरानी हो सकती है अगर आप ये देंखें कि कितने पत्रकारों के ज्ञान की उल्टी रोज इस आम आदमी के मीडियम पर हो रही है। भाई लोगों को ओर कुछ नहीं सूझा तो उन लोगों ने शुरू कर दिया ब्लाग्स के लोगों की पंचायती करना।
मैं और तो कुछ नहीं कहना चाहता लेकिन मैं इन खुदाई खिजमतगारों से कहना चाहता हूं कि भाई जिन लोगों को ब्लॉग्स तो अपने आप चलने वाली दुनिया है। उसमें आपके शराबी कबाबी गुरूओं की पंचायत की जरूरत नहीं है। आप खां म खां नेता बनने पहुंच गये। आप को जितना भी ज्ञान बघारना हो अपने ब्लॉग्स पर बघारे जिसे जरूरत होंगी आप से ले लेगा। आप को पोप बनने की जरूरत नहीं है। ना ही आम जनता को किस्मत से हासिल इस अधिकार को गंदा करने की। मैं किसी का नाम नहीं लेना चाहता लेकिन ब्लाग्स के नाम पर चल रही इस दुकानदारी से सब लोग परिचित होंगे।
आवारा अशरार
न कहूं तो खुद से,
कहूं तो तुझ से डर लगता है।
मोम के लोग,
राख की जन्नत है
उगे न सूरज उगे,
चले न हवा
इस दौर ए शहंशाह की मन्नत है।
.........................................
खुद से खडा हुआं तो तन्हा हूं
झुकता था तो लोग आवाजें देते थे मुझे
नजर नीची रखीं तो बाअदब था
नजरें उठीं तो बेअदब जमाने ने कहा मुझे।
......................................
दर्द दो , मुस्कुरा दो..
ये हुनर मुझको न सिखा
जब्त है मुझमें बहुत
तू बस अपना जलवा दिखा।
...........................
मुझे रह-रह कर तेरी रहबरी पर शक होता है
तू जिसे मंजिल कहता है मुझे मौत का घर दिखायी देता है
.....................................
तू चाहता है कि गिर कर खुदा से मांगूं तूझे
मेरी फितरत है कि गिर कर खुदा भी नहीं चाहिये मुझे
कहूं तो तुझ से डर लगता है।
मोम के लोग,
राख की जन्नत है
उगे न सूरज उगे,
चले न हवा
इस दौर ए शहंशाह की मन्नत है।
.........................................
खुद से खडा हुआं तो तन्हा हूं
झुकता था तो लोग आवाजें देते थे मुझे
नजर नीची रखीं तो बाअदब था
नजरें उठीं तो बेअदब जमाने ने कहा मुझे।
......................................
दर्द दो , मुस्कुरा दो..
ये हुनर मुझको न सिखा
जब्त है मुझमें बहुत
तू बस अपना जलवा दिखा।
...........................
मुझे रह-रह कर तेरी रहबरी पर शक होता है
तू जिसे मंजिल कहता है मुझे मौत का घर दिखायी देता है
.....................................
तू चाहता है कि गिर कर खुदा से मांगूं तूझे
मेरी फितरत है कि गिर कर खुदा भी नहीं चाहिये मुझे
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