कुछ तो होगा / कुछ तो होगा / अगर मैं बोलूँगा / न टूटे / तिलस्म सत्ता का / मेरे अदंर / एक कायर टूटेगा / टूट मेरे मन / अब अच्छी तरह से टूट / झूठ मूठ मत अब रूठ।...... रघुबीर सहाय। लिखने से जी चुराता रहा हूं। सोचता रहा कि एक ऐसे शहर में रोजगार की तलाश में आया हूं, जहां किसी को किसी से मतलब नहीं, किसी को किसी की दरकार नहीं। लेकिन रघुबीर सहाय जी के ये पंक्तियां पढ़ी तो लगा कि अपने लिये ही सही लेकिन लिखना जरूरी है।
Sunday, February 21, 2010
फरेब में कट गयी जिंदगी....
सच कहूं कि चुप रहूं हूं जो वही दिखूं, या कुछ ओर लगूं सोचता रहा हूं दिन रात ...और फरेब में कट गयी जिंदगी खूबसूरत बनने की तलाश करूं या खूबसूरत लोगों के साथ रहूं उलझा रहा इसी उलझन में रात-दिन ..और फऱेब में कट गयी जिंदगी
1 comment:
bahoot khub
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