Sunday, February 21, 2010

हत्यारे रिक्शावाले ?

दिल्ली में टैफिक पुलिस एक कांस्टेबल की 20 फरवरी 2010 को रिक्शावालों ने हत्या कर दी। खबर अखबार के पहले पन्ने पर थी। भजनपुरा इलाके में एक टैफिक पुलिस के सिपाही की कुछ रिक्शावालों ने बर्फ तोड़ने वाले सुए को घोंप कर हत्या कर दी। खबर अखबारों के नजरियें से अलग-अलग देखी गयी । लेकिन सार यहीं था कि टैफिक ठीक करने के लिये पुलिस वालों को रोजाना ऐसे लोगों से जूझना पड़ता है। खबर में अहम बात थी कि सुआ कोई रिक्शा वाला लेकर नहीं आया था बल्कि वो सुआ पुलिसकर्मी का था और उससे वो रिक्शा वालों के टायर बस्ट कर रहा था। इसी वजह से उसकी कई रिक्शा वालों से तकरार हुई और मां-बहन की गालियों से चिढ़े रिक्शावालों में से एक ने उससे सुआ छीना और उसी को घोंप दिया।
ये एक रिपोर्ट है। अब इसके बयान और एफआईआऱ पुलिसवालों के मुताबिक होगी। हत्या किसी की भी हो दर्दनाक होती है। औऱ हत्यारा कोई भी हो हत्यारा ही होता है। लेकिन सरसरी निगाह से कु्छ और आगे बढ़कर देंखे तो पानी के नीचे कुछ और भी नजर आयेगा। दिल्ली के उन सभी चौराहों पर जहां रिक्शावालों की आवा-जाही है,आप को ऐसे पुलिस वाले दिखायी दे जाएंगे जो सुए से रिक्शावालों का टायर फाड़ते मिलते है। ऐसे पुलिसवाले किसी ने दिल्ली में रहने के दौरान न देंखे हो तो ये कहा जा सकता है कि वो या तो संत है या फिर उसकी नजर में रेल, गाड़ी आदमी या फिक ऐसी किसी चीज का कोई मतलब नहीं है जो उसके और ऑफिस के बीच आती हो। रिक्शावालों को मां-बहन की गाली से नवाजतें औऱ थप्पड़ से बात करने वाले पुलिस वालों की दिल्ली पुलिस में बहुतायत है।
अब जरा एक रिक्शेवाले की कमाई का गणित देख ले। एक रिक्शा वाला 12 घंटे के लिये रिक्शा किराये पर लेता है चालीस से पचास रूपये में। कही ये रेट और भी ज्यादा है। इसके बाद उसको रिक्शा चलाना है दिल्ली के उन इलाकों में जहां अभी भष्ट्राचारी बाबूओं की जमात उनकी आवा-जाही पर रोक नहीं लगा सकी है। अब 12 घंटे में से आठ घंटे का वर्कग टाईम है और उसमें सवारी मिलने के उपर है। रोज की कमाई हुई सौ से डेढ़ सौ रूपया। एक टायर की कीमत है 275 रूपये से लेकर तीन सौ रूपये। इसके अलावा उसकी ट्यूब की कीमत है 135 से 145 तक रूपये। इसके बाद पुलिस वालों के हाथ में सुआ रिक्शावाले के बच्चों की तीन दिन की रोटी छीन लेता है। उसी ट्रैफिक पुलिस वाले की जो रोजाना आम जनता की आंखों के सामने ट्रक वाले हो या फिर दूसरे वाहन वालों से सैकड़ों रूपया वसूली करता है। और टैफिक व्यवस्था सुचारू रूप से चलाने के लिेये उसको मिलते है रिक्शावाले जिनके टायर वो सुए से फा़ड़ सकता है जिनके वो थप्पड़ लगा सकता है उनकी मां-बहनों के साथ आसानी से अपना रिश्ता जोड़ सकता है।
लेकिन यही ट्रैफिक पुलिसवाला कार वालों को देखने के बाद उसके आगे पचास बार झुकता है और पैसे की तमन्ना पर झूठे-सच्चे चालान बनाने की धाराएं बताने लगता है। लेकिन किसी भी कार वाले का टायर मैंने आज तक सुएं से फाड़ते हुए नहीं देखा। रोज के सत्तर किलोमीटर के अपने सफर में मैं जो देखता हूं वहीं हर आदमी देखता है जो उस रास्ते से गुजरता है इसके अलावा दिल्ली के हर इलाके में देख सकता है। बाजारों में दुकानदार अपने फुटपाथ पर सामान रख कर उस पर कब्जा कर लेते है उसके बाद उनकी कार दुकान के बाहर पार्क होती है और फिर सामान उतारता है ट्रक या तिपहिया। पूरे लक्ष्मीनगर, शकरपुर औऱ पहाड़गंज के पूरे बाजार में आप की आंखों को ये बेशर्मी खुलेआम दिखती है। खुलेआम रोजाना घंटों जाम में जूझते लाखों आम आदमी कानून को कोसते हुये रोज का सफर पूरा करते है लेकिन वही टैफिक पुलिसवाले को यहां कोई कानून नहीं टूटता हुआ दिखता। यहां कभी उसका सुआ नहीं चलता।
आप देख सकते है कि दिल्ली में भ्रष्ट्राचारी अफसर और राजनेताओं टैफिक बदलाव के नाम पर गरीब रिक्शावालों की गर्दन दबोच लेते है। लेकिन किसी ने आजतक दुकानों के बाहर सड़क को अपने बाप की जायदाद मानने वाले दुकानदारों की नकेल कसने की कोशिश नहीं की। क्योंकि वो उनके रिश्तेदारों या जानने वालों की है
यहीं सच है। एक दो दिन के बाद आप ये पढ़ ही लेंगे कि रिक्शावाला गिरफ्तार कर लिया गया। लेकिन कभी पहाड़गज के दुकानदारों के खिलाफ किसी कार्रवाई की खबर किसी अखबार में नहीं छपेंगी क्योंकि चांदी का जूता इस देश में बाप को नौकर में बदल देता है।

1 comment:

pagal baba said...

chandi ke jootey ki jay ho