युवा पत्रकारों में से कुछ पत्रकार आपको हमेशा उम्मीद दिलाते रहते है कि मीडिया को उनसे कुछ बेहतर स्टोरी मिलेंगी। वो मीडिया के आने वाले वक्त में मेहनती चेहरों में शुमार होंगे। रजत उन्हीं में से एक था। दिल्ली आजतक के उन पत्रकारों में से जिनके साथ आज छोड़ने के बाद भी राब्ता बना रहा। अरावली की पहाड़ियों पर उसकी स्टोरी पर काफी चर्चा भी हुई, मैंने कहा था कि आप इसको और भी बेहतर कर सकते थे अवार्ड से भी आगे। हंसते हुए रजत ने कहा था कि दादा आपके साथ काम करना है। ऐसे ही एक दिन विजय चौक पर रजत ने हंसते हुए का कि दादा कब मौका मिलेंगा। मैंने भी हंसते हुए कहा कि अब तुम लोगों को नहीं मुझे ये कहना चाहिए कि मैं कब आप लोगों के साथ काम करूंगा। युवा सपनों के साथ उम्मीद का आसरा ज्यादा होता है,निराशा कम होती है। इस पर वो और मैं ठहाका मार कर हंस दिए। वो एक आखिरी मुलाकात थी। परसो एक साथी ने खबर दी कि रजत का एक्सीडेंट हो गया। फिर कल मेरी टीम के रिपोर्टर और रजत के जूनियर गौरव ने कहा कि सर वो एम्स में है और बचने की उम्मीद नहीं है। शाम को रजत से मिलने की उम्मीद में एम्स गया,एमरजेंसी विभाग में गया लेकिन वहां सी टू में रजत नहीं था। फिर मैंने अपने रिपोर्टर को फोन किया तो उसने कहा कि सर आप गलत आ गये है एम्मस में नहीं एम्मस ट्रामा सेंट्रर में है रजत। और तब मैं वहां पहुंच ही नहीं पाया, वापस आना पड़ा ऑफिस और फिर रात में गौरव का व्हाट्अप। मुझे मालूम नहीं रजत को न जानने वालों को मैं कैसे कह पाऊंगा कि रजत मीडिया की युवा उम्मींदों में से एक था। बस ये ही कह सकता हूं कि रजत नहीं रहा।
कुछ तो होगा / कुछ तो होगा / अगर मैं बोलूँगा / न टूटे / तिलस्म सत्ता का / मेरे अदंर / एक कायर टूटेगा / टूट मेरे मन / अब अच्छी तरह से टूट / झूठ मूठ मत अब रूठ।...... रघुबीर सहाय। लिखने से जी चुराता रहा हूं। सोचता रहा कि एक ऐसे शहर में रोजगार की तलाश में आया हूं, जहां किसी को किसी से मतलब नहीं, किसी को किसी की दरकार नहीं। लेकिन रघुबीर सहाय जी के ये पंक्तियां पढ़ी तो लगा कि अपने लिये ही सही लेकिन लिखना जरूरी है।
Thursday, November 3, 2016
रजत सिंह नहीं रहा।
युवा पत्रकारों में से कुछ पत्रकार आपको हमेशा उम्मीद दिलाते रहते है कि मीडिया को उनसे कुछ बेहतर स्टोरी मिलेंगी। वो मीडिया के आने वाले वक्त में मेहनती चेहरों में शुमार होंगे। रजत उन्हीं में से एक था। दिल्ली आजतक के उन पत्रकारों में से जिनके साथ आज छोड़ने के बाद भी राब्ता बना रहा। अरावली की पहाड़ियों पर उसकी स्टोरी पर काफी चर्चा भी हुई, मैंने कहा था कि आप इसको और भी बेहतर कर सकते थे अवार्ड से भी आगे। हंसते हुए रजत ने कहा था कि दादा आपके साथ काम करना है। ऐसे ही एक दिन विजय चौक पर रजत ने हंसते हुए का कि दादा कब मौका मिलेंगा। मैंने भी हंसते हुए कहा कि अब तुम लोगों को नहीं मुझे ये कहना चाहिए कि मैं कब आप लोगों के साथ काम करूंगा। युवा सपनों के साथ उम्मीद का आसरा ज्यादा होता है,निराशा कम होती है। इस पर वो और मैं ठहाका मार कर हंस दिए। वो एक आखिरी मुलाकात थी। परसो एक साथी ने खबर दी कि रजत का एक्सीडेंट हो गया। फिर कल मेरी टीम के रिपोर्टर और रजत के जूनियर गौरव ने कहा कि सर वो एम्स में है और बचने की उम्मीद नहीं है। शाम को रजत से मिलने की उम्मीद में एम्स गया,एमरजेंसी विभाग में गया लेकिन वहां सी टू में रजत नहीं था। फिर मैंने अपने रिपोर्टर को फोन किया तो उसने कहा कि सर आप गलत आ गये है एम्मस में नहीं एम्मस ट्रामा सेंट्रर में है रजत। और तब मैं वहां पहुंच ही नहीं पाया, वापस आना पड़ा ऑफिस और फिर रात में गौरव का व्हाट्अप। मुझे मालूम नहीं रजत को न जानने वालों को मैं कैसे कह पाऊंगा कि रजत मीडिया की युवा उम्मींदों में से एक था। बस ये ही कह सकता हूं कि रजत नहीं रहा।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment