Friday, October 10, 2008

देश का शेयर

प्रश्न जितने बढ़ रहे,
घट रहे उतने जवाब,
होश में भी एक पूरा देश यह बेहोश है......सर्वेश्वरदयाल सक्सेना।
अभी तक तो सिर्फ दफ्तर या फिर मीडिया की सुर्खियों में सुन रहा हूं कि शेयर बाजार डूब रहा है। बैंक डूब रहे है और दुनिया में डूब रही है बड़ी कंपनियां। मेरा किसी शेयर मार्किट से कभी कोई ताल्लुक नहीं रहा है सिर्फ एक खबर को छोड़ कर जो पूरी नहीं कर पाया। लेकिन देश में मीडिया की सुर्खियां इस बात को बयान कर रही है कि हम जैसे एक बड़े संकट से दो-चार हो रहे है, और हम जैसे नादान लोगों को मालूम ही नहीं। मैं इतना तो जानता हूं कि मीडिया में जहां मैं काम करता हूं वो भी शेयर मार्किट के उपर-नीचे होने से प्रभावित होता है। लेकिन ऐसे कई सवाल है जो मैं आज तक नहीं समझ पाया हूं और जब भी शेयर के उपर नीचे होने से परेशान या खुश होते अपने दोस्तों को देखता हूं और उलझ जाता हूं। मैं अपने सवाल सोचता हूं कि आपके सामने रख दूं बिना किसी शर्म या झिझक के।
1. रोज एक ही कंपनी में इतना बदलाव कैसे हो जाता है क्या उसके प्रोडक्शन में रोज में इतना बदलाव आता है।
2. एक ही दिन में कई बार कंपनियों के रेट में उतार-चढाव क्यों आता है।
3. शेयर मार्किट के उपर नीचे होने के क्या कारण है।
4. सरकार पर शेयर मार्किट के गिरने और चढ़ने का कितना फर्क पड़ता है।
5. सट्टेबाजी, जुए( गैंबलिंग),लाटरी, और शेयर मार्किट में कितना अंतर है।
5. और भूखे से मरते किसानों पर फैसला लेने में सरकार को भले ही महीनों लगते हो लेकिन शेयर मार्किट के गिरते ही सरकार कुछ ही घंटों में रिरियाने लगती है, ऐसा क्यों होता है।.............................
और भी जाने कितने ऐसे ही सवाल जो कभी आगे मैं कर सकता हूं। देश की तरक्की का आईना अगर कोई है मीडिया की नजर में तो वो मुंबई की दलाल स्ट्रीट। नाम भी खूब है दलाल स्ट्रीट देश के कई हिस्सों में इस मार्किट के नाम को ही गाली के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है।
अप्टन सिनक्लेयर की एक कालजयी किताब जंगल में एक वाक्या लिखा है जिसमें एक बैंक ऐसे ही शेयर मार्किट में डूब जाता है और उसके शेयरों के भाव पूरी तरह मिट्टी में मिल जाते है। बैंक में इलाके के मजदूरों का पैसा जमा होता है। बैंक के बाहर अपना पैसा निकालने वालों की भारी भीड़ जमा हो जाती है। उसी भीड़ में शामिल एक मजदूर की सास है जिसकी रात-दिन की कमाई उस बैंक में जमा है अब वो परेशान है कि उसका पैसा कैसे डूब गया है। वो बार-बार भीड़ से पूछती है कि उसकी आंखों के सामने बैंक में बड़े बक्शों में पैसा रखा गया है ऐसे में बैंक डूब कैसे सकता है। कुछ लोग उसे समझाते है और वो समझ नहीं पाती है। ऐसा ही कुछ हम लोगों के साथ होता है। मुझे आज एक ऐसा ही नौजवान मिला जिसकी नौकरी शायद इसी की भेट चढ़ गयी है। उसके साथ कंपनी ने तेरह लोगों की छुट्टी कर दी है। मेरा इस सच्चाई से पहला ऐनकाउंटर है। दुनिया की महाशक्ति होने का ख्वाब पाले देश की अर्थव्यवस्था को चंद सटोरियों गिरा सकते है, ये बात और कोई नहीं यही दलाल स्ट्रीट कई बार साबित कर चुकी है। अब ठीक-ठीक आंकडा तो नहीं मालूम लेकिन मुझे याद है कि जब हर्षद मेहता का निधन हुआ तब उस पर लगभग 52 अरब रूपये की देनदारी थी और वो जो संपत्ति का इस्तेमाल कर रहा था वो लगभग 12 अरब रूपये की थी। यानि एक सड़क छाप आदमी देश के कानून का कबाड़ा करके जब चाहे देश के करोड़ो लोगों को नंगा कर सकता है और खुद कुछ महीने जेल में बीता कर मौज में उसी पैसे के सहारे अदालतों में अपने शिकार लोगों को एडियां रगड़-रगड़ कर मरते हुए देख सकता है। ये बात सिर्फ इसी बाजार के चलते संभव है। क्या ये एक ऐसी सट्टेबाजी नहीं है जिसमें महज सरकार का दिखावे के तौर पर दखल है और उसके असली मालिक हजारों लाखों करोड़ रूपये का काला धन रखने वाले है। जो कुछ सरकारी दलालों के दम पर हजारों करोड़ रूपया खाकर चले जाते है। फिर आते है और फिर से चले जाते है। लेकिन फिर एक कहावत याद आती है कि लालचियों के गांव में ठग भूखे नहीं मरते है। ये बाजार है क्या देश का इससे कितना मतलब है और आम आदमी की जिंदगी को ये कितना प्रभावित करता है जब तक ये मुझे समझ नहीं आयेगा मैं कभी नहीं समझ पाउंगा कि शेयर बाजार में देश का शेयर कितना है। ...........................

2 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सार्थक आलेख है।हमे भी आज तक इस गोरखधंधे की समझ नही आई कि आखिर यह सब चलता कैसे है।लेख के लिए बधाई।

Anonymous said...

बड़े भाईया अगला ब्लॉग कब आयेगा ?
मै लगभग हर दिन आपका ब्ल़ॉग खोल नया लेख ढूंढता हूं ....नितिन