Saturday, June 4, 2016

चंबल का बादशाह रूपा महाराज उर्फ रूपा पंडित जिसे पुलिस डायरी में नाम मिला नीली आंखों का शैतान।

चंबल का पानी कभी नहीं सूखता और नहीं सूखते है रिश्तें। रिश्तों में अहसान चुकाने के लिए पीढ़ियां कुर्बान हो जाती है। जिसमें एक घर और छत देने का अहसान चुकाना है खून से। चंबल में रवायत है कि डकैत की मौत के साथ ही उसकी कहानी खत्म हो जाती है लेकिन मानसिंह के साथ ऐसा नहीं हुआ। मौत मानसिंह की हुई कहानी की नहीं। मानसिंह के बाद भी उसका गैंग हर वारदात के बाद सिर्फ मानसिंह की जय बोलता था और किसी की नहीं। क्योंकि मानसिंह के बाद गैंग का सरदार बना हुआ डकैत सिर्फ मानसिंह की जय चाहता था और किसी की नहीं। चंबल में ये पहला मौका था जब किसी डकैत का खून नहीं उसका रिश्तेदार नहीं बल्कि उसका पाला हुआ डाकू गैंग का सरदार बना। और इस कसम के साथ कि खून का बदला सिर्फ खून है। मानसिंह की मौत का ऐसा बदला कि सुनने वाले भी कांप उठे।  
चंबल के बीहड़ों में राजा मानसिंह की मौत से भी बड़ा सवाल था कि आखिर मानसिंह के बाद कौन।  चंबल के बीह़ड़ों का राजा मानसिंह। पुलिस हो सरकार हर किसी के लिए राजा मानसिंह का कद कानून से बड़ा हो चुका था। गैंग में मानसिंह का भाई नवाब सिंह, बेटा तहसीलदार सिंह, सूबेदार सिंह. लाखन सिंह, रूपा पंडित सब एक से बढ़कर एक। मानसिंह गैंग की बादशाहत चंबल में चल ही रही थी कि अचानक एक दिन मानसिंह और उसका बेटा सूबेदार सिंह पुलिस की गोलियों का निशाना बन गया। अब चंबल के 800 मील के एरिये में अपनी बादशाहत बनाएं हुए गैंग का मुखिया कौन हो। और तब बीहड़ों में ऐलान हुआ कि मानसिंह गैंग का नया मुखिया और कोई नहीं बल्कि रूपा महाराज होगा। 
मानसिंह के बदले रूपा महाराज। चंबल में किसी को यकीन नहीं था कि रूपा मानसिंह के गैंग की बादशाहत को बनाए रखेगा। लेकिन रूपा महाराज ने मानसिंह की मौत के बाद गैंग को और खतरनाक बना दिया। पहले मानसिंह का बदला। और  फिर अपने गैंग की बादशाहत बनाने की हवस ने रूपा महाराज को चंबल के कसाई में तब्दील कर दिया। एक ऐसा डकैत जो न कत्ल करने से पहले सोचता था और न कत्ल करने के बाद। बेखौंफ रूपा को अपने निशाने पर इतना भरोसा था कि चंबल में कहा जाता था कि जिस रूपा की लाश गिरेगी वो अकेली होगी लेकिन उसके आसपास पुलिसवालों की कई ट्रक लाशें होंगी। एक के बाद एक कत्ल की झड़ी लगाने वाले रूपा महाराज की कहानी फिल्मी पर्दे पर उतरी तो दोस्ती और दुश्मनी की एक नई ईबारत के तौर पर। अचूक निशानेबाज रूपा जिसके बारे में कहा जाता है कि एक गोली और एक शिकार। चंबल में टेलीस्कोपिक राईफल के सहारे रूपा एक आतंक बन चुका था। 150 से ज्यादा कत्ल और सैकड़ों की तादाद में डकैतियां और जाने कितनी पकड़ के साथ  रूपा का नाम मध्यप्रदेश पुलिस की लिस्ट का सबसे पहला नाम यानि जी 1 बन चुका था।  चंबल में डकैतों का नामों-निशान मिटाने की कसम खाकर मध्यप्रदेश पहुंचे पुलिस प्रमुख के एफ रूस्तम की डायरी का दुश्मन नंबर एक यानि नीली आंखों वाला शैतान। हैजल्ड आई मॉनस्टर । दुश्मनों को निबटाने में किसी हद तक पहुंचने वाले रूपा ने चंबल के सबसे तेजतर्रार ऑफिसर से दोस्ती भी कर ली।  दो दुश्मनों की ऐसी दोस्ती जिसने चंबल में पुलिस और डाकुओं की एक नई ईबारत लिखी। दोनो का निशाना एक ही लाखन  सिंह। मानसिंह के बाद किस्मत के सहारे गैंग का मुखिया बना रूपा भी किस्मत के हाथों ही मारा गया। दोस्ती और दुश्मनी का एक अजब खेल है चबंल के इस डकैत की दास्तां।  सबसे ज्यादा पुलिस वालों को अपनी गोलियों का निशाना बनाने वाले रूपा का किस्सा चंबल के एक खूबसूरत आंखों वाले बच्चे का हैडल्ड आई मॉनस्टर में बदलने का किस्सा है जो ऐसी दुश्मनी में चंबल के बीहड़ों में आ धंसा जिस दुश्मनी  का उससे दूर का भी रिश्ता नहीं था। यानि अपने जिजमान मानसिंह की दुश्मनी को अपनी दुश्मनी मानने वाले रूपा का एक ऐसा किस्सा जो चंबल के साथ सदियों तक बहता रहेगा।  
खेड़ा राठौड़। ये नाम आपको जाना पहचाना लग रहा होगा। ऐसे हर आदमी को जिसका चंबल से जरा सा भी रिश्ता है उसको ये नाम कभी भूल ही नहीं सकता है।  ये गांव डाकू राजा मानसिंह का गांव है। टूटे-फूटी गढ़ी में मानसिंह की कहानी आपको सुनाई दे सकती है लेकिन इस गढ़ी के सामने  बिखरे पड़े मिट्टे के टीलों में भी किसी का घर ये कोई आसानी से नहीं बता सकता।
वॉकथ्रू
दशकों के मौसम की मार झेलता हुआ एक घर अब टीला बन चुका लेकिन इस टीले से निकली एक आवाज अब भी चंबल के बीहड़ों में गूंजती है। जब भी मानसिंह का नाम गूंजता है तो एक और आवाज साथ में फूट पड़ती है वो है रूपा पंडित की आवाज।  मानसिंह की गढ़ी के ठीक सामने उसके आंगन में एक छोटा सा घर कभी के रूप्पे पंडित का घर था।  रूपा के पुरखे मध्यप्रदेश में रहते थे लेकिन  मानसिंह के परिवार वाले कुल पुरोहिताई के लिए उनको मध्यप्रदेश से बुला कर लाए थे और रहने के लिए अपने ही हिस्से से थोड़ी  सी जमीन दे दी थी। रूपा का परिवार इसी पुरोहिताई और थोड़ी सी खेती के सहारे अपने दिन काट रहा था।
बाईट नरेश सिंह मेरे दादा रूपे के दादा को मध्यप्रदेश के गांव से लाए थे। 
 
मानसिंह के परिवार की दुश्मनी गांव के पंडित तलफीराम से शुरू हुई तो आंच रूपा महाराज के परिवार पर आनी शुरू हो गई। 30 जुलाई 1928  गांव में कत्ल हुए तो रूपा के पिता छविराम का नाम भी मानसिंह के साथ ही लिखा दिया । मामले में मानसिंह के साथ छविराम को भी आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।  छविराम जेल से बाहर नहीं आ पाया। उसके चार लड़के रूपनारायण, कन्हाई, लक्ष्मीनारायण और दुल्ला  पूरे तौर पर मानसिंह के परिवार पर ही निर्भर थे। रूपनारायण उर्फ रूप्पा उस वक्त महज 12 साल का था। छविराम की तबीयत जेल में खराब रहने लगी। और फिर एक दिन छविराम ने आखिरी सांस लेते हुए मानसिंह से वचन लिया कि वो रूप्पे के अपने बेटे की तरह से ख्याल रखेंगा। 
छविराम का परिवार सदमे में दिन गुजार रहा था कि एक और हादसा इस परिवार के साथ हो गया। एक दिन पुलिस गांव में पहुंची और रूपा के चाचा मुरारीराम को पकड़ कर ले गई। और उसके कुछ देर बाद लाश बीहड़ों में पड़ी मिली। मुरारीराम का किसी से कोई झगड़ा नहीं था। रूपा लाश की हालत देखकर रोता हुआ पुलिस के पास पहुंचा और हत्यारों को पकड़ कर सजा दिलाने की गुहार लगाई। किस्सा है ये कि थाने में रूपा को बजाय मदद के एक किक मिली और थाने से बेईज्जत कर बाहर कर दिया। 
चंबल में जब भी कानून से किसी को निराशा मिलती है उसकी आशा बीहड़ों में सिमट आती है। रूपा के लिए तो चंबल वैसे भी जाना-पहचाना था। 12 साल की उम्र से ही गांव की दुश्मनी में मानसिंह के साथ खड़े रूपा ने गैंग के लिए काम करना शुरू कर दिया। शुरूआत में गांव में आने वाले गैंग के लिए पहरे पर खड़े होने वाले रूपा के दिलेरी मानसिंह के दिल में घर करने लगी।
रूपा को सिर्फ बाहर से नहीं भीतर से चंबल को देखना था। बंदूकों की रखवाली नहीं करनी थी बल्कि बंदूकें चलानी थी। रूपा ने बंदूकों का साथ देते देते एक दिन खुद ही बंदूक थाम ली। और अब वो चंबल में मानसिंह गैंग का एक मैंबर हो गया। एक ऐसा मेंबर जिसको मानसिंह बेटे जैसा मानता था। 
रूपा का निशाना काफी तेज था। पुलिस की फाईलों में रूप्पा का नाम दर्ज हो गया रूपा पंडित के तौर पर। मानसिंह के गैंग में उसका बड़ा भाई नवाबसिंह, उसका बेटा सूबेदार सिंह और तहसीलदार सिंह थे। लेकिन रूपा अपनी पहचान बनाने में सफल रहा था। रूपा ने अपने बाप की मौत के बाद सिर्फ मानसिंह को ही अपना सगा मान लिया था। मानसिंह के इशारे पर किसी भी जान लेने के लिये तैयार रूपा उसके एक इशारे पर अपनी जान देने के लिए भी तैयार रहता था। 
रूपा अपने सरदार मानसिंह की तरह ही पूजा पाठी था। और किसी भी वारदात से पहले शगुन का विचार करता था। यहां तक कि मानसिंह की आखिरी मुठभेड़ से पहले भी उसने मानसिंह से गैंग को उस दिशा में ले जाने से मना किया था।  लेकिन होनी को कौन टाल सकता है इतने शगुन विचार वाले रूपा पंडित को भी पुलिस की गोलियों का ही निशाना बनना था। मानसिंह के गैंग में लोग बढ़ने लगे थे। और गैंग में एक और डकैत था जिस पर गैंग को नाज था और वो था लाखन सिंह तोमर। लाखन सिंह और रूपा गैंग में एक दूसरे से होड़ करते थे। दोनो बेहद शातिर और तेज निशानेबाज, और दोनो पर ही गैंग की नजर। ऐसे में मानसिंह को लगने लगा था कि इन दोनों की दोस्ती गैंग को लेकर कभी भी दुश्मनी में बदल सकती है। और ऐसे में एक दिन मानसिंह ने गैंग को दो हिस्सों में बांट दिया। एक हिस्सा लाखन सिंह को देकर दूसरे हिस्से में रूपा को रख लिया। 
लाखन सिंह ने अलग गैंग बना लिया। और रूपा मानसिंह के साथ रह कर वारदात करने लगा। इसी बीच एक मुठभेड़ में मानसिंह का लड़का तहसीलदार सिंह घायल होकर गिरफ्तार हो गया। तहसीलदार सिंह के खिलाफ कुछ लोगो ने गवाही दी। तहसीलदार सिंह को फांसी की सजा से बचाने के लिए मानसिंह और रूपा ने चंबल में तबाही मचा दी। हर उस गवाह या उसके रिश्तेदारों को मौत के घाट उतारना शुरू कर दिया जिसकी गवाही से तहसीलदार सिंह के गले पर फांसी का फंदा कस सकता था। 
एक दिन मानसिंह गैंग लौट रहा था कि उसकी पुलिस से मुठभेड हो गई। मुठभेड़ में मानसिंह पुलिस के जवान गोविंद सिंह थापा की गोलियों का निशाना बन गया।  गोलियों से जख्मी मानसिंह ने रूपा को देखा और दम तोड़ दिया। रूपा अपने मुखिया की लाश को वहां छोड़ना नहीं चाहता था। 100 किलो वजनी मानसिंह की लाश को कंधें पर उठाकर रूपा ने दो किलोमीटर तक दौड़ लगाई लेकिन सैकड़ों की तादाद में पुलिस की गोलियां गैंग पर भारी पड़ रही थी। गैंग के लोगो ने रूपा से लाश को वही छोड़कर निकलने को कहा। निराश रूपा ने लाश को वहां रखा और हाथ जोड़कर सबके सामने कसम खाई कि वो इस खून का बदला लेगा। 
गैंग लौट चुका था। मानसिंह के साथ उसका बड़ा बेटा सूबेदार सिंह भी मारा जा चुका था और तहसीलदार सिंह जेल में था। ऐसे में गैंग की कमान किसको दी जाए। मानसिंह का बड़ा भाई नवाबसिंह जिंदा था लेकिन गैंग को एक ऐसे मुखिया की जरूरत थी जो टूटे हुए मनोबल को ऊंचा उठा सके और गैंग का खौंफ आम जनता पर बनाएं रखे। सबकी निगाहें टिकी रूपा पंडित पर। और चंबल में मानसिंह के बाद उसके गैंग की कमान संभाल ली रूपा पंडित ने।  रूपा पंडित अब रूपा महाराज बन चुका था। और वक्त था उसकी कसम पूरी करने का।  
रूपा महाराज चंबल में खौंफ का नया नाम बन चुका था। गैंग की कमान संभालते ही उसने दुश्मनों से हिसाब किताब करना शुरू कर दिया। लाखन सिंह का गैंग भी चंबल में बड़ा गैंग बन चुका था। पहले तो मानसिंह की मौत के बाद सुलह सफाई हुई। लेकिन जल्दी ही चंबल की बादशाहत को लेकर दोनो में दुश्मनी ने एक नया रंग ले लिया। पहले लाखन ने कुछ लोगो को परेशान किया रूपा के फिर रूपा ने लाखन के लोगो को मारना शुरू कर दिया। दोनों गैंग का आमना-सामना भी होने लगा। लेकिन रूपा का अचूक निशाना और दिलेरी हर बार लाखन सिंह पर भारी पड़ती थी। लाखन सिंह के साथ के लोग आसानी से रूपा महाराज या उसके गैंग पर गोलियां चलाने से इस लिये भी पीछे हट जाते थे कि ये मानसिंह का गैंग है यानि राजा मान सिंह का गैंग जिसको चंबल में किसी ने चुनौती नहीं दी थी।
चंबल में रूपा ने जल्दी ही मानसिंह की तरह से ही दरबार लगाना शुरू कर दिया। चंबल के गांवों में रूपा का कहा कानून बन गया। कानून से निराश लोगों ने रूपा के दरबार में गुहार लगाना शुरू कर दिया। रूपा हर किसी का इंसाफ अपने अंदाज में करता था। उसके फैसले के खिलाफ कही अपील नहीं थी। जिसको भी दोषी पाया गया उसकी सजा मुकर्रर थी। एक गोली की आवाज और सांस जिस्म से बाहर। 
मानसिंह की मौत के बाद उसके दुश्मनों ने फिर से सिर उठाया। मानसिंह की जमीन को जोतना शुरू कर दिया। मानसिंह की पत्नी रूकमणी देवी हताश थी क्योंकि तहसीलदार सिंह जेल में था और पूरे गांव में पहरा। मानसिंह के दुश्मन  दीवाली का त्यौहार जोरो-शोरो के साथ मनाने जा रहे थे। गांव में शाम हो चुकी थी। और कुछ पटाखों की आवाज आई। लेकिन ये पटाखें दीवाली के पटाखे नहीं थे ये मौत के पटाखे थे और मौत रूपा महाराज के नाम से आई थी। 
रूपा ने ये ऐलान कर दिया था कि जब तक वो जिंदा है मानसिंह के परिवार की ओर आंख उठाने वाले को गोलियों से भून दिया जाएंगा। रूपा की मानसिंह के लिए झुकाव का ये आलम था कि रूकमणि देवी कोबुरे वक्त में आर्थिक मदद तक करने से पीछे नहीं हटता था।
रूपा का आतंक चंबल में फैलता जा रहा था। रूपा के गैंग में 35 से 40 लोग थे। और पुलिस के मुताबिक हर रोज का खर्च 200 रूपए था। गैंग के पास सबसे अत्याधुनिक हथियार थे।  टेलीस्कोपिक राईफल तो रूपा की पहचान थी तो उसके गैंग के पास शक्तिशाली दूरबीन, हैंडग्रेनेड, टीएमसी, ब्रेनगन और वॉयरलैस सेट तक थे।  रूपा ने दशको तक पकड़ कर उनके परिवारवालों से लाखों रूपए इकट्ठा किए । पुलिस रूपा का कुछ नहीं बिगाड पा रही थी। गैंग अपहरण करता और रूपा का नाम घर तक पहुंचता था और घर वाले पैसा पहुंचा दिया करते थे। एक बार चंबल के एक गांव से रूपा के गैंग ने पकड़ की और लड़के के बाप को फिरौती की खबर भिजवा दी गई। लेकिन लड़के के बाप ने ये खबर पुलिस को दे दी। ये बात रूपा तक पहुंची तो रूपा ने घात लगाकर बाप को भी उठा लिया। उसके बाद चंबल के बीहड़ों में बाप बेटे को ऐसी यातनाएं दे कर मौत के घाट उतारा कि सुनने वालों की रूह कांप उठे। इसके बाद चंबल में रूपा का विरोध करने की हिम्मत किसी की नहीं रही।  
चंबल में रूपा का नाम आंतक और खौंफ का नाम बन चुका था।. अब यदि पुलिस को किसी पकड़ के बारे में जानकारी मिलती और वो पूछताछ के लिए भी पहुंचती तो पकड़ के परिवार वाले ही पकड़ से इंकार कर देते थे। चंबल में रूपा महाराज का नाम तो गूंज रहा था लेकिन बेताज बादशाह बनने की इच्छा पूरी नहीं हो पा रही थी। और ये ही कारण था कि रूपा और लाखन की दुश्मनी बढने लगी। 
चंबल में एक तरफ रूपा की बंदूकें गरज रही थी तो उसी  वक्त लाखन सिंह भी पुलिस को नाकों चने चबवा रहा था। लगातार डकैतियों और कत्ल की वारदात से पुलिस हैरान-परेशान हो उठी।  चंबल का बादशाह बनने के लिए छटपटा रहे रूपा महाराज ने अपने गैंग के लोगो से वादा किया कि वो लाखन को खत्म कर के रहेगा। दोनों गैंग कई बार आपस में टकराए लेकिन हर बार लाखन बच कर निकलने में कामयाब हो गया।
 
लाखन सिंह से बुरी तरह नाराज रूपा भी चाहता था कि किसी तरह से लाखन सिंह का सफाया हो जाए तो फिर चंबल में उसके सामने बोलने वाला कोई नहीं बचेगा। रूपा को बादशाहत पसंद थी। वो किसी को भी मार गिराने में पल भर भी नहीं लगाता था। चंबल के किस्सों में एक बहुत मशहूर किस्सा है कि 1946 में रूपा अपने मुखिया मानसिंह से कहकर चंबल से बाहर कोलकाता गया था। महीनो बाद लौटे रूपा से मानसिंह ने पूछा कि तुमने कोलकाता क्या किया तो उसने जवाब दिया था कि दाऊ एक दर्जन से ज्यादा लोगो का सफाया। 
रूपा इस दौरान चंबल में वारदात भी कर रहा था। चंबल में उसने सैकड़ों पकड़ की थी, और सैकड़ों डकैतियों से उसको लाखों का माल हासिल हुआ था। खुद गांव के लोग भी सामान पहुंचाते थे। ऐसे में इतनी रकम का रूपा क्या करता था ये सवाल भी पुराने पुलिस अधिकारियों की डायरियों मिलता है। बाप का कत्ल कर उसके बेटे को पैसा थमा देने जैसी सनक का शिकार था रूपा। किसी पर खुश होकर उसके पैसा थमा देना उसके लिए रोजमर्रा की बात थी।  मध्यप्रदेश पुलिस ने 1958 में कहा कि वो रूपा का इस साल के आखिर तक सफाया कर देंगी। और रूपा ने पुलिस के इस बयान का अपने अंदाज में जवाब दिया। 
31 दिसंबर 1958 की रात मध्यप्रदेश और राजस्थान के के बीच एक छोटे से गांव से चार लोगो को रूपा ने पकड़ा और उनका कत्ल कर दिया। थोड़ी देर बाद ही मुरैना जिले के एक गांव से चार और बेगुनाह लोगो को पकड़ उन्हें भी मौत के घाट उतार दिया। रूपा ने मध्यप्रदेश पुलिस के ऐलान का जवाब इस तरह से बेगुनाहों का खून बहा कर दिया था।
 
मध्यप्रदेश पुलिस डायरियों में रूपा और लाखन जी1 और जी 2 के गैंग के तौर पर दर्ज हो चुके थे। पुलिस किसी भी कीमत पर इन दोनो का सफाया करना चाहती थी। इसी बीच अपने दुश्मनों की हवेली जला कर लाखन ने पुलिस के लिए बड़ी चुनौती डाल दी थी। इस पर सरकार ने सबसे पहले लाखन का सफाया करने के लिए एसएएफ की एक पूरी बटालियन पुलिस अधिकारी टी क्विन के नेतृत्व में लाखन के गांव नगरा में उतार दी।  टी क्विन किसी भी तरह से लाखन का सफाया चाहता था।  पहले तो सीधी मुठभेड़ हुई लेकिन लाखन सिंह आसानी से पुलिस के जाल को काटकर निकल भागा। इस पर टी क्विन ने पहली बार चंबल में ऐसी चाल चली जो चंबल में न कभी सुनी गई थी और न देखी गई थी।
टी क्विन नगरा के आस पास के गांवों की रात दिन खाक छान रहा था। हर गांव में उसने अपना मजबूत मुखबिर तंत्र खड़ा कर लिया था। लेकिन उसको न लाखन का सुराग मिल रहा था और न ही रूपा का।  टी क्विन ने  रूपा के गैंग छोड़ कर पुलिस के सामने समर्पण करने वाले एक डकैत को अपने विश्वास में ले लिया।    उससे हासिल सूचनाओं के आधार पर टी क्विन ने एक के बाद एक रूपा के लोगो को पकड़ना और मार गिराना शुरू कर दिया। रूपा ने बदला लेने का प्लान बनाया। भिंड में पुलिस के घेरे में रह रहे मुखबिर के रिश्तेदारों को टार्चर किया और उन्हें मजबूर कर दिया कि वो मुखबिर को किसी बहाने से अपने यहां बुलाएं। और एक दिन जब वो मुखबिर जाल में फंस कर अपने रिश्तेदारों के यहां पहुंचा तो वहां उसका इंतजार कर रहा था रूपा। मुखबिर को बुरी तरह से यातना देकर मौत के घाट उतार दिया। 
 
इसके बाद रूपा ने अपना दिमाग लगाया टी क्विन के सफाए पर। टी क्विन ने कई बार रूपा को दौड़ाया था और उधर रूपा ने एंबुश करना शुरू कर दिया। एक दिन मुरैना के जंगलों में घूम रहे टी क्विन पर उसका निशाना लग भी गया लेकिन टी क्विन के ड्राईवर ने अपनी जान पर खेलकर भी टी क्विन को निकाल लिया। वारदात में टी क्विन के साथ बात करने वाले 9 लोगो को रूपा ने गोलियों से भून दिया। 
टी क्विन ने हार नहीं मानी। एक के बाद एक मुखबिरों के सहारे दोनो गैंग को ठिकाने लगाने की कोशिशों में जुटा रहा। लेकिन दोनो गैंग अलग अलग दिशाओं में काम करते थे ऐसे में एक दिन टी क्विन को  एक मुखबिर ने सलाह दी कि क्यों न कांटे से कांटा निकाल दिया जाएं।
कांटे से कांटा यानि लाखन का कांटा रूपा के कांटे से निकाल दिया जाएं। और फिर रूपा का देखा जाएंगा।  टी क्विन को ये राय जम गई। और फिर टी क्विन ने रूपा पर जाल बिछाना शुरू कर दिया।  रूपा के एक रिश्तेदार की मदद से टी क्विन उस तक पहुंच गया। 
टी क्विन ने रूपा को लालच दिया कि अगर वो लाखन सिंह का सफाया करा देता है तो फिर उसको हाजिर कराने में टी क्विन उसकी मदद करेगा। ये तो आज भी साफ नहीं कि क्या वाकई रूपा इस बात परयकीन कर रहा था लेकिन ये साफ था कि वो लाखन सिंह का सफाया चाहता था लिहाजा उसने टी क्विन से हाथ मिला लिया। इसके बाद टी क्विन को सूचना मिलना शुरू हो गया।  

पुलिस को पोरसा इलाके में लाखन सिंह की सटीक मुखबिरी पुलिस को कर दी। सैकड़ों  पुलिस वाले तेजी से पोरसा के जंगलों में चुपचाप जा धमके। लेकिन किस्मत ने लाखन का साथ दिया। उसकी लोकेशन से पहले ही पुतली का गैंग निश्चित होकर खाना बना रहा था। ऐसे में पुलिस का उसके साथ आमना सामना हो गया। घटना में पुतली और उसका पूरा गैंग पुलिस की गोलियों का निशाना बन गया। लेकिन लाखन मौके का फायदा उठाकर निकल चुका था। 
पुलिस की काफी किरकिरी हो रही थी। इससे भी ज्यादा परेशानी टी क्विन और रूपा पंडित के बीच के रिश्तों को लेकर होने लगी। टी क्विन चंबल के सबसे खूंखार डकैत के साथ दोस्ती की कहानियां सरकार को मिलने लगी। मीडिया ने दबाव बढ़ा दिया। टी क्विन को जेड ओ यानि जोनल ऑफिसर वन कहा जाता था लेकिन इन दोनो के रिश्तों के चलते पूरे इलाके में रूपा को जेड़ ओ 1 और टी क्विन को जेड और 2 कहा जाने लगा। 
पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक 26 अक्तूबर 1959 का दिन था। टी क्विन ग्वालियर से वापसी के रास्ते में महुवा गांव में रूके। इस बीच महुवा थाने के रिकॉर्ड में दर्ज हुआ कि जी 1 गैंग की आमद इलाके में होने वाली है। रूपा का गैंग वारदात के लिए लाखन के गांव नगरा की ओर जाने वाला है। गैंग की दूरी कुछ मील दूर है।  टी क्विन ने कुछ ही देर में 9 बटालियन का इंतजाम कर लिया। इलाके को पूरे तरह से घेर लिया गया।  
दो प्लानटून नगरा की तरफ
दो प्लाटून महुआ, 
दो प्लाटून काली आरोली
और एक एक प्लाटून उद्योतगढ़ और पोरसा भेज दी गई। 
क्विंस ने छह बटालियन के साथ मार्च किया।  और बीहड से चंबल के बीच की जगह में घेरा बंदी कर ली। पुलिस जैसे ही कुछ आगे बढ़ी तो गैंग के पहरेदार जिसे आउटपोस्ट कहा जाता है ने शोर मचाना शुरु कर दिया कि पुलिस के कुत्ते भागों। गोलियां चलने लगी। पुलिस ने आवाज को निशाना बना कर 28 ग्रुप बना कर एक के बाद एक कई घेरे बना  दिये। 
गैंग तीन तरफ से भागर तीन मील को पार कर राजस्थान में निकलना चाहता था लेकिन हर तरफ पुलिस की भारी फायरिंग हो रही थी। और रूपा के गैंग के बचने का कोई रास्ता नहीं था। चंबल की ओर भागते हुए गैंग को चंबल से आधा किलोमीटर पहले ही एक दूसरी पुलिस पार्टी से सामना हुआ। पुलिस जमादार बालम सिंह ने अपनी रेंज में दिख रहे  तीन लोगो पर अचानक अपनी टॉमीगन से गोलियों की बौछार कर दी। गोलियों के साथ चीखने की आवाज भी हवा में गूंजी और फिर शांत हो गई। रात का वक्त था ऑपरेशन रोक दिया गया। अल सुबह तलाश शुरू हुई तो कुछ दूर जंगल में एक लाश मिली लेकिन जैसे उसका चेहरा पहचाना गया तो टी क्विन निराश हो गया क्योंकि ये रूपा नहीं था बल्कि उसका गैंग का राजाराम था। पुलिस पार्टी लौट ही रही थी कि एक और खून के निशान दिखाई दिए।ष निशान के पीछे जाने पर कुछ दूर पर ही गोलियों से छलनी एक लाश थी। और लाश की पहचान के साथ ही टी क्विन खुशी के साथ नाचने लगा। क्योंकि ये लाश किसी और की नहीं मानसिंह के बाद चंबल के सबसे बड़े डाकू रूपा की लाश थी। 
हालांकि चंबल के किस्सों में ये कहानी कुछ दूसरे तरीके से कही जाती है। इसके मुताबिक टी क्विन ने लाखन को मार पाने में नाकाम रहने पर रूपा का ही काम तमाम करने की ठानी। उधर रूपा को टी क्विन पर पूरा विश्वास था लिहाजा टी क्विन के बुलावे पर वो  गैंग को पीछे छोड़ कर सिर्फ राजाराम के साथ ही महुआ आ पहुंचा और वहां टी क्विन ने उसका एनकाउँटर कर दिया।
लेकिन कहानी कुछ भी हो चंबल का एक और आतंक पुलिस की गोलियों का निशाना बन गया था। इस मुठभेड की सूचना मिलने पर के एफ रूस्तम जी ने अपनी टेबल में लगे हुए चार्ट से जी 1 गैंग के नाम पर भी काटा लगा दिया। और चंबल का एक और खौंफनाक डाकू जमीन से उठ कर किस्सों की नदी में उतर गया। 

2 comments:

Anonymous said...

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Unknown said...

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