रोम जल रहा था और नीरो बंसी बजा रहा था। रोम साम्राज्य के खत्म होने के सैकड़ों साल बाद भी ये कहावत जिंदा है। यानि इतिहास उन सबका हिसाब रखता है जो इतिहास को भूल जाते है या पीठ दिखाते है। देश के बेबस ईमानदार प्रधानमंत्री इस समय नीरो को मात देने में लगे है। देश भर में लूट चल रही है। देश बिक रहा है। देश को राज्यों में बांटा गया था शासन चलाने के लिये लेकिन इस प्रधानमंत्री ने देश को बांट दिया लूट के लिेये। ये कैसे ईमानदार प्रधानमंत्री है भाई। इनको मालूम है इनके मंत्रिमंडल में शामिल लुटेरे देश का सौदा कर रहे है। लेकन बेचारे प्रधानमंत्री को अपनी कुर्सी बचानी है युवराज के लिये। युवराज कह रहा है कि प्रधानमंत्री को शर्मिंदा होने की कोई जरूरत नहीं है। ये बात बिलकुल दुरूस्त है। देश को शर्मिंदा होना चाहिए ऐसे प्रधानमंत्री होने पर। क्या खडाऊं प्रधानमंत्री युवराज और राजमाता के आदेश पर देश चला रहे है। सोनिया गांधी का बयान आया कि देश को और जिम्मेदार सरकार चाहिए। कौन देगा सरकार। आपको बहुमत मिला और आपने ऐसे लोगों को मंत्रिमंडल में शामिल कर दिया जो महमूद गजनवी और नादिरशाह जैसे लुटेरों को भी मात देने में जुटे है। ऐसे मंत्रियों पर लगे आरोपों में हजार दो हजार करोड़ के घपले का नहीं लाखों करोड़ के मामले शामिल है। लेकिन सोनिया को नहीं लगता कि कोई जवाबदेही का कानून बनाया जाए।
देश के तथाकथित नेशनल मीडिया की औकात कितनी है ये लगातार हम आपको बताते रहे है। देश में चल रही लूट पर पर्दा डालकर हमेशा एक सवाल को गायब करना ही इस नेशनल मीडिया की कोशिश रही है। सवाल है जवाबदेही का। संविधान में इस बात की गुंजाईश छोड दी गई कि अंग्रेजों से बेहतरीन अंग्रेजी बोलने वाले काले नौकरशाहों और राजनेताओं को दान में मिले देश को लूटने के बाद किसी तरह की जवाबदेही न हो। खानदान राज कर रहे है। राजवाड़े जिनके होते लगातार देश अपमानित होता रहा शर्मिंदा होता रहा उनकी औलादें शान के साथ देश की लूट में शामिल हो गई। हाल ही में जोधपुर के एक पूर्व महाराजा के बेटे की शादी का ऐसा वर्णन देश के तथाकथित मीडिया ने किया कि भाट और चारण भी शर्मा जाएं। 1857 की आजादी की लडाई में जिन घरानों का इतिहास अंग्रेजों के जूते चाटने और देश भक्तों को मारने में रहा वो आज जनतंत्र के नाम पर जीत कर संसद में बैठते है कानून बनाते है लेकिन किसी अखबार या चैनल को नहीं लगता कि उस दौरान की कहानी भी चला दी जाए।
देश की आजादी की ताकत को लुटेरों की हिफाजत में लगाने वाले तथाकथित राष्ट्रीय पत्रकारों के चेहरे बेनकाब हुए है। बरखा दत्त, वीर सांघवी जैसे नामचीन पत्रकारों की बातचीत की रिकार्ड़िंग ये बताती है कि सत्ता में कितने बौने लोग आ गए जो इनको दलाल की तरह से इस्तेमाल कर रहे है। बरखा दत्त जैसी पत्रकार उन लोगों को बेहद पंसद है जो लूट को वैधानिक बनाने के रास्ते तलाशते है। बरखा दत्त की कितनी कहानियां मीडियाकर्मी सुनाते है अगर उनको उसी तरह से लिख दिया जाएं जिस तरह मीडिया बेबस और आम आदमी की कहानी को दिखाता है तो क्या बात हो।
2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले में सत्ता में बैठी कांग्रेस किस तरह से गिरगिट की तरह से रंग बदल रही है। देश को नए-नए कानून बता कर देश को उल्लू बनाने में जुटी है
कांग्रेस। मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाने के वक्त देश के तथाकथित मीडिया ने ऐसा माहौल बनाया था कि जैसे सत्यवादी हरिश्चन्द्र का अवतार आ गया हो। ईमानदारी ने साक्षात इंसानी अवतार लिया हो और नाम रखा मनमोहन सिंह। ऐसा ही माहौल तैयार किया गया था वीर सांघवी और बरखा दत्त जैसे पत्रकारों ने। आज प्रधानमंत्री की ईमानदारी छवि के सारे पर्दे हट चुके है। लेकिन इस छवि के सहारे मलाई काटने वाले आज भी ये नारा लगा रहे है कि प्रधानमंत्री की ईमानदारी पर दाग नहीं है। ये ऐसे ही है जैसे कोई आदमी लुटेरों को वकील मुहैय्या करा रहा हो और जब उसकी कलई खुले तो कहे कि भाई हमारा तो कोई दोष नहीं है हम तो महज मदद कर रहे थे।
लेकिन ये बातें तो वो जो आप देख सुन रहे है।लेकिन हम आपसे एक सवाल पूछना चाहते है कि देश में प्रधानमंत्री का काम क्या है। क्या है उसकी जिम्मेदारी। और यदि जिम्मेदारी नहीं निबाह पाया तो उसकी सजा क्या हो। ऐसा कोई भी सीधा जवाब संविधान में नहीं है। देश की संस्थाओं का इस्तेमाल किया जा रहा है इस देश को लूटने वालों को बचाने में। देश का तथाकथित राष्ट्रीय मीडिया नाटक कर रहा है। नूरा कुश्ती कर रहा है। वो दिखा रहा है कि जैसे बीजेपी इस मसले पर चिंतित है। समाजवादी पार्टी के एक महान चिंतक मोहन सिंह ने तो कमाल ही कर दिया। अगर अखबार में छपे उनके लेख पर देखे कि सुप्रीम कोर्ट को प्रधानमंत्री पर सवाल करने ही नहीं चाहिए। ये मोहनसिंह भी वहीं है जिनकी समाजवादी छवि के चर्चे देश के तथाकथित मीडिया वाले लगातार गाते रहे है। दरअसल पूरे देश की राजनीति सिर्फ परिवारवाद और जातिवाद के दम पर चल रही है। ये लोग सिर्फ जाति के कबीलों के सरदारों के जूते उठा कर राजनीति कर रहे है। और देश को लूट रहे है।
सबसे ज्यादा फायदे में है देश के नौकरशाह। आजादी के वक्त किसी को ये पूछने की परवाह नहीं थी कि जो नौकरशाह 14 अगस्त 1947 को यूनियन जैक के नाम पर देश चला रहा है वो 15 अगस्त 1947 को कैसे तिरंगे की शपथ लेगा। जवाहरलाल नेहरू जैसे नेताओं को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था। लेकिन देश को पड़ता था। आज कई जिलों में मैं जब ऐसे बोर्ड देखता हूं जिनमें आजादी से पहले एसपी और डीएम का नाम लगातार लिखा हुआ देखता हूं तो सिर्फ एक ही ख्याल जेहन में आता है कि रंग बदला है लुटेरे नहीं।
कुछ तो होगा / कुछ तो होगा / अगर मैं बोलूँगा / न टूटे / तिलस्म सत्ता का / मेरे अदंर / एक कायर टूटेगा / टूट मेरे मन / अब अच्छी तरह से टूट / झूठ मूठ मत अब रूठ।...... रघुबीर सहाय। लिखने से जी चुराता रहा हूं। सोचता रहा कि एक ऐसे शहर में रोजगार की तलाश में आया हूं, जहां किसी को किसी से मतलब नहीं, किसी को किसी की दरकार नहीं। लेकिन रघुबीर सहाय जी के ये पंक्तियां पढ़ी तो लगा कि अपने लिये ही सही लेकिन लिखना जरूरी है।
Saturday, November 20, 2010
Monday, November 1, 2010
सेना के (खळ) नायक
शर्म की बात है तो ये कि पैसे के लिये बिकने वाले और अपना ईमान बेचने वालों में अब सेना के लोग भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहे है। इस मामले में ये घोटाला तो आदर्श है कि जल सेना, थलसेना और वायु सेना तीनों सेनाओं के शीर्ष अधिकारियों ने लूट में सामूहिक हिस्सेदारी ली। ये वो लोग है जो अब मासूमियत का दिखावा करते हुए फ्लैट वापस करने की पेशकश कर रहे है। कितने बेवकूफ अधिकारी रहे होंगे अगर इनको इतना भी नहीं मालूम होगा कि 8 करोड़ का फ्लैट 80 लाख में मिल रहा है तो क्या कारण है। दरअसल इतनी मासूमियत से ये लोग ईमानदारी का गला घोंटते है कि इनके लिये गला भर आएं। इन लोगों की सेलरी का हिसाब निकाल लिया जाएं और इनके रहन-सहन का स्तर किसी स्वतंत्र तरीके से चैक करा लिया जाएं तो आसानी से पता चल जाएंगा कि किस तरह से देश की लूट में इन महानुभवों ने अपना योगदान दिया होगा।
करगिल युद्ध। 1971 के बाद पहली बार इतने जवान और अधिकारियों की शहादत हुई। आजतक भी उस वक्त सत्ता में बैठे लोगों या फिर बाद में सत्ता में आएं लोगों ने इस बात का जवाब नहीं दिया कि कैसे आतंकवादी इतनी तादाद में भारतीय सीमा के अंदर घुस आएँ। कैसे बंकर बने कैसे रणनीतिक कब्जा किया गया। लेकिन सेना के अधिकारियों को तो जवाब देना था कि कैसे हुआ ये सब। अब आदर्श घोटाले ने जरूर देश को ये यकीन दिलाया कि किस तरह से ये मासूम अफसर अपना दायित्व निबाह रहे होंगे। कारगिल के शहीदों के नाम पर किस तरह से लूट की। इन अफसरों के सैकड़ों फोटो सेनाओं के ऑफिसों में लगे होंगे जिनमें ये कारगिल के शहीदों के प्रति अपना सम्मान जता रहे होंगे।
करगिल युद्ध। 1971 के बाद पहली बार इतने जवान और अधिकारियों की शहादत हुई। आजतक भी उस वक्त सत्ता में बैठे लोगों या फिर बाद में सत्ता में आएं लोगों ने इस बात का जवाब नहीं दिया कि कैसे आतंकवादी इतनी तादाद में भारतीय सीमा के अंदर घुस आएँ। कैसे बंकर बने कैसे रणनीतिक कब्जा किया गया। लेकिन सेना के अधिकारियों को तो जवाब देना था कि कैसे हुआ ये सब। अब आदर्श घोटाले ने जरूर देश को ये यकीन दिलाया कि किस तरह से ये मासूम अफसर अपना दायित्व निबाह रहे होंगे। कारगिल के शहीदों के नाम पर किस तरह से लूट की। इन अफसरों के सैकड़ों फोटो सेनाओं के ऑफिसों में लगे होंगे जिनमें ये कारगिल के शहीदों के प्रति अपना सम्मान जता रहे होंगे।
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आदर्श घोटाला....सत्ता बेनकाब
ये एक आदर्श घोटाला है। एक मौजूदा मुख्यमंत्री दो पूर्व मुख्यमंत्री जो अब केन्द्रीय मंत्री हैं रीयल स्टेट घोटाले की जांच में है। दो पूर्व थलसेनाध्यक्ष एक पूर्व नौसेनाध्यक्ष और पूर्व वायुसेनाध्यक्ष ये सब आदर्श सोसायटी स्कैम की जांच के दायरे में हैं। इतने पर बस नहीं है महाराष्ट्र सरकार के कई मौजूदा मंत्रियों सहित कई पूर्व मंत्री इस जांच के दायरे में हो सकते है। इसके अलावा राजस्व विभाग के नौकरशाह और नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट्स देने वाली सरकारी एजेंसियों के नौकरशाह अभी पर्दे के पीछे है लेकिन जल्दी ही उनके नाम का भी हल्ला मच सकता है। हैरानी की बात नहीं है। देश में लूट की आदर्श स्थिति चल रही है। संविधान में लुटेरों को रोकने का कोई खास प्रावधान नहीं है। लूट की छूट में कोई व्यावधान नहीं है। इस देश में घोटाले की जांच भी एक बेहद पसंदीदा खेल है और खेल है तो खेला जाना चाहिएं। इसीलिये खेल शुरू हो गया। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने जांच के आदेश दे दिये है। देश के रक्षामंत्री ए के एंटनी और वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी जांच करेंगे। वित्त मंत्री कांग्रेस की इस सरकार के ट्रबल शूटर है। हर मामले की जांच में वही होते है। कांग्रेस के लगुवे
-भगुवे बहुत खुश हुएं। पार्टी इस जांच में दूध का दूध पानी का पानी कर देंगी। लेकिन क्या ऐसा हो सकता है। जांच कमेटियों की रिपोर्टें रद्दी की टोकरी में पड़ी पड़ी नष्ट हो जाती है। जांच करने वाले के खिलाफ भी कोई न कोई घोटाला सामने आ जाता है। और लोग भूल जाते है। नया कोई घोटाला पुराने की याद तो मंद कर देता है।
सबसे पहले देश की सबसे शक्तिशाली महिला सोनिया गांधी की बैठाई गई जांच पर बात की जा सकती है। इस घोटाले की जांच सीबीआई भी कर सकती है। इस घोटाले की जांच रक्षा मंत्रालय भी कर रहा है। कई सारे सवाल है। यदि कांग्रेस अध्यक्ष को जांच करानी थी तो सीबीआई को खुली छूट दी जा सकती थी। कानूनन तो पुलिस भी जांच कर सकती थी। लेकिन मुख्यमंत्री की जांच करेंगे केन्द्र के दो मंत्री। प्रणव मुखर्जी साहब को अभी कागज पढ़ने है। कागज तो साफ है मुख्यमंत्री के तीन -चार रिश्तेदारों के नाम फ्लैट है। इसके अलावा जांच के लिये पार्टी को कुछ करना नहीं है। क्योंकि वो तो जांच एजेंसियों का काम है। कांग्रेस पार्टी ये साबित करने में लगी रहती है कि उनके प्रधानमंत्री खड़ाऊं प्रधानमंत्री नहीं है और राज-काज के फैसले खुद लेते है। लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष ने इस मामले में देश के प्रधानमंत्री के देश में वापस लौटने का इंतजार भी नहीं किया। बेबस से ईमानदार प्रधानमंत्री को इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी। यदि अखबारों में छपी खबरों पर यकीन किया जाएं तो प्रधानमंत्री ने एक सवाल के जवाब में ऐसा जवाब उन्होंने एक पत्रकार को जवाब दिया था। खैर प्रधानमंत्री की असली राजनीतिक ताकत की हकीकत राजनेता भी जानते है और आम जनता भी। लेकिन सवाल फिर घूम-फिर कर वही आ रहा है कि सरकार ने कॉमनवेल्थ की जांच के लिये भी एक कमेटी बना दी शुंगलू साहब की अध्यक्षता में। सीबीआई पर कुछ समय से ये आरोप ज्यादा चस्पा हो रहा है कि वो सत्ता में बैठे लोगों की धुन पर नाचती रहती है। इसके बावजूद सीधे सीबीआई को क्लियर कट जांच क्यों नहीं दी गई। ये सवाल सीधे जेहन में नहीं उतर रहा है। लेकिन लोग जो जांच पर भरोसा करते है वो इस ख्याल में खो सकते है कि इसका कोई मतलब है। चारा घोटाला, ताज कॉरी़डोर, गोमतीनगर विपुल खंड प्लॉट स्कैम, मधु कोड़ा की अकल्पनीय लूट, चौटाला का टीचर भर्ती घोटाला, या फिर ऐसी एक लंबी लाईन है जिसका कोई अंत नहीं है। आप की संसद और विधानसभा आजतक एक भी ऐसा कानून नहीं बना पाय़ी कि ऐसे मुख्यमंत्रियों को फौरन दंड मिल सके। इनके लिये कानून के एक होने की बात की जाती है। लेकिन क्या आप ऐसी छूट की उम्मीद किसी जेंबकतरें या फिर रहजन के लिये कर सकते है। नहीं जेबकतरों को पब्लिक सड़कों पर पीट-पीट कर मार देती है।
-भगुवे बहुत खुश हुएं। पार्टी इस जांच में दूध का दूध पानी का पानी कर देंगी। लेकिन क्या ऐसा हो सकता है। जांच कमेटियों की रिपोर्टें रद्दी की टोकरी में पड़ी पड़ी नष्ट हो जाती है। जांच करने वाले के खिलाफ भी कोई न कोई घोटाला सामने आ जाता है। और लोग भूल जाते है। नया कोई घोटाला पुराने की याद तो मंद कर देता है।
सबसे पहले देश की सबसे शक्तिशाली महिला सोनिया गांधी की बैठाई गई जांच पर बात की जा सकती है। इस घोटाले की जांच सीबीआई भी कर सकती है। इस घोटाले की जांच रक्षा मंत्रालय भी कर रहा है। कई सारे सवाल है। यदि कांग्रेस अध्यक्ष को जांच करानी थी तो सीबीआई को खुली छूट दी जा सकती थी। कानूनन तो पुलिस भी जांच कर सकती थी। लेकिन मुख्यमंत्री की जांच करेंगे केन्द्र के दो मंत्री। प्रणव मुखर्जी साहब को अभी कागज पढ़ने है। कागज तो साफ है मुख्यमंत्री के तीन -चार रिश्तेदारों के नाम फ्लैट है। इसके अलावा जांच के लिये पार्टी को कुछ करना नहीं है। क्योंकि वो तो जांच एजेंसियों का काम है। कांग्रेस पार्टी ये साबित करने में लगी रहती है कि उनके प्रधानमंत्री खड़ाऊं प्रधानमंत्री नहीं है और राज-काज के फैसले खुद लेते है। लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष ने इस मामले में देश के प्रधानमंत्री के देश में वापस लौटने का इंतजार भी नहीं किया। बेबस से ईमानदार प्रधानमंत्री को इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी। यदि अखबारों में छपी खबरों पर यकीन किया जाएं तो प्रधानमंत्री ने एक सवाल के जवाब में ऐसा जवाब उन्होंने एक पत्रकार को जवाब दिया था। खैर प्रधानमंत्री की असली राजनीतिक ताकत की हकीकत राजनेता भी जानते है और आम जनता भी। लेकिन सवाल फिर घूम-फिर कर वही आ रहा है कि सरकार ने कॉमनवेल्थ की जांच के लिये भी एक कमेटी बना दी शुंगलू साहब की अध्यक्षता में। सीबीआई पर कुछ समय से ये आरोप ज्यादा चस्पा हो रहा है कि वो सत्ता में बैठे लोगों की धुन पर नाचती रहती है। इसके बावजूद सीधे सीबीआई को क्लियर कट जांच क्यों नहीं दी गई। ये सवाल सीधे जेहन में नहीं उतर रहा है। लेकिन लोग जो जांच पर भरोसा करते है वो इस ख्याल में खो सकते है कि इसका कोई मतलब है। चारा घोटाला, ताज कॉरी़डोर, गोमतीनगर विपुल खंड प्लॉट स्कैम, मधु कोड़ा की अकल्पनीय लूट, चौटाला का टीचर भर्ती घोटाला, या फिर ऐसी एक लंबी लाईन है जिसका कोई अंत नहीं है। आप की संसद और विधानसभा आजतक एक भी ऐसा कानून नहीं बना पाय़ी कि ऐसे मुख्यमंत्रियों को फौरन दंड मिल सके। इनके लिये कानून के एक होने की बात की जाती है। लेकिन क्या आप ऐसी छूट की उम्मीद किसी जेंबकतरें या फिर रहजन के लिये कर सकते है। नहीं जेबकतरों को पब्लिक सड़कों पर पीट-पीट कर मार देती है।
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