Monday, March 15, 2010

डर आत्मा से खुरचता ही नहीं :

अलार्म रोज बजता है,
चौंक कर आंखें खुलती है,
पसीने से भींगें जिस्म के साथ मैं सबसे पहले टटोलता हूं
जल को
हाथ जब तक उसको छूता है
तब तक आंखें भी देख लेती है उसको मुस्कुराकट के साथ सोए हुये
कई बार मिल जाती है बीबी भी बगल में लेटी हुयी
और कई बार खाली दिखता है उसका बिस्तर
चीखता हूं
.... रश्मि
हाथ में चाकू लिये
या फिर आटे से सने हुए हाथों में
तेजी घुसती है बेडरूम में
और पूछती है
क्या हुआ
कुछ नहीं
,
तुम ठीक हो ना
चप्पलें पैरों में डालता हुआ
संयत होने की कोशिश करता हूं
रात बीत गयी
डर
है कि खत्म नहीं होता।
कुछ न कुछ हो जायेगा
रात भर सड़कों पर घूमते रहे है लुटेरे
पुलिस वालों की जीप में बैठकर
....
मेरा घर बच गया है
आज रात

1 comment:

Udan Tashtari said...

वाह!! रक्षक के भेष में भक्षक ....