Monday, March 15, 2010

डर आत्मा से खुरचता ही नहीं :

अलार्म रोज बजता है,
चौंक कर आंखें खुलती है,
पसीने से भींगें जिस्म के साथ मैं सबसे पहले टटोलता हूं
जल को
हाथ जब तक उसको छूता है
तब तक आंखें भी देख लेती है उसको मुस्कुराकट के साथ सोए हुये
कई बार मिल जाती है बीबी भी बगल में लेटी हुयी
और कई बार खाली दिखता है उसका बिस्तर
चीखता हूं
.... रश्मि
हाथ में चाकू लिये
या फिर आटे से सने हुए हाथों में
तेजी घुसती है बेडरूम में
और पूछती है
क्या हुआ
कुछ नहीं
,
तुम ठीक हो ना
चप्पलें पैरों में डालता हुआ
संयत होने की कोशिश करता हूं
रात बीत गयी
डर
है कि खत्म नहीं होता।
कुछ न कुछ हो जायेगा
रात भर सड़कों पर घूमते रहे है लुटेरे
पुलिस वालों की जीप में बैठकर
....
मेरा घर बच गया है
आज रात

कतर को मकबूल, हुसैन फिदा कतर पर

मकबूल फिदा हुसैन अब हिंदुस्तानी नहीं रहे। देश के कला जगत से लेकर मीडिया से जुडे हुये हर आदमी को ये खबर एक बड़े सदमें से कम नहीं लगी। और उससे भी बड़ा सदमा तब लगा कि हुसैन ने ये फैसला अपने खिलाफ देश भर में दायर मुकदमों के चलते लिया है। आखिर हिंदुस्तानी नहीं रहे हुसैन। अपने ब्रश के दम पर दुनिया को जीतने का दमखम रखने वाले हुसैन पर फिदा होकर देश ने उन्हें सबसे बड़े कलाकार का सम्मान नवाजा। मकबूल ने कई कलाकारियां की। पेंट और ब्रश से दुनिया के कुछ खूबसूरत चित्र बनाये तो मीडिया और इंटेलीजेंसिया के साथ मिलकर एक खूबसूरत सा कैनवास बनाया और उस पर उकेरे विवादों के रंग। उन्होंने सैकड़ों या हजारों की तादाद में पैंटिग्स बनायी। लेकिन कला दीर्घाओँ से दूर आम आदमी ने पहचाना उन्हें माधुरी दीक्षित पर की गयी उनकी कलाकारी से। मकबूल को मालूम था कि उनकी तमाम कला उनको आम आदमी में मकबूल नहीं करा पा रही है तो उसके लिये जरूरी है तड़क-झाम की। और उन्होंने शुरू कर दिया अपने नाच के जरिये देश फिल्म प्रेमियों के दिलों की धड़कन और सिल्वर स्क्रीन की महारानी बन चुकी माधुरी दीक्षित का का दीवाना बनना। एक और काम था जिस पर मकबूल बहुत फिदा थे वो था हिंदु देवी-देवताओँ पर पेटिंग्स बनाना। और अपने इस काम में इतने मशगूल हुये कि वो ये भी भूल गये कि करोड़ों लोगों के दम पर सेक्यूलर रहे इस देश में एक मर्यादा है। कि मां को नंगा नहीं दिखाया जाता। एक उम्र के बाद बच्चा भी मां के सामने नंगा नहीं जाता और मां भी उसको दूध पिलाने वाले स्तन नहीं दिखाती। लेकिन मकबूल को मालूम था, कि ये धर्म हल्ला नहीं करता। ये हमला नहीं करता। ये धर्म अपनी दुनिया में मस्त रहते हुये दूसरों को उनकी दुनिया में जिंदा रहने देता है। लेकिन इस धर्म में शिवसेना, और भी जाने कितनी सेनाओं के तौर पर ऐसे लोग मौजूद है जो फिदा का काम आसान कर सकते थे। और उन्होंने ऐसा ही किया। चंद लोगों ने जाकर उसकी कुछ पेंटिग्स को आग लगा दी या पोस्टर सड़क पर जला दिये। बस मकबूल को कला प्रेमियों और बुद्धिवादियों ने कबूल कर लिया। किसी ने सवाल नहीं किया कि इन सेनाओं से पहले भी हिंदु लोग जिंदा थे और अपने ढंग से बदलाव को मानते और जीते चले आ रहे थे जिसे हम लोग कायरता कहे दब्बूपन कहे जा जो भी। इसका बहाना मिला हुसैन को और वो विदेशी गैलिरियों का चहेता हो गया। बेचारा एक ऐसा कलाकार जिसकी कला के प्रति दीवानगी के चलते देशवासी उसकी इज्जत कर रहे थे। ऐसा मकबूल हुआ कि हर फाईव स्टार में दिखने वाला मकबूल नंगे पैर चल कर भी नोटों के ढेर लगाने में जुटा रहा और उसके समर्थक देश को गाली देते रहे कि नाशुक्रा देश हुसैन को परेशान कर रहा है।
हिंदुस्तानी अदालतों के तरीकों पर आप सवाल खड़ा करे तो करे लेकिन उसकी मंशा पर किसी ने शक नहीं किया। और इन्हीं अदालतों ने मकबूल के खिलाफ दायर सभी मुकदमों से उन्हें बरी कर दिया। लेकिन बेचारा मकबूल चाहता था कि तिरंगा उसके कदमों में नाक रगड़ कर कसम खाये कि उससे गलती हुयी और कितनी भी नंगी तस्वीरे बनाये किसी को कोई दर्द नहीं होगा।
एक बात और कि मकबूल को जगह मिली मिडिल ईस्ट के इस्लामी राज्य में किसी ऐसे देश में नहीं जिसका कला की स्वतंत्रता से कोई नाता हो। बल्कि ऐसे इलाके में जहां इस्लाम के नाम पर दुनिया भर में जेहाद छेड़ने वालों को पैसा मुहैया कराने वाले लोगों की जमात हो।