Thursday, February 19, 2009

दीवार पर दुनिया

मैं घर का दरवाजा खोलता हूं,
सबसे पहले देखता हूं दीवार,
कई रंगों की आड़ी-तिरछी लाईनों से भरी,
मेरे घर की दीवार।
नयी लाईन को तलाशता हूं,
और फिर उसमें खोजता हूं, डायनासोर, ट्रैन, मेट्रो या फिर प्लेन।
इतने में जल चिल्लाता है, पापा मैंने आज क्या बनाया है।
और उस उलझी हुयी दुनिया से फिर नयी लाइन उभरने लगती है.
नयी तस्वीरें, उतनी ही खूबसूरत जितनी तीन साल की दुनिया की आंखों को लगती है।
शुक्रिया जल,
तुमने ला दिया मेरे घर की दीवारों को मेरे इतना करीब
जब मैं चाहूं छू सकता हूं, देख सकता हूं, उभरती लाईनें, तु्म्हारी विस्तार लेती दुनिया,
और मुझसे सांसे लेते हुये एक बाप को.
शुक्रिया जल ।

3 comments:

vineeta said...

dil ko choo leene vali abhivyakti.
thanks

अनिल कान्त said...

बहुत ही प्यारा लिखा है आपने ...

मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

Unknown said...

आह....बहुत बढ़िया....बस यू ही लिखते रहिएं..