आजादी की जंग इतनी आसान नहीं थी जितनी वो फेस बुक पर दिखाई देती है। तिंरगा लगाने या फिर एक नारा दे देने से हासिल नहीं हुई है आजादी। ये सदियों का सफर था जिसको तय करने के दर्म्यां हजारों लाखों लाल फांसी के फंदे पर झूले या फिर सीने में गोलियां खाईं या फिर बर्छे, भाले से बिंध गए जिस्मों की अनगिनत कहानियां है। काफी कुछ लिखा गया काफी कुछ पढ़ा गया। मुझे अच्छा लगता है जब फेस बुक टि्व्टर एकाउंट पर कोई भी ऐसे वीरो की कहानी शेयर करता है जिनके खून से इस देश की जमींन को सींचा गया है। ऐसे वक्त में मैं अपनी ओर से कुछ ऐसे लोकगीत शेयर करना चाहता हूं जो उस दौरान देश के अलग-अलग हिस्सों में गाए जाते थे और आज भुला दिए गए। इतिहास से दुश्मनी जाने क्यों हमारे समुदायों की एक नैसर्गिक आदत बन चुकी है। खैर इस पर बात कभी अभी आप अगर पढना चाहे तो पढ़ सकते है।
बंगाली लोकगीत---ये खुदीराम बोस की फांसी के बाद बंगाल की आवाज बन गया था। कहते है कि खुदीराम ने इसको गाया फांसी के वक्त।( ये लोकमान्यता है)
एक बार विदाई दे मां घूरे आसि।
हांसि-हांसि पड़बो फांसी।
मां गो देखबे भारतबासी।।
ओ मां कलेर बोमा तैयारी करे,
दांड़िये छिलाम लाइऩेर धारे,
मां गो , बड़ो लाट के मारते गिए
मारलाय भारतवासी।
शनिवार बेला दु रो ते ,
लेक धरेना हाई कोर्टे ते,
ओ मां, आमिरामेर द्वीप चालान मां।
खदीरामेर फांसी,
दस मास दस दिन परे।
तोर खदीराम आसबे फिरे।
चीनते जदि ना पारिस मां,
देखबी गलाय फांसी।।
( मां,विदा दो, हंस-हंसकर फांसी चढ़ूंगा। मां, भारतवासी देखेंगे। ओ मां, बम बनाकर खड़ा था। मां, बड़े लाट को मारने की कोशिश में। भारतवासी को मार डाला। शनिवार को दोपहर दो बजे हाईकोर्ट में इतनी भीड़ थी कि तिल धरने को जगह न थी। ओ मां, अभिराम को अंडमान द्वीप की सजा दी जाएगी और खुदीराम को फांसी। दस महीने दस दिन बाद तेरा खुदीराम फिर आएगा। यदि उस पहचान न पाओ तो -देखना, गले में फांसी का निशान होगा)
उड़िया --
छुअंना छुअंना बिदेशी बसन
भाई मुंडा नाहिं सेहि पापकु
अमृत हांजिरे बिष मिशा नाहिं
दुध पिआ नाहिं नाम सापकु।
देशरे आसिछि नब जागरण
आउ हाटानाहिं देश पछकु
स्वाधीनता बट पल्लबि उठिछि
बंधु,ङाण नाहिं तेहि गछकु।
आपणा भाइंकि भगारी करि तु
केमें पोष नाहिं दूर ठकंकु
जाति महासभा छाति रक्त पिई
आजि काट नाहिं निज बेककु।
(भाईयो, आप विदेशी वस्त्र मत छुएँ। आप पाप न करें। अमृत के कलश में विष न मिलाएं। हमारे देश में नव-जागरण हो रहा है । आप देश को पीछे न धकेलें। स्वतंत्रता रूपी वृक्ष पर कुल्हाडी न चलाए। आपने भाई को दुश्मन बनाकर समुद्र पार से आए अंग्रेजों की मदद न करें। अपनी जाति महासभा के ह्दय का रक्त पीकर अपनी गर्दन न काटें।
पंजाबी -
बारीं बरसीं खट्टण गिया सी खट्ट के लियांदी माया,
बारे जाइये भगतसिंह दे, जिन संबली च बंब चलाया।
(प्रियतम तुम बारह वर्ष से धन कमाने गए थे और धन कमाकर लाए हो। लेकिन हम तो भगतसिंह पर न्यौछावर हैं, जिन्होने एसेंबली भवन में बम चलाकर मुक्ति संघर्ष के क्रांतिकारी जयघोष इंकलाब जिंदाबाद की गर्जना की।
होर ना कोई जम्मिआ
जिहड़ी रात भगतसिंह जम्मिआ
हो न कोई जम्मिआ
( और कोई पैदा नहीं हुआ, जिस रात भगतसिंह पैदा हुए उस रात कोई और पैदा नहीं हुआ)
तेरा राज ना फरंगिया रहिणा
भगतसिंह कोह सुटि्टया।
वन्न देणीआंदेशदीआं लींहा
लहू शहीदां दे।
(फिंरगी तेरा राज नहीं रहेगा। भगतसिंह ने कह दिया है, अब तो हम देश की लीकें शहीदों के खून से भर देंगे)
गुजराती--
तारे क्यारे ठैठ दुला दिलनां शोणित पार्या
पुत्र विजोगी माताओनां नयन झरण ठलवायां
झंडा अजर अमर रे जो
वध वध आकाशे जाजे
तारे मस्तक नव मंड़ई गरूड़ तणी मगरूरी,
तारे भाल नची आलेख्यां समशिर अंजर छूरी
झंडा दीन कबूतर शे,
लेरे तुज रेंटीट रमतो।
( हे राष्ट्र के ध्वज तुम्हारा वंदन है। हे राष्ट्रध्वज तुम्हारे कारण देश के प्राणों से भी ज्यादा प्यारे सैनिकों ने अपने प्राणोंं की आहुति दी है। कितनी माताओं के पुत्र शहीद हुए हैं। इसीलिए हे राष्ट्रध्वज तुम अजर,अमर रहना। तुम शांति का संदेश देते हो, पर तुम्हे प्राप्त करने के लिए देश के सैनिक मौत के मुंह में धकेले जाते हैं। अनेक माताओं की गोद सूनी हो जाती है औकितनी ही बहनों के वीर भाई शहीद हो जाते है। देश के सभी लोग तुम्हें नमन करते है। क्योंकि ये सब जानते है कि इस ध्वज को पाने के लिए पता नहीं किती आहुति दी गई हैं।
तमिल---
कोलै यरपे. कोलै यरपे.
नोडिक्कुल, भगत सिंह उभिर
तुडिक्कवे तूक्किलिट्ट - कौले यरपे.
इर्विनुम पार्लिमेंटुम इऊ
कालाकि नट्टु
एडुत्तदु चट्टमेनरू इणैं-
वैत्तु आणियिट्टु
दुर्वित पंचमेन रूभ् भारतत्तै
तोंग विट्टु
तूभवरितिंयर् उयिर पोकच्
चेय् तिट्ट कोलै यरपो......
( अरे फांसी के खंभे, निठुर हत्यारे खंभे। पल भर में हमारे भगतसिंह के अनमोल प्राण हर लिए तुमने। उस वीर बलिदानी को छटपटाते हुए हमेशा के लिए खामोश कर दिया तुमने, रे जालिम फांसी के फंदे। तुम्हारे अत्याचारों का सिलसिला। कब,कैसे खत्म होगा, बता। हमारे प्यारे भारत देश में, अकाल -दुर्भिक्ष को थोप दिया तमने, काले कानून, गोऱखधंधे सब. यहां चालू कर दिए तुमने, भोले-भाले भारतीयों के। प्राण हरने वाले क्रूर फांसी -खंभे, तुम्हे लानतहै .धिक्कार है तुम्हारे साहबों को)
अरिशि इरूक कुटु परूपिरू कुदु
अडुप्पुक किल्लादु शंगड़म।।
कात्तडिक्कुदु तूल पर क्कुदु।
कट विल्लाद शंगड़म।।
पेण्जादि वंदु मुन्ने किरान्न।
पुडोवै इल्लाद शंगड़म।
दाशन वंदु वाशलिल निर किरान।
काशु इल्लाद शंगड़म।।
(चावल है दाल है, चूल्हा नहीं है यह कठिनाई हैष हवा चल रही है, धूल उड़ रही है , किवाड नहीं है, यह कठिनाई है। स्त्री आकर सामने खड़ी है, साड़ी नहीं है ये कठिनाई है। भिखारी दरवाजे पर खड़ा है, अधेला नहीं है यह कठइनाई है। (ये गीत उस वक्त की गरीबी को लेकर गाया जाता था)
मलयालम--
हे इंगलीषुकारे, केरवृक्षम उयरमेरियताणु।
त्रड:लुटे पराधीनतयुम् उचरन्नताणु।
गांधिकु इतिल कयउनान कषियुम।
हे इंग्लषुकारे गन्धिक्कुइतु
क्षणतिल कयरूवान कषियुम।
(नारियल का वृक्ष ऊंचा है , ओ अंग्रेज। हमारी पराधीनता भी ऊंची है। गांधी इस पर चढ़ सकता है, ओ अंग्रेज। गांधी इस पर झटपट चढ़ सकता है।
राजस्थानी
तू हाल सभा में चाल म्हारा ढोला जी।
तू खाग्यो घर का माल म्हारा ढोला जी।।
कायर वर्षों तो स्यालू लो, थाकी पागां म्हाने दो।
लो हाथां में चुडडलो घाल म्हारा ढोला जी।।
तू हाल सभा में...
माथो बांदो राखड़ी, नाका पहरो नथड़ी।
नैणां में सुरमा सार, म्हारा ढोला जी।।
तू हाल सभा में..
हाथां में पैरां हथकड़ियां, पगा में पैरो बेडियां
दुश्मण ने दिखादां चाल, म्हारा ढोला जी
................
तू हाल सभा में...
आवे अन्यायी फटकारां, करा न वांकी बेगारां
चाहे म्हांकि करो हलाल, म्हारा ढोला जी।।
तू हाल सभा में...
तोप बंदूका म्हे झेलां, नीचों माथे नहीं मेलां।
लो बंदेमातरम ढास, म्हारा ढोला जी।।
तू हाल सभा में..
( मेरे प्रियतम, चल सभा में चल। तू मेरे घर का माल खा गया।कायर बनोगे तो साड़ी ओढ़ा दूंगी और अपनी पगड़ी मुझे दे देना। हाथों में चूड़ियां पहन लेना, सिर पर रखड़ी (बोर) और नाक में नथ पहन लेना। मेरे प्रीतम, आंखों में सूरना लगाना, हाथों में मेंहदी रचा लेना, पैरों में नेवरा (एक गहना) बजाते हुए तुम चलना, मेरे प्रियतम। तुम्हारा नाम नाथी हैऔर तुम्हारा ह्दय धड़कता है। तुम्हें मैं कोठे में छिपा दूंगी।... हाथों में हथकड़ियां पहन लेना, पांवों में बेडियां पहन दुश्मन को अपनी चाल दिखा दो। अत्याचारी को मुंहतोड़ उत्तर देना। उनकी बेगार न करें, चाहे मुझे हलाल कर दें। मैं तोप व बंदूकों की मार खा लूंगी, पर सिर नीचा नहीं करूंगी। बंदे मातरम की ढाल लेकर मेरे ढोला जी सभा में चलो)
सीस कटायो मान बंधायो
मुख पै उडै रे गुलाल
सीवर मे डेरा डाल्या
धड़ से करयो जवाब।
( आपने युद्ध भूमि में अपना सिर कटवा लिया। आपके मुंह पर यश का, कीर्ति का गुलाल उड़ रहा है। सिर काटने पर आने ध़ड़ से ही युद्ध किया।)
हरियाणा
लंदन तक छाप्पै छपग्ये राजा राव तुलाराम
रोट्टी सूदकै छावड़ी घीव कटोरा माहीं
( राव तुलाराम के वीरो ने अपने साहस का परचम फहराया और गोरो को छठी का दूध याद दिला दिया था)
सुणो फौज, अहीरवाल आज मेरे भाई।
माता जन्मे एक बार दुबारा नाहीं।
यो छत्री की नाक डरो रण माहि
तम सिंह की सांग्य बणाल्यो छाती ढाल। ह
हिया करल्यो बज्जर का देह करो दिवाल।
आज झगड़ा मंडग्या दी पै चौदा की साल
( अहीरवाल के वीर सैनि सुनो। माता वीर पुत्रों को एक बार ही जन्म देती है। तुम छाती निकाल कर सिंह की तरह बन जाओ। अपने ह्दय को वज्र व शरीर क ोमजबूत बना लो। आज संवत 2014 में अपने दीन ईमान यानि देश की स्वतंत्रता और धर्म की रक्षा के लिए युद्द हो रहा है)
कर देस की रकसा चाल, लाल मेरे सज धज के
सुन दसमन ने सीमा तेरी
चारां चरफ से घेरी
क्या इसका नहीं ख्याल, लाल मेरे सज धज के।
पर्वतीय क्षेत्र ( उत्तराखंड और हिमाचल )
कंपनी का भारत में देख अत्याचार
बारत का लोग उठा हैगे मारामार
(कंपनी का अत्याचार देखर भारत की जनता मार-काट (क्रांत्रि0 कर रही है।
बलि म्यारा गाड़ि दे, सुआ दो नाई बंदूक
सुआ मुरली समाव, म्यारा चांदी का सिंदूक
( यह समय मुरली की धुन में खोने का नहीं हैष मेरी मुरली को चांदी की संदूक में बंद करके मेरे हाथ में बंदूक दे दो)
बण गांधी सिपाई रहटा कातुला,
देश का लिजिया हम मरि मिटुला।
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मेरा मुल्कीया यारो जै गांधी की बोल
झन चूकिया मौका छ जुगति अमोल।
( हम गांधी के सिपाही बनकर रहट कातेंगे और अपने देश के लिए मर मिटेगे। यह अवसल हाथ से नहीं जाना चाहिए। इसीलिए गांधी जी की जय बोलो)
चला भुलों भर्ती है जौला,
जवाहिर दादा की पलटन मा।
भला-सुजला खद्दर पैरो,
और रंगीला जवाहिर कोट मा।
मर-मिटुला देश का बना,
घडर-छोडला दादा जवारी का साथ मा।
( चलो भूलौ ( छोटे भाईयों ) जवाहर दादा ( बडे भाई ) की फौज में भर्ती हो जाए। जवाहर की फौज की वर्दी खद्दर की है। उनके जवाहर कोट को पहनकर हम भी बन -ठनकर और सज-धजकर रहेंगे। भाईयो कितना अच्छा त्यौहार है देश पर मर मिटने का आओ हम भी दादा के साथ घर छोड़़कर देश पर मर मिटे)
आदिवासी लोक गीत मध्यप्रदेश
हम भारत के गोंड-बैगा, आजादी ख्यार।
अंग्रेजन ला मार भगाओ, भारत ले रे।
हम भैय्या छाती अड़ायो, हम तो खून बहाओ भारत ख्यार।
अंग्रेजन ला मार भगाओं, भारत ले रे।
हम भारत के भाई-बहने,मिलके करवो रक्षा,
अंग्रेजन को मार भगाओ, करवो अपना रक्षा, भैया भारत ख्यार।
अंग्रेजन ला मार भगाओ भारत ले रे।
हम भारत के गोंड-बैंगा, कर देवो जान निछावर,
भैया भारत ख्यार।
अंग्रेजन ला मार भगाओ, भारत ले रे।
(हम भारत के रहने वाले आदिवासी गोंड और बैंगा हैं। हममें भी स्वतंत्र रहने की लालसा है, इसीलिए हमें अपनी छाती पर चाहे गोलियां झेलनी पडे और खून बहाना पड़े लेकिन हम भारत की रक्षा करेंगे। हम सभी गोंड-बैगा भाईयों से अनुरोध करते है कि वे यह महसूस करे की देश पर प्राण न्यौछावर का अवसर आ गया है।)
भरत भैया अंग्रेज से करो रे लड़ाई
कुन धरे टंगिया, कुन धरे नलुआ, कुन धरे तील गुलेला।
मर्द तो धरे तोरे अंगिया रे टंगिया,
नारी धरेन तो फरसाष जंगल के रहने वाले बैगा रे भैया, वा धरे तीर गुलेला।
गोंड भैया धरे म भहे जेहर की गोलियां।
भाईयों अंग्रेंजो से लड़ाई करोय़ इस युद्ध में कौन टंगिया , बल्लम, तीर -गुलेल चलाएगा, हमे इसका निर्णय पहले ही कर लेना चाहिए। इस स्वतंत्रता संग्राम में पुरूष अपने कंधों पर टंगियां रखेंगे और महिलाएं हाथ में फरसा लेकर चलेंगी। पूर्णतं जंगल में रहने वाले बैगा भाई भी इस लड़ाई में तीर गुलेल चलाकर हमारा साथ देंगे। गोंड लोग अपनी बंदूंके चलाएंगे और उनमें जहर से भरी गोलियां रखेंगे।)
उत्तर भारत
अरे तेरी बहन भगत सिंह, रोवे नदी के तीर
बहन तेरी नदी डोलै, वीर अपने की लाश टटोलै
वीर मुख से ना बोलै, मैया का जाया मेरा वीर
तेरी बहन भगत सिंह, रौवे नदी के तीर
( ये भगत सिंह की फांसी के बाद गांव गांव में गीत गाते हुए जोगियों का लोकगीत है)
लबालब कटोरा भरा खून से, फिरंगी को मारा बड़ी धूम से।
लबालब कटोरे में हल्दी पड़ी, फिरंगी के लश्कर में भग्गी पड़ी।
रिसाले से बोले सुनो जनरैल, नए कारतूसो से मारा करो। वो गोरे फिरंगी जो थे उनके , सिपाहियों ने उनके लगाई थी लात।
2.
फिरंगी लुट गयो रे, हाथुस के बाजार में
गोरा लुच गये हाथुस के बाजार में
टोप लुट गयो, घोड़ा लुट गयो
तमंचा लुट गयो रे, जाकौ चलते बाजार में।
ये कथा अनंत है। देश के हर हिस्से में अंग्रेजों को मार भगाने की ललक उनके लोकगीतो में दिखती है। लोकाचार में दिखाई देती है। लेकिन जिन गीतो ने इस देश को आजादी दिलाई आज वो कही गुम हो गए। इतिहास की किताबों से भी गुम। क्योंकि इतिहास लिखने वाले जाने क्या इतिहास लिख रहे है जिसको पढ़ कर लोग आईपीएस आईएएस तो बन रहे है लेकिन हिंदुस्तानी नहीं। ..