एक हीरो की फीलिंग क्या होती है। मुझे
नहीं पता। लेकिन इस सवाल का जवाब अगर आज कोई देना चाहे तो वो केजरीवाल हो सकते है।
दिल्ली चुनाव की जमीन पर नये इरादों के हल की नोंक से जीत लिखने वाले केजरीवाल इस वक्त
नायक है। जनता उनके पीछे नारे लगा रही है।
गौर कीजिये मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते वक्त केजरीवाल के गीत से ज्यादा लुभावना था
रामलीला ग्राउंड की भीड़ सांस रोक कर शांत खड़े रहना। ये नायक का चरम था। हजारों की
भीड़ शांत खड़ी होकर एक प्रार्थना सुन रही थी लेकिन उसकी आंखों में नयी राजनीति का
सपना था। कुछ ही दिन में बदलाव आने लगा। बीस किलोलीटर पानी और चार सौ यूनिट्स तक बिजली
में छूट की घोषणा।कांग्रेस और बीजेपी के घाघ राजनेताओं की समझ में नहीं आ रहा है कि
ये कौन सी चाल है। दिल्ली के सीएम इन वेटिंग के बाद कही अब बीजेपी को पीएम इन वेटिंग
न मिल जाये इस के चलते बीजेपी के रणनीतिकारों के पसीने निकल रहे है। कई सारे सवाल जेहन
में है। कवरेज के दौरान कई बार आप पार्टी के नेताओं से सामना हुआ। कभी नहीं लगा कि
वो जनता की प्रयोगशाला के नये इंस्ट्रूमेंट है। लेकिन जनता ने प्रयोग किया। अप्रैल
2010 से शुरू हुआ ये प्रयोग दिसंबर 2013 में एक ठोस परिणाम लेकर सामने आया। सवाल जेहन
में जरूर उठते है कि ये सब कैसे संभव हो गया। किसी को उम्मीद नहीं थी कि विकास और धर्मनिरपेक्षता
के कोरस के बीच आम आदमी की भी कोई आवाज है। थके इंसान को मीठी लोरियों की तरह से लग
रही आप पार्टी के नेताओं के कई अटपटे बयान भी आये। नजरअंदाज कर दिये गये। “बीजेपी और कांग्रेस को राजनीति सिखाने या हूं ” फिर पांच-पांच
कमरों दो बड़े अपार्टमेंट रिहाईश के तौर पर लेने की बात सामने आई। लगभग चार दिन तक
ऑटों पर आने वाले आप पार्टियों के मंत्रियों का वीआईपी नंबर की इनोवा में बैठते वक्त
की दलील कि उन्होंने लाल बत्ती लेने से मना किया था न कि सरकारी कार। कोई ये बयान भी दे सकता है कि कांग्रेस के मंत्री
लेफ्ट वाले दरवाजे से कार में बैठते थे हम तो राईट में ड्राईवर साईड़ से अंदर घुसते
है। लेकिन पहली बार सत्ता में आई पार्टी को बदलाव के लिये वक्त देना चाहिये। उस पर
टिप्पणी लिखने से पहले महीनों तक उसकी कार्यपणाली को भी जरूर देखना चाहिये।केजरीवाल
साहब ने मीडिया में मचे हल्ले के बाद फिरोजशाह रोड़ के दो अपार्टमेंट लेने से इंकार
कर दिया। इस बात पर आप पार्टी के कार्यकर्ता उनका महिमामंडन कर सकते है। ट्व्टिर और
फेस बुक पर बाकायदा एक जंग छेड़ सकते है। लेकिन अगर एक आईआरएस अफसर ये जानता है कि
केजी बेसिन 6 में गैस को जानबूझ कर कम निकालने पर देश को कितना नुकसान हो सकता है तो
ये भी जानता होगा कि फिरोजशाह रोड़ पर पांच कमरों और 6500 स्केवयर फीट के एक फ्लैट
का महीना किराया कितना होता है। उसके लिये जनता की प्रतिक्रिया का इंतजार करने की आवश्यकता
नहीं है। केजरीवाल साहब ने शपथ ग्रहण में कई चीजों को साफ किया। लेकिन दो चीजों पर
हमें जरूर आश्चर्य हुआ ...एक तो वो सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ है, दूसरा देश की ब्यूरोक्रेसी
काफी ईमानदार है। अगर केजरीवाल साहब का चेहरा सामने न हो और ये दोनो लाईनें आप आंखें
बंद करके सुने तो देश के कई नेताओं के चेहरे आपके सामने आ सकते है। जनता का जादुई समर्थन उनको सांप्रदायिक ताकतों और अफसरशाही
की तारीफ करने के लिये नहीं मिला। उसके लिये उसके लिये मुलायम सिंह जैसे वंशवादी राजनीति
के शिखरपुरूष मौजूद है। इन मामलों पर उनकी पहले से पकड़ है लिहाजा आपकी जरूरत नहीं
है। दरअसल कुछ लोगों के लिये अरविंद
केजरीवाल का मुख्यमंत्री बनना एक सपने का सच हो जाना है। ये देश के भावुक
मध्यमवर्ग के सपने की कहानी है। जातियों और क्षेत्रवाद में लिपटी राजनीति में
बदलाव की संभावना में मीडिया और मोबाईल का रोल 2019 में दिख रहा था। लेकिन उसने
2013 में दिल्ली में ये चमत्कार हो गया। लेकिन
ये सिर्फ एक सपना था। इस बात को मानने के लिये कई बार महीने और कई बार साल भर का
इंतजार करना पड़ता है। हालांकि अरविंद की टीम में जितने कारीगर मौजूद है वो अपनी
कारीगरी से जल्दी ही इस सपने को तोड़ सकते है। दरअसल बाद की कहानी कुछ दिनों बाद
दूसरे लेख में लिखना चाहूंगा। ये लेख
अरविंद की शपथ के सात दिन बाद ही लिखना शुरू किया था लेकिन आखिरी लाईने लिखने में
तीन हफ्ते गुजर गये। और मुझे बस हैरानी है कि जिस तेजी से अरविंद के उत्थान को देखा
उतनी तेजी से उनके साथी पतन की गाथा लिखने में जुट गये।