महाराष्ट्र में गढ़ चिरौली में एक बारूदी सुरंग के विस्फोट से लगभग एक दर्जन जवान शहीद हो गये है। फिर से नक्सलियों का एक घातक हमला। मंगलवार को ये खबर दोपहर तक सब समाचार माध्यमों से संसद तक पहुंच चुकी होगी। देश की संसद। हर हाल में देश का प्रतिनिधित्व करने का दावा करने वाला सांसदों की संसद। क्लिप पर एक कहावत पढ़ देने का दुस्साहस करने पर दो दिन तक बहस होती रही संसद में। मुझे नहीं दिखा या मैने नहीं पढा अगले दिन के अखबार में कि किसी सांसद ने संसद में अपने उन बदनसीब जवानों की मौत पर एक मिनट का मौन रखना गवारा किया हो। क्या गजब की बात है कि जिन पिछड़ों दलितो अल्पसंख्यकों के नाम पर राजनीति करने वाले जातियों के ठेकेदार संसद में अपमान का मुद्दा उठा रहे है उन्हीं दलितों-पिछड़ों या गरीब सवर्ण परिवारों से ताल्लुक रखते होंगे मारे जाने वाले जवान। लेकिन सांसदों को लग रहा है कि पहले एक सांसद पर की गई एक मजाकिया टिप्पणी पर हिसाब साफ कर लिया जाएं। देश को दिखा जाएं कि मर्दाना ताकत किसकों कहते है। हमारी तरफ एक ऊंगली उठाआोंगे तो हम तुम्हारी भुजा ही काट लेंगे, हमारी निंदा करोंगे तो जबान पर ताले डाल देंगे।
अभी 76 शहीद जवानों के परिजनों के घरों के जख्म सूखे नहीं होंगे जिनकी शहादत अधिकारियों के गलत फैसलों के चलते हुई। जवानों को अपनी जान महज कुछ तुगलकी फरमान के चलते देने पड़ी थी।
बात तो लंबी हो सकती है। जिन नन्हें बच्चों को अपने पिता के चेहरों पर हंसी देखने की आदत पड़ गयी होगी वो उस पिता को मुखाग्नि दे चुके होंगे। लेकिन हमेशा की तरह से आपको किसी सांसद के रिश्तेदार का चेहरा इन शहीदों में नहीं मिलेगा। अर्से से देश के साथ अपना रिश्ता सिर्फ लूट का बना चुके नौकरशाहों पर भी नक्सलियों का सीधा कहर नही टूटता। इस पर आगे कितना लिखे लेकिन मायकोव्स्की की एक कविता आपको शायद ये बात साफ कर दे।..
रंगरेलियों से रंगरेलियों तक गुलछर्रे उड़ाते तुम,
एक गुसलखाने और गर्म आरामदेह पाखाने के मालिक,
तुम्हारी ये मजाल कि सेंट ज्यार्जी के तमगों के बाबत,
अपनी चापलूस मिचमिचाती आखों से अखबार में पढ़ों,
क्या तुम्हें है अहसास है कि ढेर तमाम छुटभैये ,
सोच रहे है, कैसे ठूंस कर भरा जा सकता है तुम्हारा पेट,
जबकि अभी-अभी ही शायद लेफ्टीनेंट पेत्रोव, बम से अपनी दोनों टांगे गवा चुका है,
फर्ज करो वह लाया जाय वध के लिए,
अचानक देखे, अपनी लहूलुहान हालत में तुम्हें,
तुम्हारे मुंह से अब भी सोड़ावाटर और वोदका
की लार टपक रही है गुनगुनाते हुए सेवरयानिन के गीत,
तुम जैसों के लिए अपनी जान हलाक करू
औरतों के गोश्त,दावतों और कारों के मरभूक्खों
बेहतर है मैं चला जाऊं मास्कों के शराबखानों में,