पॉर्लियामेंट में मंहगाई पर हाल ही में बहस हुई। एक ऐसी बहस हुई जिसके होने के लिए ये देश हजारों करोड़ रूपये खर्च करता है। बहस होनी थी तो हुई। इस बहस में निकला बस अंडा। हर बार यही निकलता है। विपक्षी पार्टी हाय-हाय चिल्लाती है और सत्तारूढ़ पार्टी आंकड़े गिनवाती है। भूख से मरते हुए लोगों को संसद से कोई वास्ता नहीं है और न ही संसद को उनसे। एक सालाना नाटक है। गंभीरता से खेला जाना चाहिए।
कोई झोल-झाल नहीं। संसद में डीपी यादव है। नहीं जानते अरे हत्याओं और लूट के दर्जनों लिखित और अलिखित मुकदमों का आरोपी। मधु कोड़ा है, कलमाड़ी है, ए राजा है-उनकी करीबी कनिमोझी है। प्रणव मुखर्जी है, जिसके पास आकंडें ही आंकडें है। ये सिर्फ बानगी है। नाटक की हर बार एक निर्धारित स्क्रिप्ट होती है। लेकिन ये अलिखित है और परंपराओं पर चलती है। नया डायलॉग आ जाता है कभी-कभी।
इस बार के नाटक का सबसे शानदार डायलॉग बोला है सलमान खुर्शीद साहब ने। सलमान खुर्शीद के इतिहास के बारे में आप जाने न जाने - लेकिन ताजा जानकारी ये है प्रधानमंत्री के अजीज है। सलमान साहब पर प्रधानमंत्री की नवाजिशों का दौर जारी है। कॉरपोरेट अफेयर्स से होते हुए अब कानून मंत्रालय संभाल रहे है। हर ऐसी कमेटी में शामिल है जिसमें प्रधानमंत्री की दूसरी आंख यानि कपिल सिब्बल साहब है। काश हमारे देश को आज भी ब्रिटेन से लार्ड जैसी उपाधि हासिल होती थी कपिल सिब्बल आज लार्ड कपिल सिब्बल के नाम से जाने जाते। खैर कपिल साहब इस बार गच्चा खा गये। डायलॉग सलमान खुर्शीद की जबान पर था।
संसद में मंहगाईँ की बहस के दौरान सरकार की लाचारी का बयान करते हुए सलमान साहब ने दीवार का मशहूर डायलॉग दोहराया। मेरे पास मां है। अब सरकार में और भी मंत्री है तो मां सिर्फ सलमान साहब के पास ही नहीं हो सकती है। लिहाजा सलमान साहब ने कहा कि हमारे पास यानि तमाम सरकार के पास मां है यानि अर्थशास्त्र के जानकार मनमोहन सिंह है। दुनिया में अगर कोई भी आदमी काम देखकर नौकरी देता तो मनमोहन सिंह को ऑफिस में भी नहीं आने देता कि अर्थशास्त्र का इतना ज्ञान और देश में भूख से तड़प रहे लोग बच्चे बेच रहे है आत्महत्या कर रहे है बाढ़ में डूब रहे है कर्ज में मर रहे है बीमार है औऱ ये साहब बता रहे है कि विकास हो रहा है।
बात मां की थी। दीवार फिल्म में माफिया डान अमिताभ को जवाब देते हुए ईमानदार पुलिस अफसर कहता है कि उसके पास और कुछ नहीं तो क्या मां तो है। लेकिन सलमान साहब की उच्च शिक्षित एड्वोकेटस है। अपने सहयोगी कपिल सिब्बल की तरह से प्रधानमंत्री की किचन कैबिनेट में शामिल है। ऐसे में हिंदी फिल्म के डायलॉग को उन्होंने ऐसे ही इस्तेमाल कर लिया कि इससे संसद में तालियां बजेगी। लेकिन उन्होंने फिल्म नहीं देखी है शायद फिल्म में उन दोनों का बाप नहीं होता है। अमिताभ को कई बार दुनिया चोर के बेटे के तौर पर जानती है। ऐसे में आपको ये परेशानी खड़ी हो सकती है कि पहले तो इन लोगों का बाप कौन है। ऐसे में सरकार के पास मां है तो शीलादीक्षित, विलासराव देशमुख, अशोक चव्हाण कौन है। बाप का इस्तेमाल क्यों नहीं किया। दरअसल सलमान साहब देख नहीं पाएं उन्होंने कैसी मां चुना है जो दूसकों के बच्चों को लूटकर लाने वाले अपने बच्चों को सजा देने की बजाय इनाम दे रही है। एक ऐसी मां है सलमान साहब के पास जो एक बड़ी हवेली की आया रखी गयी थी लेकिन ये आया हवेली को लूट-लूट कर खा रहे अपने बच्चों को देख कर उनके बचाव के रास्ते देखती रहती है। और जब भी कोई सवाल उठता है तो खड़ी हो जाती है अपनी ईमानदारी की कहानी लेकर।
दरअसल सलमान खुर्शीद ने एक अधूरा डायलॉग बोला है। उनके पास एक मां ही नहीं बल्कि एक मामा भी है। लोगों को लग सकता है कि मोटेंक सिंह अहलूवालिया की भूमिका को अगर सलमान खुर्शीद देश को बताना चाहे तो इससे बेहतर रिश्ता अब वो कुछ नहीं बता पाएंगे। मनमोहन सिंह और मोटेंक सिंह अहलूवालिया ये ही जोड़ी है जो पिछले सात सालों से इस देश में चल रहे हर अर्थशास्त्र के फैसले के पीछे है। जिस भी नीति की घोषणा होती है जिसमें रूपये-पैसे का मामला होता है उसमें मनमोहन सिंह और मोटेंक सिंह की समझ शामिल होती है ऐसा ये देश मानता है।
देश को इनकी अर्थशास्त्र की समझ का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। कोई ये कहने को तैयार नहीं कि जनाब पिछले दो दशक से ये गरीब देश आपकी तारीफ कर रहा है। अखबारों और टीवी चैनलों ने रोज टट्पूंजियें नेता से लेकर देश के शिरोमणि तक मनमोहन सिंह कि ईमानदारी की तारीफ करते है। उनके अर्थशास्त्रिय ज्ञान के बारे में कशीदें पढ़ते है। लेकिन इसी दौरान दो लाख से ज्यादा किसानों ने आत्महत्या कर ली। देश भर में भूखमरी और बीमारी ने कब्जा जमा लिया। गरीबी रेखा से नीचे लोगों का जीना दूभर हो गया। मंहगाईं ने आसमान तक पहुंचने की ठान ली। लेकिन इन जनाब को कुछ सिरा नहीं मिला। कोई अंधा आदमी भी समुद्र की आवाज सुनकर बता सकता है कि पानी की लहरें कितनी है लेकिन ये जनाब सिर्फ किताबों में पढ़ी और सुनी गई कहानियों की तरह से देश को देख रहे है। ये तो इनकी अर्थशास्त्र की समझ का मामला है।
रही बात ईमानदारी की। देश के साठ साल के इतिहास की सबसे भ्रष्ट्र सरकार का मुखिया है मनमोहन सिंह। ये रकम इतनी है कि आम तौर पर सड़क पर बिकने वाले कैलकुटर में तो समाएंगी भी नहीं। एक-एक घोटाला खरबों रूपये का। रकम का आंकड़ा दिमाग खराब कर देता है। दो लाख करोड़ एट्रिक्स-इसरो, पौने दो लाख करोड़ टेलीकॉम, सत्तर हजार करोड़ कॉमनवेल्थ घोटाला। नाक के नीचे और आंखों के सामने हुआ। हर घोटाले में पीएमओ की जानकारी भी सामने आ रही है। ये ईमानदारी का सबूत है। हर काम चल रहा है इन जनाब की जानकारी में और इनके जिस्म में कोई हरारत नहीं है।
सलमान साहब ने बात तो शायद सच कही है। कि प्रधानमंत्री के तौर पर इनकी पार्टी के पास एक मां है क्योंकि देश के ग्रामीण इलाकों में अक्सर बिगड़े बच्चों को देखकर बोला जाता है कि बचपन में इसको बाप की जूतियां नहीं पड़ी तभी इसको सही-गलत का पता नहीं है। ऐसे में हम जैसे तो सिर्फ ये ही कह सकते है कि काश इनका कोई बाप भी होता ........