कुछ तो होगा / कुछ तो होगा / अगर मैं बोलूँगा / न टूटे / तिलस्म सत्ता का / मेरे अदंर / एक कायर टूटेगा / टूट मेरे मन / अब अच्छी तरह से टूट / झूठ मूठ मत अब रूठ।...... रघुबीर सहाय। लिखने से जी चुराता रहा हूं। सोचता रहा कि एक ऐसे शहर में रोजगार की तलाश में आया हूं, जहां किसी को किसी से मतलब नहीं, किसी को किसी की दरकार नहीं। लेकिन रघुबीर सहाय जी के ये पंक्तियां पढ़ी तो लगा कि अपने लिये ही सही लेकिन लिखना जरूरी है।
Tuesday, September 25, 2007
स्टिंग्स की दुनिया
एक औरत को सरे-आम संगसार करने के लिये हजारों की भीड़ को उकसाने वाले शख्स की सजा क्या हो। अगर ये सवाल किसी भी आम आदमी से किया जाये तो उम्मीद हैं ज्यादातर की राय उसको कड़ी सजा देने के हक में होगी। लेकिन जब यही कारनामा करने वाला कोई एक शख्स नहीं चैनल में तब्दील हो जाता हैं तो कुछ लोग सोचने की मुद्रा में आ जाते हैं। और ये लोग और कोई नहीं ज्यादातर मीडिया से जुडे लोग हैं। और ये वो लोग हैं जो सार्वजनिक जीवन में रहने वाले किसी भी आदमी के जीवन में निजि कुछ भी नहीं मानते। उमा खुराना के स्टिंग्स को लेकर अब कितनी ही बाते आ चुकी हैं। और इस मामले को लेकर कई बाते साफ भी हो चुकी हैं। चैनल पर एक महीने का बैन भी लग चुका हैं और रिपोर्टर प्रकाश सिंह एक आरोपी के तौर अपने मामले की पैरवी कर रहा है। लेकिन यक्ष प्रश्न वही है कि स्टिंग्स को लेकर चैनलों का रवैया क्या हो। यूं तो चर्चा में रहे ज्यादातर स्टिंग्स चैनलों ने बाहर से लिये है। चाहे वो तहलका हो या फिर कोबरा पोस्ट फिर डिग। छोटे -छोटे प्रोडक्शन हाउस ने खुफिया कैमरों की मदद से किसी संवेदनशील सूचना को खबर में तब्दील कर दिया। लेकिन टीवी पर मिली इस लोकप्रियता ने कई ऐसे लोगों को भी इस पेशे की ओर आकर्षित कर दिया जिनकी अपनी विश्वनीयता संदिग्ध थी। लेकिन स्टिंग्स की आड़ में ये खेल चल चुका था। जिन्न बोतल से बाहर आ चुका था और वापस बोतल में जाने की कोई सूरत नजर नहीं आ रही थी। आम आदमी तो नहीं लेकिन बहुत पत्रकार इस बारे में जानकारी रखते और चर्चा करते थे कि छोटे-छोटे शहरों में स्टिंग्स के नाम पर कितने लोगों को ब्लैकमेल करने का खेल जोरो पर है। खबरों के बदलते दौर में एडीटर की भूमिका तो कभी की खत्म हो चुकी थी लिहाजा स्टिंग्स के नाम पर होने वाली धांधली की जांच कौन करे इस पर कभी सोचा भी नहीं गया। लेकिन उमा खुराना मामले के सामने आने के बाद से ही इस बारे में लोगों की जैसे आंखे खुल गयी। और सबने स्टिंग्स को कोसना शुरू कर दिया। लेकिन इस बारे में कोई विचार करने को तैयार नहीं हुआ कि हथियार हत्यारों के हाथ में कैसे चला गया। बात इस बात पर हो रही हैं कि हथियार की ईजाद किसने की।
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