Saturday, May 16, 2015

हाईकोर्ट का दिल भी भर आया उसी दिन सुन ली माई लॉर्ड ने। खान की जेल जाने के बाद ऐंकरों की आंखों में रोना आ गया और दिल टूट गए। और बचाव पक्ष के वकील ब्लड मनी देकर मामला रफा-दफा करना चाहते है।

जयप्रकाश चौकसे इतने दुखी थे कि उनसे बोला नहीं जा रहा था, बता रहे थे कि सलमान खान की मां को सबसे बड़ा आघात लगा है। लेडी अर्णव इतनी भावविह्वल हो रही थी कि लग रहा था कि भावभीनी श्रंद्धाजलि दे रही हो। ये कहने को आज की मीडिया की एक विडो हो सकती है लेकिन औसतर सबका तबसरा ये ही थी। बेचारे को सजा हो गई। लोगो को बेहद दुख हुआ। धीमें-धीमें , धीरे-धीरे बुनी गई एक स्वप्निल नायक की छवि काम न आई। एंटी हीरो की एक ऐसी छवि जिसका दीवाना हिंदुस्तानी युवा वर्ग है। भाई बड़ा गुस्सें वाला है( मतलब मैचो मैन है) भाई बड़ा दिलवाला है ( किसी को कुछ भी देता है) भाई बड़ा घरेलू है( हिंदुस्तानी किताबी छवि) भाई चुपचाप दान करता है( दानवीर की ऐसी छवि इस हाथ दे तो उस हाथ को पता न चले--आईडियल दानी) ऐसी कई छवियों के साथ सलमान खान को कल से मीडिया नवाज रहा था। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं था जिस पर कुछ बहस की जाती। मीडिया के सहारे, 70 एमएम के पर्दे से निकल लोगो के घरो, दिलो-दिमाग तक छा गए बॉलिवुड के एक ऐसे इंसान का मामला कोर्ट में था जिसने शराब के नशे में आदमी को आदमी नहीं कद्दू समझा। जैसे चाहा गाड़ी चढ़ा दी। मारे गए लोगो को लोग कोस रहे है। कई लोग उसको भाग्यशाली भी कह सकते है क्योंकि सलमान की लैंडक्रूजर से मरा है नहीं तो किसी दिन बूढ़ा होकर मरता। गजब का देश है। अभी टि्व्टिर पर मातमपुर्सी शुरू हो गई है। संजय दत्त के केस की तरह अगर सलमान खान किसी आम हिंदुस्तानी परिवार का बेटा होता तो आजतक किसी जेल की सलाखों में अपनी एड़ियां रगड़ रहा होता। एक नहीं कई मामले, बदतमीजी की पराकाष्ठा पर जीने वाले आदमी। एक दो नहीं दर्जनों उदाहरण मुंबई की सड़कों पर उसके दीवाने ही सुनाते मिल जाएगे। सवाल ये नहीं है कि सजा दी गई सवाल ये है कि 13 साल लग गए इस महान आत्मा को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाने के लिए। पीआईएल का सहारा लेना पड़ा। इस आदमी को सजा दिलाने के लिएे। देश में हजारों अंडरट्रायल जेलों में 10-10 साल तक एक अपील के लिए तरसते है लेकिन अदालतों के पास उनको सुनने का समय नहीं होता। लेकिन महान भारतीय बन चुके सलमान खान साहब को लेकर हाईकोर्ट एक दम दयालु हो गया। जमानत के लिए इंतजार करने लगा। खैर ये तो चलना ही था। तेरह साल तक अदालत की दहलीज पर अगर सलमान दहाड़ते रहे तो इसके पीछे उनका प्यारा होना नहीं बल्कि उनके पास चांदी का जूता होना है। और जूता भी इतना भारी कि ब्लैक बग का मामला, सहकर्मियों के साथ बदतमीजी, अवैध हथियार रखना, और फिर इस मामले में ड्राईवर भी पैदा कर दिया जो मौका ए वारदात पर था ही नहीं लेकिन सलमान साहब के लिए बलिदान देने के लिए तैयार हो गया।

माई-बाप ये तो इंसाफ न हुआः

कल मीडिया के धर्मगुरू रो रहे थे। सब चिल्ला रहे थे। दुख से सीना फटा जा रहा था। एक से एक उपमा, उपमान गढ़े जा रहे थे। खैर ज्यादातर ऐंकरों को जो भी दुख से बोलना था बोला गया। लेकिन दुख लंबा नहीं चल पाया। सलमान खान की पिक्चरो का इंतजार करती पीढ़ी के लोगो का दुख देखा नहीं गया माई लार्ड से। और दो दिन की अतंरिम जमानत दे दी। इस बात के लिए एक महान वकील हरीश साल्वे का नाम भी खबरों में था। साल्वे साहब का मुझे याद है एक खबर थी काठ का कानून। इलाहाबाद के जूनियर जज सुप्रीम कोर्ट के फैसलेे पर स्टे देखकर आरा मशीने चलवा रहे थे। इस खबर को देखने के बाद सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस आश्चर्य से भर गए और उस वक्त कोर्ट मित्र बनाए गए महान साल्वे साहब। वो केस कहां है उनको याद नहीं। सवाल है कौन पैसा देता इसके लिए। लिहाजा वो क्यों लड़ेगे। बात सलमान की हो रही है लेकिन वकीलो का रोल क्या इस पर भी चर्चा हो तो बेहतर है। अदालत में एक ड्राईवर पेश होता है जो मौका ए वारदात पर था ही नहीं लेकिन वकीलो ने काफी मेहनत की होगी उसको क्रॉस कोचनिंग की होगी अदालत में पेश होने से पहले क्या अब अदालत में उन सब लोगो के खिलाफ अदालत को गुमराह करने का केस चलेगा। नहीं साहब ये बातें तो मीडिया के आंसूओं में डूब जाएंगी। एक और सबसे बड़ी हैडलाईंस नवभारत टाईम्स ने दी जिसमें रिपोर्टर ने शेयर मार्किट 700 प्वाईँट गिरने का कारण सलमान खान भी है। रोते हुए ऐंकर, छाती पीटते हुए फैंस और आंसू बहाती हुई फिल्म इंडस्र्ट्री में सबसे हास्याप्रद इस रिपोर्टर की खबर थी। एक बदतमीज, आदतन ऑफेंडर, महिलाओं की बेईज्जती, जानवरों का शिकार (अवैध) के रने के लिए बदनाम साहब को कानून की कभी कभार पड़ने वाली लाठी पड़ी लेकिन दो घंटें बाद ही टूट गई। लिखने को रोने को बहुत सारी कहानियां लिखी जा सकती है। लेकिन अदालत की दहलीज पर कानून ने ही दम तोड़ दिया। कल लग रहा था लैंड क्रूजर से मरने वाला, उससे कुचलने वाले इस देश के गद्दार है। वो पाटिल नाम का पुलिसवाला जिस पर बयान बदलने के लिए कितने दबाव पड़े होगे। नौकरी गई, अस्पताल में लावारिस की तरह दम तोड़ा उसपर गद्दारी का आरोप लगा देंगे ये लोग और फैंस तो उसको जिंदा जलाने की सोचने लगते। इतना बड़ा अपराध और पुलिस की बात अक्सर बड़े लोगो के लिए अचानक सहद्य हो जाने वाली पुलिस ने कितने कट कट कर सबूत दिए होंगे उस पर लोअर कोर्ट ने न सोचा हो लेकिन हाईकोर्ट ने तो ख्याल रखा । सलमान के खिलाफ बोलने का हौंसला चांहिए। पता नहीं इस बात से उसके फैंस का कितना वास्ता होगा मालूम नहीं लेकिन मुझे याद है हरीश दुलानी वही शख्स जिसने ब्लैक बग शिकार मामले मेें पहचान की थी और बाद में सालों तक गायब हो गया कहां कोई नहीं जानता था। मुझे याद है सलमान साहब के मुस्कुराते हुए वकील हस्तीमल सारस्वत थे( शायद यही नाम है) जोधपुर में बड़ी हस्ती है। हा सालों बाद जब हरीश दुलानी आया तो वो पागल हो चुका है खैर जाने दीजिए बाद में बात करेंगे।
लेकिन आज सिर्फ राग दरबारी का गरीबों के लिए अदालत का क्या मतलब है ये लिख रहा हूं श्रीलाल शुक्ल साहब की किताब से साभार
-" यह मेरा विश्वास है कि हमारी अदालतों में ही पुनर्जन्म के सिद्धांत का आविष्कार हुआ होगा। ताकि वादी और प्रतिवादी इस अफसोस को ले कर न मरें कि उनका मुकदमा अधूरा ही पड़ा रहा। इस पूर्वजन्म के सिद्धांत के सहारे वे चैन से मर सकते हैं क्योंकि मुकदमे का फैसला इस जन्म में नहीं तो हुआ तो क्या हुआ? अभी अगला जनम तो पड़ा ही है। हा हा हा...
लंगड़- (दीन भाव से वैद्य जी से) जाता हूँ बापू। (जाता है)
रंगनाथ- (अपने से ) कुछ करना चाहिए.... (जोर से) यह सब गलत है। कुछ करना चाहिए।
सनीचर- क्या कर सकते हो रंगनाथ बाबू। कोई क्या कर सकता है? जिसके छिलता है, उसी के चुनमुनाता है। लोग अपना ही दुख-दर्द ढो लें, यही बहुत है। दूसरे का बोझा कौन उठा सकता है? अब तो वही है भैया कि तुम अपना दाद उधर से खुजलाओ, हम अपना इधर से खुजलायें।"
और अमीरो ताकतवर लोगो का राग दरबारी क्या होता है वो आपको दिखा दिया है हाईकोर्ट ने, दो घंटें में जमानत देकर । जय हो साहब की, माई-बाप आपने सब कुछ किया सलमान साहब के लिए बस इंसाफ नहीं किया।

अदालत के दरवाजे पर ही दम तोड़ दिया उम्मीद ने। सलमान खान नहीं चांदी का जूता जिंदाबाद---महामहिम किसने लिखी ये कानून की किताब-

सलमान खान को जमानत मिल गई। मिलनी ही चाहिए थी। आखिर एक ब्रांड जेल में कैसे रह सकता था। कई लोग बिके होंगे। मालूम नहीं। सबूत नहीं। जरूरत भी नहीं। क्योंकि सबूत वाहं है ही नहीं। वहां एक दयावान एंग्री यंग मैन रहता है। जिसके शानदार टायर के नीचे कुचलने वाले कीड़ों-मकोंडों के इंसाफ के लिए नहीं बनाई गई है ये ईमारतें। शानदार ब़ॉडी और देश का सबसे बड़ा सिनेमा का ब्रांड आखिर आंखों में आंसू ले आया और मीडिया के ऐंकरों के सीने चाक हो गए। आंखों से लहूं गिर गया। शब्दों की वर्णमाला खत्म कर दी विकिपीडिया से पढ़ कर अपने ऐंकर लिखने वाले प्रोड्यूसरों ने। आखिर खबर इस तरह होनी थी। मां सलमा बेचारी आघात में है। पिता ने क्या किया इस पर भी लंबा-चौंडा व्याखान हो गया। कई चैनलों पर रोते हुए पीडि़त परिवार लग रहा था बनावटी आंसू निकाल रहे है। इसीलिए सलमान के साथ कंधें से कंधा मिलाकर खड़े मीडिया में महारथी सवाल पूछने में लगे थे कि क्या होगा सलमान को सजा दिलाकर क्या इनके पिता वापस आ जाएंगे। बात एक दम दुरूस्त लग रही है। आखिर पैसे वाले आदमी को जेल के पीछे जाकर क्या करना चाहिए। वो बाहर ही अच्छा है। लेकिन कई बार सोचता हूं हो सकता है आपको ये देशद्रोह लगे लेकिन पूछा जा सकता है कि अगर दाऊद इब्राहिम मुंबई बम हादसे में मारे गए लोगों के परिजनों को पैसा दे तो क्या अदालतों के बाहर खड़े हुए लोग इसी तरह उसके समर्थन में नारे लगाएंगे। जरूर हो सकता है। काले कोट पर कुछ भी कहना आफत को न्यौता देना है। देश में अदालत क्या है। इस पर काफी कुछ कहना-सुनना आपको परेशानी में डाल सकता है। 2007-8 में एक वकील साहब ने माई-बाप लोगो को याद दिलाया था कि भाई ऐसे लोगो की तादाद काफी है जो लोअर कोर्ट से सजा पाएँ हुए है लेकिन उनकी अपील दस-दस सालों से पैंडिग है। कई सारे ऐसे केस है जिसमें आदमी जेल में है कोई धणी-धौरी नहीं है। और जेल के सींखचों के पीछे अपनी उम्र गुजार चुके है लेकिन उनकी अपील बेचारों की सुनवाई पर ही नहीं आई । कोई बात नहीं उनकी औकात इतनी नहीं है कि एक पेशी पर 25 लाख रूपए वाले न्याय के मित्रों को खड़े कर सके। दरअसल इनती बात के बावजूद भी अपना गुस्सा उन पर हो ही नहीं सकता आखिर बाबा तुलसीदास बहुत पहले गए कि समरथ को नहीं दोष गुसांई। लेकिन ये देश कितना मजबूर है लोग कानून की औकात कितनी मानते है और बड़े लोगो के कुत्तों को कितनी खुशी होती है दूध और रोटी की कल्पना भर करने से। वो लोग कौन है जिनके लिए सलमान खान के जेल जाना इंसाफ नहीं है। वो कौन लोग है जो उसकी जमानत मिलने के नाम पर यज्ञ करते है, जश्न मनाते है तालियां बजाते है। न्यूज रूम में तालियां बजातेे हुए लोगो का मैं भी साक्षी हूं। इन लोगों के लिए तिरंगे की हैसियत कितनी है। वी द पीपुल और विधि के समक्ष समानता के अधिकार का क्या मतलब है। क्या देश नाम की चीज पर इनका कोई विश्वास है। या फिर ये टीवी के फ्रैम में आने के लिए तरसती हुई फ्रस्ट्रैटेड लोगो की भीड़ है। इन सवालों के जवाब आसान नहीं है लेकिन एक बात तय है कि हत्यारों को भी यहां मसीहा कहने वाले लोगो की कमी नहीं है। और ये भीड़ वो भीड़ भी है जिसके लिए देश का मतलब सत्ता या ताकत या फिर पैसे वाले लोग है। ये भीड़ हजारों सालों से हमलावरों के फेंकें गए टुकड़ों पर जिंदा रहने वाली भीड है, ये वो भीड़ ही हो सकती है जो आज दिन के टुकड़ों के लिए आने वाली नस्लों की आगे पीढ़ियों को गुलाम बनवा देने मे नहीं चूकती। ये वो भीड़ है जो हड़्डी में खून के लालच में हडिड्यों से मसूड़ों को कुचलती हुई भीड़ है। सलमान खान की उस कंपनी को तारीफ मिलनी चाहिए जिसने सोते हुए लोगो को कुचलने वाले एक इंसान को देश में दानी महापुरूष में तब्दील कर दिया। बाकि रही बात उस मुंबईंया दुनिया की जिसकी नैतिकता और देश प्रेम या फिर बाकि कुछ भी अगर जानना है तो उस दुनिया को सिर्फ बोलते हुए सुन लीजिए उनकी औकात का पता चल जाएंगा रोटी के लिए हिंदी के मोहताज लोग हिंदी तो छोड़ों अपनी कोई भी मृातभाषा भी नहीं बोल पाते है और इस बारे में गोवा फिल्म फेस्टीवल के गोवा को चुनने पर वहां के गायक रेमो फर्नांडीज का एक आर्टिकल्स जरूर पढ़ना चाहिए और लेकिन एक भीड़ ऐसी भी जिसको इस जमानत से दुख पहुंचा है उनकी भी कोई निजि दुश्मनी नहीं है सलमान खान से लेकिन उनको लगता है कि देश का कानून (अगर कोई बचता है तो) चांदी के जूते खां खा कर रक्कासाओं की तरह ताकतवर लोगों की महफिल में नाच रहा है। फिर से मेरे पसंदीदा कवि श्रीकांत वर्मा की पंक्तियों का सहारा लेता हूं बात जिन से शुरू की थी उन पर खत्म करने के लिए।......
महामहिम!
चोर दरवाज़े से निकल चलिए !
बाहर
हत्यारे हैं !
बहुक़्म आप
खोल दिए मैनें
जेल के दरवाज़े,
तोड़ दिया था
करोड़ वर्षों का सन्नाटा
महामहिम !
डरिए ! निकल चलिए !
किसी की आँखों में
हया नहीं
ईश्वर का भय नहीं
कोई नहीं कहेगा
"धन्यवाद" !
सब के हाथों में
कानून की किताब है
हाथ हिला पूछते हैं,
किसने लिखी थी
यह कानून की किताब ?

ताक़तवर सलमान और देखो कहाँ छिपे हैं बेईमान

ज़मानत मिली और सलमान बाहर। सवाल पुलिस पर था कि ये अंदर गया ही कैसे। मैं अभी भी विश्वास से कहता हूँ कि कुछ ऐसे लूप होल ज़रूर होंगे जो पुलिस ने महान आदमी सलमान के लिये छोड़े होंगे। इसका आधार हैं अपने ही कांस्टिबल को ऐसी मौत देना। ये जानकारी अपने दोस्त मनीष की सोशल साईट से ली है।
बहुचर्चित ‘हिट एंड रन मामले’ में कोर्ट ने सलमान खान को दोषी करार दिया है। उन पर लगे सभी आरोप सही साबित हो गए हैं। इस मामले में कोर्ट ने उन्हें पांच साल की सजा सुनाई है। साथ ही उन पर 25 हजार रू. का जुर्माना भी लगाया गया है। ये केस तो सुर्खियों में है, लेकिन आज उनको जेल की दहलीज तक पहुँचाने वाला एक शख्श ऐसा है जो हम लोगों के बीच नहीं है। ……… वह शख्श थें "कॉन्सटेबल रवींद्र पाटिल"।
किसी को याद नहीं होगा कि रवींद्र पाटिल सलमान खान से जुड़े ‘हिट एंड रन’ मामले में एक प्रमुख गवाह था। यही वो शख्स था, जो इस केस के बारे में सब कुछ जानता था। इस केस के चश्मदीद गवाह रहे रवींद्र पाटिल आज इस दुनिया में नहीं है। वह ही शख्श था, जिसने पुलिस को सबसे पहले सूचित किया था और वही मुख्य गवाह होने के कारण उस पर स्टेटमेंट बदलने के लिए दवाब डाला गया, ताकि सलमान खान जेल जाने से बच सके। लेकिन उसने अपनी आखिरी सांस तक बयान नहीं बदला। वींद्र को बयान बदलने के लिए लालच और धमकी भी दी गई। यहां तक कि पुलिस ने उसके परिवार को काफी परेशान भी किया।
‘हिट एंड रन मामले’ में जुड़ने के बाद से ही रवींद्र कोर्ट-कचहरी तथा उस पर वकीलों के दबाव और अधिकारियों के भी उस पर दबाव के चलते परेशान हो गया था। वह कोर्ट में वकीलों के सवालों के सवाल जवाब तथा लगातार मिल रही धमकियों से चलते वह डिप्रेशन में चला गया, जिससे उसकी नौकरी पर भी प्रभाव पड़ा । कई बार डिप्रेशन के कारण नौकरी पर न पहुँच पाने के चलते सीनियर पुलिस अधिकारियों ने नौकरी से अनुपस्थित रहने का आरोप लगाकर रवींद्र को नौकरी से निकाल दिया था। नौकरी से निकाल देने के बाद भी पुलिस ने रवींद्र का पीछा नहीं छोड़ा था। इसलिए वह मुंबई से कहीं और चला गया था। परिवार के अनुसार वह अक्सर चोरी-छिपे अपनी पत्नी व परिवार से मिलने एक-दो दिन के लिए मुंबई आया करता था।
एक दो बार बीमारी के चलते पेशी के दौरान कोर्ट में अनुपस्थित रहने के आरोप में रवींद्र को जेल भेज दिया गया। जेल में भी उसे अन्य कैदियों से अलग रखा गया । एक बार उसे सीरियल किलर्स के साथ ही रखा गया। रवींद्र ने इसके लिए आवेदन भी किया था कि उसे सीरियल किलर के साथ न रखा जाए, लेकिन कोर्ट ने उसके इस आवेदन को रद्द कर दिया था।
इस केस में जेल से बाहर आने के बाद परिवार वालों ने उसे बयान बदलने के लिए काफी समझाया, क्योंकि पुलिस परिवार को परेशान कर रही थी। लेकिन इस रवींद्र ने उनकी बात नहीं मानी, और अपना बयान नहीं बदला।
रवींद्र की मौत 2007 में सेवरी म्युनिसिपल अस्पताल में हुई। उस दौरान वह नर्वस ब्रेक डाउन का शिकार हो गया था, तथा उसका जीवन भीख मांग कर चल रहा था। जब उसने अंतिम सांस ली, तब उसके पास परिवार का भी कोई व्यक्ति नहीं था।
आज हमारे देश की ये कड़वी सच्चाई है, कि जिस पुलिस "कॉन्सटेबल रवींद्र पाटिल" के बयान ने खुद को कानून से ऊपर समझने वाले को सजा दिलवाई, वह खुद वरिष्ठ अधिकारियों के शोषण, विभाग के द्वारा उसके उत्पीड़न, झूठे आरोप में बर्खास्तगी, जेल की सजा, बीमारी, भुखमरी और लावारिस मौत मर गया, लेकिन जिस व्यक्ति के खिलाफ वह अंत तक अपने बयान पर कायम रहा, उस व्यक्ति को सजा सुनाये जाने के तीनं घण्टे के अंदर जमानत मिल गयी, क्योंकि वो एक पैसेवाला था........ लेकिन कानून पर आस्था रखने वाले "कॉन्सटेबल रवींद्र पाटिल" का ये देश जरूर आभारी रहेगा, क्योंकि वो जीवन के अंत तक पैसे के दबाव में नहीं आया .............नमन

पुलिस का जाना पहचाना चेहरा यही है। लेकिन ये बर्खास्त नहीं होगा भले ही कह दे। 42 सेल्सटैक्सकर्मियों को इसी तरह बर्खास्त किया था सरकार ने और वो सब वापस आ गए। ...............

दिल्ली पुलिस के पत्थर मारते हुए ट्रैफिक सिपाही को देखकर बहुत से लोगो को आश्चर्य हो रहा है। टीवी चैनल्स ऐसे बिहैव कर रहे है कि जैसे ये अचानक हो गया। पत्थर मारते हुए देखना जरूर पहली बार होगा। लेकिन आदमियों को मारते हुए कितने वीडियो दिख जाते है। थाने के बाहर कितने लोग पिटते है। कितने लोग थप्पड़ खाते है दिखता नहीं। कितनी बार कॉमन आदमियों को सरे राह पीटती है पुलिस नहीं दिखता। अभी हाल ही में बाहरी दिल्ली के एक थाने में किस तरह से दो बहनो को जानवरों की तरह पीटा गया था वो आंखों से दूर हुआ तो दि्माग से भी निकल गया। ऐसे सैकड़ों उदाहरण भरे प़ड़े होंगे। लेकिन इस वीडियों के आने के बाद सब सुकरात बन रहे है। दिल्ली पुलिस ने ऐसे बर्खास्त कर दिया जैसे कि वो वापस नहीं आएगा। ये सरकारी मामला है। पुलिस अधिकारियों को क्या कुछ किया जा सकता है। क्या किसी अधिकारी की गलती निकल सकती है। क्योंकि आपको शायद याद नहींं होगा बहुत से लोगो को पता भी नहीं होगा कि सैकड़ों (जीं हां मैं सैकड़ों ही कह रहा हूं ) ट्रैफिक पुलिस वालों को पैसा लेते हुए शूट करने के बावजूद अभी तक कुछ नहीं हुआ। अगर इतनी तादाद में पुलिस वाले पैसा ले रहे थे तो अधिकारी क्या कर रहे थे। बातचीत मे किसी से पूछ लीजिए वो साफ कर देगा कि पैसा उपर तक जाता है। फिर ये ऊपर क्या है दोस्तो। जिसाक आदि और अंत नहीं दिखता है। सब कुछ आदमी के सामने है। दरअसल मैं आजतक भी ये समझ नहीं पाया कि पुलिस अधिकारियों का काम क्या है। कोई गलती होती है तो सिपाही, दरोगा या फिर एसएचओ संस्पैंड हो जाता है( सस्पैंशन कोई सजा नहीं है। बरी होने के साथ ही सारी तनख्वाह मिल जाती है) लेकिन कभी ये सवाल खड़ा नही होता कि भाई ऑफिसर्स का सस्पैंशन कभी होगा. वो किसा बात की तनख्वाह लेते है । कोई नहीं जानता। जानं भी नहीं सकता। मैं ऐसे सैकड़ों लोगो को जानताे हूं जो किसी अफसर से मिलने के बाद बाहर आकर कहते है बड़ा ही भला आदमी है। कितनी आसानी से कह दिया । मैं सिर्फ उनको देखता रहता हूं कि ये सिर्फ उससे मिल कर ही खुश है अगर लूट में हिस्सा और मिल जाएं तो सीधा उसे हरिश्चन्द्र के खानदान से साबित कर देंगे कोई ये नहीं देखता कि कितने आदमी अधिकारी तक पहुंच पाते है। कितने अधिकारी जांच करते है। कितने अधिकारी पब्लिक के आदमियों से मिलते है। एसी कमरों की ठंड़क से कितने घंटें दूर रहते है। एसी गाडियों के बिना कितने मीटर चलते है। कैसे फोन इस्तेमाल करते है। बच्चें कौन से स्कूल में पढ़ते है, बच्चें कौन सी गाड़ी इस्तेेमाल करते है। ये ही देख लो भाई बाकि संपत्ति तो तुम क्या देखोंगे। ये तो आंख से दिख जाता है बुिना किसी बुद्दि का इस्तेमाल किए हुए। दरअसल किसी भी समस्या की जड़ मे जाकर ही उसका हल हो सकता है। पुलिस व्यवस्था की इस अव्यवस्था की ज़ड़ में पुलिस अफसरशाही को बिना किसी जवाबदेही के मिली बेहिसाब ताकत है। लेकिन अफसोस आप उस का कुछ नहीं कर सकते है। और कोढ़ में खाज़ की बात ये है कि अफसर आसानी से पब्लिक के दिमाग में नेताओं के मत्थे सारा अपराध मढ़ देते है। ये कोई नहीं सोचता कि नेता कितने आदमियों की सिफारिश करता हूोगा। 100 मामलों में से 2 मामलों मे किसी ऐसे नेता की सिफारिश पहुंचती होंगी जो एसएचओ से ऊपर का मामला डील करता हो। खैर किसी के एक्सपीरियंस इससे बेहतर हो सकते है लेकिन मैंने 16 साल की रिपोर्टिंग में ऐसा ही देखा है। मैं इसमें फर्जी एनकाऊंटर के मामले पर चर्चा नहीं कर रहा हूं सिर्फ हत्या और हत्या है और वर्दी के दम पर हत्यारे मजे में समाज को नर्क में तब्दील करते हुए घूमते है।
फ्योदर त्यूत्चेव की कुछ पंक्तियां ---
तुम्हारी आँखों में कोई सम्वेदनाएँ नहीं
न सत्य तुम्हारी बातों में
न ही आत्मा तुम्हारे भीतर
मज़बूत हो जा, ओ हृदय, पूरी तरह
सृष्टि में कोई सृष्टा नहीं,
न ही प्रार्थनाओं में कोई अर्थवत्ता !

Thursday, May 7, 2015

केजरीवाल ने ईज्जत उतार दी आशुतोष जी की और अपनी रणीतिक समझ की(अगर बची हो तो)

केजरीवाल ने माफी मांग ली। टीवी चैनल्स वाले यही मांग रहे थे। खबर के तमाम क्रिएटिव एंगल खत्म हो चुके थे( जितना दिमाग से काम करता है उस हिसाब से दोहन हो चुका था) पेड़ को किसी ने गवाह बनाया किसी ने पेड के रोने की आवाज सुनी, किसी ने पेड़ का नंबर ही दिखा दिया। और दूसरी और गजेन्द्र के अंतिम संस्कार के मौके पर गए मीडिया के लोगो ने अपनी आवाज में रोने का इंपैेक्ट पैदा किया। कई बार ट्रैनिंग के बाद हासिल प्रतिभा का इस्तेमाल किया। गजेन्द्र के बच्चेें से ज्यादा रोने की असफल कोशिश की। कई बार नाराजगी हुई होगी शायद बिसलरी मिली या नहीं किसी अगली रिपोर्टिंग पर जब इस रिपोर्टिंग के एक्सपीरियंस शेयर करेंगे। लेकिन इस पूरी कवायद में अगर किसी आदमी की सबसे ज्यादा इज्जत उतर रही है तो वो है आशुतोष जी।( ये बात मेरे लिए काफी दुखद है क्योंकि अपने सीनियर को इस तरह देखना कोई नहीं चाहता) आशुतोष ने अपनी स्वामीभक्ति की हद तक जाकर एक मरे हुए इंसान की मजाक बनाते हुए इंसानियत को ही ताक पर रख दिया। इस बार उन्होंने केजरीवाल के लिए बयान जारी नहीं किया इस बार केजरीवा की आलोचना करने वालों पर भौंका। क्या राज्यसभा की सीट की तमन्ना आशुतोष जी आपको इंसानियत के एक तमगे से भी दूर कर देंगी। आपने अपने मन की आवाज पर राजनीति ज्वॉईन की ये अच्छा था। सामने आकर किया, सीना ठोंककर किया। अच्छा किया लेकिन उसके बाद आपने जिस तरह केजरीवाल की स्वामिभक्ति में अपने रिपोर्टिंग करियर के दौरान हासिल उपलब्धियों को मिटाना शुरू कर दिया। नमस्कार मैं आशुतोष बोल रहा हूं सुनने के लिए के लिए देश के लाखो लोग आपके बुलेटिन का इंतजार करते थे। लेकिन इस बात को आपने हद कर दी रिपोर्टर के तीखे सवाल के जवाब में जो आपने तंज कसा था वो तंज नहीं था बल्कि देश के करोडो किसानों के मुंह पर तमाचा थे। आपने कहा कि आगे कभी ऐसा होगा तो मुख्यमंत्री ..आगे ऐसा होगा या नहीं लेकिन आप जैसा आदमी कम से कम मीडिया को इस तरह का जवाब न दे। आपने माफी मांग ली लेकिन उस माफी पर आपके मुख्यमंत्री ने माफी मांग कर ये साबित कर दिया कि आपने उस पालतू की तरह व्यवहार किया जो मालिक को दिखाने के लिए मालिक के रिश्तेदारों पर पर भी भौंकने लगता है आपसे ज्यादा आपके मालिक को हमारी जरूरत है। जब तक आप मीडिया में थे आपकी जरूरत थी अब चमचे और भांड बहुत मिल जाएंगे केजरीवाल को लेकिन गाली देने के बाद भी मीडिया को तो बुलाना ही पड़ेगा।

अब करप्शन को ढाल दे रहे है मोदी जी। भ्रष्ट्राचारों के साथ खड़ी हो गई है ये सरकार।

भ्रष्ट्राचार के खिलाफ नए बिल में क्या बदलाव लाया गया है इस पर बहुुत सारे लोग बहुत सारी राय रख सकते है। भक्तगणों की नजर में देशद्रोही हो चुके लोग अब सवाल उठाने से बचने लगे क्योंकि किस तरह से वो कलपते है उससे बहुत से लोग डर जाते है। आप लोकायुक्त और लोकपाल से अनुमति लेकर अधिकारियों के खिलाफ जांच करेंगे। अधिकारी आजादी को नर्क में बदल चुके ये नौकरशाह किस तरह अपनी गोटी सैट करते है उसके हजारों उदाहरण है। मारूति का निजिकरण किया गया आपको याद होगा शर्मा और खट्टर साहब की बन गी।एक और अवस्थी साहब है हजारों करोड़ के एंपायर में है। केस ईडी में है आपकी औकात है तो पता कर ले। ऐसे बहुत से उादहरण है जिसमें नौकरशाहों ने कॉरपोरेट की दलाली की है। नौकरशाहों ने साऊथ ब्लॉक और नार्थ ब्लॉक में बैठ कर इस देश की गर्दन को कई बार कॉरपोरेट के जूतों में दबाया है। अब मोदी जी ने कहा है कि भूतपूर्व अधिकारियों और मुख्यमंत्री के खिलाफ केस चलाने के भी अनुमति चाहिए। ऐसा हौंसला बहुत कम राजनेताओं में होता है कि लूुटेरों को इतनी बड़ी छूट दे दे। हर बात के लिए पुरानी सरकार को कोसने वाले इन कलपनाशियों ने अब तक 2 जी के या कोल घोटाले की रकम वापस हासिल करने का कोई केस नहीं किया गया है। डीएलएफ से भी चंदा हासिल कर लिया है भाई लोगो ने। ये वही डीएलएफ है जिसने दामाद जी के साथ मिलकर जनता को लूटा था । ये भाई लोगों का हिट डॉयलॉग था चुनाव के दौरान। मोदी ईमानदारी के मसीहा बन चुके है इसीलिए अधिकारियों को लूट की छूट दे रहे है। फरिश्ता की बीन बज रही और मैले कपड़े धोने के चल दिये की तर्ज पर लुटेरों को छूट दी जा रही है क्योंकि मोदी जिनके कंधों पर अंबानी का हाथ है जिस को छू देंगे वो ईमानदार हो जाएंगा और भक्तगण उसके पैरों को धो- धो कर पीने लगते है। लेकिन इस बार इस बिल का देश के लिए विरोध करो दोस्तों नहीं तो लूट का ऐसा तांडव होगा कि देश ही बाप बाप कर देगा। अब नाटक मंडली और नौटंकियों का दौर बंद कर मोदी जी को थोड़ा काम करना चाहिए।

अरूण जेटली मंत्री है या किसी नाटक मंडली के सदस्य।

आज राहुल गांधी पर बड़ा ही शानदार हमला बोला है अरूण जेटली साहब ने। आंधी में भी आम हासिल करने से महरूम रहे ( हार गए जब बीजेपी का कोई भी जीत गया) अरूण जेटली के जनाधार के बारे में खुद उनको भी नहीं पता होगा। लेकिन आज ऐसा हमला बोला की सर्वेंटीज के डॉन क्विटो को भी शर्म आ गई होगी। अरूण जेटली साहब ने फर्माया कि राहूल गांधी कहां गए थे उसका किसी को पता नहीं। ऐसे चल रही है सरकार। राहुल गांधी के साथ एसपीजीहोती है जनाब। एसपीजी राहुल की गुलाम नहीं बल्कि सरकार के लिए जवाबदेह होती है। कृप्या होम मिनिस्ट्री से तस्दीक कर लिये होते या फिर पासपोर्ट ऑफिस से या फिर वीजे की डिटेल्स से भी सरकार के पास सारा ब्यौरा होगा। उसको सार्वजनिक करो भाई। आपको फायदा होगा और हम लोगो को भी मजा लेने का मौका मिलेगा। अब कुछ संजयदृष्टि वाले लोग अपने ज्ञान चक्षु से ही बता पा रहे है कि राहुल गांधी नाम का पप्पू कहां छुट्टी गुजार रहा था।

मोदी के कामकाज पर अरूण शौरी और अचंभित पात्रा। काम कर लीजिए मोदी साहब



आवाज पहली बार घर के अंदर से आई है। बाहर से लग रहे आरोपो को भक्तगण काफी जोरो-शोरो से ठुकरा रहे थे। लेकिन अरूण शौरी के बारे में अभी काफी कम का मुंह खुला है। क्योंकि अरूण शौरी की पत्रकारिता से बीजेपी के 2 सीट से 88 सीट तक के अभियान को काफी मदद मिली थी। लेकिन उस पत्रकारिता पर कोई सवाल नहीं उठा सकता है वो एक बेदाग, बेधड़क और बा असर पत्रकारिता थी। पत्रकारिता का स्टॉरडम हासिल किया था अरूण शौरी साहब ने बिना किसी टीवी या विज्यूअल मीडिया के। अपने मंत्रालय में शौरी साहब ने एनडीए के कार्यकाल में ठीक-ठाक काम किया था और सेंटूर जैसे विवाद को छोड़ दे तो विवादों से दूर ही रहे। खैर बीजेपी के ऐसे वर्कर में तब्दील हो गए थे जो काफी मेहनत से अपनी छाप छोड़ता है। लेकिन वक्त बदल गया है। मोदी साहब के सत्तारोहण के साथ ही सत्ता के लिए तरस रहे मरभूक्खों को एक नया मसीहा मिल गया। आगरा के पार्क से लेकर वाराणसी की सड़कों तक वादों की मोबाईल वैन घूम रही थी। पूरे देश में शाहजादे, राजमाता और शाही दामाद के कारनामों से पब्लिक भी काफी रोष में थी। और साहब दिल्ली चले आएँ। साहब के साथ एक और साहब चले आए। दिल्ली से एक और साहब मिल गए। और फिर बन गई तिकड़ी। इतना ही कहा है अरूण शौरी ने। लगभग एक साल पूरा होने को आया। दुनिया के अलग-अलग देशों में समारोह होने है। चीन की दीवार से लेकर मिनिसोटा तक जश्न ही जश्न का माहौल है। लेकिन काला धन पर उन्होंने एसआईटी बना दी थी। पूरी दुनिया के बैंकों से काला धन खुद ही खींच कर देश में आने लगा है। भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के बाद किसानों के घर विकास पहुंच गया है। मोटरव्हीकल एक्ट में काफी बदलाव हो गया है और सड़कों पर मरने वाले लोग बच गए है। बिल्डरों के हाथ लुट रहे मजलूमों के घर जाकर बिल्डरों ने उनको चाबी सौंप दी है। और देश के लिए कैंसर बन चुके भ्रष्ट्राचार को खत्म करने के लिए जुटे हुए नौकरशाहों को मोदी साहब ने एक ऐसी सुरक्षा दीवार दे दी है कि उसके पीछे बिना डरे हुए आम आदमी के लिए फैसले ले रहे है। ऐसे में अचंभित पात्रा को बहुत अचंभा हुआ अरूण शौरी के बयान से। अरूण शौरी साहब ने गेट क्रैश कर भाजपा की सदस्यता ली थी ऐसा कहा अचंभित पात्रा ने। एक साल तक का समय लोकतंत्र में काफी समय होता है दोस्तों। कम से कम पूत के पांव पालने में देखने वाले देश में। गौरतलब ये है कि ये सारे बिल यूपीए के समय में बने थे। उनमें बदलाव करना था बेहतरी के लिए ये साहब उनको भी बदतर बना रहे है। इस 11 महीने के कार्यकाल में देश को क्या हासिल हुआ ये देखना बहुत जरूरी है। पार्टी के नेता और कार्यकर्ता हर गलती के लिए पिछली सरकार के साठ साल को जिम्मेदार मानने के लिए आपको मजबूर करने के लिए जूतिया सकते है। लेकिन इस दौरान देश को जूता चाट परंपरा के नए एडिटर्स और पत्रकारों की एक जमात मिल गई है। जनता की आवाज दबाने के लिए आपनी आवाज का वोल्यूम बढ़ा दो। हालत ये है कि ये डरे हुए लोग एक पप्पू के कुछ बोलने भर से आक्रांत होकर पहले पेज पर ही एडिटोरियल लिख कर जवाब देने में जुट जाते है। कोई सवाल न करे इसीलिए गरियाने लगते है। अरे भाई देश के प्रधानमंत्री है किसी पार्टी के नेता नहीं। हर सवाल का जवाब उनको देना है। हर गलती पर आलोचना सुननी है। ऐसा नहीं है कि हर आदमी जयगान करने में जुट जाएँ। अब बस मोदी साहब से एक ही दरख्वास्त है कि एक साल में सिर्फ जबान सुनी है वादों का अंजाम नहीं देखा है कृप्या कर कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक कुछ कर के दिखाईंये नहीं तो जनता भी आवाज उठाने से चुकेगीं नहीं। रही बात अचंभित पात्रा जैसे बरसातियों की तो उनको अरूण शौरी साहब की ओर से श्रीकांत वर्मा की एक कविता शायद कुछ कह दे।
राजनीतिज्ञों ने मुझे पूरी तरह भुला
दिया।
अच्छा ही हुआ।
मुझे भी उन्हें भुला देना चाहिये।
बहुत से मित्र हैं, जिन्होंने आँखे फेर
ली हैं,
कतराने लगे हैं
शायद वे सोचते हैं
अब मेरे पास बचा क्या है?
मैं उन्हें क्या दे सकता हूँ?
और यह सच है
मैं उन्हे कुछ नहीं दे सकता।
मगर कोई मुझसे
मेरा "स्वत्व" नहीं छीन सकता।
मेरी कलम नहीं छीन सकता
यह कलम
जिसे मैंने राजनीति के धूल- धक्कड़ के बीच भी
हिफाजत से रखा
हर हालत में लिखता रहा
पूछो तो इसी के सहारे
जीता रहा
यही मेरी बैसाखी थी
इसी ने मुझसे बार बार कहा,
"हारिये ना हिम्मत बिसारिये ना राम।"
हिम्मत तो मैं कई बार हारा
मगर राम को मैंने
कभी नहीं बिसारा।
यही मेरी कलम
जो इस तरह मेरी है कि किसी और की
नहीं हो सकती
मुझे भवसागर पार करवाएगी
वैतरणी जैसे भी
हो,
पार कर ही लूँगा।

मोदी जी हस्तिनापुर में है और हस्तिनापुर में सुनने का रिवाज नहीं।

"सशोधित रियल एस्टेट विधेयक के कई प्रावधान विल्डरों को रियायत देने वाले नजर आ रहे है. ऐसा बिलकुल नहीं होना चाहिए। इसलिए और भी नहीं , क्योंकि आम लोग बिल्डरों की मनमानी से पहले ही त्रस्त है, बिल्डर अपनी परियोजनाओ ं में देरी करने और शर्तों में फेरबदल करने के साथ -सात अन्य तरह की मनमानी करने के लिए कुख्यात हो चुके हैं उनहें रियायत देने की बजाय सख्ती करने की जरूरत है और यदि सरकार के किसी कदम से ऐसा नहीं होता है तो उसे आम आदमी की नाराजगी का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए। सरकार के पास अपने तर्क हो सकते है लेकि नुसे इस सवाल का जवाब देना चाहिए कि आखिर क्या कराण है कि एक के बाद एक विधेयक के मामलों मेंयही सामने आ रहा है कि आम जनता के हितों की अपेक्षित चिंता नहीं की जा रही है। रियल एस्टेट विधेयक में एक दर्जन से अधिक बदलवा कई सवाल खड़े कर रहे है। असबसे ज्यादा आपत्ति जुर्माने के प्रावधान को कथित तौर पर हल्का करने और नक्शे में फेरबदल की रियायत देने को लेकर है ।"
ये किसी सरकार विरोधी चश्मे को आंखों पर चढ़ाएँ हुए पत्रकार या फिर दूसरी पार्टी के नेता का बयान नहीं है बल्कि ये उस अखबार का एडिटोरियल का हिस्सा है जो भारतीय जनता पार्टी का मुखपत्र बन चुका है। जिसके पॉलिटिकल एडीटर पप्पू के एक बयान के बाद फ्रंट पेज पर सवाल दागते है या फिर सरकार के प्रवक्ता के तौर पर लिखते है। दरअसल ये सरकार तीन बड़े महान आदमियों को समर्पित है। एक है गड़करी साहब जिनके झूठ और सच में अंतर करना इतना मुश्किल है कि कब वो उद्योगपतियों के यॉट पर घूम आते है और उसे व्यक्तिगत बताने लगते है। कभी वो पूर्ति से अपना रिश्ता होने से इंकार कर देते है और फिर कुछ दिन बाद वो उसी पूर्ति को करोड़ों का लोन दिलाने के लिए गारंटी देते है व्यक्तिगत। कभी वो कहते है कि कांग्रेस के प्रोपेगंडा का जवाब देने के लिए मोदी जी ने उनको नियुक्त किया है मानो वो गोयबल्स के परिवार से हो। किसानो के हित रक्षक होने का दावा करने वाले व्यक्ति का किसानों के हक में कुछ भी नहीं सिर्फ जुबान के।
एक और मंत्री है नाम है अरूण जेटली साहब । कई सौ करोड़ के मालिक। और देश के गरीबों की कितनी चिंता करते है। इतनी कि काली कमाई को देश में वापस लाने के लिए लुटेरों को एक और छूट देने के लिए रात दिन बीमार हो जाते है। जाने क्या क्या सोचते है जनता के लिए लेकिन जनता उनको जबरदस्त तमाचा लगाती है अमृतसर के मैदान में। लेकिन वो देश का भाग्य तय कर रहे है।
एक और नाम है जिसको मैं अक्सर देखता हूं कि वो आए-बाएं साए बोलते रहते है। किसानों के लिए पप्पू की आवाज में उन्होंने बताया कि उसको गेंहू और जौं के बीच का अंतर मालूम नहीं। लेकिन इस महान मंत्री का मुंह कभी अरूण जेटली की तरफ नहीं घूमता है जो बेचारे गरीबों की चिंता कर रहे है क्या उन्हें मालूम है कि गरीबी क्या होती है। क्या उन्हें मालूम है दो हजार रूपए में बच्चा बेच कर अगले बच्चें के लिए कपड़ों का इंतजाम करना कैसा होता है। गड़करी से पूछना चाहिए कि विकास नाम का बच्चा कैसे आता है । किसानों को गन्ने के अलावा भी कुछ होता है ये उनसे भी पूछना चाहिए।
पूछने को तो बहुत सी बाते है। लेकिन एक साल पूरा हो रहा है और मोदी सरकार जो बिल लाई है या फिर अध्यादेश वो सब अमीरो और कॉरपोरेट को लूट की छूट दे रहे है। बाकि किसी को बोलने का हक नहीं। जुबानदराजी में इस सरकार और चाटुकारों का कोई तोड़ नहीं है। सालों से यूपीए सरकार में दूसरे दलालों की वजह से अपना इंतजार कर रहे दलाल खुल कर खेल रहे है। कोई ये पूछने को तैयार ही नहीं कि खेतों में नारे लगा रहे किसान तक मोदी जी पहुंचने की फुर्सत कब मिलेंगी। लग रहा है कि जैसे दमित इच्छाओं को पूरा करने के लिए किसी की परवाह नहीं है। यशोदाबेन आरटीआई लगाते हुए घूम रही है कि उसे किस हैसियत से सुरक्षा दी जा रही है किसी अधिकारी की हिम्मत नहीं हो रही है बता पाएं। देश का गृहमंत्री शर्मिंदा होता है कि प्रधानमंत्री को पहले सूचना दे रहा है गृहमंत्री के अंडर आने वाला डिपार्टमेंट। ऐसी सैकड़ों कहानियां हवा में गूंज रही है लेकिन सबसे बड़ी और दुखद बात है कि कश्मीर में अलगाववादियों को कुचलने की बात करने वाले और उस बल्लियों उछलने वाले भाजपाई दिखाई नहीं दे रहे है जब घाटी में खुलेआम धर्म के नाम पर पाकिस्तान में जाने के नारे लगाए जा रहे है, जब घाटी में पाकिस्तानी झंडे लहराए जा रहे है। और वो पंडित जिनको बसाने के नाम पर घडियाली आंसूओं की इतनी झडी लगाई थी भाजपाईयों ने कि झेलम से बड़ी नदी बन बन कर सूखी होगी वो पंड़ित झूठों के महानायक के सामने बस हाथ बांधें खडे़ है। और अलगाववादी खुलेआम उनको धमकियों से नवाज रहे है। बात बहुत हो सकती है भक्तगणों के विचार के लिए लेकिन श्रीकांत वर्मा की कविता शायद कुछ सही कहने की कोशिश करे ---
हस्तिनापुर का रिवाज--
मैं फिर कहता हूँ\धर्म नहीं रहेगा, तो कुछ नहीं रहेगा \मगर मेरी\कोई नहीं सुनता!\हस्तिनापुर में सुनने का रिवाज नहीं -\जो सुनते हैं\बहरे हैं या\अनसुनी करने के लिए\नियुक्त किए गए हैं\मैं फिर कहता हूँ\धर्म नहीं रहेगा, तो कुछ नहीं रहेगा -\मगर मेरी\कोई नहीं सुनता\तब सुनो या\मत सुनो\हस्तिनापुर के निवासियो! होशियार!\हस्तिनापुर में\तुम्हारा एक शत्रु पल रहा है,\विचार -\और याद रखो\आजकल महामारी की तरह फैल जाता है\विचार।

राज्यसभा की सीट की सुपारी में क्या क्या सितम होगा आम आदमी पार्टी पर। कुमार के संबंध नई कड़ी है। मीडिया की सुपारी केजरीवाल खा रहे है।

"भ्रमर कोई कुमुदुनी पर मचल बैठा तो हंगामा!
हमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा!!"
कुमार विश्वास अपने को सदी का सबसे बड़ा कवि मानते है ये मैं नहीं कह रहा हूं आपको उनकी साईट्स पर जाकर पता चल जाएंका कि इससे कम उनमें कुछ भी नहीं। उन्होंने कविता की दिशा और दशा बदल दी। वन मैन चैंज्ड द फेस ऑफ पोएट्री। पूरी दुनिया में 3140 शो किए है। यानि लगातार दस साल तक की अवधि है कुल मिलाकर। इसके अलावा 8380 घंटे तक इन्होंने मुस्कान बिखेरी है। खैर कविताओं का स्तर क्या है ये तो कोई आलोचक ही बता सकता है लेकिन अभी तक कोई प्रतिभाशाली आलोचक इनकी किताब को पढ़ने को तैयार नहीं हुआ है लेकिन एक बार पूछने पर उन्होंने जवाब दिया था कि दुनिया को कबीर और तुलसी को समझने में 300 साल लगे थे। खैर छो़ड़िये वो तो इनका धंधा है उस पर हम लोगों को कुछ कहने का हक नहीं है। लेकिन सार्वजनिक जीवन में इनकी छवि टीवी से निर्मित छवि है। टीवी पर आप अगर किसी शोहदे को देखना चाहते है तो इनमें आराम से देख सकते है। गले के दो बटन खोल कर गले में लटकी मोटी सोने की चेन, हाथों की उंगुलियों में मोटी अगूठियां और हाथ में जो ब्रेसलेट होता है शायद वो भी सोने का ही होगा। ये इनकी आम दर्शनीय छवि थी नेता के कपड़े पहनने तक। कई बूार टीवी चैनलों पर देखा होगा। लेकिन राहुल गांधी को चुनौती देते वक्त गांव गांव घूमते ये किसको घुमा रहे है इस पर किसी बाहर के आदमी की नजर नहीं पड़़ी। न ही मीडिया ने इस पर कोई सवाल उठाया जिसको ये रात दिन पानी पी पी कर कोसते है। क्योंकि मीडिया की नजर सिर्फ इनकी कविताओं और चुनौती पर थी। लेकिन इन्हीं की पार्टी के लोगों ने अपने चक्षु खोल रखे थे। लेकिन सब कुछ कही सामने नहीं आया । क्योंकि इनकी पार्टी के खैरख्वाह इंतजार कर रहे थे कि कब उपयुक्त मौका आए और इनपर वार किया जाए। काफी जुबानदराज नेता है किसी को जुबानदराजी में टिकने नहीं देते। और उसमें सिर्फ आदर्श की कहानियां होती है। क्योंकि इनकी कहानियों के उलट इनके मंच के साथी भी ऐसी बहुत सी कहानी सुनाते है। लेकिन चुनाव में दिल्ली में भारी बहुमत मिला। केजरीवाल ने अपने विरोधियों को पिछवाड़े पर लात मार कर बाहर कर एकमात्र बुद्धिमान का खिताब हासिल कर लिया। जनता ने पांच साल केजरीवाल पर वोट दिया था इस बात का पूरा इस्तेमाल कर पार्टी का मतलब सिर्फ केजरीवाल साबित कर दिया। यहां तक तो कोई बात नहीं थी। लेकिन विधायकों के इतने बहुमत से एक मुसीबत खड़ी हो गई और वो थी कि तीन राज्यसभा सीट पर कौन जाएंगा। अनार तीन और बीमार तीस। तब तो हल्ला मचना ही था। फिर ठिकाने लगाने का काम शुरू हुआ। एक सीट तो पक्की थी और है वो अनूप सांडा के महान चमचे को मिलनी तय है। दूसरी सीट पर एक अल्पसंख्यक या महिला का दावा था। तीसरी सीट पर आशुतोष, आशीष और कुमार के बीच में कांटे की टक्कर थी। आशीष ने जितनी तेजी से हाईकमान को अपने कब्जें में किया उससे दोनो चेहरे बड़े मायूस हुए। लेकिन चाल और कुचाल तो हिस्से है राजनीति के। शुरूआत हुई पहले एक अफवाह चली कि कुमार विश्वास का स्टिंग्स हुआ था अमेठी में। अफवास से सनसनी पैदा हुई। सरकार के पिट्ठूओं ने वीडियोऔर ऑडियोंकी तलाश में अमेठी के स्कूल, कॉलिज सब छान मारे लेकिन हासिल कुछ नहीं हुआ। और एक दिन अचानक एक खत सामने आ जाता है वो भी ऐसा जिसमें कथित तौर पर कुमार साहब के रंगीले पन की कहानी बताईं गई थी। लेकिन उस पर कुमार साहब खेल गए। हल्ला हुआ और सारा दोष उन लोगो पर मढ़ दिया गया जो केजरी के निशाने पर थे। खैर विरोधी साफ हुए और ये वार भी साफ हो गया। और अचानक एक ऐसी महिला इस देश के इतिहास में पहली बार एक अजीब मांग लेकर पब्लिक के सामने नुमाया हुई जो अब तक न देखी गई और न सुनी गई। एक महिला मांग करती है कि सोशल मीडिया पर उसकी बदनामी हो रही है और कुमार विश्वास की पत्नी करा रही है जिससे उसकी जिंदगी खराब हो गई है। लिहाजा कुमार विश्वास मीडिया के सामने आकर सफाई दे कि उसके अवैध रिश्तें कुमार साहब के साथ नहीं थे। गजब का आरोप। गजब का खेल। इतनी शानदार स्क्रिप्ट की कुमार की सारी कविताएँ फेल हो गई। एक महिला जो कोई आरोप नहीं लगा रही है लेकिन कह रही है आप दुनिया को कहो कि हमारे आपसे कोई रिश्ते नहीं है। गजब का मेलोड्रामा। जिसने भी लिखा खूबसूरती से लिखा।अब कुमार साहब इससे निबटे।और जिस तरह से क्रम बनता आ रहा उससे दिख रहा है कि पहले अफवाह फिर खत और अब एक कथित पीड़ित और फिर उम्मीद करनी चाहिए कि ओर कुछ भी भी आस्तींनों में छिपा हुआ है। जो मौका मिलते ही जनता को नुमाया होगा। आशुतोष जी जुबान के शिकार हो रहे हैलगातार जाने क्या-क्या लग रहा उन्हे और वो क्या समझ रहे हैऔर फिर जाने क्याक्या कह रहे है। ऐसे में कुमार साफ और आशुतोष हाफ लेकिन आशीष खेतान साहब पूरे है। केजरीवाल की आंख के तारे है और पार्टी को भी प्यारे है क्योंकि केजरीवाल के दिल की करक प्रशांत भूषण परिवार को देख लेने में लगे है। यानि एक तरफ छवि भी बनी है दूसरी और अरविंद केजरीवाल के सुनहरे साए भी बन गए है। लेकिन अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी है। कुछ दिन पहले आशुतोश की जुबान फिसलने पर लिखा था कि राज्यसभा सीट का दबाव जाने क्या कहलाएंगा और कराएंगा। ये उसी की एक कड़ी है दोस्तों अभी आगे आगे देखिए और दिखता है क्या क्या। आम आदमी पार्टी की नाटक मंडली के षडयंत्रकारियों के पास जनता के मनोरंजन का पूरा मसाला मौजूद है।
लिखना तो नहीं चाहिए क्योंकि अरविंद केजरीवाल को फिर किसी ने खुफिया खबर दी है कि मीडिया ने उनकी आम आदमी पार्टी की सुपारी ले ली है। ये केजरीवाल है बहुत शरीफ आदमी है। और बदमाश मीडिया इन बेचारे की गाय खोलने में लगा है।

बेटी के मां-बाप का रोना---



वो मेरे सामने बैठे हुए रो रहे थे। और मैं अपने आंसूओं को सिर्फ थामने की सफल कोशिश में लगा हुआ था। मेरी बीबी सोफे से उठ कर किचन में पानी लाने के बहाने चली गई थी कही रोते हुए पति-पत्नी के सामने हम लोग भी कमजोर न बन जाएं। वो एक बेटी के मां-बाप थे जो अपनी बेटी को ससुराल में मार दिए जाने से बस कुछ कदम पहले ही बचा कर लौटे थे। लेकिन उनका दर्द ये नहीं था कि दहेज के भूखे ससुराल वालों ने एक मां-बाप की फूल सी बच्ची को मार मार कर उसके शरीर और उससे भी ज्यादा उसकी आत्मा पर ऐसी खरोंचें डाल दी थी जिनको जाने में जाने कितना समय लगेगा। लेकिन उनका शिकवा था इस देश में संविधान की ताकत से लैस पुलिस वालों पर। वो पुलिस वाले जिनके दम पर अदालते फैसला सुनाती है , वो पुलिस वाले जिनके दम पर इस देश में कानून व्यवस्था का टिका होना माना जाता है। उसी पुलिस वालों ने इनको इस दर से उस दर तक दौड़ा दिया था। मैं हैरान नहीं था क्योंकि वर्दी की हकीकत हर पल दिख जाती है सड़क से लेकर चमचमाते कमिश्नर ऑफिस या फिर डीजीपी के रौब-दाब वाले ऑफिसों में। खैर बात इनकी मुख्तरसर में इतनी है कि महिला पुलिस थाने ने इस घटना के जून 2014 से शुरू हुए घटनाक्रम में दोनो को बुलाया कांउसलिंग के नाम पर। थाने में ही ससुराल वाले धमकाते रहे पैसे का रौब-दाब दिखाते रहे लेकिन पुलिस वालों के कान पर जूं और आंखों में बाल नहीं आता था। खैर दो तीन तारीखों पर लड़के वाले गए और फिर उन्होंने जाना बंद कर दिया। लड़की के मां-बाप जाते रहे शायद कही कोई उम्मीद मिल जाएं लेकिन नवंबर में पुलिस ने कह दिया कि वो सहयोग नहीं कर रहे है लिहाजा उनके खिलाफ एफआईआर कर दी जाएंगी और आपको पता चल जाएँगा। तब से बो मां-बाप पता होने का इंतजार कर रहे थे। कभी महिला थाने और फिर वहां से हलके के थाने में रोज आना -जाना। दीवाली पर थाने में सफाई हो रही थी तो दरोगा जी ने कहा कि फैले हुए सामान में कैसे बताएं फिर कहा कि चार्जशीट फाईल हो गई आप कोर्ट में जाएं वो भाई कोर्ट में धक्के खाते घूमते रहे कि नाम से कोर्ट में कोई चार्जशीट दाखिल हुई है खैर तीन दिन पहले वकील से पता चला कि एफआईआर नवंबर में हुई थी धाराएं क्या लगाई है रिपोर्ट मिलने पर पता चलेगा और चार्जशीट अभी आई नहीं है। वो मां-बाप जिनकी बेटी उनके घर है वो हादसे के बाद बोल भी नहीं पा रही है महज 45 दिन की शादी में बीस तीस लाख का खर्चा और अब घर में बैठी जाने अपने आप को ही कोस रही होती होगी। मां-बाप किसी मदद की उम्मीद में एक पत्रकार के घऱ चले आएं जो क्या कर सकता है न उन्हें पता है और न ही सन्न बैठे हुए पत्रकार को। लेकिन पुलिस इस देश में किस तरह कोढ़ बनती जा रही है उसका एक और मुजाहिरा है। रोज अखबार खोलते ही देखता हूं तो एक से बढकर एक दाग दिखते है। कभी अपराधियों के साथ मिलीभगत तो कभी रेप जैसे मामलों में शामिल और लाठियां बरसाते हुए तो आप रात दिन देख सकते हो। ये तो जाने कब से इस देश ने नियति मान ली है कि पुलिस वाला है तो लाठी तो मारेगा ही उसको हक है। और गुंडों को मात देने वाली तेजी से लाठियां बरसाते बरसाते कब वर्दी से गुनाह बरसने लगे किसी को पता नहीं। मैं इस लिए भी सन्न था कि घंटी बजने पर जिस लेख को मैंने अधूरा छोड़ कर उठा था वो एक फर्जी एनकाऊंटर की रिपोर्ट पढ़ने के बाद ही लिख रहा था। आपसे साझा कर रहा हूं वो लेख भी जो उस वक्त लिख रहा था जिस वक्त ये पुलिस की दरिंदगी की एक मिसाल खुद ब खुद चल कर सामने आ गई। मेरे पास दिलासा देने के लिए सिर्फ ये था कि मैं अपने रिपोर्टर से कहूंगा कि वो उस पुलिस वाले से कुछ दरियाफ्त करे। क्योंकि आंख से अंधा भी देख सकता है और कान से बहरा भी सुन सकता है कि पुलिस वालों ने दबा कर पैसे खाएं होंगे नहीं तो पीडित को बिना बताएं एफआईआर लिख दी धाराएँ कौन सी लगाई पता नहीं तहकीकात कैसे की पता नहीं और ल़ड़के के परिवार से भी पूछताछ की पता नहीं।

सलमान को सजा क्या हुई देश के फरिश्ते रो पड़े

हाईकोर्ट का दिल भी भर आया उसी दिन सुन ली माई लॉर्ड ने। खान की जेल जाने के बाद ऐंकरों की आंखों में रोना आ गया और दिल टूट गए। और बचाव पक्ष के वकील ब्लड मनी देकर मामला रफा-दफा करना चाहते है।...............................
जयप्रकाश चौकसे इतने दुखी थे कि उनसे बोला नहीं जा रहा था, बता रहे थे कि सलमान खान की मां को सबसे बड़ा आघात लगा है। लेडी अर्णव इतनी भावविह्वल हो रही थी कि लग रहा था कि भावभीनी श्रंद्धाजलि दे रही हो। ये कहने को आज की मीडिया की एक विडो हो सकती है लेकिन औसतर सबका तबसरा ये ही थी। बेचारे को सजा हो गई। लोगो को बेहद दुख हुआ। धीमें-धीमें , धीरे-धीरे बुनी गई एक स्वप्निल नायक की छवि काम न आई। एंटी हीरो की एक ऐसी छवि जिसका दीवाना हिंदुस्तानी युवा वर्ग है। भाई बड़ा गुस्सें वाला है( मतलब मैचो मैन है) भाई बड़ा दिलवाला है ( किसी को कुछ भी देता है) भाई बड़ा घरेलू है( हिंदुस्तानी किताबी छवि) भाई चुपचाप दान करता है( दानवीर की ऐसी छवि इस हाथ दे तो उस हाथ को पता न चले--आईडियल दानी) ऐसी कई छवियों के साथ सलमान खान को कल से मीडिया नवाज रहा था। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं था जिस पर कुछ बहस की जाती। मीडिया के सहारे, 70 एमएम के पर्दे से निकल लोगो के घरो, दिलो-दिमाग तक छा गए बॉलिवुड के एक ऐसे इंसान का मामला कोर्ट में था जिसने शराब के नशे में आदमी को आदमी नहीं कद्दू समझा। जैसे चाहा गाड़ी चढ़ा दी। मारे गए लोगो को लोग कोस रहे है। कई लोग उसको भाग्यशाली भी कह सकते है क्योंकि सलमान की लैंडक्रूजर से मरा है नहीं तो किसी दिन बूढ़ा होकर मरता। गजब का देश है। अभी टि्व्टिर पर मातमपुर्सी शुरू हो गई है। संजय दत्त के केस की तरह अगर सलमान खान किसी आम हिंदुस्तानी परिवार का बेटा होता तो आजतक किसी जेल की सलाखों में अपनी एड़ियां रगड़ रहा होता। एक नहीं कई मामले, बदतमीजी की पराकाष्ठा पर जीने वाले आदमी। एक दो नहीं दर्जनों उदाहरण मुंबई की सड़कों पर उसके दीवाने ही सुनाते मिल जाएगे। सवाल ये नहीं है कि सजा दी गई सवाल ये है कि 13 साल लग गए इस महान आत्मा को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाने के लिए। पीआईएल का सहारा लेना पड़ा। इस आदमी को सजा दिलाने के लिएे। देश में हजारों अंडरट्रायल जेलों में 10-10 साल तक एक अपील के लिए तरसते है लेकिन अदालतों के पास उनको सुनने का समय नहीं होता। लेकिन महान भारतीय बन चुके सलमान खान साहब को लेकर हाईकोर्ट एक दम दयालु हो गया। जमानत के लिए इंतजार करने लगा। खैर ये तो चलना ही था। तेरह साल तक अदालत की दहलीज पर अगर सलमान दहाड़ते रहे तो इसके पीछे उनका प्यारा होना नहीं बल्कि उनके पास चांदी का जूता होना है। और जूता भी इतना भारी कि ब्लैक बग का मामला, सहकर्मियों के साथ बदतमीजी, अवैध हथियार रखना, और फिर इस मामले में ड्राईवर भी पैदा कर दिया जो मौका ए वारदात पर था ही नहीं लेकिन सलमान साहब के लिए बलिदान देने के लिए तैयार हो गया।

माई-बाप ये तो इंसाफ न हुआः

कल मीडिया के धर्मगुरू रो रहे थे। सब चिल्ला रहे थे। दुख से सीना फटा जा रहा था। एक से एक उपमा, उपमान गढ़े जा रहे थे। खैर ज्यादातर ऐंकरों को जो भी दुख से बोलना था बोला गया। लेकिन दुख लंबा नहीं चल पाया। सलमान खान की पिक्चरो का इंतजार करती पीढ़ी के लोगो का दुख देखा नहीं गया माई लार्ड से। और दो दिन की अतंरिम जमानत दे दी। इस बात के लिए एक महान वकील हरीश साल्वे का नाम भी खबरों में था। साल्वे साहब का मुझे याद है एक खबर थी काठ का कानून। इलाहाबाद के जूनियर जज सुप्रीम कोर्ट के फैसलेे पर स्टे देखकर आरा मशीने चलवा रहे थे। इस खबर को देखने के बाद सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस आश्चर्य से भर गए और उस वक्त कोर्ट मित्र बनाए गए महान साल्वे साहब। वो केस कहां है उनको याद नहीं। सवाल है कौन पैसा देता इसके लिए। लिहाजा वो क्यों लड़ेगे। बात सलमान की हो रही है लेकिन वकीलो का रोल क्या इस पर भी चर्चा हो तो बेहतर है। अदालत में एक ड्राईवर पेश होता है जो मौका ए वारदात पर था ही नहीं लेकिन वकीलो ने काफी मेहनत की होगी उसको क्रॉस कोचनिंग की होगी अदालत में पेश होने से पहले क्या अब अदालत में उन सब लोगो के खिलाफ अदालत को गुमराह करने का केस चलेगा। नहीं साहब ये बातें तो मीडिया के आंसूओं में डूब जाएंगी। एक और सबसे बड़ी हैडलाईंस नवभारत टाईम्स ने दी जिसमें रिपोर्टर ने शेयर मार्किट 700 प्वाईँट गिरने का कारण सलमान खान भी है। रोते हुए ऐंकर, छाती पीटते हुए फैंस और आंसू बहाती हुई फिल्म इंडस्र्ट्री में सबसे हास्याप्रद इस रिपोर्टर की खबर थी। एक बदतमीज, आदतन ऑफेंडर, महिलाओं की बेईज्जती, जानवरों का शिकार (अवैध) के रने के लिए बदनाम साहब को कानून की कभी कभार पड़ने वाली लाठी पड़ी लेकिन दो घंटें बाद ही टूट गई। लिखने को रोने को बहुत सारी कहानियां लिखी जा सकती है। लेकिन अदालत की दहलीज पर कानून ने ही दम तोड़ दिया। कल लग रहा था लैंड क्रूजर से मरने वाला, उससे कुचलने वाले इस देश के गद्दार है। वो पाटिल नाम का पुलिसवाला जिस पर बयान बदलने के लिए कितने दबाव पड़े होगे। नौकरी गई, अस्पताल में लावारिस की तरह दम तोड़ा उसपर गद्दारी का आरोप लगा देंगे ये लोग और फैंस तो उसको जिंदा जलाने की सोचने लगते। इतना बड़ा अपराध और पुलिस की बात अक्सर बड़े लोगो के लिए अचानक सहद्य हो जाने वाली पुलिस ने कितने कट कट कर सबूत दिए होंगे उस पर लोअर कोर्ट ने न सोचा हो लेकिन हाईकोर्ट ने तो ख्याल रखा । सलमान के खिलाफ बोलने का हौंसला चांहिए। पता नहीं इस बात से उसके फैंस का कितना वास्ता होगा मालूम नहीं लेकिन मुझे याद है हरीश दुलानी वही शख्स जिसने ब्लैक बग शिकार मामले मेें पहचान की थी और बाद में सालों तक गायब हो गया कहां कोई नहीं जानता था। मुझे याद है सलमान साहब के मुस्कुराते हुए वकील हस्तीमल सारस्वत थे( शायद यही नाम है) जोधपुर में बड़ी हस्ती है। हा सालों बाद जब हरीश दुलानी आया तो वो पागल हो चुका है खैर जाने दीजिए बाद में बात करेंगे।
लेकिन आज सिर्फ राग दरबारी का गरीबों के लिए अदालत का क्या मतलब है ये लिख रहा हूं श्रीलाल शुक्ल साहब की किताब से साभार
-" यह मेरा विश्वास है कि हमारी अदालतों में ही पुनर्जन्म के सिद्धांत का आविष्कार हुआ होगा। ताकि वादी और प्रतिवादी इस अफसोस को ले कर न मरें कि उनका मुकदमा अधूरा ही पड़ा रहा। इस पूर्वजन्म के सिद्धांत के सहारे वे चैन से मर सकते हैं क्योंकि मुकदमे का फैसला इस जन्म में नहीं तो हुआ तो क्या हुआ? अभी अगला जनम तो पड़ा ही है। हा हा हा...
लंगड़- (दीन भाव से वैद्य जी से) जाता हूँ बापू। (जाता है)
रंगनाथ- (अपने से ) कुछ करना चाहिए.... (जोर से) यह सब गलत है। कुछ करना चाहिए।
सनीचर- क्या कर सकते हो रंगनाथ बाबू। कोई क्या कर सकता है? जिसके छिलता है, उसी के चुनमुनाता है। लोग अपना ही दुख-दर्द ढो लें, यही बहुत है। दूसरे का बोझा कौन उठा सकता है? अब तो वही है भैया कि तुम अपना दाद उधर से खुजलाओ, हम अपना इधर से खुजलायें।"
और अमीरो ताकतवर लोगो का राग दरबारी क्या होता है वो आपको दिखा दिया है हाईकोर्ट ने, दो घंटें में जमानत देकर । जय हो साहब की, माई-बाप आपने सब कुछ किया सलमान साहब के लिए बस इंसाफ नहीं किया।