Tuesday, February 4, 2014

ताकत में कुछ भी गलत नहीं होता ।


मैं तुमको यहां नीचे खड़ा दिखता हूं,
नीचा नहीं हूं मैं यहां खड़ा होकर भी।

हां मेरे फैसले अब मैं नहीं ले रहा हूं,
लेकिन फैसले ले रहे है जो,

 उन्हें जानता हूं मैं।

मेरी कुछ उल्टी चालों ने 
 यहां ,
ला पटका मुझे

वरना तो कम नहीं थी

सत्ता के शतरंज की मेरी समझ
मैंने कुछ गलतियां की

कुछ छोटी. कुछ बड़ी
अपनों को धोखा दिया,

अजनबियों को जी भर के लूटा
बेसहाराओं को दोनो हाथों लपेटा

भीड़ में नारे लगाये, उनके भविष्य को बेचते हुए
मौका मिलते ही धक्का दिया आगे वाले को

मैं समझता रहा
ये बड़ी गलतियां की मैंने ,

बॉस के कहने से नहीं बदले शब्द
 कहने पर उनके

 झूठ तो लिखा सच की ही तरह

लेकिन उसमें नुक्तें डाल दिये अपनी समझ से
जिस्म थी लड़कियां, औरतें 

चादर- तौलिये और कपड़ों बदलते है जैसे
ऐसे ही बदली जाती है औरतें

ये अच्छी बात नहीं है कह बैठा मैं कई बार
हो सकता है ये उतना गलत न होता

अगर मैंने कहा होता अकेले में
मैंने बक दिया भीड़ में

जिसकी इच्छा नहीं है
उसको नौकरी/तरक्की के नाम पर

बिस्तर पर बिछाना ठीक नहीं,
सोचा ये छोटी-छोटी गलती है मेरी

यूं तो सब कुछ ठीक करने की कोशिश की मैंने
अपने झूठ को नया समय

लालच को जरूरत, लूट को मजबूरी
बॉस के पैरों में लेटने को एक्सरसाईज कह  कर छिपाया

हर किताब खरीदी मैंने

जो भी बड़े लोगों के शेल्फ में थी,

फोन में थे ताकतवर लोगों के नाम,नंबर
समझ में ठीक था,

ताकत की तुला के इशारे सही समझता था
हवा के बदलने से पहले बदल लेता था पाला

किस्मत के मारों को नाकारा

भीख मांगते लोगों को काहिल

भूख के खिलाफ आवाज उठाते आदमियों को
ढोंगी, गद्दार, विदेशी एजेंट लिख सकता था

खूबसूरत वंदना को बदल सकता था निंदा में
बस थोडा सा गड़बड़ हो गया

जिसे में समझता रहा अपनी बड़ी गलतियां
वो तो गुण थे

और जिसे मैंने छोटी गलतियां
वहीं तो सबसे बड़े अवगुण थे

समझ के इस फेर से
फिर गया मेरा समय

मैं फैसले लेता था जिनके बारे में
मुझे फेंक दिया उसी भीड़ में उठाकर

समझ गया हूं मैं
हर वक्त हाथ चलने थे

दूसरों के गले और जेंब पर
नारों और नींद दोनों में करनी थी

ताकत की पूजा
ताकत में कुछ भी गलत नहीं होता ।

ताकत से कुछ भी गलत नहीं होता।