Thursday, March 29, 2012

कत्ल की कारीगिरी

सैंकड़ों बार हुआ है
आंख के सामने
दड़बें से निकाले गये मुर्गे को
बचे पंखों से पकड़ कर
हाथों में तौला गया
और फिर फेंक दिया गया वापस दड़बें में
दड़बें में मचे तूफान में
कोई दूसरा बाहर चला गया हाथों में जकड़ कर
बाएं हाथ में सधे हुए तरीके से पत्थर पर गर्दन
एक ऊंचाईं तक उठा दाएं हाथ में चमकदार चाकू
एक वार और गर्दन गिर गई टोकरी में
फिर बचे कुछे पंखों की सफाईं
सब कुछ इतना साफ और सधा हुआ
आप तारीफ कर सकते है,
मशीन को मात देती कारीगरी की
सफाई से बिछाया गया एल्यूमीनियम का पतरा
खून के धब्बों से बचाने के लिए पन्नी का मोटा कवर
दडबे में फेंके गए
मुर्गें को मिले पल, घंटे या दिन
इसका फैसला फिर से किसी एक उंगली पर है
उस निगाह पर है जो आकर देखती है
और तय करती है अपने पेट के नाप से उसकी गर्दन का नाप
जिस्म को नापती-तौलती उंगलियां
पहरन के पर्दों को बेपरदा करती निगाहें
जिस्म का नाप और अपनी भूख के बीच
दूरी तय करती है कीमत
दड़बे की सलाखों और मकान की खूबसूरती
दुकान का पत्थर और कमरे का बिस्तर
साफ सुथरे रखने की कवायद
मशीन को मात करती कारीगिरी
निगाह और उंगलियों दूसरों की
जिंदगी की मोहलत मुर्गों की
काश कभी जबां सीख लेता
पूछता उन पलों के बारे में
जो पल जिएं दडबे से कसाई के हाथों तक
और हाथों से वापस दड़बें में
और फिर
पत्थर तक वापस आने में।

संसद बड़ी या देश ?

हत्या का आरोप हो धुल सकता है। लूट का आरोप धुल सकता है। पूरे देश को लूटने की कोशिश भी धुल सकती है। भले ही स्कूटर खऱीदने का पैसा न हो एक दशक पहले बेटों को मर्सिडीज में घुमाने का दम आ सकता है। आय से अधिक संपत्ति के आरोपों से घिरे हो तो भी आपका बाल बांका नहीं हो सकता है। आप पर यदि से सब आरोप हो तब भी आपको माननीय ही कहा जायेगा। दुनिया के तख्ते पर किसी को भी ये बेपर की उड़ान लग सकती है। शाय़द ऐसा पारस पत्थर कहां होगा जो ये सब आपके लिए ला दे। लेकिन आपको हम एक पता देते है भारत की संसद। 162 सांसदों के खिलाफ मुकदमें दर्ज है हिंदुस्तान की अदालतों में। ऊपर लिखे सभी आरोपों से घिरे है भारत की संसद के ये वीर। लेकिन ये सांसद है। ये कानून बनाते हैं। आप पर ये आयद है कि आप संसद का सम्मान करे। लूट के आरोपी सांसद हो तब भी, कत्ल के आरोप में हो तब भी, आय से अधिक संपत्ति का आरोप तो आपके लिए हीरे का हार है। आपकी पूछ बढ़ सकती है। और अगर आपने सवाल पूछने की जुर्रत की तो आपको सदन में बुलाकर दंडित किया जा सकता है। आपके खिलाफ प्रस्ताव पास किया जा सकता है। या फिर आपको सरे आम गिरफ्तार कराने की धमकी दी जा सकती है।
ये संसद है। हिंदुस्तान की संसद। विधि द्वारा स्थापित संसद। आपको अभिव्यक्ति की आजादी है लेकिन संसद से बचकर। इन सांसदों को अगर कोई बात नापंसद आ गयी तो आपको बुलाकर गिरफ्तार करा सकते है। जेल में सड़ा सकते है। महिला आरक्षण पर बिल फाड़ने वाले, गला फाड कर चिल्लाने वाले, पार्टी लाईन पर इधर से उधर जाने वाले, मल्टीनेशनल कंपनियों के लिए सवाल पूछने वाले, पैसा लेकर सवाल पूछने वाले, सत्ता के लिए कभी किसी दल में तो कभी किसी दल में घूमने वाले ये लोग आपको विदेशी एजेंट घोषित कर सकते है।
शायद बात ज्यादा इधर से उधर हो गयी है। इसी ब्ला़ग में कुछ दिन पहले लिखा था कि टीम अन्ना के प्रचार के भूखे लोग जल्दी ही जनता की नजर से उतर जाएंगे। जनता का दबाव कम होगा तो ये राजनेता अपनी औकात में उतर आएंगे। मीडिया के दलाल अचानक मर्यादा-मर्यादा चिल्लाने लगेगे। नाम नहीं बताने की आदत है लेकिन फिर भी विनोद शर्मा जैसे लोग पत्रकारिता करते है। टीवी चैनलों पर बहस करते हुए अगर इन सज्जन को कोई देख ले और ये न जानता हो कि इनके साथ पत्रकारिता का पूछल्ला लगा है तो टके की योग्यता वाले कांग्रेसी प्रवक्ता समझ लेगा कोई भी अनजान आदमी इनको।
अन्ना के जंतर-मंतर के हालिया प्रदर्शन में मनीष सिसौदिया का एक मुहावरा चोर की दाढ़ी में तिनका पूरी संसद के अंतस को हिला गया। अंतस था कि छुई-मुई का पे़ड़। किसी ने छुआ और मुर्झा गया।
बात शरद यादव की। उस क्लिप को जो सबके सामने दिखाई गयी। उसमें शरद यादव संसद को ललकार रहे है कि वो लोकपाल का विऱोध करे। ऐसे बिल को कतई पास न होने दे जो अफसरों पर शिकंजा कस दे जो उनके मुताबिक काम कर रहे है। बात व्यक्तिगत नहीं है लेकिन शरद यादव वो है जो कभी देवीलाल का साथ देते है कभी वी पी सिंह के वफादार होते है, कभी लालू के सहयोगी तो कभी विरोधी। गजब घनचक्कर है। पहले बीजेपी के सहयोग से बनी सरकार के मंत्री। फिर बीजेपी के विरोधी और संसद सदस्य। ये जनाब उस क्लिप में सरकार की भर्त्सना कर रहे है कि उसने आरटीआई पास क्या किया है सरकार पूरी की पूरी पंगु हो गयी है। यानि आरटीआई की ताकत भी आम जनता को गलत मिली है। ये बेचारे जातिय वोटों के सहारे राजनीति करने वाले शरद साहब अपने किसी ऐसी सीट से जीत कर बता दे जहां उनकी जाति के वोट न हो। लेकिन संसद में इनका आदर बहुत है। संसद में पहुंचे है पिछड़ों , गरीबों के और अल्पसंख्यकों के नाम की राजनीति करके। लेकिन इनको दर्द है कि आरटीआई जैसे बिेल सरकार से ताकत लेकर उसी गरीब, पिछड़े और अल्पसंख्यकों के हाथ में दे रहे है। हवाला की डायरी में लाखों रूपये लेने वाले में नाम था इनका। सरकार और नौकरशाही के लिए ऐसे नेता बहुत काम के होते है जो जिन लोगों के वोटों से जीत कर आते है उन्हीं का सर कलम करके सरकार के कदमों में रख दे।
लेकिन बात है संसद की ताकत पर। संसद को चुनता कौन है। वोटों से चुनी जाती है संसद। वोट आम आदमी करता है। लेकिन ये उल्टी बात कर रहे है। ये ऐसे बेटे के तौर पर पेश आ रहे है जो बाप को कह रहा है कि भले ही तुमने मुझे पैदा किया है लेकिन कोई बात नहीं अब तुम मुझे बाप कहो।
एक इंग्लिश कहावत है कि पहले कुत्ते को पागल घोषित कर दो और फिर उस पर गोलियां बरसा दो कोई विरोध नहीं होता। जनता के लिए किए जा रहे आंदोलनों को पहले तो किसी का नाम दे दो फिर उस आदमी को बदनाम कर दो तो पूरा आंदोलन बदनाम हो जाएंगा। दरअसल टीम अन्ना के सदस्यों की प्रचार की भूख का फायदा उठाकर पहले तो इस आंदोलन को ठीक किया सरकार ने फिर इन्हीं बौंने नायकों की लंबाईं से फायदा उठाकर पूरी जनता के मौलिक अधिकार को निपटाने में लग गयी है सरकार। संजय निरूपम जैसे सांसद जिनको आम जनता में कोई ईज्जत नहीं होगी। पहले शिवसेना में जाकर दम माल कूटते रहे। और फिर चमत्कारिक तौर पर धर्मनिरपेक्षता के लंबरदार बन गये। गांव में ऐसे आदमी को क्या कहते है ये लिख दे तो ये हमको हिटलर के खानदान से साबित कर देंगे। सोमवार को संसद में जनतंत्र के लिए लगा रो ही देंगे। गजब का समर्पण है जनतंत्र के लिए इनका।
लेकिन इस वक्त सबसे बड़ा सवाल है कि क्या अभिव्यक्ति के लिए अब लाईसेंस लेना होगा। यदि संसद में डेढ़ सौ से ज्यादा सांसदों पर आपराधिकर मुकदमें चल रहे है और इस बारे में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका भी दायर हुई है तो ये बात कहने वाले को फांसी की ताईद करेंगे।
उन सब सांसद साहब को भी देख लीजिये जो हाल में यूपी के चुनाव जीतकर पहुंचे है। आय से अधिक संपत्ति के चलते कभी कांग्रेस के रहमो-करम पर रहने वाले जनाब को मालूम है जाति और धर्म की राजनीति के अलावा उनकी कोई थाती नहीं है। कभी अंग्रेजी स्कूलों में आलू के गोदाम बना देने की घोषणा करने वाले जनाब ने मौका मिलते ही अपने बेटे को अंग्रेजी बोलने वाले देश में पढ़ने भेजा। कम्प्यूटर से दुश्मनी करते रहे लेकिन फ्री में कम्प्यूटर देने की घोषणा करने में परहेज नहीं किया।
दरअसल देश में सबसे ज्यादा लूट का माहौल तैयार किया हुआ है अमेरिका पलट अधिकारियों और नेताओं की टीम ने। एक तरफ आप बाईस रूपया और अट्ठाईस रूपये को अमीरी मान रहे है दूसरी तरफ मोंटेक सिंह अहलूवालिया जैसे लोग पांच लाख करोड़ रूपये की सब्सिडी उद्योगपतियों को दे रहे है। और नजर मनरेगा पर मिलने वाली मजदूरी पर है।
बात बहुत साफ है कि विरोध की आवाज भी अब संसद में बैठे जाति के नाम पर राजनीति करने वाले लोगों को बर्दाश्त नहीं है। थोड़े दिन बाद वो किसी की लंबाई पर नाप तय कर देंगे। और हो सकता है कि संसद से एक डिक्शनरी पास हो जो आपको ये बताएं कि क्या संसदीय है और क्या नहीं।
मुझे लगता है कि नवनीता देवसेन के शब्द माननीयों की भावना को ज्यादा साफ करते है
....शूद्र वंश में जनमा था,फिर भी देखों सीमाहीन है दुस्साहस,
राजराज्य में जगह पाकर भी संतुष्टि नहीं, स्वर्ग की मांग करता है
उसने सोचा था बाहुबल कुछ नहीं होता,
तपोबल से जीत लेगा वो न्यायसंगत अधिकार,
पल भर में सुधार दिया उसकी गलती को इस्पात ने,
शंबूक का शिरच्छेदन, इस ग्रह पर, अब तक नहीं रूका है।

Monday, March 26, 2012

रास्ते का आंखों देखा हाल

शब्द खोजना, काफी मुश्किल काम है,
कायदे से कुछ नहीं मिलता।
अंधेरों में भी जुगनू दिख जाते है
मर्यादा तोडते हुए
रोशनी में चेहरों पर दिखता है अंधेरा।
अजब सा घालमेल हो गया
हंसने की कोशिश में रोते हुए लोग
भद्दे दिखने लगते है बेहद खूबसूरत चेहरे पास आते ही
दूर से हाथ देकर ग्राहक रोकता वो काला दागदार चेहरा
खूबसूरत हो जाता है अचानक
ताकतवर दिखते इंसान
कमजोरियों की परतों में गिड़गिड़ाते हुए
रोटियां को तडपने वाले
वक्त पर गुर्रा रहे है
एकांत में खिले चेहरे
भीड़ में अजनबी में बदल रहे है
बात सिर्फ शब्द खोजने की है
मैं रिश्ते में कहा घुस जाता हूं
अभी जिसे मैंने कहा था नेता
वो टके का चोर निकला
नशे में चूर आदमी के
हाथ से गिरे रूपये को लेकर झूम रही है बुढिया
बुझी उम्र के साथ
गरजती आवाज नारे लगा रही है
भीड़ आईसक्रीम का रेट पूछ रही है
झूठ का ठेका लिए
सच की सीढ़ी पर चढें चेहरे
ना सच बोल रहे है ना झूठ
बस डर से भीगे शब्दों में
रोटियां तोल रहे है
मैं खोज रहा हूं शब्द
सही शब्द
बता सकूं
रास्ते का आंखों देखा हाल।