Friday, July 29, 2011

टुकड़ों में कुछ

बहुत वक्त लगा इस शहर को जीने में यारों
खंजर मेरी भी आस्तींन में था
शमशीरों के इस शहर में
दिल नहीं मिला किसी के सीनें में यारों

हर चीज की कीमत यहां
हर एक अहसास के दाम यहां
शीशें से पत्थर तोड़ों
खून बहाकर रिश्तें जोड़ों

हुनर है तो मंजिल के लिए
धोखा है मंजिल का नाम यहां
धोखा खाया तो सीख लिया
धोखा दिया तो जीत लिया

आंखों में चमक की कमी नहीं
मुस्कुराहटों में बस नमी नहीं
हमने भी बहुत सीखा-भूला
पर अपनी बिसात जमी नहीं



पुष्पेन्द्र ग्रेवाल के एक लेख में लिखी गईं
एक सीरियाई कवि निजार कब्बानी की कुछ पंक्तियां

अगर हम अपनी जमीन /और मिट्टी के सम्मान /की हिफाजत करते हैं/
अगर हम अपने और अपनी जनता के/ बलात्कार के खिलाफ/ विद्रोह करते है
अगर हम अपने आसमान के/ आखिरी सितारे की हिफाजत करते है..
अगर यह पाप है/तो कितनी खूबसूरत है दहशतगर्दी/
इस सब के लिए मैं/अपनी पुरजोर आवाज बुलंद करता हूं/
मैं दहशतगर्दी के साथ हूं/जब तक नयी विश्व संरचना/
मेरी संतानों को जिबह करके/ उन्हें कुत्तों के आगे परोसती रहेगी
इन सबके खिलाफ मैं आवाज उठाता रहूंगा/ मैं दहशतगर्दी के साथ हूं





न कोई वादे वफा
न खतो-किताबत
इस तरह भी कोई जाता है
महफिल से रूठकर।
लहर से बच गयी तो क्या
वक्त की हवा थी जो ले गई
रेत की तस्वीर थी उसकी याद
गिरी औऱ बिखर गई टूटकर

Sunday, July 24, 2011

लुटेरों का लॉग मार्च

निवेशकों ने नोएडा में लॉगमार्च किया। अपने घर का सपना संजोंएं हुए हजारों निवेशकों ने नोएडा की सड़कों पर जूलुस निकाला। हाथों में उठाएँ हुए कार्डबोर्ड पर लिखा था कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट के फैसले से मिले पैसे नहीं -घर चाहिए। ये सब वो लोग थे जिन्होंने अपने लाख-दो लाख रूपये और कुछ बैंकों से लोन लेकर बिल्डरों को देकर अपने लिए घर पक्का किया था। देश के आंख-नाक और कान में तब्दील हो चुके मीडिया पर इसका सचित्र प्रसारण जारी रहा। बौने से रिपोर्टर उछल-उछल कर निवेशकों के सपने टूट जाने और या फिर ऐसी ही लाईनें कि किसी ने अपनी जमा-पूंजी लगा दी है, या मां-बाप के जीपीएफ का पैसा लगा दिया है जैसी मध्यमवर्ग का दर्द जगाने वाली बाईट्स चला रहे थे। ऑफिसों में भी जो बातचीत चल रही थी उसमें भी ज्यादातर बौंनों का कोरस यही था कि बेचारे निवेशक लोगों का क्या कसूर।
पहली नजर में ये ही लग सकता है कि ये पांच हजार लोग अपने फ्लैट छीन जाने से दुखी है। लेकिन आपको बस इतना करना है पर्दे पर बौने मीडिया की ईबारत मिटानी है। और उसके बाद कोरी स्लेट पर अपने दिमाग से इस पूरे खेल को समझना है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट की बेंच ने देश में चल रही लूट का पर्दाफाश करने के लिए बस पर्दे ही हिलाए थे कि देश को लूट के लिए इस्तेमाल कर रहे बिल्डर माफिया, भ्रष्ट्रराजनेताओं और नौकरशाहों का मजमा जुट गया अदालत के आदेश की ऐसी की तैसी करने में। पहले आदेश के खिलाफ पहुंचें सुप्रीम कोर्ट में। करो़ड़ों रूपये की फीस के सहारे दूसरे के बाप को अपना बाप साबित करने को तैयार दलालों की एक पूरी फौंज ने पैरवी की कि ये गलत हो रहा है। लगभग इसी अंदाज में को देश की सबसे बड़ी अदालत ने जानना चाहा कि क्या गलत हो रहा है तो उनका जबाव था हजारों निवेशकों के साथ अन्याय हो रहा है ये बताने को कोई तैयार नहीं था कि भाई किसानों का क्या हो रहा है। कोर्ट ने भी देखा कि लूट के लिए किस तरह का शानदार प्लान तैयार किया जा रहा है। और कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी।
इस पूरी कवायद में कोर्ट ने देश के उन हजारों लोगों का संवैधानिक अधिकार बरकरार रखते हुए कि जिन का पैसा बिल्डरों ने लिया है उनका पैसा वापस किया जाएगा और ये रकम सूद समेत वापस की जाएंगी। अगर निवेशक ईमानदार होते या फिर उनका देश के गरीब और असहाय किसानों से और देश के कानून से कोई रिश्ता होता तो बात यहीं खत्म हो गयी थीं। लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के बाद सबसे पहले निवेशकों के पैसे का दर्द का रोना बिल्डरों के एडवर्टाईजमेंट से चलने वाले बौंनों ने रोया। मासूमियत के साथ सवाल बस इतना था कि निवेशकों की गाढ़ी कमाईं का पैसा कौन वापस करेगा। टीवी देखने वाली मध्यमवर्ग की जनता के लिए ये दर्द बहुत बड़ा दर्द है। आखिर में आंसूओं से भरी बाईट्स चलने लगी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने तो इस योजना पर ही पलीता लगा दिया कि पैसे से खरीदी गई बाईट्स से पिघल जाएगी देश की सबसे बड़ी अदालत। अदालत ने आदेश दिया कि पैसा वापस हो जाएंगा सूद समेत।
अब आपसे एक सीधा सवाल है कि यदि आपकी लगाई गई लागत मय ब्याज के आपको वापस मिल रही है तो क्या ये आपके साथ अन्याय है। यानि जिन लोगो ने देश में लूट के लिए अपना निवेश किसी बिल्डर के पास नहीं किया बल्कि बैंक में किया वो लोग बेवकूफ है। उन के पास बस लूट में हिस्सेदारी के लिए केवल ढाई लाख रूपये लगाने का कलेजा होना चाहिएं था फिर वो भी इस वक्त भ्रष्ट्राचार के भगवान बने हुए बिल्डरों के साथ गरीब, किसान या असहाय लोगों को लूटने के वहशियाना खेल में शामिल हो सकते थे। एक नया शब्द है जो इंग्लिश पत्रकारों में काफी चलन में है ब्लड मनी यानि खूनी पैसा इसका अनुवाद सही नहीं है आप समझ नहीं सकते है। इसको इस तरह समझा सकते है कि ऐसा पैसा जो खूनी लूट का हिस्सा हो। इन इनवेस्टर यानि निवेशकों को वहीं ब्लड मनी यानि देश के खूनी लूट में अपना हिस्सा चाहिएँ। और इस खबरों को दिखाने का अपना पुनीत कर्तव्य निबाह रहा बौना मीडिया बिल्डरों के टुकड़ों पर अपनी निगाह गढ़ाऐँ बैठा है। ये तो सिर्फ आम सीन है जो आप मीडिया की स्लेट से हट कर पढ़ कर सकते है। लेकिन इससे आगे की कहानी भी आपको दिख सकती है।
एक-एक इनवेस्टर यानि निवेशक ने पचास-पचास या सौ सौ से ज्यादा फ्लैट बुक कराएं हुए है। देश में इस दलाली को पनपाने वाले आर्थिक नीति के समर्थकों ने जब सबसे पहले एक परिवार को एक मकान की शर्त गायब कराई थी तब से पैदा हुई हजारों लाखों करोड़ की रकम ने लगभग करो़ड़ के पार ऐसे नये अमीर पैदा कर दिये थे जो ऐसे लूट में बिल्डरों की ढ़ाल बन कर इस साजिश को कामयाब करते रहते है। ये ट्रिकल डाउन थ्योरी की नाजायज औळाद है जो हिंदुस्तान में गरीब आदमी के लिए रोटी से दूर करने में अपना योगदान दे रही है।
जाति के ठेकेदार से राजनेताओं में तब्दील लुटेरों का गठजोड़ और पर्दे के पीछे छिपे नौकरशाहों के दिमाग के सहारे किसानों की जमीने रातो-रात बिल्डरों के हाथों में पहुंच रही है। किसी मीडिया हाउस को नहीं दिखा कि कैसे हजारों एकड़ जमीन का लैंड यूज पलक झपकते ही बदल गया। ऐसा नहीं कि किसी को कानो-कान खबर नहीं हुई। मीडिया में बहुत से रिपोर्टरों को इसका हाल मालूम था लेकिन या तो चैनल और अखबार ने छापा नहीं या फिर रिपोर्टर ने अपने लिए कुछ इंतजाम कर लिया। फिर ये खेल शुरू हुआ। फिर बिल्डरों को एक और सहूलियत दी गई कि आप जमीन का पैसा दस साल में दस किस्तों में दें सकते हो। यानि जमीन के लिए सिर्फ दस परसेंट और नेताओं की रिश्वत का पैसा देना था बाकि अरबों रूपये के बारे-न्यारें। इनमें से कई बिल्डर्स के पुराने प्रोजेक्ट अभी अधूरे पड़े हैं लेकिन नोएडा एक्टेंशन में तो लूट की आंधी थी लिहाजा पहले इसके आम अपनी टोकरी में डाल लेने थे बाकि तो अपने बगीचे में फल है ही। इसी तर्ज पर लूट चल रही थी। बैंकों ने धड़ा-धड़ लोन करने शुरू कर दिएं एक ऐसी जमीन पर जिसका पूरा पैसा तो असली मालिक ने भी नहीं चुकाया था। इस लूट में जिनता आप गहरा उतरते है उतनी ही आपकी आंखें हैरत से फटती चली जाती है। ये लूट केन्या,सोमालिया और रवांडा जैसे देशों को भी शर्मा सकती है। नौकरशाह और टके के कबीलाईं नेता ने लूट को इस तरह से अंजाम दिया कि कोई भी कानून शर्मा जाएं।
रही बात बिल्डरों की तो उनका खेल साफ है। पैसा किसी कीमत पर नहीं देना है। लूट के लाखों करोड़ रूपये को हजम करने के बाद उसको उगलना एनाकोंडा के लिए आसान होगा लेकिन बिल्डरों से निकलवाना काफी मुश्किल है। लूट में दुनिया के इतिहास में अपनी जगह दर्ज करा चुके यूपी के नौकरशाहों और राजनेताओं के गठजोड़ से एक भी रूपया रिश्वत वापस नहीं होंगी। तब वो क्या करेंगे। रास्ता साफ है मीडिया का हल्ला साफ है। आप को दिख रहा है कि ये इनवेस्टर के हक की बात कर रहा है। ऐसा नहीं है दरअसल मीडिया के इस हल्ले का सच है कि पैसे वापस करने के खेल में बिल्डर का साथ दे सरकार और सरकारी बैंक। यानि सरकार पैसा वापस करने में बिल्डरों का हिस्सा बटाएं और उनको कुछ बैंकों से कम दर पर ब्याज दिलादें। अब ये समझने की बात है कि ये सरकार क्या है जिसका हल्ला मीडिया मचाता रहता है। ये पैसा कहां से लायेगी। पैसा लाएंगी सड़क पर तन बेचकर रोटी खाने वाली और परिवार चलाने वाली औरतें। दिन भर दिहाड़ी पर काम करने वाले मजदूर और साल भर मेहनत कर मिलमालिकों और आड़तियों की तिजोरियों को भरने वाले किसान। क्योंकि टैक्स लगाकर ही तो इस रकम की भरपाई हो सकेंगी। यहीं है पूरा खेल मीडिया के इस हल्ले का और इनवेस्टर्स के वेष में मार्च कर रहे लुटेरों का। इसका क्या मतलब है कि सुप्रीम कोर्ट कह रहा है ये जमीनें अवैध तौर पर जुटाईं गई है लोगों की रोजी-रोटी छीनी गयी है उनसे सवैंधानिक तौर पर राहजनी की गयी है लेकिन इससे इन लुटेरों को क्या। ये तो लूट में अपना हिस्सा चाहते है।
कहानी साफ न हो तो इसको यूं समझें कि एक अपराधी चरित्र के आदमी ने वादा किया कि वो एक लड़की को ला रहा है उससे मुजरा कराएंगा और देह व्यापार कराएंगा। कुछ धनवान लोगों ने पैसा दे दिया। लड़की आने ही वाली थी कि खरीददार पकड़ा गया और पता चला कि वो उस लड़की को शादी का धोखा दे कर ला रहा था और किसी कारणवश उसकी पोल खुल गयी। कानून ने उससे धनवान लोगों के पैसे भी दिलवा दिएं लेकिन उनकी जिद है कि वो तो उस औरत से अब जिना करके ही मानेंगे क्योंकि उन्होंने पैसे इसी शर्त पर दिए थे कि उनकी रात रंगीन होगी। अब ये रात रंगीन करने के लिए वो आदमी यानि बिल्डर चाहते है कि उनकों रिहा कर दिया जाएं।
एक और खबर पर आपकी नजर रहनी चाहिएं कि सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश में सरकार और सबसे अहम योजना आयोग को एक पहेली सुलझाने के लिये कहा है कि कैसे 17 रूपये से ऊपर रोज कमाने वाला गरीबी रेखा से ऊपर है। यानि 17 रूपये में 2400 कैलोरी कैसे आ सकती है इसको हलफनामें बताने को कहा है। देश को अपनी बाजीगरी से अमेरिकी उपनिवेश में बदल चुके मोंटेक सिंह अहलूवालिया और मनमोहन सिंह की जोड़ी कौन सी चाबी से इस ताले को खोलेंगी देखना दिलचस्प होगा। एक बार फिर श्रीकांत वर्मा की ये कुछ पंक्तियां याद आ रही हैं।
चेचक और हैजे से /मरती है बस्तियां/
कैंसर से/ हस्तियां/ वकील/ रक्तचाप से/
कोई नहीं/ मरता /अपने पाप से

Saturday, July 16, 2011

मुंबई में आतंकी हमला और युवराज का बयान

जंगल में एक आवारा राक्षस का आतंक था। लोगों ने तय किया कि राक्षस को हर रोज एक आदमी रोज राक्षस को खाने के लिए भेज दिया जाएं। इससे राक्षस भी खुश और शहर का कामकाज भी चलता रहेगा।......कहानी आगे भी है। लेकिन राहुल गांधी को सिर्फ इतना ही याद रहा। अपनी भाषा से इतर रहने के कुछ नुकसान होते है ये नुकसान भी कुछ ऐसा ही है। मुंबई में हुए बम धमाकों के बाद कांग्रेसियों के कल की सुनहरी उम्मीद यानि युवराज राहुल गांधी ने बयान दिया कि ऐसे आतंकवादी हमले रोके नहीं जा सकते। एक दो हमले तो होते रहेंगे। तब ये कहानी याद आ गयी। बस अब करना ये है कि राहुल गांधी को अपने चाटुकार नंबर बन दिग्विजय सिंह को ये जिम्मेदारी दे सकते है कि वो देश में ऐसे लोगों की पहचान कर ले जिनको आतंकवादियों के सालाना हमले में बलि के लिए पेश करना है। उन मासूम बच्चों की तस्वीरें और उन बेसहारा रह गये बूढ़ों को राहुल गांधी अपनी मासूमियत से समझा देंगे कि देश के लिए उनके बाप या बेटों की बलि जरूरी थी। दुनिया का सबसे ज्यादा डिसीप्लीन्ड प्रधानमंत्री मुआवजें की घोषणा कर देगा। चाहे तो जनार्दन दि्वेदी और सत्यव्रत चतुर्वेदी उन बलि के बकरों को संघ का आदमी बताकर मुआवजा भी बचा सकते है।
मुंबई पर हमले जंगल में होने वाली मौत की तरह से है। हल्ला मचा, बंदरों इधर से उधर कूदे। चिडियों ने शोर मचाया और उड़ गयी। मौत किन्हीं मासूमों को झपट्टा मार कर गायब हो गयी। जंगल शोक नहीं मनाता और न ही मुंबई। मुंबई के लोगों ने अगले दिन बाजार खोला। ट्रेनों में यात्राएं की। अपने कामकाज किये। और देश की लंबाई में सबसे बौने यानि नेशनल मीडिया के लिए बाईट्स मुहैय्या कराई। शेअर मार्किट हमेशा की तरह से ऊपर चढ़ गया। ये हैरानी की बात है कि 26/11 में भी शेअर मार्किट ऊपर चढ़ गया था। आतंकी हमले और मासूमों की मौत से शेअर मार्किट का रिश्ता देश के दलालों से देश के रिश्ते को जाहिर करता है। हमला होता है तो बयान देने का सिलसिला जारी हो जाता है। कोई भी बयान जारी करता है। और उन बयानों पर सबसे पहले नेता-राजनेता और फिर मीडिया के बौनों की बारी होती है।
देश का गृहमंत्री बयान देता है कि पुलिस की चूक नहीं है। इंटेलीजेंस की कोई कमी नहीं। पुलिस ने 31 महीने से हमला नहीं होने दिया। बेचारे गृहमंत्री को याद ही नहीं रहा कि आतंकवादियों ने पिछले 31 महीने से देश में कई जगह हमले किये। लेकिन गृहमंत्री को पिछले कुछ दिनों से याद है तो बस 2 जी स्पेक्ट्रम में अपना नाम न आ जाए बस यही कवायद। चिदंबरम की छवि को इस तरह से बनाया गया कि ये सुरक्षा के ताम-झाम नहीं रखते। रात दिन काम करते है। लेकिन ये छवि फाईनेंस मंत्रालय में क्या कर रही थी।
ए राजा जब देश के लाखों करोड़़ रूपये भ्रष्ट्र बिजनेसमैन के साथ मिलकर लूट रहे थे तो ये ही चिदंबरम साहब उसको वैधानिक बनाने में जुटे है। इनके मेहनताने को खोजने में जुटी है सीबीआई और ये उसको छुपाने में। ऐसे में आपको उम्मीद हो कि ये बताएंगे कि देश को आतंकवादियों से बचाने के प्रयासो में विफलता मिली हो या न मिली हो लेकिन चिदंबरम को कानून का फंदा अपने से दूर रखने में जरूर कामयाबी मिली है।
ये पुलिस वही है जो बेगुनाहों को पकड़ कर आतंक के केस खोल सकती है। ये वही पुलिस है जिसने मुंबई ट्रेन ब्लास्ट में जाने किन को पकड़़ कर केस खोल दिये। दिल्ली के सरोजनीनगर ब्लास्ट में पकड़ लिए हवाला डीलर और भी कई केस खोल दिये।
आम जनता को उन अफसरों के भरोसे छोड़ दिया है जो सिर्फ जुगत भिड़ा कर मुंबई में पैसा वसूली में जुटे है। जुहू में पुलिसकर्मियों के आवास के लिए आरक्षित एक प्लाट को आईपीएस अफसरों के ग्रुप ने अपनी सोसायटी बनाकर हासिल किया उसमें मंहगें फ्लैट बनाये। और इसके बाद सबको किराये पर दे दिया। बिल्डिंग का ग्राउंड फ्लोर एक निजि कंपनी को दिया है। लगभग 72 लाख रूपये महीना किराये पर। 36 फ्लैट बने है जिनमें हर फ्लैट ऑनर को लगभग दो लाख रूपये महीना मिला। इसके अलावा उन फ्लैटों में रहने वाले देश के आईपीएस अफसरों ने फ्लैट किराएं पर दे दिये और खुद सरकारी फ्लैट में गरीब जनता का खून चूस रहे है। ये खबर किसी चैनल को नहीं दिखाई दी। एक न्यूज पेपर में दिखा कि कुछ अफसरों को महीने में लगभग चार लाख रूपये महीना भी मिल रहा है। ऐसे ही फ्लेट में रह रहे है महाराष्ट्र के राजा आईपीएस। इनमें से कोई आईजी है कोई डीआईजी कोई एडीजी इन्हीं के कंधों पर है देश की जिम्मेदारी। कोई भी साफ चैक कर सकता है कि कैसे ये अफसर लुटेरों को मात दे रहे है। लेकिन कानून में इन लोगों को देश का तारणहार बनाया गया। बिना किसी जिम्मेदारी के बस लूट ही लूट। जितना चाहे लूट लो। हैरानी है कि इस सोसायटी में उन आईएस अफसरों को भी शामिल किया गया है जिन-जिन के हाथों से सोसायटी की फाईल गुजरी।
रही बात बौने मीडिया के लोगो की। आप सिर्फ किसी एक चैनल को लगातार देखते रहे। दो दिन तक उसकी खबरों को लिखते रहे या फिर रिकार्ड करते रहे। फिर आप देखेंगे कि पहले दिन जिस तरह मुंबई रो रही थी उनके शब्दों में अगले दिन वही मुंबई हौसला दिखाती है। कैसे दिखाती है मुंबई अपना हौंसला ये भी जान लीजिये उनके शब्दों में अपना रोज का काम करके। यानि घर में लाशें पड़ी हो और बेटा जाकर दुकान खोल ले तब उसको नालायक बताते है ये लोग-लेकिन वहीं मुंबई के बेमुरौव्वत लोग अपने घर में पड़ी लाशें से बेशर्मी से दूरी बनाते हुए अपने काम पर चलते है रोजाना- ये हौसला है तो वाकई काबिले तारीफ हौसला है। बाकि दुनिया में मैंने कभी नहीं देखा कि ऐसा हौसला कोई दूसरा नहीं दिखाता।
दरअसल ये देश का आतंकवाद के प्रति नजरिया है। जो चाहता है सिर्फ वहीं रोएँ जिनके मर गये है। बाकि के लिए या तो वो बेचारे है, कुछ जिंदा बाईट्स और टीआऱपी है या फिर कुछ के लिए वोट है। अगर मुंबई के लोग एक दिन जिंदगी थाम ले। सड़क पर निकल कर मरने वालों के लिए दो बूंद आंसू बहा दे तो शायद उसको इस का मर्म मिल जाए कि क्यों जूता और जबान एक हो गयी है नेताओं की।
दिग्विजय सिंह के बयान पर नजर डाल लो-सरकार सक्षम थी और उसने बहुत दिन तक आतंकवादियों का मंसूबा फेल रहा। ऐसे में ये विलाप ऐसा ही लगता है जैसे किसी की बेटी के साथ रेप हो जाएँ और वो आदमी इस बात के लिए खुश हो रहा हो कि चलो वो नाना तो बन जाएंगा।

Sunday, July 10, 2011

बौनो का कोरस-लोकतंत्र का संकट

मेरे लोगो:
दुख से समझौता न करना-वरना दुख भी कड़वाहटों की तरह
तुम्हारे जायके का हिस्सा बन जाएंगा
तुम दुख के बारे में गौर करना.....

मेरे लोगो,
दुख को जब पहचानोंगे तो उसका कर्ज उतारोगे....................

इस समय देश में लूट का महोत्सव जारी है। कोई भी मंत्री अरबपति से कम नहीं है। खुली लूट है। कोई पूछने को तैयार नहीं है। समापन यूं ही चल रहा है आजकल हर आम आदमी की बातचीत का। प्रदेश हो या फिर केन्द्र सरकार पूरी तरह से लूटने में लगी है। कोई भी पॉलिसी ऐसी तैयार नहीं हो रही है जिसमें देश की दो तिहाई आबादी का दर्द या उसका अक्स दिखता हो। हां प्रोजेक्ट रोज पास हो रहे है। एक चीज ओर दिखती है कि रोज प्रोजेक्ट की कॉस्ट में ईजाफा होता जा रहा है। पहले एक हजार करो़ड़ का प्रोजेक्ट होता था तो बड़ी बात होती थी। आज छोटे से छोटे राज्य में पांच-से पचास हजार करोड़ के प्रोजेक्ट पास हो रहे है। देश में बहस जारी है कि लोकपाल बिल कैसा हो। संसद में भूमि अधिग्रहण कानून किस रूप में पास हो। बाबा रामदेव और उसके साथी आचार्य बालकृष्ण किस तरह से ढ़ोंगी है। योगी होकर भी राजनीति करते है। संसदीय लोकतंत्र को खतरा बढ़ता जा रहा है। इस तरह के वक्तव्य रोज जारी कर रहे है सरकार के प्रवक्ता। देश का बौना माफ करना नेशनल मीडिया इस को कवर कर रहा है। मीडिया की इस भेडिया-धसान में किसी भी विदेशी को लग सकता है कि देश में एक सरकार है जो रोज उपद्रवियों से जूझ रही है। मंत्रियों को एक ऐसे विपक्ष से सामना करना पड़ रहा है जो सरकार के खिलाफ विदेशों से पैसा ले रहा है। बाबा और सिविल सोसायटी नाम की संस्था लोकतंत्र पर कब्जा कर इसे विदेशियों के हवाले करना चाहती है। लेकिन देसी आदमी को हैरानी हो रही है कि आखिर लाखों करोड़ का बजट चलाने वाली सरकार को एक बाबा और उसके चेलों या फिर सिविल सोसायटी जैसे संगठनों से निबटने के लिए रोजाना अंत्याक्षरी करने की क्या जरूरत है।
आप को समझना है। मीडिया में अंत्याक्षरी से बाबा रामदेव टीआरपी बनाता है। अन्ना हजारे सरकार के खिलाफ लोगों के गुस्से का बायस बनता है। लेकिन हकीकत ये लगती नहीं है। दिल्ली से हजारों किलोमीटर दूर महाराष्ट्र के एक मंदिर में घर बना कर रहने वाले अन्ना हजारे में और महात्मा गांधी में हजारों जन्मों का नहीं तो सैकड़ों जन्मों का अंतर जरूर होगा। अपने हर भाषण में भगतसिंह और सुभाष चन्द्र बोस का नाम लेने वाले रामदेव में और देश के लिए मरमिटने वाले क्रांतिकारियों में जमीन और आसमान से भी ज्यादा फर्क होगा। फिर ऐसा क्या है कि सरकार इन सबको उतना चढ़ा रही है। कारण साफ है देश में ऐसा कुछ चल रहा है जिसको सरकार छुपा रही है और अपने इशारे पर नाचने वाले बौनों के सहारे छोटी-छोटी घटनाओं को इतना बड़ा दिखा रही है कि आप इधर-उधर देखने की बजाय सिर्फ अंत्याक्षरी देंखें।
सालों तक रिटेलिंग में आने को बेकरार विदेशी कंपनियों को इक्यावन फीसदी निवेश की अनुमति दे दी गई। अमेरिका से एक दो दस नहीं बल्कि पचास हजार करोड़ रूपये के रक्षा सौदे कर लिए गए। परमाणु ऊर्जा पर समझौते के लिए जो सपने दिखाएं गये थे वो एक-एक करके झूठे साबित हो रहे है। कभी परमाणु सौंदे का विरोध करने वाले और न दिखने वाले पर आसानी से समझ में आने वाले कारणों से बाद में सरकारी भोंपू बन कर इस सौदे को अंजाम देने वाले काकोदकर भी कह रहे है कि देश पर दबाव डाल रही है विदेशी ताकतें। कावेरी बेसिन में हजारों करो़ड़ रूपये के फायदे के सौदे देश के सबसे बड़े भिखारी(माफ करना अमीर) अंबानी की झोली में डाल दिये गए।
सरकार को इस बात से कतई खतरा नहीं है कि एक लोकपाल बन जाएंगा। क्योंकि कोई भी लोकपाल इस देश के मौजूदा संविधान के अंदर कभी वोट बटोरने वाले राजनेता को अंदर नहीं कर पाएंगा। ये धुव्र सत्य है। ये थामस की तरह से एक और सफेद हाथी साबित होगा। एक ऐसा हाथी जिसके खाने का इंतजाम सोनागाछी, कमाठीपुरा या फिर दिल्ली के जीबी रोड़ पर रोटी के लिए तन बेचने वाली औरते अपने पैसे से करती रहेगी। कई आईएस अफसरों के लिए नया ठिकाना बन जाएंगा। हजारों कर्मचारियों के लिए नौकरी का रास्ता खुल जाएगा। लोकपाल की मांग करने वाली सिविल सोसायटी के नुमाईंदों को देखने भर से लग जाता है ये किस तरह की लोकपाल की मांग कर सकते है। अरविंद केजरीवाल और किरण बेदी ऐसे पद पर रह कर लौटे है जो मध्यमवर्ग के सपनों का आखिरी पड़ाव होती है यानि आईआरएस और आईपीएस। शांति भूषण और प्रशांत भूषण कई सौ करोड़ रूपये का तो टैक्स सरकार को दे चुके है। आज प्रशांत भूषण और शांति भूषण कमाना बंद कर दे तो भी सैकड़ों साल तक अपनी कार में पेट्रोल डलवा कर घूम सकते है। ऐसी उनके पास हैसियत और ताकत है। अन्ना साहब ने दोहराया कि ये अच्छे ड्राफ्ट करने के लिए जरूरी है। कोई भी कह सकता है कि बाबा जी इनसे बेहतरीन ड़्राफ्ट तो कोई क्लर्क भी कर सकता होगा जो पैसे वसूलने में बेहद दक्ष हो। हमको ड्राफ्टमैन नहीं सच्चे लोग चाहिए थे जिनको गरीबों से सहानुभूति नहीं समानुभूति हो। लेकिन ऐसे आदमी कहां से लाएं। जो राजा को नंगा कहने का साहस जुटा सके। लिहाजा ये भी सिर्फ जबानी जमा खर्च ही है।
रही बात बाबा रामदेव की तो 1995 में हरिद्वार में दवाईयां बनाने वाले बाबा आज हजारों करोड़ रूपये के मालिक है। इस पर कोई ऐतराज किसी को नहीं हो सकता है। उन्होंने अपने कामयाब चार्टड एकाउंटेंट्स की मदद से एक ऐसा जाल तो बुन ही दिया है कि अपनी सारी ताकत और हैसियत के बावजूद केन्द्र सरकार कुछ पकड़ नहीं पा रही है। आखिर सरकार में बैठे लोगों ने बाबा के यहां लंबे अरसे तक कार्निश की है। तो अपनी उस बुद्दि का सहारा जरूर बाबा को दिया होगा जिससे वो साठ सालों से देश को लूट रहे है बाकायदा संवैधानिक तौर पर मालिक बनकर। कोई भी आदमी चार जून की रात पुलिस की असंवैधानिक कार्रवाई का समर्थन नहीं कर सकता है। जिस पुलिस कमिश्नर को किसी लोकतांत्रिक व्यवस्था में अभी जेल में होना चाहिए था वो रिटायरमेंट के बाद यकीनन किसी भी राज्य में राज्यपाल बनने की तैयारी कर रहा होगा।
इस समय देश में सरकार को बचाने की जिम्मेदारी है कपिल सिब्बल पर। कपिल सिब्बल इस वक्त मनमोहन के सबसे करीबी मंत्री है जो संगठन से ज्यादा इस समय प्रधानमंत्री की वकालत में जुटे है। लेकिन कई भारी-भरकम मंत्रालय संभाल रहे कपिल सिब्बल सुप्रीम कोर्ट के नामी-गिरामी वकील है। अपनी वकालत के कैरियर में उन्होंने कितने गरीब लोगों के लिए केस लड़े है और कितनी पीआईएल में वो पार्ट रहे है अगर पता करेंगे तो पता चलेगा कि एक भी नहीं या फिर आपके हाथ में उंगलियां ज्यादा होगी उनकी सहभागिता के केस कम होगें। वो देश की क्या सेवा कर रहे थे कि मंत्रीमंडल में उनको शामिल किया गया। उनका सार्वजनिक जीवन में इतना ही योगदान है कि उन्होंने अमीर और बड़े लोगों के करप्शन में उनका बचाव किया कानून की बारिकियां निकाल कर जिस कानून को बनाया गया था कमजोर और गरीब लोगों की रक्षा के लिये। यही एकमात्र योग्यता थी उनकी सरकार में शामिल होने की। क्योंकि उनको ये अच्छी तरह से मालूम है कि ताकत कहां है लिहाजा उसका फायदा उठाना आता है। किसी पानीदार आदमी से कहों कि आपने पंचायत में झूठ बोला था तो वो शर्म से गर्दन नहीं उठाएंगा। लेकिन इनको महारथ हासिल है झूठ बोलने में उसको दोहराने में और फंस जाने पर फिर कोई नया झूठ बनाने में। आखिर सीएजी में इन्होंने किस गणित से राजा की रक्षा की। इनके मुताबिक तो कोई नुकसान हुआ नहीं था देश को तो फिर इनके होते हुए राजा जेल में क्यों है। सीबीआई चार्जशीट क्यों कर रही है। इनकी आत्मा जरूर दुख रही होगी अमीर लुटेरों को जेल जाते देख कर। अब एक नयी कहानी सामने आई है रिलाइंस इन्फोकॉम को जुर्माने में राहत देने संबंधी। सच में झूठ बोलने वाले कपिल सिब्बल को बचाव नहीं सूझा तो बौनों को ही सलाह देने लगे कि सही तरह से कवरेज करें। किस तरह से कवरेज करे भाईसहाब बता दे। रिलायंस पर जुर्माना बढ़ाने की बजाय घटाने की तारीफ करे। जीं हां यही लूट का अर्थशास्त्र है जो देश में इस समय चल रहा है। कभी कोई ये कह सकता है कि कानून की इन बारीकियों को लिखा गया था अमीर लोगों को गरीबों का खून चूसने देने के लिए या फिर देश के उस सबसे गरीब आदमी की महाजनों से सुरक्षा के लिए।
और अब कपिल सिब्बल को लग रहा है कि लोकतंत्र खतरे में है। क्योंकि बौंनों के कौरस में भी देश के अलग-अलग हिस्सों में लोग जाग रहे है। सवाल कर रहे है और उनको किसी अन्ना के लोकपाल या फिर रामदेव के योग की नहीं सिर्फ जाति औऱ क्षेत्रवाद के खोल से बाहर निकल कर लुटेरों की पहचान करनी है। इसी खतरे की ओर इशारा कर रहे है देश के सबसे जहीन और महीन मंत्री कपिल सिब्बल साहब।

पता नहीं क्यों लेकिन मन कह रहा है कि पाकिस्तान की एक अनजान सी कवियत्री की उपर की पक्तिंयों को पूरा पढ़ना चाहिएँ...
मेरे लोगो
दुख के दिनों में सूरज के रस्ते पर चलना
उसके डूबने-उभरने के मंजर पर गौर करना
मेरे लोगो झील की मानिंद चुप न रहना
बातें करना,चलते रहना , दरिया की रवानी बनना
मेरे लोगो
दुख से कभी समझौता मत करना, हंसते रहना
दुख के घोड़े की लगामों को पकड़ हवा से बाते करना
ऊंचा उड़ना.....
शाहिस्ता हबीबी