Monday, March 23, 2009

तुम मत रोना मां.......।

सर्द रात में
अकेले काफी वक्त गुजारा है तारों की छांव में
बंदूक के सहारे,
कई बार मेरा कंधा काम आया
अपने सिपाहियों को विदाई देने में,
आज गुजर रहा हूं आखिरी बार अपने शहर की सड़कों से
तिंरगे में लिपटा हुआ
ट्रक पर चलते देख रहा हूं आखिरी बार.....
लोग दुखी है,
सुबह घर से निकलते ही जाम मिलने से
देर हो जायेगी उनको दफ्तर पहुंचने में
ट्रैफिक जाम हो गया ट्रक को रास्ता देने में,

ट्रैफिक पुलिस का सिपाही दुखी है,
चार घंटे तो यूं ही गुजर गये सड़क पर
बचे चार घंटे में
कितने ट्रक गुजरेंगे
कितनी वसूली हो पायेगी
इस तरह से तिरंगे में लिपटी लाशों के आने-जाने में
सुबह की ड्यूटी में ही आना था इस लाश को भी
उसे
मेरा नाम मालूम है.. न.... ही वो जानना चाहता है मेरी शहादत की वजह
उसको एक ही उम्मीद है कि अधिकारी लौट जायेंगे
वही से
और वो कर पायेगा अपना रोजमर्रा का काम.....

आगे चल रही जीप का सीओ भी दुखी है
आज के केस में कुछ मिलना था
नेताजी का मामला था
कुछ तारीफ
तो कुछ माल भी मिल जाता
अब चला जायेगा केस दूसरे सीओ प्रताप के पास
अच्छी ड्यूटी लगी इस लाश के साथ .......

मेरे बचपन के दोस्त नहीं थे
मेरी विदाई के वक्त
सुबोध आईबीएम बैंगलोर है
विनोद इस वक्त यूएस में
कमल भी यूके चला गया था,
तुमको जल्द ही मिल जायेगे
उनके खत
जिसमें दुखी होंगे मेरे यूं असमय जाने से
लेकिन ये लिखेंगे जरूर कि उनको गर्व है
मेरी शहादत पर,
मां,
गली का लाला भी दुखी है
दुकान बंद करनी होंगी जब तक लाश गली में है,
वो बता रहा है
शर्मा जी का लड़का जबसे मेजर बना है
खूब माल बना रहा होगा
उसको मालूम है मेरे जाने के बाद
तुमको मिलेगा लाखों रूपया
मिल जाये शायद किसी पेट्रोल पंप का लाईसेंस भी
कितना पैसा आ सकता है,
ये बता सकता है वो अभी कुछ ही पलों में
उसकी उँगलियों में सिमटा है सब हिसाब,
रक्षा मंत्री भी दुखी है,
चुनाव की सीटों को लेकर समझौता करना है दूसरी पार्टी से
हाईकमान का आदेश है
ऐसे में एक लाश पर फूल चढ़ाने जाना
टाईम खराब करना होगा
शायद उनको याद भी न रहे मेरी,
....अपनी फ्लाईट के टाईमटेबल के बीच,

मुझे श्मशान तक और भी जाने कितने दुखी चेहरों को देखना होगा मां
लेकिन
घर से दफ्तर जाने वाले लोगों का घर और दफ्तर
ट्रैफिक पुलिस के सिपाही का चौराहा और घर
सीओ का ऑफिस या फिर श्मशान तक का रास्ता
ये सब उसी सीमा के अंदर आता है ना मां
जिसमें घुसना चाहते थे आतंकवादी
उनसे
देश बचाने में छलनी हो गया मेरा जिस्म
सब दुखी है......
लेकिन
तुम मत रोना मां
तुमने तिलक लगाकर भेजा था सीमा पर
सबके मना करने के बावजूद..
तुम तो जानती हो मां
मेरी शहादत
और अपने दूध की कीमत
तुम मत रोना मां।

Friday, March 20, 2009

काले को काला. सफेद को सफेद कहना

काला
वो बोले
भय से भीगी जनता चिल्लाई.... काला,
लेकिन वो काला रंग नहीं था
मैंने हाथों से मली आंखें बार-बार
दिमाग पर जोर डाला कई बार,
लेकिन ये तो नहीं है काला
मेरे चारो ओर घिर आये लोग
जोर देकर उन्होंने कहा कि काला
ध्यान से देखा मैंने फिर
लेकिन ये नहीं है काला
थोड़ी धीमी हो गयी थी मेरी आवाज
वो जिनकी तेज निगाह थी मुझ पर
उन्होंने कहा देखो ध्यान से
अचानक मुझे लगने लगा कि हां वो काला ही तो है
भीड़ से आवाज मिलाकर मैं चिल्लाया
हां.... कितना..... काला,
उसके बाद से मुझे नहीं मिला किसी भी रंग में अंतर
जो वो देखते रहे, मुझे भी लगता रहा वैसा ही
मैंने काले को सफेद, सफेद को हरा,
हरे को लाल और नीले को कहा काला
और फिर मैं भूल गया कि मैंने क्या कहा किस को
लेकिन
मेरे हाथ कांप रहे है आज
मुश्किल हो रही है मुझे बोलने में
जल पूछ रहा है,
रंगों की किताब हाथ में लेकर
पापा जरा बताओं तो ये कौन सा रंग है
मैं समझ नहीं पा रहा हूं
कि
इसको कौन सा रंग कौन सा बताना है।

Thursday, March 19, 2009

मैं तुम को प्यार करता हूं।

समंदर की अथाह जलराशि,
नीले रंग का असीम फैलाव,
उमड़ती आवाज का जादू ,
मैं मूक हो गया
जब मैंने पहली बार समंदर देखा।
रूई के फाहों सी टपकती,
सफेद ही सफेद ,
आकाश से टपक रही हो रोशनी,
मैं खामोश था जब मैंने देखी ,
पहली बार गिरती बर्फ।
धवल हिमशिखर ,
इतने खूबसूरत कि कोई सानी नहीं,
मेरे आनंद को मिल सके न कोई शब्द,
कुदरत की खूबसूरती के आगे
हमेशा की तरह बेआवाज मैं।
.तुम को ये शिकायत क्यों है मुझसे
.तुम मिली मुझे...इतनी बार ,और
.मैंने प्रेम कहा नहीं।

Wednesday, March 18, 2009

रास्ता

मुझसे जो कहा गया
मैं वही नहीं बन पाया
खेल के मैदान में कहा गया,
मुझे बड़ा खिलाडी बनना है
मैं सही से खेल नहीं पाया
स्कूल में मुझे सबको टॉप करना था
और मैं अपने ही सबक भूल गया।
मुझे जब पढना था, मैंने खेलने को तरजीह दी
और जब खेलना था, तब मैं पढ़ने लगा
इस तरह खो गया अपने रास्ते
अब जल कहता है पापा खेलना है
मैं कहता हूं कि हां... यदि मन करे तो
और जब वो कहता है कि पापा किताब
तो मैं कहता हूं हां यदि पढ़ना चाहों तो
रास्ता तुमको तय करना है,
जूते मेरे मत पहनना।

Tuesday, March 17, 2009

मैं झूठ बोलता रहा

तुमने (राजनेता)
कहा आग
मैंने कहा जला देगी
नहीं तुमने इशारा किया,
मैंने कहा रोटी पका देगी
तुमने कहा पानी
मैंने कहा बहा देगा
तुमने इशारा किया
मैंने कहा जीवन देगा
तुमने कहा हवा
मैंने कहा उडा देगी
तुम्हारा इशारा
मैंने कहा सांसे देगी
तुमने कहा जमीन
मैंने कहा उलट जायेगी
इशारा तुम्हारा था
मैंने कहा घर देगी
तुमने कहा आसमान
मैंने कहा फट जायेगा
तुमने इशारा किया
मैंने कहा छत देगा
तुम्हारे कब्जे में आग, हवा, पानी ,जमीन और आसमान आया
आग ने तुम्हारी रोटियां पकाई
हवा ने तुम्हारी सांसे बढ़ाई
पानी आनंद दिया
जमीन पर महल खड़े किये
और आसमान में हवाई जहाज उडाये
मैं चिल्लाया
तो तुमने कहा झूठ
और कोई इशारा नहीं था
आग से जली, हवा से महरूम, पानी से तरसती,
बेघर, धूप से तपती जनता चिल्लायी
सच
मैं उनके लिये जनता से झूठ बोलता रहा।

मुतालिक का हमला औरतों पर

मुतालिक हिटलर है,..........
मेरी आवाज में गुस्सा था,
दिखाना जरूरी था
क्योंकि एंकर भी गुस्से में थी,
इसका ख्याल रखते हुये
मेकअप न बिगड़ जाये,
या आवाज में दिख न उम्र का असर।
बहुत मुश्किल होता है आवाज को सुरीला रखना
बढ़ती उम्र के बावजूद,
एंकर जानती है आवाज की तेजी एक सीमा से बढ़ी नहीं
कि प्रोड्यूसर को मौका मिल जायेगा कहने का
उम्र हो गयी है इसकी, अब प्राईम टाईम में नयी एंकर को जगह दो,
मुझे चैट करनी थी उनके साथ जिनकी इंग्लिश बेहद नफीस थी,
बहुत नाराज थी वो सब मुतालिक सेना के पब पर हमले से,
कुछ ने पिंक चढ्ढियां भेजी, कुछ ने दौरा किया
कुछ ने अखबारों में लिखा कुछ ने टीवी पर चिल्लाया,
आखिर आईटी सिटी में हमला था देश की तरक्कीयाफ्ता लड़कियों पर
चैट लंबी थी, चर्चा देर तक चली,
मेकअप को ठीक करती शालीन औरते मुस्करा रही थी
चर्चा में कही अपनी धारदार बातों को याद करके।
और मुझे गुजरना था,
दिल्ली की जीबी रोड से,
मेरठ के वैली बाजार से,
कोलकता के सोनागाछी से,
और मुंबई के कमाठीपुरा जैसे हर शहर के बाजार से..............,
जहां इतनी देर में मुझ जैसे चार ग्राहक निबटा चुकी होगी
औरते जैसी दिखने वाली मांस और हड्डी की मूर्तियां
मुतालिक क्यों नहीं जाते तुम उधर......,
शालीन औरतों को उधर नहीं जाना चाहिये दाग लग जाता है
कैमरे के ढंके लैंस में तस्वीरे नहीं उभरती है जनाब

Monday, March 16, 2009

दोस्त से बातचीत

तुम जानते हो यार
ओबामा अमेरिका को बदल देंगे।
ओसामा छिपा है हिंदुकुश के पहाडो़ में,
इजराईल ने बना लिया है नया रडार,
आतंकियों के हाथ लग सकता है कैमीकल बम।
हैंड्रान से मिल सकता है गॉड पार्टिक्लस,
है भगवान हैच फंड से बैठ गया भट्ठा देश की अर्थव्यवस्था का।
बैगन...टमाटर मत खाना हो सकता है कैंसर,
दो पैंग शराब से पीने से रहेगा दिल मजबूत
मालूम नहीं है मुझे ये सब,
लेकिन तुम बताओ दोस्त
आखिरी बार कब देखा था तुमने ख्वाब
कि
खेतों में तितलियों के पीछे दौड रहा तुम्हारा बेटा
और उसे पकड़ रहे हो तुम,
या
तुम्हारी गोद में बैठा बेटा पूछ रहा
पापा यदि चांद हमारा मामा है तो घर क्यों नहीं आता.
उसमें काला दाग क्यों हैं।
तुमने कब देखा था नीम और शीशम के पत्तों का अतंर आखिरी बार।
और कौन सा पेड कटा आखिरी में
घर से स्कूल के रास्ते पर
जिसके दोनों और पेड ही पेड थे।
हां
मैं जानता हूं ये बात
नया सीखने के लिये पुराना भूलना पड़ता है
........शायद........हां ...शायद....नहीं

Saturday, March 14, 2009

बेटे को सीख

बाहर मत जाना अकेले......।
अकेले दरवाजा मत खोलना।
पार्क में किसी अनजान आदमी के पास न जाना।
प्रसाद ही क्यों न हो पुजारी का दिया, बाहर किसी से लेकर कुछ न खाना।
सीखा रहा हूं अपने बेटे को रात दिन।
लेकिन
किसी को दरवाजे पर देखकर दरवाजा खट से खोलना
दरवाजा खुला देख कर फट से बाहर निकलना।
इंसान को देखकर, भले ही अनजान हो मुस्कुराना।
तीन साल की जिंदगी में ही सीख चुका है वो इतनी बाते।
जो उसकी जिंदगी को आसान नहीं मुश्किल कर देंगी।
उसको सीखना है किसी भी तरह से जिंदा रहना।
उसे फरिश्तों में नहीं इंसानों में रहना है।

Thursday, March 12, 2009

शहर बदल गया

बस स्टैंड के सामने झोपड़ी नहीं फ्लैट दिखने लगे,
खाली पड़े मैदान में रातों-रात उग आया मॉल,
कूचा अमीर सिंह, चोर गली, गली संगतराशान, के नाम पर
रिक्शा वाले तो दूर दुकान वाले भी होने लगे हैरान,
लेकिन कभी नहीं लगा कि शहर बदल गया।
अपने ही स्कूल की इमारत में खुल गया साईं मंदिर,
खेल के मैदान में पुलिस का थाना,
स्टेशन पर बन गये कई और प्लेटफार्म,
लेकिन शहर नहीं बदला,
मैं जा कर भी नहीं गया इस शहर से,
लेकिन
दोस्त की आंखों में जब शरारत नहीं समझदारी दिखायी दे,
होली से उठता धुंआं आंखों में कड़वा लगने लगे,
रास्ता पूछने पर कोई आदमी तुम्हारी तरफ पलटे भी नहीं
तब लगता है कि शहर बदल गया है।
साल दर साल त्यौहार पर शहर लौटने में
बदलाव की चमक आंखों को चौंधियाने लगे,
खूबसूरत लडकियों के पतों, से निकले बच्चों पर चिल्लाती हुयी औरते
मां से हर बार किसी ऐसे रिश्तेदार की बात सुनना, जिससे आप मिले ही ना हो
लगता है कि शहर बदल गया है।
जब इंतजार लंबा हो जाये कि भीड़ से चिल्ला कर कोई आदमी आप से पूछे
अरे क्या कर रहे हो आजकल
बेपरवाह कोई धौल जमा दे कमर पर,
और कोई उलाहना न मिले एक पूरी रात और दो दिन में भी
तब लगता है कि शहर बदल गया।
और आज लगा कि मैं आकर भी इस शहर में हूं नहीं
किसी भी पल में हिस्सेदार...........।

Friday, March 6, 2009

ख्वाब से रिश्ता

तु्म्हारों ख्वाबों से मेरी नींद का कोई रिश्ता जरूर है,
बीच रात खुलती है मेरी नींद तो तुम कसमसा रहे होते हो,
मेरी आंखे खुलती है जब भी हल्के से,
तुम नींद में मुस्करा रहे होते हो,
अचानक उठा जब मैं चौंक कर
तुम नींद में किसी ख्वाब में घबरा रहे होते हो।
मैं समझ नहीं पाता कि क्या रिश्ता है
लेकिन जल............... मेरे बेटे
मेरी गोद में सोने की जिद के बाद
तुम्हारीं धीरे-धीरे बंद होती आंखों में
जैसे ही कोई ख्बाव पनपता है,
मेरी आंखों में भी नींद पसर जाती है।
कुछ यूं ही है तीन साल से मेरी
और तुम्हारी नींद का अनजाना रिश्ता।