Wednesday, February 20, 2008

थम गया है वक्त
दिन-रात सपने देखते हुये लोग। हर वक्त अपने में खोये हुए लोग। उंची-उंची इमारतों के आगे बौने लोग। और भी जाने कितने नाम है जो मुंबईवासियों को अलग-अलग आदमी अपने आप देता है। इस शहर की खासियत है कि लोग खो जाते हैं सपनों में दिक्ततों में प्यार में या फिर रोजगार में। आदमी को ढूंढना शहर के समुंदर में सीप ढूंढना। देश के तमाम शहरों में इस शहर ने अपनी एक अलग जगह बनायी। देश के हर आदमी से जिसका आधुनिक कम्यूनिकेशन से जरा भी वास्ता है मुंबई का एक खास रिश्ता है। हजारों फिल्मों के सहारे मुंबई उस आदमी से भी संवाद करता है जो कभी नक्शे पर भी नहीं बता सकता कि मुंबई आखिर है कहां। अब सपनों का शहर है तो शहर में अच्छे बुरे लोग दोनों ही होंगे। आप का साबका किससे पड़ता हैं हर बार आप ये तय नहीं कर सकते। टैक्सी ड्राईवर हो या फिर बोझा ढोते हुये मजदूर अगर आप उत्तर भारतीय है तो अचानक आप के चारों ओर बात करते लोगों की भीड़ से कुछ हाथ उठे और हमलावरों की बाहों में तब्दील हो गये। टैक्सी वालों को पीटते हुये देखते हुये करोडों उत्तर भारतीयों को लगा कि केन्या उनसे दूर नहीं है यही कही उनके आस पास आ गया। अभी आसाम और नार्थ ईस्ट में लाशों के ढ़ेर में तब्दील गरीब उत्तर भारतीयों की तस्वीरे लोगों के जेहन से उतरी भी नहीं कि ये नया मामला आ खड़ा हुया। ऐसा नहीं है कि ये पहली बार हो रहा है लेकिन पहली बार इस तरह से करोड़ों उन उत्तर भारतीयों के सामने जा रहा है जो कभी मुंबई न गये है न ही उनको जाना है। लेकिन मुंबई उनकी निगाह में ऐसा शहर तो हो ही गया जो उत्तर भारतीयों को अपना निशाना बनाता है। एक सवाल जरूर है जो उत्तर भारतीय अब सबसे पूछ रहे है कि क्या कोई ये बताये कि भारत के बलिदान देने की बारी सिर्फ उत्तर भारतीयों की है। या देश नाम का मतलब भी सिर्फ उत्तर भारतीय को ही मालूम है।