Thursday, October 2, 2008

सच के पहरूये ?

खबर कवर करनी थी। समय हाथ से निकलता जा रहा था। मुझे लग रहा था कि ड्राईवर जान-बूझकर गाड़ी धीमें चला रहा है। गुस्से में मैने ड्राईवर को कड़े शब्दों में डांटा। आप समझ सकते है कि किसी अपने से छोटी सामाजिक हैसियत वाले आदमी को हम कहते वक्त कडे किन शब्दों को कहते है। ये मेरे साथ पहली बार हो रहा था कि मैं किसी स्टाफ से इस तरह से पेश आ रहा था, ऐसा नहीं था कि मैं पहली बार इस ड्राईवर के साथ जा रहा था। लेकिन उस दिन ही ऐसा लगा कि ये ड्राईवर कुछ धीमा चला रहा है। खैर मैं किसी तरह समय पर प्रेस कांफ्रैस में शामिल हुआ। खबर खत्म कर वापस लौटा तो मैंने अपने ड्राईवर से कहा कि माफ करना यार सुबह मैं गुस्से में काफी कुछ बोल गया लेकिन तुम इस तरह से क्यों चला रहे थे। तब उस ड्राईवर ने जवाब दिया कि कोई बात नहीं साहब मैं थोड़ी नींद में था। क्योंकि पिछले 22 घंटे से ड्यूटी पर हूं। क्या मतलब तुम 22 घंटे से गाड़ी चला रहे हो। जीं हां सर रिलीवर छुट्टी पर है इसी लिये में चला रहा हूं। लेकिन क्या इस तरह से तुम हमारी और अपनी जान खतरे में नहीं डाल रहे हो। सर ये तो हफ्ते में एक दो बार होता ही है।
तब मुझे पहली बार पता चला कि किसी ड्राईवर को हफ्ते में कोई छुट्टी नहीं मिलती। और जिन इश्तिहारों में मैने 24*7 खुला हुआ लिखा देखा था उसका असली मतलब समझा। फिर मैंने उन सब ड्राईवरों से बात की जिनको मैं जानता था पता चला कि सब किसी भी ड्राईवर का हफ्ते में एक भी दिन छुट्टी का नहीं है। साथ ही आप जान ले कि आठ घंटे का समय उनके लिये नहीं वो पूरे बारह घंटे की ड्यूटी करते है। रोजाना, सातों दिन और पूरे महीने साल भर। हां वो छुट्टी पर भी जाते है तब या तो रिलीवर को छुट्टी के बदले पैसै या फिर उसके लिये आकर ड्यूटी करने के बदले। पूरी दिल्ली में लाख से ज्यादा ड्राईवर होंगे , और उनकी जिंदगी इस तरह से ही चलती है। बिना किसी लेबर लॉ या फिर देश में तेजी से आ रही विकास की आंधी से अनछुई सी। कोई खबर उनकी जिंदगी पर नहीं। जानते सब है लेकिन बोलता कोई नहीं ज्यादातर ये लोग ट्रांसपोर्टरों की कारों पर काम कर रहे है और जानते है कि इस नौकरी के अलावा कोई विकल्प नहीं है।
एक बात जरूर है कि उस बात को गुजरे तीन साल हो चुके है और मैं जब भी टैक्सी में बैठता हूं तो ये नहीं बोलता कि मैं बदलाव के लिये काम करने वाला पत्रकार हूं एक क्लर्क नहीं, क्योंकि हकीकत वो आगे बैठा आदमी जानता है।

2 comments:

dinesh dhawan said...

सवाल पूछना कतई देशद्रोह नहीं है

जगजाहिर बात है कि हमारे देश के मीडिया वाले चन्द रुपयों, या सिक्कों पर बिक जाते हैं जो शेयर मार्केट की खबरें लिखते हैं वो म्युचुअल फन्ड की कम्पनियों से पैसे खाकर बाजार चढ़ने वाला है चिल्लाते हैं, जो रीयल एस्टेट के बारे में लिखते हैं वो बिल्डरों से पैसे खाकर हल्ला मचाते हैं, नेता और गुन्डों से मीडिया का गठजोड़ तो जग जाहिर है हर कोई अपनी आत्मा बेचने पर लगा हुआ है लोग आतंकवादियों और दूसरे देश के दलालों से पैसे खाते रहते हैं मुशर्रफ के आने पर भारतीय टेलिविजन ने अपनी जबान कैसे बेची थी सब जानते हैं

चन्द रुपयों के लिये उमा खुराना जैसी अध्यापिका की इज्जत सरेआम उछालने वाली मीडिया से और अधिक क्या उम्मीद की जा सकती है

सवाल पूछना कतई देशद्रोह नहीं है
पूछते रहो

मुनीश ( munish ) said...

THIS IS A SENSIBLE POST SIR OUT OF ALL TRASH U HAVE WRITTEN SO FAR. I APPRECIATE UR CONCERN FOR DRIVERS.